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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 155
    ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    4

    पा꣢न्त꣣मा꣢ वो꣣ अ꣡न्ध꣢स꣣ इ꣡न्द्र꣢म꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯यत । वि꣣श्वासा꣡ह꣢ꣳ श꣣त꣡क्र꣢तुं꣣ म꣡ꣳहि꣢ष्ठं चर्षणी꣣ना꣢म् ॥१५५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पा꣡न्त꣢꣯म् । आ । वः꣣ । अ꣡न्ध꣢꣯सः । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । प्र । गा꣣यत । विश्वासा꣡ह꣢म् । वि꣣श्व । सा꣡ह꣢꣯म् । श꣣त꣡क्र꣢तुम् । श꣣त꣢ । क्र꣣तुम् । मँ꣡हि꣢꣯ष्ठम् । च꣣र्षणीना꣢म् ॥१५५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पान्तमा वो अन्धस इन्द्रमभि प्र गायत । विश्वासाहꣳ शतक्रतुं मꣳहिष्ठं चर्षणीनाम् ॥१५५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पान्तम् । आ । वः । अन्धसः । इन्द्रम् । अभि । प्र । गायत । विश्वासाहम् । विश्व । साहम् । शतक्रतुम् । शत । क्रतुम् । मँहिष्ठम् । चर्षणीनाम् ॥१५५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 155
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 1
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथमः—मन्त्र में इन्द्र के महिमागान के लिए मनुष्यों को प्रेरित किया गया है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (वः) तुम (अन्धसः) भोग्य वस्तुओं के (आ पान्तम्) सब ओर से रक्षक, (विश्वासाहम्) समस्त शत्रुओं के विजेता, (शतक्रतुम्) बहुत बुद्धिमान्, बहुत कर्मण्य, बहुत से यज्ञों को करनेवाले, (चर्षणीनाम्) मनुष्यों को (मंहिष्ठम्) अतिशय दान करनेवाले (इन्द्रम्) परमैश्वर्यशाली वीर परमात्मा और राजा को (अभि) लक्षित करके (प्र गायत) प्रकृष्ट रूप से गान करो अर्थात् उनके गुण-कर्म-स्वभावों का वर्णन करो ॥१॥ इस मन्त्र में श्लेष और परिकर अलङ्कार है ॥१॥

    भावार्थ

    सब मनुष्यों को योग्य है कि वे जगत् के रक्षक, समस्त काम-क्रोधादि रिपुओं के विजेता, असंख्य प्रज्ञाओं, असंख्य कर्मों और असंख्य यज्ञों से युक्त, सब मनुष्यों को विद्या, धन, धर्म आदि का अतिशय दान करनेवाले परमात्मा के और राष्ट्र के रक्षक, शत्रु-सेनाओं को हरानेवाले, विद्वान्, कर्मठ, अनेक यज्ञों के याज्ञिक, प्रजाओं को अतिशय विद्या, आरोग्य, धन आदि देनेवाले राजा के प्रति उनके गुण-कर्म-स्वभाव का वर्णन करनेवाले स्तुति-गीत और उद्बोधन-गीत गायें ॥१॥

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    पदार्थ

    (वः-चर्षणीनाम्) तुम दर्शनेच्छुकों के (अन्धसः-आ पान्तम्) आध्यानीय उपासनारस को समन्तरूप से पान करनेवाले (विश्वासाहं) सबको अभिभूत करनेवाले समर्थ—(शतक्रतुम्) बहुत कर्म और प्रज्ञान वाले—सर्वशक्तिमान्-सर्वज्ञानवान्—(मंहिष्ठम्) महान् आनन्द देनेवाले—(इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् परमात्मा को (अभि प्रगायत) निरन्तर गाओ—स्तुत करो।

    भावार्थ

    मनुष्यो! जो तुम दर्शनेच्छुकों के उपासना ध्यान को सच्चा स्वीकार करनेवाला सबका स्वामी सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ अत्यानन्दप्रद परमात्मा है उसकी निरन्तर स्तुति प्रार्थना उपासना किया करो॥१॥

    विशेष

    ऋषिः—श्रुतकक्षः (सुन लिया है अध्यात्मकक्ष जिसने)॥<br>

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    विषय

    प्रभु-स्तवन से वासना का विनाश

    पदार्थ

    पिछले मन्त्र में सौम्यता व शक्ति की याचना थी। इस शक्ति का सम्पादन बिना सोम [semen] = वीर्य की रक्षा के सम्भव नहीं, और सोम का रक्षण प्रभु-स्तवन के बिना असम्भव है। इसीलिए मन्त्र में कहते हैं कि (इन्द्रम्)=उस सर्वैश्यशाली प्रभु का (आ) = सर्वथा (अभिप्रागायत)=गान करो। उस प्रभु का जो (वः) = तुम्हारे (अन्धसः) = सोम की (पान्तम्) = रक्षा कर रहा है। अन्धस् शब्द ही सोम-रक्षा के महत्त्व का प्रतिपादन करता है कि यह 'आध्यायनीयं भवति' [यास्क] सब प्रकार से ध्यान करने योग्य होता है। हमारा सारा आहार-विहार इसी की रक्षा के दृष्टिकोण से होना चाहिए। हम उष्णवीर्य वस्तुओं को कभी न खाएँ और उत्तेजक व्यायामों को न करें। इनसे बढ़कर आवश्यक बात यह है कि हम प्रभु का स्तवन करें। हमारे हृदयों में प्रभु का वास होगा तो वासना का वहाँ उत्थान न होगा और परिणामतः हम अपनी शक्ति को सुरक्षित रख सकेंगे।

    १.(विश्वासाहम्) = वे प्रभु सबका पराभव करनेवाले हैं। हम भी उस प्रभु के स्तवन से सोमरक्षा द्वारा शक्तिशाली बनकर सबका अभिभव करनेवाले बनेंगे, तब हम संसार के प्रलोभनों से अभिभूत न होंगे।

    २.(शतक्रतुम्) = वे प्रभु अनन्त [शत अनन्त] उत्तम कर्मोंवाले हैं। उस प्रभु का स्तवन करते हुए हम भी वीर्यवान् बन सदा उत्तम कर्मों में लगे रहेंगे।

    ३. (चर्षणीनां मंहिष्ठम्) - वे प्रभु मनुष्यों के लिए दातृ-तम हैं। 'प्रभु ने क्या नहीं दिया?' उसने जीवों के हित के लिए अपने को ही दे डाला है [आत्म-दा] । वीर्यवान् पुरुष भी विलास की ओर न जाने के कारण अपनी आवश्यकताओं को कम रखता है और अधिक-से-अधिक लोकहित करता है ।

    संक्षेप में प्रभु का स्तवन करनेवाला व्यक्ति १. सोमरक्षा के द्वारा शक्तिशाली बनता है। २. सब प्रलोभनों का अभिभव करने में समर्थ होता है। ३. सदा यज्ञादि उत्तम कर्मों में लगा रहता है। ४. अपनी आवश्यकताओं को कम रखता हुआ सदा दानशील होता है। यह सांसारिक भोगों व ऐश्वर्य को महत्त्व न देकर ज्ञान को महत्त्व देता है। ज्ञान ही उसका शरण होता है। इसी से उसका नाम 'श्रुत-कक्ष' हो गया है। ज्ञान से उत्तम कोई शरण है ही नहीं, अत: वह 'सु-कक्ष' है। भोगमार्ग की ओर न जाने से वह 'आङ्गिरस' = शक्तिशाली है।

    भावार्थ

    प्रभु-स्तवन से वासना को दूर रखकर हम अपनी शक्ति की रक्षा करें। 

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( वः ) = आप लोग ( अन्धसः ) = जीवन धारण कराने वाले अन्न के सूक्ष्म, रस रूप सोम को ( आ-पान्तम् ) = अभिमुख प्रत्यक्षरूप में प्राप्त करने वाले, ( विश्वासाहं ) = सब को अभिभव करने, समस्त इन्द्रियों से बढ़ जाने वाले, सबको परास्त करने वाले ( शतक्रतुं ) = सैकड़ों कर्म करने में समर्थ, सैकड़ों प्रज्ञाओं से युक्त, ( चर्षणीनां ) = तत्वदर्शियों के ( मंहिष्ठं ) = एकमात्र आनन्द देने वाले, या इन्द्रियों में शक्ति देने वाले, पूजनीय उपास्य देव आत्मा और परमात्मा की ( अभि प्रगायत ) = साक्षात् स्तुति करो । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - श्रुतकक्षः।

    देवता - इन्द्रः।

     

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रस्य महत्त्वगानार्थं जनाः प्रेर्यन्ते।

    पदार्थः

    हे मनुष्याः ! (वः२) यूयम् (अन्धसः३) भोग्यं वस्तुजातम्। अन्धः इत्यन्ननाम। निघं० २।७। अन्नमिति सर्वेषां भोग्यवस्तूनाम् उपलक्षणम्। द्वितीयार्थे षष्ठी। (आ पान्तम्) समन्ततो रक्षन्तम्। पा रक्षणे इति धातोः शतरि रूपम्। (विश्वासाहम्) समस्तरिपुविजेतारम्। विश्वान् सर्वान् शत्रून् सहते पराभवतीति तादृशम्। अत् विश्वपूर्वात् षह मर्षणे धातोः छन्दसि सहः अ० ३।१।६३ इति ण्विः। अन्येषामपि दृश्यते। अ० ६।३।१३७ इति दीर्घश्च। (शतक्रतुम्) बहुप्रज्ञं, बहुकर्माणं, बहुयज्ञं वा। शतमिति बहुनाम। निघं० ३।१। क्रतुरिति कर्मनाम प्रज्ञानाम च। निघं– २।१, ३।९। क्रतुर्यज्ञवचनोऽपि प्रसिद्धः। (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम्। चर्षणय इति मनुष्यनाम। निघं० २।३। (मंहिष्ठम्) दातृतमम्। मंहते दानकर्मा। निघं० ३।२०। (इन्द्रम्) परमैश्वर्यशालिनं वीरं परमात्मानं राजानं वा (अभि) अभिलक्ष्य (प्र गायत) प्रकृष्टं गानं कुरुत, तत्तद्गुणकर्मस्वभावान् वर्णयत ॥१॥ अत्र श्लेषालङ्कारः परिकरश्च।

    भावार्थः

    सर्वेषां मनुष्याणां योग्यमस्ति यत् ते जगद्रक्षकं समस्तकामक्रोधादिरिपुविजेतारम्, असंख्यप्रज्ञम्, असंख्यकर्माणम्, असंख्ययज्ञं, सर्वेभ्यो मनुष्येभ्यो विद्याधनधर्मादीनां दातृतमं परमात्मानं, राष्ट्ररक्षकं, शत्रुसैन्यानां पराजेतारं, विद्वांसं, कर्मठं, बहूनां यज्ञानां यष्टारं, प्रजाभ्योऽतिशयेन विद्याऽऽरोग्यधनादिप्रदायकं राजानं चाभिलक्ष्य तत्तद्गुणकर्मस्वभाववर्णनपराणि स्तुतिगीतान्युद्बोधनगीतानि च गायेयुरिति ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. प्रथमायामृचि ७+८+८+७=३० इत्यक्षरसंख्यायां सामान्यतोऽनुष्टुच्छन्दसि स्वीकर्तव्येऽपि गायत्रीप्रकरणत्वादेषा गायत्री एवाभिमता। सेयं चतुष्पदा त्रिंशदक्षरा गायत्री। ऋ० ८।९२।१, ऋषिः श्रुतकक्षः सुकक्षो वा, छन्दः विराड् अनुष्टुप्। २. वः यूयम्—इति वि–०, भ०, सा०। ३. षष्ठीनिर्देशाच्च एकदेशमिति वाक्यशेषः। सोमलक्षणस्यान्नस्य एकदेशं पान्तम्—इति वि०। आपान्तम् आ पिबन्तम् आपास्यन्तम् अन्धसः अन्नस्य। सोममित्यर्थः—इति भ०। अन्धसः सोमलक्षणम् अन्नम् आपान्तम् आभिमुख्येन पिबन्तम्। पा पाने, छान्दसः शपो लुक्। सर्वे विधयश्छन्दसि विकल्प्यन्ते इति न लोकाव्यय० २।३।६९ इति षष्ठीप्रतिषेधाभावः। ततोऽन्धस इत्यत्र कर्तृ कर्मणोः २।३।६५ इति षष्ठी—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O men sing the praise of God, the Guardian of our foodstuffs, the Subduer of all, the Master of hundreds of achievements, the Object of adoration by all learned persons.

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    Meaning

    Sing in praise and appreciation of Indra, the ruler, protector of your food, sustenance and maintenance, all tolerant, all defender and all challenger, hero of a hundred noble actions and the best, most generous and most brilliant of the people. (Rg. 8-92-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

       પદાર્થ : (वः चर्षणीनाम्) તમે દર્શનેચ્છુકોના (अन्धसः आ पान्तम्) આધ્યાનીય ઉપાસનારસને સમન્તરૂપથી પાન કરનાર, (विश्वासाहम्) સૌને અભિભૂત કરનાર, સમર્થ (शतक्रतुम्) ઘણા કર્મ અને પ્રજ્ઞાનવાળા-સર્વશક્તિમાન-સર્વજ્ઞાનવાન્ (मंहिष्ठम्) મહાન આનંદ આપનાર (इन्द्रम्) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માના (अभिप्रगायत) નિરંતર ગુણ ગાવો-સ્તુતિ કરો. (૧)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : મનુષ્યો ! જે તમે દર્શનેચ્છુકોના ઉપાસના ધ્યાનને સત્ય સ્વીકાર કરનાર, સૌનો સ્વામી, સર્વશક્તિમાન, સર્વજ્ઞ, અતિ આનંદપ્રદ પરમાત્મા છે તેની નિરંતર સ્તુતિ, પ્રાર્થના અને ઉપાસના કરો. (૧)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    اِندر پرمیشور کو گاؤ!

    Lafzi Maana

    ہے منشیو! (وہ) تمہارے دیئے (اندھسہ) بھگتی رس بڑھانے والے اَنّ رس اور اُپاسنا کو (ابھی پانتم اِندرم) سب پرکار سے سویکار کرنے اور تمہاری بھینٹ بھگتی رس کو پان کرنے والے اِندر پرمیشور کو (آپرگایت) پُورن رُوپ سچّے دل سے گایا کرو۔ کیونکہ وہ پرمیشور (وشوساہم) سب پروجئی ہے (شت کرتوم) سینکڑوں یا بے شمار کاموں کا کرنے والا اور اننت بُدھیوں والا تتھا (چرشنی نام) تمام انسانوں کو (منکِ ہشٹم) سمپداؤں اور اَیشوریوں کے دینے والا پرم پُوجنیہ ہے۔

    Tashree

    بے شمار کرموں اور بُدھی بَل سے جِیت رہا سنسار، پَرم پُوجیہ اَیشوریوں والا گاؤ اِیشور بارم بار۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    सर्व माणसांनी जगाचा रक्षक, संपूर्ण काम, क्रोध इत्यादी शत्रूंचा विजेता, असंख्य प्रज्ञा असंख्य कर्म व असंख्य यज्ञांनी युक्त, सर्व माणसांना विद्या, धन, धर्म इत्यादींचे अत्यंत दान करणाऱ्या परमात्म्याचे व राष्ट्राचे रक्षक, शत्रू सेनेला हरविणाऱ्या, विद्वान, कर्मठ, अनेक यज्ञांचे याज्ञिक, प्रजेला विद्या आरोग्य, धन इत्यादी देणारा राजा त्यांच्या गुण-कर्म-स्वभावाचे वर्णन करणारे स्तुति-गीत व उद्बोधन गीत गावे ॥१॥

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    विषय

    आता इन्द्राचे महत्त्व व गान करण्यासाठी लोकांना प्रेरणा दिली आहे -

    शब्दार्थ

    हे मनुष्यानो, (वः) तुम्ही (श्रन्धसः) बोग्य पदार्थांचे (आ पान्तम्) सर्व प्रकारे रक्षण करणाऱ्या आणि (विश्वासाहम्) समस्त शत्रूंचे विजेता (शत क्रतुम्) अत्यंत बुद्धिमान व कर्मशील, अत्यंत यज्ञ करणाऱ्या (चर्पणी नाम्) मनुष्याना (मंहिषम्) अत्यंत दान करणाऱ्या (इन्द्रम्) परमैश्वर्यशाली वीर परमेश्वराला वा राजाला (अभि) उद्देशून (प्र गायत) प्रकृष्टरूपेण गान करा म्हणजे त्यांच्या गुण - कर्म- स्वभावाचे वर्णन करा. ।। १।।

    भावार्थ

    सर्व मनुष्याकरिता हेच हिताचे आहे की त्यानी जगरक्षक, समस्त काम- क्रोध आदी शत्रूंचे विजेता, अगणित प्रज्ञा, कर्म आणि यज्ञाने संपन्न, सर्व मनुष्यांना विद्या, धन, धर्म आदी देणाऱ्या परमेश्वराच्या तसेच राष्ट्ररक्षक, शत्रुसैन्य पराजेता, विद्वान, कर्मशील, अनेक यज्ञांचे याज्ञिक, प्रजेला विद्या, आरोग्य, धन आदी देणाऱ्या राजाप्रत त्यांच्या गुण- कर्म- स्वभावाचे स्तुती करावी. राजाचा उत्साह वाढविणारी गीते लिहावीत, गावीत. ।। १।।

    विशेष

    या मंत्रात श्लेष आणि परिकर अलंका आहेत. ।। १।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    எல்லாம் ஐயிக்கும் [1](சதக் கிருதுவாயும்) வெகு அறிவுடனான மனிதர்களுக்கு ஐசுவரியமளிக்கும் (இந்திரனை) உங்கள் [2]சோமரசத்தைப் பருக (கானங்களால்) (ஒழுக்கங்களால்) இந்திரனை அழைக்கவும்.

    FootNotes

    [1].சதக் கிருதுவாயும் - பல நற்செயல்கள் செய்பவன்
    [2].சோமரசத்தை - சீவரசத்தை ஞானத்தை

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