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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1671
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - विष्णुः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    3

    वि꣢ष्णोः꣣ क꣡र्मा꣢णि पश्यत꣣ य꣡तो꣢ व्र꣣ता꣡नि꣢ पस्प꣣शे꣢ । इ꣡न्द्र꣢स्य꣣ यु꣢ज्यः꣣ स꣡खा꣢ ॥१६७१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि꣡ष्णोः꣢꣯ । क꣡र्मा꣢꣯णि । प꣣श्यत । य꣡तः꣢꣯ । व्र꣣ता꣡नि꣢ । प꣣स्पशे । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । यु꣡ज्यः꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ ॥१६७१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे । इन्द्रस्य युज्यः सखा ॥१६७१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णोः । कर्माणि । पश्यत । यतः । व्रतानि । पस्पशे । इन्द्रस्य । युज्यः । सखा । स । खा ॥१६७१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1671
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमेश्वर के महत्त्व का वर्णन है।

    पदार्थ

    (विष्णोः) सर्वान्तर्यामी जगदीश्वर के (कर्माणि) जगत्प्रपञ्च की उत्पत्ति करना, व्यवस्था करना आदि कर्मों को (पश्यत) देखो, (यतः) क्योंकि उसने उन्हें करने के लिए (व्रतानि) व्रत(पस्पशे) ग्रहण किये हुए हैं। वह जगत्पति (इन्द्रस्य) जीवात्मा का (युज्यः) साथ रहनेवाला (सखा) मित्र है ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे व्रती जगदीश्वर इस जगत् में महान् कर्मों को कर रहा है, वैसे ही उसका सखा जीव भी उससे बल पाकर बहुत से कार्य करने में समर्थ समर्थ होता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (विष्णोः कर्माणि पश्यत) व्यापक परमात्मा के कर्मों—जगद्रचन चालन धारण जीवों के लिये भोगप्रदान कर्मानुसार फल प्रदान आदि को देखो (यतः-व्रतानि पस्रशे) जिन्हें देखकर मनुष्य अपने सङ्कल्पों आचरणों कर्त्तव्यों को स्पर्श करता है१ उसके प्रति और संसार में रहने के लिये (इन्द्रस्य युज्यः सखा) उपासक आत्मा का योग से प्राप्त होने वाला साथी मित्र है, अतः उससे योग करना चाहिए॥३॥

    विशेष

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    विषय

    इन्द्र का सदा सखा

    पदार्थ

    प्रभु सर्वव्यापक हैं—सर्वव्यापक होने के नाते उनके कर्म भी व्यापकता को लिये हुए हैं—वे कर्म पूर्ण पवित्र हैं। इस व्यापकता के कारण प्रभु का नाम 'विष्णु' है । जीव को चाहिए कि कि उस प्रभु के कर्मों का विचार करे और अपने कर्त्तव्यों का निर्णय करे । (विष्णोः) = उस सर्वव्यापक प्रभु के (कर्माणि) = कर्मों को (पश्यत्) = देखो, (यतः) = जिनसे, अर्थात् जिनको देखकर (व्रतानि) = अपने कर्त्तव्यों को जीव (पस्पशे) = स्पष्टरूप से देखता है। प्रभु के सब कर्म पक्षपात व भेदभाव से शून्य और न्याय्य हैं—यह देखकर जीव को न्याय्यमार्ग पर ही चलने का निश्चय करना चाहिए।

    परमात्मा ही (इन्द्रस्य) = जीवात्मा का उसे (युज्यः) = उत्तमोत्तम कर्मों में लगानेवाला, उत्तम कर्मों में प्रेरित करनेवाला (सखा) = मित्र है । प्रभु अपने उदाहरण से कर्मों की प्रेरणा दे रहे हैं - बशर्ते कि जीव उनका विचार करे । अन्तःकरण में स्थित हुए हुए वे प्रभु प्रेरणा दे रहे हैं - यदि हम उसे सुनें । प्रभु ही जीव के सच्चे सखा हैं । उस 'सविता देव' - दिव्य गुणों के पुञ्ज, प्रेरक प्रभु के कामों को देख व विचार कर और उससे दी गयी प्रेरणा को सुनकर जीव अपने व्रतों [duties] का सम्यक् निश्चय कर सकता है ।

    भावार्थ

    वे प्रभु ही हमारे सच्चे मित्र हैं — उसके कर्म ही हमें हमारे कर्त्तव्यों का संकेत कर रहे हैं ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरस्य महत्त्वं वर्णयति।

    पदार्थः

    (विष्णोः) सर्वान्तर्यामिनो जगदीश्वरस्य (कर्माणि) जगत्प्रपञ्चसर्जनव्यवस्थापनादीनि कर्माणि, (पश्यत)अवलोकयत, (यतः) यस्मात् कारणात् स तानि कर्तुम्(व्रतानि) संकल्पान् (पस्पशे२) स्पृष्टवान्, गृहीतवान् अस्ति। स जगत्पतिः (इन्द्रस्य) जीवात्मनः (युज्यः) सहयोगी (सखा) सुहृत्, वर्तते इति शेषः ॥३॥३

    भावार्थः

    यथा व्रती जगदीश्वरो जगत्यस्मिन् महान्ति कर्माणि करोति तथैव तत्सखा जीवोऽपि तस्माद् बलं प्राप्य बहुकार्यक्षमो जायते ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Look Ye on God’s wondrous works whereby the soul acquires all sorts of knowledge. God is the permanent friend of the soul.

    Translator Comment

    See Yajur 6-5.

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    Meaning

    Watch the creation and actions of Vishnu. Thence the souls know and observe the law and discipline of their existence. Vishnu is the friend and constant companion of the soul. (Rg. 1-22-19)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (विष्णोः कर्माणि पश्यत) વ્યાપક પરમાત્માના કર્મો-જગતની રચના, સંચાલન, ધારણ, જીવોને માટે ભોગપ્રદાન, કર્માનુસાર ફળ પ્રદાન આદિને જુઓ. (यतः व्रतानि पस्पशे) જેને જોઈને મનુષ્ય પોતાના સંકલ્પો, આચરણો, કર્તવ્યોને સ્પર્શ કરે છે-નિયમસર કરે છે. તેના પ્રત્યે અને સંસારમાં રહેવા માટે (इन्द्रस्य युज्यः सखा) ઉપાસક આત્માને યોગ દ્વારા પ્રાપ્ત થનાર મિત્ર છે, માટે તેથી યોગ કરવો જોઈએ. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा व्रती जगदीश्वर या जगात महान कर्म करत आहे, तसेच त्याचा सखा जीव ही त्याच्याकडून बल प्राप्त करून पुष्कळसे कार्य करण्यात समर्थ आहे. ॥३॥

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