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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1641
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    3

    उ꣡द्गा आ꣢꣯ज꣣द꣡ङ्गि꣢रोभ्य आ꣣वि꣢ष्कृ꣣ण्व꣡न्गुहा꣢꣯ स꣣तीः꣢ । अ꣣र्वा꣡ञ्चं꣢ नुनुदे व꣣ल꣢म् ॥१६४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । गाः । आ꣣जत् । अ꣡ङ्गि꣢꣯रोभ्यः । आ꣣विः꣢ । आ꣣ । विः꣢ । कृ꣣ण्व꣢न् । गु꣡हा꣢꣯ । स꣣तीः꣢ । अ꣢र्वा꣡ञ्च꣢म् । नु꣣नुदे । वल꣢म् ॥१६४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्गा आजदङ्गिरोभ्य आविष्कृण्वन्गुहा सतीः । अर्वाञ्चं नुनुदे वलम् ॥१६४१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । गाः । आजत् । अङ्गिरोभ्यः । आविः । आ । विः । कृण्वन् । गुहा । सतीः । अर्वाञ्चम् । नुनुदे । वलम् ॥१६४१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1641
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर उसी विषय को कहा गया है।

    पदार्थ

    इन्द्र नामक बलवान् जीवात्मा (अर्वाञ्चम्) अपने सामने आये हुए (वलम्) पूर्व मन्त्र में कह गए आवरण डालनेवाले विघ्न-समूह को (नुनुदे) परे धकेल देता है और (गुहा सतीः) गुफा में छिपी हुई (गाः) अध्यात्म-प्रकाश की किरणों को(अड़्गिरोभ्यः) प्राणायाम के अभ्यासियों के लिए (उद् आजत्) बाहर निकाल लाता है ॥३॥

    भावार्थ

    जिन विघ्न-जालों से घिरे हुए योगाभ्यासी लोग विवेक-ख्याति के प्रकाश को वा परमात्मा के प्रकाश को नहीं प्राप्त कर पाते उन विघ्नों को प्रयत्नशील जीवात्मा परमात्मा की कृपा से पराजित करके लक्ष्य-प्राप्ति में सफल हो जाता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (गुहा सतीः-गाः) गुहा—संवरण करनेवाली३ ढकने—छिपानेवाली प्रकृतिरूप जड़ प्रवृत्तियों में वर्तमान वाणियों—वेदवाणियों को४ (अङ्गिरोभ्यः) अङ्गों को प्रेरित करने वाले आरम्भिक ज्ञानी अग्नि आदि उपासकों के लिये५ (आविष्कृण्वन्) साक्षात् कराने के हेतु (उदाजत्) ऊपर उभार दिया प्रकाशित कर दिया (वलम्-अर्वाञ्च नुनुदे) उपासक आत्मा के आवरक अज्ञान राग को इधर वा बाहर फेंक देता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    गुहास्थ गौवों का उदाजन

    पदार्थ

    इन्द्र और वल का हृदयस्थली पर एक सनातन युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में जब इन्द्र (वलम्) = इस वल नामक आसुर वृत्ति को (अर्वाञ्चं नुनुदे) = नीचे ढकेल देता है, अर्थात् पराजित कर देता है [gives him a crushing defeat], उस समय इसके शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्ति का संचार हो जाता है। तब यह ‘अङ्ग-अङ्ग में रसवाला' होने से आङ्गिरस कहलाता है । 'इसका शरीर ही सबल बन जाता हो', यही नहीं, प्रत्युत इसके ज्ञान पर आसुर वृत्तियों का जो पर्दा पड़ा हुआ था, जिसके कारण हृदयरूप गुहा में विद्यमान भी ज्ञान प्रकाशित नहीं हो रहा था, वह ज्ञान अब चमक उठता है। काव्यमय भाषा में इस बात को इस प्रकार कहते हैं कि - वे ज्ञान की वाणीरूप गौवें, जो इन असुरों ने हृदयरूप गुहा में छिपा रखी थीं, उनको यह बाहर ले आता है । (गुहासती:) = हृदयरूप गुहा में पहले से ही विद्यमान (गाः) = वेदवाणियों को (अङ्गिरोभ्यः) = इस अङ्गरसवाले शक्तिशाली पुरुषों के लिए (आविष्कृण्वन्) = प्रकट करता हुआ (उद्-आजत्) = बाहर ले आता है, अर्थात् इनका वह दबा हुआ ज्ञान प्रकट हो जाता है - ज्ञान का बीज विकसित होकर ज्ञानवृक्ष बन जाता है। इस व्यक्ति की इन्द्रियाँ उस ज्ञान का कथन करने लगती हैं और यह सचमुच 'गोसूक्ति' तथा अश्वसूक्ति बन जाता है, जिसकी ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ उत्तम ढंग [सु] से ज्ञान का कथन करती हैं [उक्ति] । 

    भावार्थ

    हम भी गुहास्थ गौवों का उदाजन करनेवाले बनें, परन्तु यह तभी हो सकेगा जब हम वल नामक असुर का पराभव कर पाएँगे ।

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    विषय

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    भावार्थ

    इन्द्र आत्मा ने (अंगिरोभ्यः) अंग अर्थात् देह में रस अर्थात् सार प्राणरूप से वर्त्तमान इन्द्रियों के लिये (गुहा) अन्तःकरण रूप गुहा में (सतीः) वर्तमान (गाः) गमनशील, ज्ञानग्राहक शक्तियों को (आविष्कृण्वन्) प्रकाशित करता हुआा (उद् आजत्) ऊपर को प्रेरित करता है और (बलम्) बलवान् तामस आवरण को (अर्वाञ्च) नीचे (नुनुदे) पटक देता है, अर्थात् विनाश करता है। अथवा—(इन्द्रः) परमेश्वर (गुहा सतीः गा आविष्कृण्वन्) निगूड़ स्थान, अव्यक्तरूप में वर्तमान वेदवाणियों को प्रकट करता हुआ (अंगिरोभ्यः उदाजत्) विद्वानों, ज्ञानी ऋषियों को प्राप्त कराता है और (बलम् अर्वांचं नुनुदे) पाश्विक तामस स्वभाव को उस ज्ञान के नीचे कर देता है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ७ शुनःशेप आजीगतिः। २ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। ३ शंयुर्वार्हस्पत्यः। ४ वसिष्ठः। ५ वामदेवः। ६ रेभसूनु काश्यपौ। ८ नृमेधः। ९, ११ गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ। १० श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। १२ विरूपः। १३ वत्सः काण्वः। १४ एतत्साम॥ देवता—१, ३, ७, १२ अग्निः। २, ८-११, १३ इन्द्रः। ४ विष्णुः। ५ इन्द्रवायुः। ६ पवमानः सोमः। १४ एतत्साम॥ छन्दः—१, २, ७, ९, १०, ११, १३, गायत्री। ३ बृहती। ४ त्रिष्टुप्। ५, ६ अनुष्टुप्। ८ प्रागाथम्। ११ उष्णिक्। १४ एतत्साम॥ स्वरः—१, २, ७, ९, १०, १२, १३, षड्जः। ३, ९, मध्यमः, ४ धैवतः। ५, ६ गान्धारः। ११ ऋषभः १४ एतत्साम॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि स एव विषय उच्यते।

    पदार्थः

    (इन्द्रः) बलवान् जीवात्मा (अर्वाञ्चम्) स्वाभिमुखमागतम्(वलम्) पूर्वमन्त्रोक्तम् आवरकं विघ्नसमूहम् (नुनुदे) पराङ्नुदति, प्रक्षिपति। (गुहा सतीः) गुहायां विद्यमानाः, प्रच्छन्नाः। [गुहा इत्यत्र ‘सुपां सुलुक्०’। अ० ७।१।३९ इति सप्तम्या लुक्।] (गाः) अध्यात्मप्रकाशरश्मीन् (अङ्गिरोभ्यः) प्राणायामाभ्यासिभ्यः (उद् आजत्) उत्प्रापयति ॥३॥

    भावार्थः

    यैर्विघ्नजालैः परिवृता योगाभ्यासिनो विवेकख्यातिप्रकाशं परमात्मप्रकाशं वा नाधिगन्तुं पारयन्ति तान् विघ्नान् प्रयत्नशीलो जीवात्मा परमात्मकृपया पराजित्य लक्ष्यं प्राप्तुं सफलो जायते ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    God, revealing the hidden Vedic verses, makes them reach the learned sages and suppresses all beastly feelings through their knowledge.

    Translator Comment

    Griffith translates Vala aa the demon who stole the cows of the Gods and hid them in a cave. This explanation savours of history and is hence untenable. The word means the dark covering of Ignorance.

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    Meaning

    When the lord shakes up our psychic energies to the depths and throws out our darkness and negativities, then he sharpens our senses along with pranic energies and opens out our spiritual potential hidden in the cave of the heart. (Rg. 8-14-8)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (गुहा सतीः गाः) સંવરણ કરનારી - ઢાંકનારી - છુપાવનારી પ્રકૃતિરૂપ જડ પ્રવૃત્તિઓમાં રહેલી વાણીઓ-વેદવાણીઓને (अङ्गिरोभ्यः) અંગોને પ્રેરિત કરનારા આરંભિક જ્ઞાની અગ્નિ આદિ ઉપાસકો [ઋષિઓ] ને માટે (आविष्कृण्वन्) સાક્ષાત્ કરાવવા માટે (उदाजत्) ઉપર ઊઠાવી દીધા પ્રકાશિત કરી દીધા. (वलम् अर्वाञ्च नुनुदे) ઉપાસક આત્માને આવૃત્ત કરનારા-ઢાંકનારા અજ્ઞાન, રાગ આદિને નીચે અથવા બહાર ફેંકી દે છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या विघ्नांनी घेरलेले योगाभ्यासी लोक विवेकख्यातीच्या प्रकाशात किंवा परमात्म्याच्या प्रकाशाला प्राप्त करू शकत नाहीत, त्या विघ्नांना प्रयत्नशील जीवात्मा परमात्म्याच्या कृपेने पराजित करून लक्ष्य प्राप्तीमध्ये सफल होतात. ॥३॥

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