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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1481
    ऋषिः - हर्यतः प्रागाथः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    3

    ते꣡ जा꣢नत꣣ स्व꣢मो꣣क्यं꣢३꣱सं꣢ व꣣त्सा꣢सो꣣ न꣢ मा꣣तृ꣡भिः꣢ । मि꣣थो꣡ न꣢सन्त जा꣣मि꣡भिः꣢ ॥१४८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । जा꣣नत । स्व꣢म् । ओ꣣क्य꣢म् । सम् । व꣣त्सा꣡सः꣢ । न । मा꣣तृ꣡भिः꣢ । मि꣣थः꣢ । न꣣सन्त । जामि꣡भिः꣢ ॥१४८१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते जानत स्वमोक्यं३सं वत्सासो न मातृभिः । मिथो नसन्त जामिभिः ॥१४८१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ते । जानत । स्वम् । ओक्यम् । सम् । वत्सासः । न । मातृभिः । मिथः । नसन्त । जामिभिः ॥१४८१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1481
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर उसी विषय में कहा गया है।

    पदार्थ

    (ते) वे परमेश्वर के उपासक (स्वम्) अपने (ओक्यम्) हृदय-सदन में विद्यमान परमात्माग्नि को (जानत) उपास्य रूप में जानते हैं और फिर उस परमेश्वर को उपासने के लिए (मिथः) आपस में (जामिभिः) माँ-बहिन आदियों के साथ (सं नसन्त) मिलकर बैठते हैं, (वत्सासः न) जैसे बछड़े (मातृभिः) अपनी माताओं गौओं के साथ (सं नसन्त) मिलते हैं ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे बछड़े प्रेम से गौओं के साथ रहते हैं, वैसे ही घर के बालक से लेकर बूढ़े तक सब लोग आपस में एक साथ बैठकर परमात्मा की उपासना किया करें ॥२॥

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    पदार्थ

    (ते स्वम्-ओक्यं संजानत) वे उपासक परमात्मा के साथ अपने समवेतव्य—सङ्गमनीय स्थान—मोक्ष को सम्यक् जानते हैं (वत्सासः न मातृभिः) जैसे बछड़े माताओं के साथ अपने-अपने आश्रयणीय स्थान को जानते हैं (जामिभिः-मिथः-नसन्त) पुनः वहाँ मोक्ष में अतिरिक्त—अन्य मुक्तों के साथ११ मिलते हैं१२॥२॥

    विशेष

    <br>

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    विषय

    अपने घर को प्राप्त करना

    पदार्थ

    (ते) = पिछले मन्त्र वर्णन के अनुसार द्युलोक और पृथिवीलोक की श्री को धारण करनेवाले (स्वम् ओक्यांसम्) = अपने निवास स्थान [घर] परमेश्वर को (न) = इस प्रकार (जानत) = जान पाते हैं जैसे (वत्सास:) = बछड़े (मातृभिः) = अपनी माताओं के साथ होते हैं । बछड़ों का निवास स्थान वह है जहाँ उनकी माता है— इसी प्रकार श्री को धारण करनेवालों का निवास स्थान 'प्रभु' हैं । ये (जामिभिः) = क्रियाशीलता के द्वारा (मिथ:) = आपस में (नसन्त) = मिलते हैं – प्राप्त होते हैं, अर्थात् प्रभु की प्राप्ति का ढंग‘क्रियाशीलता’ है। प्रभु ने स्वयं ही कहा है कि ('कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत्') = तू कर्मों को करते हुए ही जीने की इच्छा कर । यह कर्म में लगे रहना ही प्रभु-प्राप्ति का - प्रभु से मेल का ढंग है। कोई भी अकर्मण्य व्यक्ति प्रभु को नहीं पा सकता ।

    बछड़े माताओं के द्वारा जिस प्रकार प्रेम से रास्ता दिखलाये जाते हुए अपने घरों को प्राप्त होते हैं—इसी प्रकार प्रभुभक्त, प्रभु से प्रेमपूर्वक पथ-प्रदर्शन द्वारा निजगृह में पहुँचाये जाते हैं । इनका निज घर 'प्रभु' ही है, अतः क्रियाशीलता के द्वारा ये प्रभु से सङ्गत होते हैं। ये प्रभु को प्राप्त करते हैं — प्रभु इन्हें प्राप्त होते हैं ।

    लोक-व्यवहार के अर्थ में जैसे लोग (मिथ:) = आपस में (जामिभि:) = बहिनों से (संनसन्त) = परस्पर सम्बन्धवाले हो जाते हैं, उसी प्रकार जीव क्रियाशीलता से प्रभु का सम्बन्धी बनता है। प्रभु तो स्वाभाविक क्रियावाले हैं – जीव भी क्रियाशीलता को अपनाकर प्रभु-भक्त बन जाता है - प्रभु का उप-आसक हो जाता है ।

    भावार्थ

    क्रियाशीलता के द्वारा हम अपने घर में पहुँचनेवाले बनें।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    (ते) परमेश्वरोपासकाः (स्वम्) स्वकीयम् (ओक्यम्) ओकसि हृदयगृहे भवं परमात्माग्निम् (जानत) उपास्यत्वेन जानन्ति। [अत्र ज्ञा धातोर्लडर्थे लङ् अडभावश्च।] ततश्च तं परमेश्वरम् उपासितुम् (मिथः) परस्परम् (जामिभिः) जननीभगिन्यादिभिः (सं नसन्त) संगच्छन्ते। कथमिव ? (वत्सासः न) वत्साः यथा (मातृभिः) गोभिः संगच्छन्ते, तद्वत् ॥२॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    यथा वत्साः प्रेम्णा गोभिः संतिष्ठन्ते तथैव गृहस्याबालवृद्धं सर्वे जनाः परस्परमेकत्रोपविश्य परमात्मोपासनां कुर्युः ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The Pranas remain attached to their parent organs, as calves to their mothers, who give them birth. They consider the organs as their home, and identify themselves with them.

    Translator Comment

    They refer to Pranas. Them refers to organs.

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    Meaning

    The aspirants know the one inmate spirit of their common home and they all abide and move together in and with the one intimate spirit of their own kind as children move around attached with their mothers (each with the one that is his, but all mothers are the same, the one common Soul). (Rg. 8-72-14)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (ते स्वम् ओक्यं संजानत) તે ઉપાસકો પરમાત્માની સાથે પોતાના સમવેતવ્ય-સંગમનીય સ્થાન-મોક્ષને સમ્યક્ જાણે છે. (वत्सासः न मातृभिः) જેમ વાછરડાઓ માતાઓની-ગાયોની સાથે પોત પોતાનાં આશ્રયણીય સ્થાનને જાણે છે. (जामिभिः मिथः नसन्त) પુનઃ ત્યાં મોક્ષમાં અતિરિક્ત-અન્ય મુક્તોની સાથે મળે છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी वासरे प्रेमाने गायीबरोबर राहतात, तसेच घरातील बालकापासून वृद्धापर्यंत सर्वांनी एकत्र बसून परमेश्वराची उपासना करावी. ॥२॥

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