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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1838
ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीप आम्बरीषो वा
देवता - आपः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
यो꣡ वः꣢ शि꣣व꣡त꣢मो꣣ र꣢स꣣स्त꣡स्य꣢ भाजयते꣣ह꣡ नः꣢ । उ꣣शती꣡रि꣢व मा꣣त꣡रः꣢ ॥१८३८॥
स्वर सहित पद पाठयः । वः꣣ । शिव꣡त꣢मः । र꣡सः꣢꣯ । त꣡स्य꣢꣯ । भा꣣जयत । इह꣡ । नः꣣ । उशतीः꣢ । इ꣣व । मात꣡रः꣢ ॥१८३८॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः ॥१८३८॥
स्वर रहित पद पाठ
यः । वः । शिवतमः । रसः । तस्य । भाजयत । इह । नः । उशतीः । इव । मातरः ॥१८३८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1838
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में ब्रह्मानन्द की धाराओं के रस की प्रार्थना है।
पदार्थ
हे ब्रह्मानन्द की धाराओ ! (यः) जो (वः) तुम्हारा (शिवतमः) अतिशय शान्तिदायक (रसः) रस है, (तस्य) उसका (इह) इस जीवन में (नः) हमें (भाजयत) भागी बनाओ, पान कराओ, (उशतीः) सन्तान से प्रेम करती हुई (मातरः इव) माताएँ जैसे अपने स्तनों का दूध अपनी सन्तान को पिलाती हैं ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ
माता के स्तन के दूध में जो माधुर्य है, वही ब्रह्म के पास से प्राप्त आनन्द-धाराओं में है, ऐसा विद्वान् उपासक लोग अनुभव करते हैं ॥२॥
पदार्थ
(वः) हे प्राप्तव्य परमात्मन्! तेरा (यः शिवतमः-रसः) जो अत्यन्त कल्याणकारी रस—आनन्दरस है (तस्य ‘तम्’ इह नः-भाजयत) उसका हमें भागी बना (उशतीः-इव मातरः) हितकामना करती हुई माताओं के समान, जैसे माताएँ पुत्र की हितकामनाएँ करती हैं॥२॥
विशेष
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विषय
माता के समान हितकर ज्ञान
पदार्थ
ज्ञान प्रारम्भ में नीरस लगता है – इसकी प्राप्ति बड़े तप व परिश्रम से होने के कारण यह आनन्दमय नहीं लगता, इसीलिए सामान्यतः विद्यार्थी अनध्याय प्रिय होता है, परन्तु जितना जितना ज्ञान प्राप्त होता है उतना उतना ही यह रसमय होता जाता है। इनका यह रस 'परिणामे अमृतोपमम्' परिणाम में अमृततुल्य होता है । यह त्रिशिरा: = प्रकृति, जीव व परमात्मा – तीनों का ज्ञान प्राप्त करनेवाला—इन ज्ञानदुग्धों को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि (यः) = जो (नः) = आपका (शिवतमः रसः) = अत्यन्त कल्याणकारक रस है (तस्य) = उसका (नः) = हमें इह (भाजयत) = इस मानव-जीवन में भागी बनाइए (इव) = जैसे (उशती:) = कामना करती हुई (मातरः) = माताएँ बच्चे को दूध पिलाती हैं। माता बच्चे का अधिक-से-अधिक हित चाहती हुई उसे पुष्टिकर दूध पिलाती है, उसी प्रकार यह ज्ञान भी हमारा हित चाहता हुआ हमें अपना अत्यन्त कल्याणकर रस प्राप्त कराए । ज्ञान का शिवतम तत्त्व हमें प्राप्त हो ।
ये ज्ञान गुरु-शिष्य परम्परा से प्रवाहित होने के कारण 'सिन्धु' कहलाते हैं [स्यन्दते]। ये सिन्धु दो प्रकार से - ऐहलौकिक व पारलौकिक दृष्टिकोण से – 'विज्ञान व ज्ञान' के दृष्टिकोण से—जिसे प्राप्त हुए हैं, वह 'सिन्धुद्वीप' है । इस ज्ञान के द्वैविध्य को ही ईशोपनिषद् में 'अविद्या व विद्या' शब्दों से स्मरण किया है। इन दोनों को प्राप्त करनेवाला प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि सिन्धुद्वीप वस्तुतः मृत्यु से बचकर अमरता को प्राप्त करनेवाला होता है ।
भावार्थ
मैं ज्ञानजलों के इहामुत्र- उभयत्र कल्याण करनेवाले रस को प्राप्त करके सचमुच ‘सिन्धुद्वीप' बनूँ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ ब्रह्मानन्दधाराणां रसं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे आपः ब्रह्मानन्दधाराः ! (यः वः) युष्माकम् (शिवतमः) अतिशयेन शान्तिदायकः (रसः) सारतत्त्वम् अस्ति (तस्य इह) जीवने (नः) अस्मान् (भाजयत) भागिनः कुरुत। कथमिव ? (उशतीः) उशत्यः कामयमानाः स्नेहं कुर्वाणाः। [वश कान्तौ, शतरि स्त्रियां पूर्वसवर्णदीर्घः।] (मातरः इव) जनन्यो यथा स्वकीयं स्तनरसं सन्तानान् पाययन्ति तद्वत् ॥२॥२ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥
भावार्थः
मातुः स्तन्ये यन्माधुर्यं तदेव ब्रह्मणः सकाशात् प्राप्तास्वानन्दधारास्विति विचक्षणा अनुभवन्ति ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ye streams of knowledge, give us in this world, Your most auspicious joy. Nourish us as longing mothers nourish their sons.
Translator Comment
See Yajur 11. 51.
Meaning
Let us share here in body that nectar sweet taste of yours which is most blissful, be like loving mothers for their children. (Rg. 10-9-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वः) હે પ્રાપ્તવ્ય પરમાત્મન્ ! તારો (यः शिवतमः रसः) જે અત્યંત કલ્યાણકારી રસ-આનંદરસ છે (तस्य 'तम्' इह नः भाजयत) તેના અમને ભાગીદાર બનાવ-સેવન કરાવ. (उशतीः इव मातरः) હિતકામના કરતી માતાઓની સમાન, જેમ માતાઓ પુત્રની હિતકામના કરે છે તેમ. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
मातेच्या स्तनातील दुधात जे माधुर्य आहे, तेच ब्रह्मापासून प्राप्त झालेल्या आनंदधारांमध्ये आहे. असा विद्वान लोकांचा (उपासकांचा) अनुभव आहे. ॥२॥
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