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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1449
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
प꣡व꣢मान सु꣣वी꣡र्य꣢ꣳ र꣣यि꣡ꣳ सो꣢म रिरीहि णः । इ꣢न्द꣣वि꣡न्द्रे꣢ण नो यु꣣जा꣢ ॥१४४९॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मान । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । र꣣यि꣢म् । सो꣣म । रिरीहि । नः । इ꣡न्दो꣢꣯ । इ꣡न्द्रे꣢꣯ण । नः꣣ । युजा꣢ ॥१४४९॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान सुवीर्यꣳ रयिꣳ सोम रिरीहि णः । इन्दविन्द्रेण नो युजा ॥१४४९॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमान । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । रयिम् । सोम । रिरीहि । नः । इन्दो । इन्द्रेण । नः । युजा ॥१४४९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1449
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (पवमान) पवित्रतादायक, (इन्दो) रस से सराबोर करनेवाले (सोम) आनन्द-रस के भण्डार जगदीश ! आप (नः युजा) हमारे सहायक (इन्द्रेण) मन द्वारा (नः) हमारे लिए (सुवीर्यम्) श्रेष्ठ वीरता से युक्त (रयिम्) ऐश्वर्य (रिरीहि) प्राप्त कराओ ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा, जीवात्मा और मन की मित्रता से ही मनुष्य चरम उन्नति करने में समर्थ होता है ॥६॥
पदार्थ
(पवमान सोम) हे धारारूप में प्राप्त होने वाले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (सुवीर्यं रयिं नः-रिरीह) शोभन बल वाले ज्ञान-धन को हमें दे—प्रदान कर (नः-इन्दो) हे हमारे आनन्दरसपूर्ण इष्टदेव (युजा-इन्द्रेण) युक्त होने वाले मुझ उपासक आत्मा के साथ युक्त हो—सङ्गति कर॥६॥
विशेष
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विषय
सोम से सोम का मिलन
पदार्थ
हे पवमान (सोम) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम! तू (न:) = हमें (सुवीर्यम्) = उत्तम प्राणशक्ति को तथा (रयिम्) = रयिशक्ति को [प्राणशक्ति ही पुरुष में सुवीर्य व स्त्री में रयि कहलाती है] (रिरीहि) = दे । हमारे शरीरों को वीर्य व रयि से युक्त कर । जिस समय इन रयि व सुवीर्यरूप चन्द्रशक्ति व सूर्यशक्तियों से हमारे शरीर संयुक्त होते हैं तब ये नीरोग, आह्लादमय व प्रकाशयुक्त होते हैं । शरीर नीरोग है तो मन प्रसन्न और बुद्धि उज्ज्वल ।
इस प्रकार हमारे जीवनों को सुन्दर बनाकर सोम हमें उन्नति-पथ पर आगे बढ़ने के योग्य बनाता है। आगे बढ़ते हुए हम एक दिन प्रभु के समीप पहुँचनेवाले हो जाते हैं । मन्त्र का ऋषि ‘असित' सोम से कहता है कि हे (इन्दो) = शक्ति देनेवाले सोम ! तू (इन्द्रेण) = उस परमात्मा से (नः) = हमें (युज) = सङ्गत कर दे । वस्तुत: यह ‘सोम’-वीर्यशक्ति जड़ जगत् की सर्वोत्तम वस्तु है, वह सोम=परमात्मा चेतन जगत् में सर्वश्रेष्ठ है । यह सोम ही उस सोम को प्राप्त कराने में समर्थ है।
भावार्थ
हे पवित्र करनेवाले सोम! तू हमें सुवीर्य व रयि प्राप्त कराके प्रभु से मेल के योग्य बना दे।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे (पवमान) पवित्रतादायक, (इन्दो) रसेन क्लेदक (सोम)आनन्दरसागार जगदीश ! त्वम् (नः युजा) अस्माकं सहायकेन (इन्द्रेण) मनसा [यन्मनः स इन्द्रः। गो० उ० ४।११।] (नः) अस्मभ्यम् (सुवीर्यम्) सवीर्योपेतम् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (रिरीहि) प्रापय। [रिणातिः—गतिकर्मा निघं० २।१४।] ॥६॥
भावार्थः
परमात्मजीवात्ममनसां सख्येनैव मानवश्चरमोन्नतिं कर्तुं पारयति ॥६॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, grant us riches and heroic strength. O Yogi, give us strength through God, our Ally !
Meaning
O Soma, beauty and joy of life, pure and purifying ever on the flow, our friend united with the mind and soul, we pray bring us courage and creativity of spirit, and wealth, honour and excellence of life, join us with divinity in communion and freedom. (Rg. 9-11-9)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (पवमान सोम) હે ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (सुवीर्यं रयिं नः रिरीह) શોભન બળવાળા જ્ઞાન-ધન અમને આપ-પ્રદાન કર. (नः इन्दो) હે અમારા આનંદરસ પૂર્ણ ઇષ્ટદેવ (युजा इन्द्रेण) યુક્ત થનાર મારા-ઉપાસક આત્માની સાથે યુક્ત થા-સંગતિ કર. (૬)
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा, जीवात्मा व मनाच्या मैत्रीनेच माणूस चरम उन्नती करण्यात समर्थ होतो. ॥६॥
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