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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1832
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
पु꣡न꣢रू꣣र्जा꣡ नि व꣢꣯र्तस्व꣣ पु꣡न꣢रग्न इ꣣षा꣡यु꣢षा । पु꣡न꣢र्नः पा꣣ह्य꣡ꣳह꣢सः ॥१८३२॥
स्वर सहित पद पाठपु꣡नः꣢꣯ । ऊ꣣र्जा꣢ । नि । व꣣र्तस्व । पु꣡नः꣢꣯ । अ꣣ग्ने । इषा꣢ । आ꣡यु꣢꣯षा । पु꣡नः꣢꣯ । नः꣣ । पाहि । अ꣡ꣳह꣢꣯सः ॥१८३२॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनरूर्जा नि वर्तस्व पुनरग्न इषायुषा । पुनर्नः पाह्यꣳहसः ॥१८३२॥
स्वर रहित पद पाठ
पुनः । ऊर्जा । नि । वर्तस्व । पुनः । अग्ने । इषा । आयुषा । पुनः । नः । पाहि । अꣳहसः ॥१८३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1832
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (अग्ने) प्रकाशकों के प्रकाशक, जगन्नायक, सर्वान्तर्यामी परमेश ! आप (पुनः) फिर-फिर (ऊर्जा) बल और प्राणशक्ति के साथ, (पुनः) फिर-फिर (इषा) अभीष्ट आनन्द के साथ (आयुषा) और दीर्घायुष्य के साथ (नि वर्तस्व) हमें निरन्तर प्राप्त होते रहो। (पुनः) फिर-फिर (नः) हमें (अंहसः) पाप से (पाहि) बचाते रहो ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य निर्बल होने से पुनः पुनः निरुत्साह, दैन्य, दुःख, अज्ञान, पाप आदियों से लिप्त होता रहता है। वह परमात्मा की उपासना से पुनः पुनः बल, प्राण, सुख, सद्विद्या, धर्म, दीर्घायुष्य आदि प्राप्त कर सकता है ॥२॥
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! तू (पुनः-ऊर्जा निवर्तस्व) हमें पुनः आत्मबल देने के लक्ष्य से नितरां वर्तो—प्राप्त हो (पुनः-इषा-आयुषा) पुनः कमनापूर्ति—मोक्षप्राप्ति के लक्ष्य से तथा वहाँ की आयुप्राप्ति के लक्ष्य से नितरां प्राप्त हो (नः) हमें (पुनः) फिर (अंहसः पाहि) बन्धनकारण पाप से बचा॥२॥
विशेष
<br>
विषय
निवर्तन- -लौटना
पदार्थ
जीव इस संसार में न जाने कब से भटक रहे हैं । इस संसार के आवर्त्त से उसका निकलना ही नहीं होता। 'इस संसार - चक्र से मुक्त होकर वह अपने वास्तविक घर में कैसे लौट सकता है ?' इस विषय का प्रतिपादन प्रस्तुत मन्त्र में हैं । लौट सकने के उपाय निम्न हैं—
१. (ऊर्जा) = बल और प्राणशक्ति के द्वारा (पुनः निवर्तस्व) = तू फिर लौट जा, अर्थात् यदि हम अपने वास्तविक घर में फिर से वापस पहुँचना चाहते हैं तो हमें अपने बल और प्राणशक्ति को स्थिर रखना होगा। भोगमार्ग पर चलने से इनका ह्रास होता है। (‘भोगे रोगभयम्') = भोगों में ही रोग का भय है (‘सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेज:') = ये भोग सब इन्द्रिय-शक्तियों को क्षीण कर देते हैं। भोगों से दूर रहेंगे तो बल और प्राणशक्ति भी स्थिर रहेगी ।
२. भोगों से बचने का उपाय दूसरे वाक्य में संकेतित है। क्रियामय जीवन ही हमें भोगों से बचाता है, अत: कहते हैं— हे (अग्ने) = आगे चलनेवाले जीव ! तू (इषा) = तीव्र गति से युक्त (आयुषा) = जीवन के द्वारा (पुनः) = फिर निवर्तस्व-अपने घर में लौट आ । भोगों से बचना आवश्यक है, भोगों से बचने के लिए क्रियामय जीवन आवश्यक है । मन में पाप की वृत्ति अकर्मण्यता में ही उठती है । ('गृहेषु गोषु मे मनः') = ' हे पाप ! मेरा मन तो घरों में व गौओं में लगा है – तू यहाँ क्योंकर आएगा ।' ऐसा कर्मनिष्ठ व्यक्ति ही तो कह सकता है ।
३. पाप से बचने का ही परिणाम है कि हम प्रभु का दर्शन कर पाते हैं । वेद कहता है कि (अंहसः) = अंहो विमुच्य= पाप को छोड़कर – कुटिलता को त्यागकर (न:) = हमें (पुनः) = फिर (पाहि) =observe देख। जितना-जितना हम पाप व कुटिलता को त्यागते जाएँगे उतना उतना ही मृत्यु से दूर होकर उस अमृत प्रभु के समीप होते जाएँगे ('आर्जवं ब्रह्मणः पदम्') ।
एवं, संसार-चक्र से बचने के तीन साधन हुए -
१. बल और प्राणशक्ति को स्थिर रखना, २. क्रियामय जीवन बनाना और ३. कुटिलता को छोड़कर प्रभु-दर्शन करना ।
भावार्थ
हम घर लौटने का ध्यान करें ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे (अग्ने) प्रकाशकानां प्रकाशक जगन्नायक सर्वान्तर्यामिन् परमेश ! त्वम् (पुनः) भूयो भूयः (ऊर्जा) बलेन प्राणशक्त्या च, (पुनः) भूयो भूयश्च (इषा) अभीष्टेन आनन्देन (आयुषा) दीर्घायुष्येण च (नि वर्तस्व) निरन्तरम् अस्मान् प्राप्नुहि (पुनः) भूयोभूयः (नः) अस्मान् (अंहसः) पापात् (पाहि) त्रायस्व ॥२॥२
भावार्थः
मनुष्यो निर्बलत्वात्पुनःपुनर्निरुत्साहदैन्यदुःखाज्ञानपापादि-भिर्लिप्यते। स परमात्मोपासनया पुनः पुनर्बलप्राणसुखसद्विद्याधर्मदीर्घायुष्यादिकं प्राप्तुं शक्नोति ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, appear unto us again with joy, turn Thou again unto us with joy and life. Save us again from sin !
Meaning
Agni, come energy, again and again in cycle and recycle, come again and again with energy, life and good health, no end. Save us from sin, purify us from sin and evil, again and again. The cycle must goon.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने) અગ્રણી પરમાત્મન્ ! તું (पुनः ऊर्जा निवर्तस्व) અમને ફરી વારંવાર આત્મબળ આપવાના લક્ષ્યથી સર્વદા વર્ત-પ્રાપ્ત થા. (पुनः इषा आयुषा) વારંવાર કામનાપૂર્તિ-મોક્ષપ્રાપ્તિના લક્ષ્યથી તથા ત્યાંની આયુ પ્રાપ્તિના લક્ષ્યથી સદા પ્રાપ્ત થા. (नः) અમને (पुनः) ફરી (अंहसः पाहि) બંધનરૂપી કારણનાં પાપથી બચાવ. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
मनुष्य निर्बल असल्यामुळे पुन्हा पुन्हा निरुत्साह, दैन्य, दु:ख, अज्ञान, पाप इत्यादीमुळे लिप्त होतो. तो परमात्म्याच्या उपासनेने पुन्हा पुन्हा बल, प्राण, सुखसद्विद्या, धर्म, दीर्घायुष्य इत्यादी प्राप्त करू शकतो. ॥२॥
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