Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1699
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
प꣡व꣢माना असृक्षत꣣ सो꣡माः꣢ शु꣣क्रा꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वः । अ꣣भि꣡ विश्वा꣢꣯नि꣣ का꣡व्या꣢ ॥१६९९॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानाः । अ꣣सृक्षत । सो꣡माः꣢꣯ । शु꣣क्रा꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः । अ꣣भि꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯नि । का꣡व्या꣢꣯ ॥१६९९॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमाना असृक्षत सोमाः शुक्रास इन्दवः । अभि विश्वानि काव्या ॥१६९९॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानाः । असृक्षत । सोमाः । शुक्रासः । इन्दवः । अभि । विश्वानि । काव्या ॥१६९९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1699
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम मन्त्र में कविकर्म का वर्णन है।
पदार्थ
(पवमानाः) स्वयं को तथा दूसरों को पवित्र करते हुए, (शुक्रासः)तेजस्वी, (इन्दवः) अपने काव्य-रस से सहृदयों को भिगोनेवाले(सोमाः) शान्त विद्वान् कविजन ही (विश्वानि काव्या) सब भक्तिरस के काव्यों की (असृक्षत) सर्जना करते हैं ॥१॥
भावार्थ
भगवान् के उपासक कविजन ही भक्तिरस के काव्यों की सर्जना में समर्थ होते हैं ॥१॥
पदार्थ
(पवमानाः) धारारूप में प्राप्त होने वाला (शुक्रासः) शुभ्र निर्मल अधर्माज्ञान दोषरहित (इन्दवः) आनन्दरसपूर्ण (सोमाः) शान्तस्वरूप परमात्मा७ (विश्वानि काव्या) सब वेदरूप काव्यों को८ अभिलक्षित कर—उनके अनुसार उपासित हो उपासक के अन्दर (असृक्षत) पहुँचता है॥१॥
विशेष
ऋषिः—निध्रुविः (नियत स्थिर वृत्ति वाला उपासक)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
विषय
क्रान्तदर्शित्व की ओर
पदार्थ
उल्लिखित प्रकार के लोकसेवकों के सब गुण सोमरक्षा से उत्पन्न होते हैं, अतः प्रस्तुत तृच 'सोम' का वर्णन करता है -
(सोमाः असृक्षत) = प्रभु की अचिन्त्य व्यवस्था के द्वारा शरीर में सोमकणों का निर्माण होता है। ये सोमकण
१. (पवमाना:) = पवित्र करनेवाले होते हैं । इनके द्वारा जीवन में पवित्रता का संचार होता है, क्योंकि इनका रक्षक क्रोध-घृणा आदि वासनाओं का शिकार नहीं होता ।
२. (शुक्रासः) = ये मनुष्य को शक्तिशाली बनाते हैं । वस्तुतः सोम ही तो शक्ति है।
३. (इन्दवः) = ये सोम मनुष्य को परम उत्कृष्ट ऐश्वर्य प्राप्त करानेवाले होते हैं । ये शरीर में स्निग्धता, मन में स्नेह तथा बुद्धि में तीव्रता लानेवाले हैं।
४. (विश्वानि) = सब (काव्या अभि) = काव्यों की ओर ले जानेवाले ये होते हैं, क्योंकि ये मनुष्य की ज्ञानाग्नि को तीव्र करते हैं, अतः ये मनुष्य को क्रान्तदर्शी बनाते हैं । यह प्रत्येक पदार्थ के वास्तविक रूप को देखनेवाला बनता है। इस कारण कोई भी वस्तु इसे डाँवाँडोल नहीं कर पाती। डाँवाँडोल न होने के कारण यह प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'निध्रुवि' कहलाता है ।
भावार्थ
सोम हमें पवित्र, शक्तिशाली, उत्कृष्ट ऐश्वर्यवाला तथा क्रान्तदर्शी बनाता है।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ कविकर्म वर्ण्यते।
पदार्थः
(पवमानाः) स्वात्मानम् इतरांश्च पुनानाः, (शुक्रासः) तेजस्विनः, (इन्दवः) स्वकीयेन काव्यरसेन सहृदयानां क्लेदकाः (सोमाः) शान्ताः विद्वांसः कविजनाः (विश्वानि काव्या) विविधानि भक्तिरसकाव्यानि (असृक्षत) सृजन्ति ॥१॥
भावार्थः
भगवदुपासकाः कविजना एव भक्तिरसकाव्यानि स्रष्टुं प्रभवन्ति ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The pure, noble, calm Yogis visualise all the Vedic verses.
Translator Comment
Visualise: understand the significance and purport of.
Meaning
Streams of bright energising soma flow, pure and purifying, among the songs of universal poetry of divinity. (Rg. 9-63-25)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (पवमानाः) ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર (शुक्रासः) શુભ્ર, નિર્મળ, અધર્મ-અજ્ઞાન દોષરહિત (इन्दवः) આનંદરસ પૂર્ણ (सोमाः) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (विश्वानि काव्या) સર્વ વેદરૂપ કાવ્યોને અભિલક્ષિત કરીને-તેમના અનુસાર ઉપાસિત થઈને ઉપાસકની અંદર (असृक्षत) પહોંચે છે. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराचे उपासक कवीच भक्तिरसाच्या काव्याची सर्जना करण्यात समर्थ असतात. ॥१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal