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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 172
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    2

    ये꣢ ते꣣ प꣡न्था꣢ अ꣣धो꣢ दि꣣वो꣢꣫ येभि꣣꣬र्व्य꣢꣯श्व꣣मै꣡र꣢यः । उ꣣त꣡ श्रो꣢षन्तु नो꣣ भु꣡वः꣢ ॥१७२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये꣢ । ते꣣ । प꣡न्थाः꣢꣯ । अ꣣धः꣢ । दि꣣वः꣢ । ये꣡भिः꣢꣯ । व्य꣢श्वम् । वि । अ꣣श्वम् । ऐ꣡र꣢꣯यः । उ꣣त꣢ । श्रो꣣षन्तु । नः । भु꣡वः꣢꣯ ॥१७२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते पन्था अधो दिवो येभिर्व्यश्वमैरयः । उत श्रोषन्तु नो भुवः ॥१७२॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये । ते । पन्थाः । अधः । दिवः । येभिः । व्यश्वम् । वि । अश्वम् । ऐरयः । उत । श्रोषन्तु । नः । भुवः ॥१७२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 172
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह विषय वर्णित है कि सब प्रजाएँ आकाशमार्गों को, पृथिव्यादिलोकों के भ्रमण की विद्या को और विमानादि की विद्या को भली-भाँति जानें।

    पदार्थ

    प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। हे इन्द्र ! लोकलोकान्तरों के व्यवस्थापक परमेश्वर ! (ये) जो (ते) आपके रचे हुए (पन्थाः) मार्ग (दिवः) द्युलोक के (अधः) नीचे, अन्तरिक्ष में हैं (येभिः) जिनसे (व्यश्वम्) बिना घोड़ों के चलनेवाले पृथिवी, चन्द्र, मंगल, बुध आदि ग्रहोपग्रहसमूह को (ऐरयः) आप चलाते हो, उन मार्गों को (नः) हमारी (भुवः) भूलोकवासी प्रजाएँ भी (श्रोषन्तु) सुनें, और सुनकर जानें ॥ द्वितीय—राजा के पक्ष में। हे इन्द्र राजन् ! (ये) जो (ते) आपके निर्धारित (पन्थाः) आकाश-मार्ग (दिवः) द्युलोक से (अधः) नीचे अर्थात् भूमि, समुद्र और अन्तरिक्ष में हैं, (येभिः) जिन (व्यश्वम्) बिना घोड़ों से चलनेवाले भूयान, जलयान और विमानों को (ऐरयः) आप चलवाते हैं, उन भूमि-समुद्र-आकाश के मार्गों के विषय में (नः) हमारी (भुवः उत) जन्मधारी राष्ट्रवासी प्रजाएँ भी (श्रोषन्तु) वैज्ञानिकों के मुख से सुनें, और सुनकर भूयान, जलयान, विमान, कृत्रिम उपग्रह आदि के बनाने और चलाने की विद्या को भली-भाँति जानें ॥८॥ अन्तरिक्ष मार्गों का वर्णन अथर्ववेद के एक मन्त्र में इस प्रकार है—जो विद्वान् लोगों के यात्रा करने योग्य बहुत से मार्ग द्युलोक और पृथिवीलोक के मध्य में बने हुए हैं, वे मुझे सुलभ हों, जिससे मैं उनसे यात्रा करके विदेशों में दूध-घी बेचकर धन इकट्ठा करके लाऊँ’’, (अथ० ३।१५।२)। समुद्र और अन्तरिक्ष में चलनेवाले यानों का वर्णन भी वेद में बहुत स्थलों पर मिलता है, जैसे हे ब्रह्मचर्य द्वारा परिपुष्ट युवक ! जो तेरे लिए सोने जैसी उज्ज्वल नौकाएँ अर्थात् नौका जैसी आकृतिवाले जलपोत और विमान समुद्र में और अन्तरिक्ष में चलते हैं, उनके द्वारा यात्रा करके तू सूर्यपुत्री उषा के तुल्य ब्रह्मचारिणी कन्या को विवाह द्वारा प्राप्त करने के लिए जाता है’’ (ऋ० ६।५८।३)। बिना घोड़ों के चलनेवाले वेगवान् यान का वर्णन वेद में अन्यत्र भी है, यथा—एक तीन पहियोंवाला रथ है, जिसमें न घोड़े जुते हैं, न लगामें हैं, जो बड़ा प्रशंसनीय है और जो आकाश में किसी लोक की परिक्रमा करता है (ऋ० ४।३६।१)

    भावार्थ

    परमेश्वर अन्तरिक्ष-मार्ग में सूर्य को और भूमण्डल-चन्द्रमा-मंगल-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनि आदि ग्रहोपग्रहों को जैसा चाहिए, वैसा उनकी धुरी पर या उनकी अपनी-अपनी कक्षाओं में संचालित करता है, और राष्ट्र का कुशल राजा भूयान, जलयान, विमान, कृत्रिम उपग्रह आदिकों को कुशल वैज्ञानिकों के द्वारा चलवाता है। तद्विषयक सारी विद्या राष्ट्रवासियों को पढ़नी-पढ़ानी और प्रयोग करनी चाहिए ॥८॥

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    पदार्थ

    (ते) हे इन्द्र परमात्मन्! तेरे—तेरे सृजे हुए (ये पन्थाः) जो मार्ग (दिवः-अधः) द्युलोक के—अमृतधाम के “त्रिपादस्यामृतं दिवि” [ऋ॰ १०.९०.३] नीचे हैं (येभिः-अश्व वि-ऐरवः) जिन मार्गों वातसूत्रों के द्वारा आदित्य को विशेषरूप से प्रेरित करता है “असौ वा आदित्योऽश्वः” [तै॰ ३.९.२३.२] “चकार सूर्याय पन्थामन्वेतवा उ” [ऋ॰ १.२४.८] (नः-भुवः-उत श्रोषन्तु) हमारी भूमियों—देहों को भी “आशृण्वन्तु” स्वीकार करें—स्वीकार करते हैं संचालित करते हैं।

    भावार्थ

    परमात्मन्! तेरे वातसूत्र मार्ग द्युमण्डल के नीचे जैसे सूर्यादि प्रकाश पिण्डों को चलाते हैं वैसे वे हमारी भूमियों एवं देहों को भी स्वाधीन करते हैं एवं तेरा नियन्त्रण समस्त विश्व पर है॥८॥

    विशेष

    ऋषिः—वामदेवः (वननीय उपासनीय इष्टदेव वाला उपासक जन)॥<br>

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    विषय

    ज्ञान के ही मार्ग पर

    पदार्थ

    हे प्रभो! (ये)=जो (ते)=तेरे (पन्थाः)=मार्ग (दिवः अधः उ) = ज्ञान पर ही आश्रित हैं (येभिः) = जिनसे आप (व्यश्वम्) = विशिष्ट अश्वोंवाले अर्थात् पवित्र इन्द्रियरूप घोड़ोंवाले पुरुष को (ऐरयः)=गति करवाते हैं, (भुवः)=विचारशील लोग [भुव् अवकल्कने=चिन्तने; भुव्+क्विप्] (नः)=हमें (उत्)=भी (श्रोषन्तु) = उन मार्गों को सुनाएँ, इन मार्गों का ज्ञान दें।

    संसार में एक मार्ग श्रद्धामूलक है, दूसरा ज्ञानमूलक । जिस मार्ग का आधार केवल श्रद्धा पर है वह अन्ततोगत्वा मनुष्य के लिए हितकर नहीं हो सकता। मनुष्य उसमें गोते ही खाता रहता है, भटकता ही रहता है। वह लक्ष्य स्थान पर नहीं पहुँच पाता।

    मनुष्य को ज्ञानाश्रित मार्ग पर चलना चाहिए। इसपर चलकर ही मनुष्य प्रशस्त इन्द्रियोंवाला 'व्यश्व' बनता है। ज्ञानमूलक मार्ग पर चलने से अभय, सत्त्वशुद्धि आदि उत्तम गुणों से सम्पन्न होकर यह इस मन्त्र का ऋषि ‘वामदेव' बनता है। अत्यन्त प्रशस्त इन्द्रियोंवाला बनने से यह गोतम कहलाता है।

    मन्त्र की समाप्ति पर प्रार्थना है कि विचारशील लोग सदा हमें इस मार्ग का श्रवण कराते रहें। इन विचारशीलों के सत्सङ्ग से ही तो मनुष्य उत्तम मनवाला बनता है। विवेक का स्रोत इनके उपदेशों का श्रवण है। इसलिए उपनिषत् कहती है कि( 'उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरान् निबोधत') = उठो, जागो, श्रेष्ठों के समीप पहुँचकर ज्ञान प्राप्त करो । संसार में ज्ञान के अभाव में केवल श्रद्धा या अन्धश्रद्धा ने बहुत हानि की है। ज्ञान के मार्ग पर चलना ही ठीक है। यही व्यश्व वा वामदेव बन सकने का रहस्य [secret] है। 

    भावार्थ

    हम जीवन में ज्ञानमूलक मार्ग का अवलम्बन करें।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे इन्द्र  ! आत्मन् ! ( ये ) = जो ( पन्थाः ) = मार्ग ( ते ) = तेरे ( दिवः अधः ) = द्यौलोक, ब्रह्माण्ड, मस्तक कपाल के नीचे हैं ( येभिः ) = जिन्हों से ( व्यश्वम् ) = नाना प्रकार के अश्वों, इन्द्रियों को ( ऐरयः ) = प्रेरित करता है वे और ( नः भुवः ) = हमारे प्राण या कर्मेन्द्रिय ( उत ) = भी ( श्रोषन्तु ) = तेरी आज्ञा को सुनते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - वामदेव:।

    देवता - इन्द्रः। 

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सर्वाः प्रजा अन्तरिक्षमार्गान् पृथिव्यादिलोकभ्रमणविद्यां विमानादिविद्यां च सम्यग् जानन्त्वित्याह।

    पदार्थः

    प्रथमः—परमात्मपरः। हे इन्द्र लोकलोकान्तरव्यस्थापक परमेश्वर ! (ये ते) तव, त्वद्रचिताः (पन्थाः२) मार्गाः (दिवः) द्युलोकात् (अधः) अधस्तात्, अन्तरिक्षे सन्ति, (येभिः) यैः (व्यश्वम्३) विगताश्वं पृथिवीचन्द्रमंगलबुधादिकं ग्रहोपग्रहजातम् (ऐरयः) चालयसि। ईर क्षेपे, चुरादिः, लङ्। तान् पथः (नः) अस्माकम् (भुवः उत) भूलोकवासिन्यः प्रजा अपि (श्रोषन्तु) शृण्वन्तु, श्रुत्वा च विदाङ्कुर्वन्तु। श्रुधातोर्लोटि व्यत्ययेन शपि, सिब्बहुलं लेटि अ० ३।१।३४ इति बहुलवचनात् सिबागमः ॥ अथ द्वितीयः—राजपरः। हे इन्द्र राजन् ! (ये ते) तव, त्वन्निर्धारिताः (पन्थाः) आकाशमार्गाः (दिवः) द्युलोकात् (अधः) अधस्तात्, अन्तरिक्षे भुवि च सन्ति, (येभिः) यैः भूसमुद्राकाशमार्गैः (व्यश्वम्) विगताश्वं भूयानजलयानविमानकृत्रिमोपग्रहादिकम् (ऐरयः) प्रेरयसि, तान् भूमिसमुद्राकाशमार्गान् (नः) अस्माकम् (भुवः उत) भवन्तीति भुवः जन्मधारिण्यः राष्ट्रवासिन्यः प्रजाः अपि (श्रोषन्तु) वैज्ञानिकेभ्यः सकाशात् शृण्वन्तु, श्रुत्वा च भूयानजलयानविमानकृत्रिमोपग्रहादिनिर्माणचालनविद्यां सम्यग् विदन्तु ॥८॥ अन्तरिक्षमार्गाणां वर्णनमस्मिन्नाथर्वणे मन्त्रे द्रष्टव्यम्—ये पन्था॑नो ब॒हवो॑ देव॒याना॑ अन्त॒रा द्यावा॑पृथि॒वी सं॒चर॑न्ति। ते मा॑ जुषन्तां॒ पय॑सा घृ॒तेन॒ यथा॑ क्री॒त्वा धन॑मा॒हरा॑णि ॥ अथ० ३।१५।२। समुद्रयानानामन्तरिक्षयानानां चापि वर्णनं वेदे बहुशः प्राप्यते। यथा, “यास्ते॑ पू॒षन्नावो॑ अ॒न्तः स॑मु॒द्रे हि॑र॒ण्ययी॑र॒न्तरि॑क्षे॒ चर॑न्ति। ताभि॑र्यासि दू॒त्यां सूर्य्य॑स्य॒ कामे॑न कृतः॒ श्रव॑ इ॒च्छमा॑नः ॥” ऋ० ६।५८।३ इति। विगताश्वयानवर्णनं वेदेऽन्यत्रापि श्रुतम्। यथा, अ॒न॒श्वो जा॒तो अ॑नभी॒शुरु॒क्थ्यो॒३रथ॑स्त्रिच॒क्रः परि॑ वर्त॒ते रजः॑ ॥ ऋ० ४।३६।१ इति ॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥८॥

    भावार्थः

    परमेश्वरोऽन्तरिक्षमार्गे सूर्यं भूमण्डल-चन्द्र-मंगल-बुध-गुरु-शुक्र-शन्यादींश्च ग्रहोपग्रहान् यथायथं स्वधुरि स्वकक्षासु वा संचालयति, राष्ट्रस्य कुशलो राजा च भूयानजलयानविमानकृत्रिमोपग्रहादींश्च कुशलैर्वैज्ञानिकैश्चालयति। तद्विषयिणी सर्वापि विद्या राष्ट्रवासिभिरध्येतव्या प्रयोक्तव्या च ॥८॥

    टिप्पणीः

    १. अथ० ७।५५।१। ये ते पन्थानोऽव दिवो येभिर्विश्वमैरयः। तेभिः सुम्नया धेहि नो वसो। इति पाठः। ऋषिः भृगुः, छन्दः विराट् परोष्णिक्। २. वेदेषु पथिन् शब्दस्य प्रथमाबहुवचने पन्थाः पन्थानः, द्वितीयैकवचने च पन्थाम्, पन्थानम् इति वैकल्पिकानि रूपाणि प्रायशः प्रयुक्तानि। ३. व्यश्वम् वेगिताश्वं शीघ्रमित्यर्थः ऐरयः पूर्वकालमपि आगतवानसि—इति वि०। यैः पथिभिः व्यश्वम् ऋजुकम् ऐरयः प्रापयः दिवम्—इति भ०। सायणस्तु विश्वम् इति पाठं मत्वा विश्वं सर्वं जगत् ऐरयः प्राप्तवानसि—इति व्याचष्टे।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O soul, may all thy paths beneath the skull whereby thou impeliest various organs, and our organs of action listen to thy behest.

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    Meaning

    Indra let all the pathways below the regions of light by which you ignite, initiate and radiate currents of energy in the firmament be known to us, and let the people all regions of the world listen to our voice.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (ते) હે ઇન્દ્ર પરમાત્મન્ ! તારા રચેલા (ये पन्थाः) જે માર્ગ (दिवः अधः) દ્યુલોકથી-અમૃતધામથી નીચે છે (येभिः अश्व वि ऐरवः) જે માર્ગો વાતસૂત્રોના દ્વારા આદિત્યને વિશેષરૂપથી પ્રેરિત કરે છે. (नः भुवः उत श्रोषन्तु) અમારી ભૂમિઓ-દેહોને પણ ‘આશ્રણ્વન્તુ’ સ્વીકાર કરે-સ્વીકાર કરે છે, સંચાલિત કરે છે. (૮)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મન્ ! તારા વાતસૂત્ર માર્ગ દ્યુ-મંડળની નીચે જેમ સૂર્ય આદિ પ્રકાશપિંડોને ચલાવે છે તેમ તે અમારી ભૂમિયો અને દેહોને પણ સ્વાધીન કરે છે અને તારું નિયંત્રણ સમસ્ત વિશ્વ પર છે. (૮)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    لظامِ شمسی کی طرح ہمیں بھی اپنے قواعد میں چلائیں!

    Lafzi Maana

    لفظی معنیٰ: ہے پرمیشور! (دِوہادھ) دئیو لوک (نظامِ شمسی) کے نیچے (تے یے پنتھا) آپ کے بنائے ہوئے جو انیک پرکار کے راستے ہیں (یے بھی) جن کے ذریعے (اشوم) سورج وغیرہ کو (وی ایرریہ) آپ ترغیب دے رہے ہیں، چلا رہے ہیں، وہ سب آپ کے قاعدے میں دن رات گردش کرنے والے (شروونتُو) آپ کے احکام کو سُنتے رہتے ہیں اور کبھی اُلنگھن (خلاف ورزی) نہیں کرتے، لہٰذا ہم پر بھی آپ ایسی کِرپا کریں کہ (نہ بُھوہ) ہم زمین پر بسنے والے دھرتی باسی (اُت) بھی آپ کی آگیاؤں (احکام) کو سُنتے ہوئے کبھی اُن کا اُلنگھن یا نظرانداز نہ کریں۔

    Tashree

    پریرنا میں آپ کی جیسے چلیں شمس و قمر، ویسے چلیں ترغیب میں ہم آپ کی دن رات بھر۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वर अंतरिक्ष मार्गात सूर्याला व भूमंडल-चंद्र-मंगळ- बुध- बृहस्पती-शुक्र-शनी इत्यादी ग्रहोपग्रहांना जसे असावे तसे त्यांच्या धुरीवर किंवा त्यांच्या आपापल्या कक्षेत संचालित करतो व राष्ट्राचा कुशल राजा भूयान, जलयान, विमान, कृत्रिम उपग्रह इत्यादींना कुशल वैज्ञानिकांद्वारे चालवितो, त्या विषयी संपूर्ण विद्या राष्ट्रवासींना शिकवून वेगवेगळे प्रयोगही केले पाहिजेत ॥८॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात असे म्हटले आहे की सर्व प्रजननांनी अंतरिक्ष मार्गाने पृथ्वी आदी लोकांपर्यंत प३वास करम्याची तसेच विमान निर्मिती विज्ञानाची माहिती योग्य प्रकारे करून घेतली पाहिजे.

    शब्दार्थ

    (प्रथम अर्थ) - (परमात्मपर) - हे (इन्द्र) लोक लोकान्तरांचे व्यवस्थापक परमेश्वर, (ते) तुम्ही निर्मियलेले (ये) हे जे (पन्थाः) मार्ग (दिवः) द्युलोकाच्या (अधः) खाली म्हणजे अंतरिक्षात आहेत (की द्युलोक - अंतरिक्षात तुम्ही) (येभिः) ज्या (व्यश्म्) अश्वाशिवाय चालणाऱ्या पृथ्वी, चंद्र, मंगळ, बुध आदी ग्रह- उपग्रह समूहाचे (ऐरयः) संचालन करीत आहात, त्या मार्गांविषयी (नः) आमच्या (भुवः) भूलोकवासी प्रजेन देखील (श्रोषन्तु) ऐकावे आणि जाणून घ्यावे.।। द्वितीय अर्थ - (राजापर) - हे इन्द्र राजन् (ते) तुमचे निर्धारित (पन्थाः) आकाश मार्ग (ये) जे (दिवः) द्युलोकाच्या (अधः) खाली म्हणजे भूमी, समुद्र व अंतरिक्षात आहेत आणि ज्या मार्गावर (व्यश्वम्) अश्वाविनाच चालणारे यान, भूयान, जलयान आणि विमान यान आपण (ऐरयः) चालवीत आहात, त्या भूमी, सागर, आकाश येथील मार्गांविषयी (नः) आमच्या (भुवः उत) जन्मलेल्या राष्ट्रवासी नागरिकांनी देखील (श्रोषन्तु) ऐकावे, वैज्ञानिकांकडून त्याचे तंत्रज्ञान समजून घ्यावे आणि मग भूमिमान, जलयान, विमान, कृत्रिम उपग्रह आदी यानांच्या निर्मिती व संचालनाची विद्या योग्य प्रकारे जाणून घ्यावी. ।। ८।।

    भावार्थ

    परमेश्वर अंतरिक्ष मार्गात सूर्याचे संचालन करीत असून भूमंडळ, चंद्र, मंगळ, बुध, बृहस्पती, शुक्र, शनी आदी ग्रह- उपग्रहांना त्यांच्या त्यांच्या धुरीवर व नेमक्या भ्रमण कक्षेत फिरवीत आहे. तसेच राष्ट्राचा कुशल राजा भूमान, जलयान, विमान, कृत्रिम उपग्रह आदींचा निपुण वैज्ञानिकांद्वारे संचालन वा व्यवस्थापन करतो. या साऱ्या यान विद्या राजाने राष्ट्रवाकी जनांना शिकवावी आणि त्यांच्या प्रयोगाची पद्धतदेखील शिकवावी (अशी व्यवस्था करावी) ।। ८।।

    विशेष

    अंतरिक्षातील मार्गांचे वर्णऩ अथर्व वेदाच्या एका मंत्रात या प्रकारे आले आहे - विद्वान लोकांनी ज्या मार्गाने प्रवास करावा, असे अनेक मार्ग द्युलोकात व पृथ्वी लोकात निर्मित आहेत. ते मार्ग माझ्यासाठी सुलभ व्हावेत का? तर त्या मार्गाने यात्रा करीत मी विदेशात दूध - तूप आदीची विक्री करून पुष्कळ द्रव्य संग्रहीत करू शकेन. (अथर्व - ३/१५/२) समुद्र आणि अंतरिक्षात चालणाऱ्या बऱ्याच यानांचे वर्णऩ वेदांमध्ये आढळते. यथा ‘‘हे ब्रह्मचर्याने परिपुष्ट झालेल्या युवका, तुझ्यासाटी सुवर्णाप्रमाणे चमकणाऱ्या ज्या नौका आहेत, म्हणजे नावेच्या आकृतीचे जे जमपोत व विमान समुद्रावर व आकाशात चालतात, त्याद्वारे मात्रा करीत तू सूर्यपुत्री उषाप्रमाणे ब्रह्मचारिणी कन्येला विवाहाकरिता प्राप्त करण्यासाठी जातोस.’’ (ऋ ६/५८/३) घोड्याशिवाय चालणाऱ्या अशा एका वेगवान यानाचे वर्णन वेदात अन्यत्र देखील आले आहे. यथा ‘‘तीन चाकांचा एक रथ आहे, ज्यामध्ये घोडे जुंपलेले नाहीत, लगाम नाही, तो रथ अत्यंत प्रशंसनीय असून आकाशातील एका लोकाची परिक्रमा करतो.।। (ऋ ४/३६/१) ।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    எதனால் [1](வியஸ்வனை) துரிதமாக்குகிறாயோ
    சோதியுலகத்தின் கீழ் உள்ள அந்த வழிகள் எல்லாம்,
    இன்னம் (எல்லா சகமும்) எங்கள் (சப்தத்தை செவியுறட்டும்).

    FootNotes

    [1].வியஸ்வனை - இந்திரியனை

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