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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1676
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
4
इ꣣मे꣡ हि ते꣢꣯ ब्रह्म꣣कृ꣡तः꣢ सु꣣ते꣢꣫ सचा꣣ म꣢धौ꣣ न꣢꣫ मक्ष आ꣡स꣢ते । इ꣢न्द्रे꣣ का꣡मं꣢ जरि꣣ता꣡रो꣢ वसू꣣य꣢वो꣣ र꣢थे꣣ न꣢꣫ पाद꣣मा꣡ द꣢धुः ॥१६७६॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣मे꣢ । हि । ते꣣ । ब्रह्मकृ꣡तः꣢ । ब्र꣣ह्म । कृ꣡तः꣢꣯ । सु꣣ते꣢ । स꣡चा꣢꣯ । म꣡धौ꣢꣯ । न । म꣡क्षः꣢꣯ । आ꣡स꣢꣯ते । इ꣡न्द्रे꣢꣯ । का꣡म꣢꣯म् । ज꣣रिता꣡रः꣢ । व꣣सूय꣡वः꣢ । र꣡थे꣢꣯ । न । पा꣡द꣢꣯म् । आ । द꣣धुः ॥१६७६॥
स्वर रहित मन्त्र
इमे हि ते ब्रह्मकृतः सुते सचा मधौ न मक्ष आसते । इन्द्रे कामं जरितारो वसूयवो रथे न पादमा दधुः ॥१६७६॥
स्वर रहित पद पाठ
इमे । हि । ते । ब्रह्मकृतः । ब्रह्म । कृतः । सुते । सचा । मधौ । न । मक्षः । आसते । इन्द्रे । कामम् । जरितारः । वसूयवः । रथे । न । पादम् । आ । दधुः ॥१६७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1676
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा की उपासना का विषय है।
पदार्थ
हे जगदीश्वर ! (इमे हि) ये (ते) तेरे लिए (ब्रह्मकृतः) स्तोत्र-पाठ करनेवाले उपासक (सुते) उपासना-यज्ञ में (सचा) एक साथ मिलकर (आसते) बैठे हुए हैं, (मधौ न) शहद के छत्ते पर जैसे (मक्षः) मधु-मक्खियाँ (सचा) मिलकर (आसते) बैठी होती हैं। (वसूयवः) अध्यात्म धन के इच्छुक (जरितारः) स्तोता गण (इन्द्रे) परमैश्वर्यशाली तुझ जगदीश्वर में (कामम्) अपनी अभिलाषा को (आदधुः) रखे हुए हैं, संजोये हुए हैं, (वसूयवः) भौतिक धन के इच्छुक लोग (रथे न) जैसे रथ में (पादम्) अपना पैर रखते हैं ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ
मधु बनानेवाली मधुमक्खियाँ जैसे मधु के छत्ते पर बैठती हैं, वैसे ही उपासना करनेवाले लोग उपासनागृह में बैठते हैं और जैसे भौतिक धन-धान्य आदि अन्य स्थान से लाने के इच्छुक लोग रथ में अपना पैर रखते हैं, वैसे ही सत्य, अहिंसा, योगैश्वर्य आदि के अभिलाषी लोग परमात्मा में अपनी कामना को रख देते हैं ॥२॥
पदार्थ
(ते हि) हे परमात्मन्! तेरे ही (इमे ब्रह्मकृतः) ये स्तुतिकर्ता७ (सुते) तुझ उपासित के आश्रय (सचा-आसते) समवेत होकर बैठते हैं (मधौ न मक्षः) मधु के आश्रय—मधु पर जैसे मक्खियाँ बैठती हैं (वसूयवः-जरितारः) अपने वासयोग्य आश्रय की कामना करने वाले स्तुतिकर्ताजन८ (इन्द्रे कामम्-आदधुः) तुझ ऐश्वर्यवान् परमात्मा के अन्दर अपने कमनीय अभीष्ट को रख देते हैं (रथे न पादम्) जैसे रथ—यान—गाड़ी में पैर को रख देते—जमा देते हैं॥२॥
विशेष
<br>
विषय
ज्ञानी, स्तोता, वसुमान्
पदार्थ
(ज्ञानी – इमे) = ये (हि) = निश्चिय से (ते) = वे ही (ब्रह्मकृतः) = ज्ञानी वेद-मन्त्रों के भाव को हृदयों में भरनेवाले हैं, जो (सचा) = मिलकर सुते निर्माण के कार्य में (आसते) = स्थित होते हैं, उसी प्रकार न जैसेकि (मक्षः) = मक्खियाँ (मधौ) = शहद के निर्माण के निमित्त मिलकर एक छत्ते में आसते= स्थित होती हैं । ज्ञानियों का कार्य यही है कि वे मिलकर निर्माणात्मक कार्यों में लगे रहें और मक्खियाँ
जैसे शहद-जैसे मधुर पदार्थ को पैदा करती हैं, उसी प्रकार लोकहित की वस्तुओं को पैदा करें ।
(स्तोता – जरितारः) = स्तोता वे हैं जो (कामम्) = अपनी सब कामनाओं को (इन्द्रे) = प्रभु में अर्पित कर देते हैं। ये लोग ‘आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, द्रविण तथा ब्रह्मवर्चस्' की कामनाओं को छोड़कर प्रभु को ही चाहते हैं । अनन्य भक्त ही वस्तुतः भक्त होता है—यह सिवाय अपने भक्तिभाजन के किसी को नहीं चाहता । इसकी सब कामनाएँ प्रभु में न उसी प्रकार निहित होती हैं जैसेकि धनेच्छु का पाँव रथ में । =
(कर्मी)– इन ज्ञानी और स्तोताओं के अतिरिक्त वे व्यक्ति हैं जो (वसूयवः) = धनों को चाहते हुए (रथे) = रथ में (पादम्) = पाँव को (आदधुः) = धारण करते हैं। ये व्यापारी लोग एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने के लिए सदा रथस्थ रहते हैं। इसी प्रकार स्तोता प्रभु में स्थित होते हैं तथा ज्ञानी निर्माण के कार्यों में लगे रहते हैं ।
भावार्थ
मैं ज्ञानी, स्तोता तथा वसुमान् बनकर प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि वसिष्ठ बनूँ। मैं उत्तम निवासवाला होऊँ ।
विषय
missing
भावार्थ
हे इन्द्र ! (मधौ) मधु=शहद पर (मक्षः न) जिस प्रकार मक्खी आ बैठती है उसी प्रकार (इमे) ये (ब्रह्मकृतः हि) ब्रह्मयज्ञ करने हारे वेद के विद्वान् गण (ते सचा) तेरे के साथ मोक्षानन्द प्राप्त करने के लिये (आसते) आ बैठते हैं और ब्रह्म का रस प्राप्त करते हैं। और (इन्द्रे) उस इन्द्र परमात्मा में ही (वसूयवः) वसु=आत्मा को प्राप्त करने की इच्छा वाले (जरितारः) स्तुतिशील विद्वान्गण (कामम्) अपनी अभिलाषा को इस प्रकार (आदधुः) रख देते हैं जिस प्रकार (वसूयवः रथे पादम्) धनाभिलाषी क्षत्रिय लोग अपना चरण रथ पर रखते हैं और फिर देशों को विजय करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः। २ श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। ३ शुनःशेप आजीगर्तः। ४ शंयुर्बार्हस्पत्यः। ५, १५ मेधातिथिः काण्वः। ६, ९ वसिष्ठः। ७ आयुः काण्वः। ८ अम्बरीष ऋजिश्वा च। १० विश्वमना वैयश्वः। ११ सोभरिः काण्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ कलिः प्रागाथः। १५, १७ विश्वामित्रः। १६ निध्रुविः काश्यपः। १८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। १९ एतत्साम॥ देवता—१, २, ४, ६, ७, ९, १०, १३, १५ इन्द्रः। ३, ११, १८ अग्निः। ५ विष्णुः ८, १२, १६ पवमानः सोमः । १४, १७ इन्द्राग्नी। १९ एतत्साम॥ छन्दः–१-५, १४, १६-१८ गायत्री। ६, ७, ९, १३ प्रागथम्। ८ अनुष्टुप्। १० उष्णिक् । ११ प्रागाथं काकुभम्। १२, १५ बृहती। १९ इति साम॥ स्वरः—१-५, १४, १६, १८ षड्जः। ६, ८, ९, ११-१३, १५ मध्यमः। ८ गान्धारः। १० ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मोपासनाविषयमाह।
पदार्थः
हे जगदीश ! (इमे हि) एते खलु (ते) तुभ्यम् (ब्रह्मकृतः) स्तोत्रपाठकर्तारः उपासकाः (सुते) उपासनायज्ञे (सचा) संभूय (आसते) उपविशन्ति, (मधौ न मक्षः) मधुमक्षिका यथा मधुगोलके तिष्ठन्ति। (वसूयवः) अध्यात्मधनेच्छुकाः (जरितारः) स्तोतारः (इन्द्रे) परमैश्वर्यशालिनि जगदीश्वरे त्वयि (कामम्) अभिलाषम् (आदधुः) आदधति, (वसूयवः) भौतिकधनाभिलाषिणो जनाः (रथे न) रथे यथा (पादम्) चरणम् आदधति ॥२॥२ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥
भावार्थः
मधुकृतो मधुमक्षिका यथा मधुगोलके तिष्ठन्ति तथैवोपासनाकर्तारो जना उपासनागृहे तिष्ठन्ति। यथा च भौतिकं धनधान्यादिकं स्थानान्तरादानेतुकामा जना रथे स्वपादं निदधति तथैव सत्याहिंसायोगैश्वर्यादिकामा जनाः परमात्मनि स्वकाममादधति ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, just as a fly sits on honey, so do the Vedic scholars sit near Thee for procuring the joy of salvation. Just as warriors eager for wealth and conquest set their foot upon a car, so do the learned persons hankering after the realisation of soul, make their desire rest on Thee.
Translator Comment
.
Meaning
When the celebrants have distilled and seasoned the soma of homage and worship for Indra, ruler of the social order of governance, they sit together like bees clustering round honey. The celebrants dedicated to the honour and prosperity of the ruling order place their trust and faith in Indra, the ruler and the law of governance, like travellers who place their foot on the step and ride the chariot to reach their goal. (Rg. 7-32-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (ते हि) હે પરમાત્મન્ ! તારા જ (इमे ब्रह्मकृतः) એ સ્તુતિકર્તા (सुते) તારા ઉપાસિતના આશ્રયે (सचा आसते) સમવેત બનીને બેસે છે (मधौ न मक्षः) જેમ મધનાં આશ્રયે-મધ પર માખી બેસે છે તેમ. (वसूयवः जरितारः) પોતાના વાસયોગ્ય આશ્રય-મોક્ષની કામના કરનારા સ્તુતિકર્તા જનો (इन्द्रे कामम् आदधुः) તારી-ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માની અંદર પોતાની શ્રેષ્ઠ ઇચ્છાઓને રાખી દે છે; થે (रथे न पादम्) જેમ રથ-વાહન-ગાડીમાં પગને મૂકી દે છે. રાખી દે છે તેમ. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
मध तयार करणाऱ्या मधमाशा जशा मधाच्या कोशात राहतात, तसेच उपासना करणारे लोक उपासनागृहात असतात व जसे भौतिक धनधान्य इत्यादी इतर स्थानापासून आणण्यासाठी इच्छुक लोक रथात आरूढ होतात, तसेच सत्य, अहिंसा, योगैश्वय्र इत्यादीचे अभिलाषी लोक परमात्म्यातच आपली इच्छा-कामना ठेवतात. ॥२॥
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