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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 166
    ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    2

    म꣣हा꣡ꣳ इन्द्रः꣢꣯ पु꣣र꣡श्च꣢ नो महि꣣त्व꣡म꣢स्तु व꣣ज्रि꣡णे꣢ । द्यौ꣡र्न प्र꣢꣯थि꣣ना꣡ शवः꣢꣯ ॥१६६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म꣣हा꣢न् । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । पु꣣रः꣢ । च꣣ । नः । महित्व꣢म् । अ꣣स्तु । वज्रि꣡णे꣢ । द्यौः । न । प्र꣣थिना꣢ । श꣡वः꣢꣯ ॥१६६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महाꣳ इन्द्रः पुरश्च नो महित्वमस्तु वज्रिणे । द्यौर्न प्रथिना शवः ॥१६६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    महान् । इन्द्रः । पुरः । च । नः । महित्वम् । अस्तु । वज्रिणे । द्यौः । न । प्रथिना । शवः ॥१६६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 166
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा और राजा के महत्त्व का वर्णन है।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान्, दुःखविदारक सुखशान्तिप्रदाता परमेश्वर वा राजा (महान्) अतिशय महान् है, (च) और वह (नः) हमारे (पुरः) समक्ष ही है। (वज्रिणे) उस न्यायदण्डधारी का (महित्वम्) महिमागान, जयजयकार (अस्तु) हो। (शवः) उसका बल (प्रथिना) विस्तार में (द्यौः न) विस्तीर्ण सूर्यप्रकाश के समान है ॥२॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेषालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    न्यायकारी, परमबली परमेश्वर और राजा का यशोगान करके स्वयं भी सबको न्यायकारी और बलवान् बनना चाहिए ॥२॥

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    पदार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (महान्) सर्वमहान् है (पुरः-च) अतएव वह प्रत्येक के सम्मुख भी है जब सबसे महान् सर्वत्र है तो मेरे सामने भी होना ही है (द्यौः-न प्रथिना शवः) द्यौ—द्युलोक की भाँति विस्तृत या फैला हुआ उसका बल—व्यापन बल है, उस ऐसे (वज्रिणे नः-महित्वम्-अस्तु) सर्वविध वज्रशक्ति वाले के लिए हमारा महिमा गुणगान हो।

    भावार्थ

    परमात्मा सर्वमहान् है अतएव प्रत्येक के सम्मुख भी वह द्युलोक के समान विस्तृत व्याप्ति वाला है उस वज्र शासन वाले परमात्मा के लिए महिमा—गुणगान हमारे द्वारा होता रहे॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला, मधु परायण)॥<br>

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    विषय

    यदि सोमपान करेंगे तो

    पदार्थ

    प्रभु कहते हैं कि हे जीव! तू सोमपान करेगा तो 'राधानां पति:' = सफलता का स्वामी तो बनेगा ही इसके अतिरिक्त तू १. (महान्) = बड़ा बनेगा, पूजनीय होगा। वस्तुतः सफलता ही उसके आदर का कारण बनती है। 'Nothing success, like success' = सफलता ही सबसे बड़ी विजय है। सोमपान करनेवाला महान्-से-महान् कार्य में सफल होता है और आदर पाता है। २. (इन्द्रः)=तू इन्द्र होगा। सोम का पान करनेवाला इन्द्र बनता है। इन्द्र ने असुरों का संहार किया, यह भी सब आसुर वृत्तियों को समाप्त कर डालता है। ३. (नु परः च) = और अब आसुर वृत्तियों को समाप्त करके यह आत्मा नहीं ‘पर-आत्मा'=परमात्मा - जैसा ही बन जाता है। इसकी शक्ति सामान्य मनुष्य की शक्ति से इतनी अधिक होती है कि यह मानव न रहकर अतिमानव हो जाता है । ४. इस * = वज्रतुल्य शरीरवाले के लिए महित्वम् अस्तु - लोगों में पूज्यता की भावना हो। यह व्यक्ति संसार में यश का लाभ करता है। सोमपान से इसका शरीर वज्रतुल्य हो जोता है। ५. इस सोमपान करनेवाले का (शवः) = बल (द्यौः न) = द्युलोक के समान (प्रथिना) = विस्तार से युक्त होता है। अथवा विस्तार में द्युलोक के समान इसका बल होता है। इसकी यह विशाल शक्ति ही उससे महान् कार्यों को करानेवाली होती है।

    इसकी यह उदारता ही इसे अपवित्रता से दूर करके अत्यन्त मधुर इच्छाओंवाला 'मधुच्छन्दाः ' बनाती है। किसी का नाममात्र बुरा चिन्तन न करने के कारण यह 'वैश्वामित्र' कहलाता है।

    भावार्थ

    सोमपान के द्वारा मैं भी आत्मा से ऊपर उठकर परमात्मा - जैसा बनने का प्रयत्न करूँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( महान्  ) = बड़ा आत्मा ( नः ) = हमारे ( पुरः च ) = आगे सदा विद्यमान रहता है। ( वज्रिणे ) = सब भयों के वारण करने हारे उस आत्मा की ( महित्वम् अस्तु ) = महिमा बनी रहे । ( शव: ) = उसका बल, ज्ञान ( प्रथिना ) = विस्तृत होने से ( चौः न ) द्यौलोक या सूर्य के समान है।


     

    टिप्पणी

     १६६ - 'परश्च नु' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - मधुच्छन्दा:। 

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रनाम्ना परमात्मनो नृपतेश्च महत्त्वं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान्, दुःखदारकः, सुखशान्तिप्रदायकः परमेश्वरो नृपतिर्वा (महान्) अतिशयमहिमोपेतो वर्तते, (नः) अस्माकम् (पुरः च) समक्षमेव च विद्यते। (वज्रिणे) न्यायदण्डधराय तस्मै (महित्वम्) महिमगानम्, जयजयकारः। मह्यते पूज्यते सर्वैर्जनैरिति महिः। मह पूजायाम् औणादिकः इन् प्रत्ययः। तस्य भावः महित्वम्। (अस्तु) भवतु। (शवः) तस्य बलम्। शव इति बलनाम। निघं० २।९। (प्रथिना) प्रथिम्ना विस्तारेण। पृथुशब्दात् पृथ्वादिभ्य इमनिज् वा। अ० ५।१।१२२ इति इमनिच् प्रत्ययः। मकारलोपश्छान्दसः। यद्वा प्रथि शब्दस्य तृतीयैकवचने रूपम्। (द्यौः न) विशालः सूर्यप्रकाशः इव अस्ति ॥२॥२ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    न्यायकारिणः परमबलिनः परमेश्वरस्य नृपतेश्च यशोगानेन स्वयमपि न्यायकारिभिर्बलवद्भिश्च सर्वैर्भवितव्यम् ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।८।५, अथ० २०।७१।१। उभयत्र पुरश्च नो इत्यत्र परश्च नु इति पाठः। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयं परमेश्वरपक्षे व्याख्यातः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Great is our soul. May we always keep in view the 6onl, the extinguisher of fears. Wide as the heaven extends in might.

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    Meaning

    Indra is great, supreme and transcendent, self- refulgent like the sun, extensive like space and more. May all the power and grandeur be for the lord of justice and the thunderbolt. May all be dedicated to Him. (Rg. 1-8-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्द्रः) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા (महान्) સર્વથી મહાન છે, (पुरः च) તેથી તે પ્રત્યેકની સન્મુખ છે જ્યારે સર્વથી મહાન સર્વત્ર છે, ત્યારે મારી સામે પણ રહેલ જ છે. (द्यौः न प्रथिना शवः) દ્યુલોકની સમાન વિસ્તૃત અથવા ફેલાયેલ તેનું બળ-વ્યાપન બળ છે, તે એવા (वज्रिणे नः महित्वम् अस्तु) સર્વ વિધ વજ્ર શક્તિવાળાને માટે અમો મહિમા = ગુણગાન કરીએ.

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા સર્વથી મહાન છે. તેથી પ્રત્યેકની સન્મુખ હોવા છતાં તે દ્યુલોકની સમાન વિસ્તૃત વ્યાપ્ત છે; તે વજ્ર શાસનવાળા પરમાત્માનો મહિમા-ગુણગાન અમારા દ્વારા થતા રહે. (૨)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بَھگوان کی مہما کو نہ بُھولو!

    Lafzi Maana

    لفظی معنیٰ: (اِندر مہان) اِندر پرمیشور مہان ہے۔ دھن، بل، گیان جس طرف سے دیکھو وہ مہان ہی مہان ہے، بڑوں کا بڑاہ ے، (نہ پُرا) یہ ہمارے سامنے سدا رہتا ہے، (مہتوم بجرے اشُو) یہ سب مہما بڑائی سب اُس کی پاپوں پر بجر پر ہار کر اُنہیں نیست و نابُود کرنے کی ہے، (پرتھی ناشوہ دئیونہ) دئیو لوک کی طرح اُس کابل اور غلبہ سب طرف پھیلا ہوا ہے۔

    Tashree

    ہرمانڈ میں سب سے بڑے گُن شکتی سمپد گیان میں، بدکاروں کی بربادی کی شکتی رکھی بھگوان میں۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    न्यायकारी, परम बलवान परमेश्वर व राजाचे यशोगान करून स्वत:ही सर्वांनी न्यायी व बलवान बनले पाहिजे ॥२॥

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    विषय

    आता इन्द्र म्हणजे परमेश्वराला व राजाला उद्देशून सांगत आहेत -

    शब्दार्थ

    (उपासक वा प्रजानन प्रार्थना वा कामना करीत आहेत) तो (इन्द्रः परमैश्वर्यवान, दुःखविदारक, सुख शांतिदाता परमेश्वर / राजा (महान्) अतिशय महान आहे. (च) आणि तो (नः) नेहमी आम्हा उपासकांच्या / प्रजेच्या (पुरः) समक्ष वा जवळच आहे. (वज्रिणे) न्यायदंडधारी त्या ईश्वराच्या व राजाच्या (महित्वम्) महिमागात वा त्याचा जयजयकार (अस्तु) असो. (शवः) त्याचे बळ (प्रथिना) विस्ताराच्या दृष्टीने (घौ नः) विस्तीर्ण सूर्यप्रकाशाप्रमाणे आहे. ।। २।।

    भावार्थ

    न्यायकारी व परम बली परमेश्वराचे तसेच राजाचे यशोगान करून उपासकांनी / प्रजाजनांनी स्वतःदेखील तशाच प्रकारे न्यायकारी आणि बलवान व्हायला पाहिजे. ।। २।।

    विशेष

    या मंत्रात अर्थश्लेष अलंकार आहे. ।। २।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    இந்திரன் (உங்கள் ஆத்மா) பெரியவன். பழையவன், (வச்சிராயுதனாய்)
    வெகுபலமுடனிருக்கட்டும். (பலமுள்ளவனாய் இருக்கிறான்). வானத்தைப் போல் விரிந்த
    பலமுள்ளவன்.

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