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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1522
ऋषिः - वसूयव आत्रेयाः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
तं꣡ त्वा꣢ घृतस्नवीमहे꣣ चि꣡त्र꣢भानो स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् । दे꣣वा꣢꣫ꣳ आ वी꣣त꣡ये꣢ वह ॥१५२२॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । त्वा꣣ । घृतस्नो । घृत । स्नो । ईमहे । चि꣡त्र꣢꣯भानो । चि꣡त्र꣢꣯ । भा꣣नो । स्वर्दृ꣡श꣢म् । स्वः꣣ । दृ꣡श꣢꣯म् । दे꣣वा꣢न् । आ । वी꣣त꣡ये꣢ । व꣣ह ॥१५२२॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा घृतस्नवीमहे चित्रभानो स्वर्दृशम् । देवाꣳ आ वीतये वह ॥१५२२॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । त्वा । घृतस्नो । घृत । स्नो । ईमहे । चित्रभानो । चित्र । भानो । स्वर्दृशम् । स्वः । दृशम् । देवान् । आ । वीतये । वह ॥१५२२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1522
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
आगे फिर उन्हीं से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (घृतस्नो) विद्या-रस तथा आनन्द-रस को बहानेवाले, (चित्रभानो) अद्भुत तेजवाले जगदीश्वर वा आचार्य ! (तम्) उन प्रसिद्ध (स्वर्दृशम्) विवेकरूप प्रकाश को दर्शानेवाले (त्वा) आपसे, हम (ईमहे) याचना करते हैं। आप (वीतये) हमारी प्रगति के लिए (देवान्) दिव्य गुणों को (आ वह) प्राप्त कराओ ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा की उपासना से और आचार्यकुल में निवास से आनन्दरस, विद्यारस तथा कर्तव्य और अकर्तव्य का प्रकाश और जीवन में प्रगति प्राप्त होती है ॥२॥
पदार्थ
(घृतस्नो चित्रभानो) तेज को स्रवित करने वाले२ अद्भुत दीप्ति वाले परमात्मन्! (तं त्वा स्वर्दृशम्-ईमहे) उस तुझ सुखदर्शक को हम चाहते हैं (देववीतये देवान्-आवह) हम उपासकों को देवों मुमुक्षुओं की कमनीय मुक्ति के लिये ले-जा॥२॥
विशेष
<br>
विषय
‘घृतस्नु' प्रभु का दर्शन
पदार्थ
हे (घृतस्नो) = [घृत=दीप्ति, स्नु - प्रस्तुत करनेवाला] दीप्ति को प्रस्तुत करनेवाले, दीप्ति के स्रोत प्रभो! हे (चित्रभानो) = ज्ञानप्रद [चित्=र] रश्मियोंवाले प्रभो ! (स्वर्दृशम्) = सुखमय है दर्शन जिनका [स्वः = सुख, दर्शनं दृक्भावे क्विप्] (तं त्वा) = उन आपको (ईमहे) = हम चाहते हैं, आपकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते हैं तथा अपने को आपकी भावना से गर्भित करते हैं।
आप (वीतये) = प्रकाश [Light] की प्राप्ति के लिए तथा पवित्रता [purifying] के सम्पादन के लिए (देवान्) = विद्वानों को (आवह) = हमें प्राप्त कराइए । आपकी कृपा से उत्तम विद्वानों के सङ्ग में
आकर हम प्रकाश प्राप्त करें और अपने जीवनों को पवित्र बनाएँ । प्रभु के ज्ञान की प्राप्ति के लिए [तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभि गच्छेत् समित् पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्] इस उपनिषद् वाक्य के अनुसार ज्ञानियों का सम्पर्क आवश्यक है।
भावार्थ
हम ज्ञान प्रसारक, ज्ञानप्रद रश्मियोंवाले प्रभु का दर्शन करें- जो दर्शन सुख देनेवाला है। इसी दर्शन के लिए उपयुक्त प्रकाश व पवित्रता की प्राप्त्यर्थ हम विद्वानों का सम्पर्क प्राप्त कर सकें ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरपि तावेव प्रार्थयते।
पदार्थः
हे (घृतस्नो) विद्यारसस्य आनन्दरसस्य च प्रस्रावक, (चित्रभानो) अद्भुततेजःसम्पन्न अग्ने जगदीश्वर आचार्य वा ! (तम्) प्रसिद्धम् (स्वर्दृशम्) विवेकप्रकाशस्य दर्शयितारम् (त्वा) त्वाम् वयम् (ईमहे) याचामहे। त्वम् (वीतये) अस्माकं प्रगतये (देवान्) दिव्यगुणान् (आ वह) प्रापय ॥२॥२
भावार्थः
परमात्मोपासनेनाचार्यकुलवासेन चानन्दरसो विद्यारसः कर्तव्याकर्तव्यप्रकाशो जीवने प्रगतिश्च प्राप्यते ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Lustrous God, the Urger of all luminous objects, we pray unto Thee, the Displayer of the path of salvation. Bring Thou hither the sages for imparting knowledge!
Meaning
Agni, pure and purifier, light of fire feeding on ghrta, showerer of lifes beauty and grace, shining with manifold lustre, indeed the very light and bliss of heaven, we pray: With a sweet and lustrous tongue of flame full of bliss, bring for us the nobilities and divinities of nature and humanity for a feast of pleasure and enlightenment and serve them with love and reverence. (Rg. 5-26-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (घृतस्नो चित्रभानो) તેજને સવિત કરનારા અદ્ભુત પ્રકાશમાન પરમાત્મન્ ! (तं त्वा स्वर्दृशम् ईमहे) તે તને સુખદર્શકને અમે ચાહીએ છીએ. (देववीतये देवान् आवह) અમને-ઉપાસકોને દેવો-મુમુક્ષુઓની ચાહવા યોગ્ય મુક્તિને માટે લઈ લે-લઈ જા. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याच्या उपासनेने व आचार्य कुलात निवास करण्याने आनंदरस, विद्यारस व कर्तव्य-अकर्तव्याचा प्रकाश व जीवनात प्रगती होते. ॥२॥
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