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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1654
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - एकपदा पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
3
सु꣣म꣢न्मा꣣ व꣢स्वी꣣ र꣡न्ती꣢ सू꣣न꣡री꣢ ॥१६५४
स्वर सहित पद पाठसु꣣म꣡न्मा꣢ । सु꣣ । म꣡न्मा꣢꣯ । व꣡स्वी꣢꣯ । र꣡न्ती꣢꣯ । सू꣣न꣡री꣢ । सु꣣ । न꣡री꣢꣯ ॥१६५४॥
स्वर रहित मन्त्र
सुमन्मा वस्वी रन्ती सूनरी ॥१६५४
स्वर रहित पद पाठ
सुमन्मा । सु । मन्मा । वस्वी । रन्ती । सूनरी । सु । नरी ॥१६५४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1654
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम मन्त्र में परमात्मा की शक्ति वा वेदवाणी का वर्णन है।
पदार्थ
हे इन्द्र जगदीश्वर ! आपकी शक्ति वा वेदवाणी (सुमन्मा) शुभ ज्ञान देनेवाली, (वस्वी) निवासप्रद, (रन्ती) रमणीय और (सूनरी)उत्तम नेतृत्व करनेवाली है ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा की शक्ति का ध्यान करने से और उसकी वेदवाणी का अध्ययन करने तथा श्रवण करने से मनुष्य ज्ञानवान्, अपने आत्मा में सद्गुणों का निवास करानेवाले, श्रेष्ठ मार्ग पर चलनेवाले और सुखी होते हैं ॥१॥
पदार्थ
(सुमन्मा) उपासक के लिये परमात्मा शोभन ज्ञान वाला (वस्वी) वासधन देने वाला (रन्ती) रमणीय सुख वाला (सूनरी) शोभन नीति वाला—शोभन नेता है॥१॥
विशेष
ऋषिः—आजीगर्तः शुनःशेपः (इन्द्रियभोगों की दौड़ में शरीर गर्त में गिरा उत्थान का इच्छुक)॥ देवता—इन्द्राग्नी (ऐश्वर्यवान् एवं अग्रणायक परमात्मा)॥ छन्दः—एकपदा विराट्॥<br>
विषय
चतुष्टयी वेदवाणी
पदार्थ
गत तृच का ऋषि ‘वत्स' जिस वेदवाणी का उच्चारण करता है, वह वेदवाणी चतुष्टयी है । यह चतुष्टयी वेदवाणी इसके जीवन को सुखी बनाती है। अपने जीवन को सुख-सम्पन्न बनाकर यह सचमुच ‘शुन:शेप' बन जाता है। प्रस्तुत तृच का यही ऋषि है । यह वेदवाणी इसके लिए
१. (सुमन्मा) = उत्तम [सु] विज्ञानों- [मन्म] - वाली है। उत्तम विज्ञानों के द्वारा ही मनुष्य प्राकृतिक शरीर की सब भौतिक आवश्यकताओं को पूर्ण कर पाएगा।
२. (वस्वी) = यह वेदवाणी सब वसुओंवाली है । निवास के लिए, जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएँ‘वसु’ हैं। इन वसुओं को यह देनेवाली है। ‘आयुः, प्राणं, प्रजां, पशुं, कीर्तिं, द्रविणं, ब्रह्मवर्चसम्' ये सब वसु हैं। वेदों में प्रतिपादित साधनों को क्रियान्वित करने पर हमें दीर्घायुष्य, प्राणशक्ति, उत्तम प्रजा व सन्तान, उत्तमपशु, यश, धन व ज्ञान सभी कुछ प्राप्त होगा ।
३. (रन्ती) = यह वेदवाणी हमें प्रभु में रमण करानेवाली है। वेदों का अध्यात्म उपदेश हमें‘आत्माराम' बनानेवाला है।
४. (सूनरी) = इस प्रकार यह वेदवाणी हमें सदा उत्तम मार्ग से ले-चलनेवाली है। [सु-नृ नये] उत्तम मार्ग से चलते हुए हमारा जीवन यथार्थ में सुखमय बनता है और हम मन्त्र के ऋषि ‘शुन: शेप' होते हैं ।
भावार्थ
वेदवाणी हमें उत्तममार्ग से चलाकर विज्ञान और वसु प्राप्त कराके अन्त में प्रभु में रमण कराती है।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादाविन्द्रस्य परमात्मनः शक्तिं वेदवाचं वा वर्णयति।
पदार्थः
हे इन्द्र जगदीश्वर ! त्वदीया शक्तिः वेदवाग् वा (सुमन्मा)शुभज्ञानप्रदायिनी, (वस्वी) निवासिका, (रन्ती) रमणीया, (सूनरी) सुष्ठु नेतृत्वकारिणी च वर्तते ॥१॥
भावार्थः
परमात्मशक्तिध्यानेन तदीयवेदवाचोऽध्ययनेन श्रवणेन च मनुष्या ज्ञानवन्तः प्राप्तसद्गुणनिवासाः सन्मार्गगन्तारः सुखिनश्च भवन्ति ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
faculty is guide to the chariot of the body, the fluffier of all ambitions, the bringer of riches, and advancer of knowledge.
Meaning
Indra is wise and noble at heart, bright and beneficent, joyous is his love, delightful and persuasive his word.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सुमन्मा) ઉપાસકને માટે પરમાત્મા સુંદર જ્ઞાનવાળા, (वस्वी) વસવા માટેનું ધન આપનાર, (रन्ती) રમણીય આનંદદાયક સુખવાળા, (सूनरी) શોભન નીતિવાળા - શોભન - સુંદર નેતા છે. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या शक्तीचे ध्यान करण्याने व त्याच्या वेदवाणीचे अध्ययन व श्रवण करण्याने माणसे ज्ञानवान, आपल्या आत्म्यात सद्गुणांचा निवास करून, श्रेष्ठ मार्गावर चालतात व सुखी होतात. ॥१॥
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