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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 234
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
2
त्वा꣡मिद्धि हवा꣢꣯महे सा꣣तौ꣡ वाज꣢꣯स्य का꣣र꣡वः꣢ । त्वां꣢ वृ꣣त्रे꣡ष्वि꣢न्द्र꣣ स꣡त्प꣢तिं꣣ न꣢र꣣स्त्वां꣢꣫ काष्ठा꣣स्व꣡र्व꣢तः ॥२३४॥
स्वर सहित पद पाठत्वा꣢म् । इत् । हि । ह꣡वा꣢꣯महे । सा꣣तौ꣢ । वा꣡ज꣢꣯स्य । का꣣र꣡वः꣢ । त्वाम् । वृ꣣त्रे꣡षु꣢ । इ꣣न्द्र । स꣡त्प꣢꣯तिम् । सत् । प꣣तिम् । न꣡रः꣢꣯ । त्वाम् । का꣡ष्ठा꣢꣯सु । अ꣡र्व꣢꣯तः ॥२३४॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः । त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥२३४॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वाम् । इत् । हि । हवामहे । सातौ । वाजस्य । कारवः । त्वाम् । वृत्रेषु । इन्द्र । सत्पतिम् । सत् । पतिम् । नरः । त्वाम् । काष्ठासु । अर्वतः ॥२३४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 234
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
अगले मन्त्र में परमेश्वर और राजा का आह्वान किया गया है।
पदार्थ
हे (इन्द्र) विपत्ति के विदारक और सब सम्पत्तियों के दाता परमेश्वर व राजन् ! (कारवः) स्तुतिकर्ता, कर्मयोगी हम लोग (वाजस्य) बल की (सातौ) प्राप्ति के निमित्त (त्वाम् इत् हि) तुझे ही (हवामहे) पुकारते हैं। (नरः) पौरुष से युक्त हम (वृत्रेषु) पापों एवं शत्रुओं का आक्रमण होने पर (सत्पतिम्) सज्जनों के रक्षक (त्वाम्) तुझे पुकारते हैं। (अर्वतः) घोड़े आदि सेनांगों के अथवा आग्नेयास्त्रों और वैद्युतास्त्रों के (काष्ठासु) संग्रामों में भी त्वाम् (तुझे) पुकारते हैं ॥२॥
भावार्थ
परमेश्वर और राजा आदि का आह्वान मनुष्यों को स्वयं कर्मण्य होकर ही करना चाहिए। जब पापरूप या पापीरूप वृत्र आक्रमण करते हैं, अथवा जब दैत्यों के साथ देवपुरुषों का हाथी, घोड़े, रथ, पैदल, योद्धा इन सेनांगों के द्वारा और आग्नेयास्त्रों या बिजली के अस्त्रों द्वारा घोर भयंकर युद्ध प्रवृत्त होता है, तब परमेश्वर और राजा से सहयोग, प्रेरणा, बल और साहस प्राप्त करके शत्रु को धूल में मिला देना चाहिए ॥२॥
पदार्थ
(इन्द्र) हे परमात्मन्! (कारवः) हम तेरे स्तोता—वाणी से स्तुति करने वाले होते हुए “कारुः स्तोतृनाम” [निघं॰ ३.१६] (वाजस्य सातौ) अमृत अन्न-मोक्ष के अमृत भोग की सम्भक्ति—प्राप्ति के निमित्त “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ २.१९३] (त्वाम्-इत्-हि) केवल तुझे ही (हवामहे) आमन्त्रित करते हैं—स्मरण करते हैं—उपासते हैं (नरः) हम नयनकर्ता—पथप्रदर्शक देवश्रेणी में होते हुए—मन से प्रार्थना ध्यान चिन्तन करते हुए भी “नरो ह वै देवविशः” [जै॰ १.८९] (वृत्रेषु) पाप प्रसङ्गों—पाप भावनाओं से बचे रहने के निमित्त “पाप्मा वै वृत्रः” [रा॰ ११.१.५.७] (त्वां सत्पतिम्) तुझ सत्पुरुषों के रक्षक को स्मरण करते हैं (अर्वतः) तथा “अर्वन्तः प्रथमार्थे द्वितीया छान्दसी” हम आत्मा से उपासना—उसके सामीप्य को प्राप्त करने वाले परम पुरुषार्थ करने वाले उत्तमाधिकारी जीवन्मुक्त होते हुए भी “पुमांसोऽर्वन्तः” [श॰ ३.३.४.७] (काष्ठासु) संसार की या बन्धन की सीमाओं को पार करने में—प्रकृति के अन्तिम स्तरों को पार करने में “सुवर्गो वै लोकः काष्ठाः” [तै॰ १.३.६.५] (त्वाम्) तुझे स्मरण करते हैं।
भावार्थ
परमात्मन्! तेरे अमृत भोग की प्राप्ति के निमित्त हम वाणी से तेरी स्तुति करते हुए या मन से प्रार्थना ध्यान करते हुए और ऊँचे उठे हुए देवश्रेणी में होते हुए या और ऊँचे उठे हुए आत्मभाव से उपासना करते हुए संसार की दुःखमय बन्धन सीमाओं को पार करने के लिये तुझ श्रेष्ठ जनों के रक्षक का आमन्त्रण—स्मरण करते हैं॥२॥
विशेष
ऋषिः—भारद्वाजः (परमात्मा के अमृत भोग को धारण करने में समर्थ उपासक)॥<br>
विषय
पूर्ण पुरुषार्थ के उपरान्त
पदार्थ
हे (इन्द्र)=परमैश्वर्यशाली प्रभो! (वाजस्य सातौ) = शक्ति, त्याग व ज्ञान की प्रगति के निमित्त (त्वाम् इत् हि)=निश्चय से आपको ही (हवामहे) = पुकारते हैं। आपके उपासक बनने पर ही हमारे शरीर शक्ति-सम्पन्न, मन त्याग की भावना से परिपूर्ण तथा मस्तिष्क ज्ञानाग्नि से दीप्त होते हैं, आपकी कृपा से ही सब-कुछ होना है, परन्तु आपकी कृपा को वे ही प्राप्त करते हैं जो (कारवः) = क्रियाशील होते हैं। बिना क्रियाशीलता के कोई आपकी कृपा का पात्र नहीं बन पाता। ‘कारु’ उस व्यक्ति को कहते हैं जोकि बड़े कलापूर्ण ढङ्ग से क्रिया करता है। क्रिया को कुशलता से करना ही योग है, अतः योगी बनकर जो सदा क्रिया में लगा रहता है, वह प्रभु की प्रार्थना का अधिकारी होता है।
हे इन्द्र! (वृत्रेषु) = ज्ञान को आवृत करनेवाले काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि शत्रुओं के प्रबल होने पर हम (त्वाम्) = आपको (हवामहे) = पुकारते हैं, क्योंकि आप (सत्पतिम्) = सयनों का पालन करनेवाले हैं, परन्तु हम कब आपको पुकारते हैं? जबकि (नरः) = हम ‘ना’ बनते हैं। 'ना' शब्द 'नृ नये' से बनता है और उस व्यक्ति का वाचक है जो अपने को सदा आगे और आगे प्राप्त कराने में लगा है। दूसरे शब्दों में जो स्वयं पुरुषार्थी है, वही उस प्रभु को पुकारने का अधिकार रखता है।
हे प्रभो! (त्वाम्)=आपको (अर्वतः)=प्रयत्नों की (अर्व् गतौ) अथवा (अर्व्=जव शपसस) शत्रुओं के संहार की (काष्ठासु)=चरम सीमाओं पर पुकारते हैं। जब हम अपना पुरुषार्थ कर चुकते हैं और हममें और अधिक शक्ति शेष नहीं रहती, उसी समय हम आपकी सहायता की याचना करते हैं।
इस प्रकार इस मन्त्र में १. 'कारव:' = कलापूर्ण ढङ्ग से क्रिया करनेवाले, २. 'नर'=अपने को आगे और आगे प्राप्त करानेवाले और ३. अर्वत: 'काष्ठासु' - प्रयत्नों की चरम सीमा पर, इन तीन शब्दों से इस बात पर बल दिया गया है कि प्रार्थना के साथ पूर्ण पुरुषार्थ की आवश्यकता है। पुरुषार्थ करनेवाला यह व्यक्ति 'भरद्वाज'-अपने में शक्ति को भरनेवाला बनता है और ऊँचे-से-ऊँचे ज्ञान को प्राप्त करके बार्हस्पत्य होता है।
भावार्थ
हम सदा पुरुषार्थमय जीवन बिताते हुए प्रभु की प्रार्थना के अधिकारी बनें।
पदार्थ
शब्दार्थ = हे ( इन्द्र ) = परमेश्वर ( अर्वतः नरः ) = अश्वादि पर चढ़नेवाले वीर नर ( वृत्रेषु त्वाम् ) = शत्रुओं से घेरे जाने पर आपका ही सहारा लेते हैं, ( काष्ठासु ) = सब दिशाओं में ( सत्पतिम् त्वाम् ) = महात्मा सन्त जनों के पालक और रक्षक,आपको ही भजते हैं इसलिए ( कारव: ) = आपकी स्तुति करनेवाले हम भी ( वाजस्य सातौ ) = बल के दान निमित्त ( त्वाम् इत् हि ) = केवल आपको ही ( हवामहे ) = पुकारते हैं।
भावार्थ
भावार्थ = हे प्रभो ! सब दिशाओं में सन्तजनों के रक्षक आप परमेश्वर को जैसे शत्रुओं से घेरे जाने पर बल प्राप्ति के लिए वीर पुरुष पुकारते हैं, ऐसे ही हम आपके सेवक भक्तजन भी काम क्रोधादि शत्रुओं से घेरे जाने पर, उनको जीतने के लिए आपसे ही बल माँगते हैं। दयामय ! जो आपकी शरण आता है खाली नहीं जाता। हम भी आपकी शरण आये हैं हम अपने भक्तों को आपकी आज्ञा रूप वेदों में दृढ़ विश्वासी और जगत् का उपकारक बनाओ, हम नास्तिक और स्वार्थी कभी न बनें, ऐसी कृपा करो ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( इन्द्र ) = ऐश्वर्यवन् ! ( वाजस्य सातौ ) = धन, अन्न, ज्ञान और बल के विभाग और प्राप्ति के अवसर पर ( त्वाम् इत् हि ) = तुझको ही हम ( कारवः ) = स्तुतिकर्त्ता लोग ( हवामहे ) = स्मरण करते, पुकारते है । ( वृत्रेषु ) = विघ्न के अवसरों पर ( सत्पतिं ) = सज्जनों के प्रतिपालक ( त्वां ) = तुझको ही याद करते हैं । ( अर्वतः ) = गतिशील सूर्य आदि पदार्थों के ( काष्ठासु ) = सीमाएं नियत करने के लिये अथवा ज्ञान शीलभोक्का इन्द्रियों की भोग मर्यादाओं को सीमित करने के लिये ( नरः ) = विद्वान् लोग तेरा ही स्मरण करते हैं ।
टिप्पणी
२३४ 'साता' इति ऋ. ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - भरद्वाज:।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - बृहती।
स्वरः - मध्यमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथेन्द्रनाम्ना परमेश्वरं नृपं चाह्वयन्ति।
पदार्थः
हे (इन्द्र) विपद्विदारक सकलसंपत्प्रदायक परमेश्वर राजन् वा ! (कारवः) स्तुतिकर्तारः, कर्मयोगिनो वयम्। कारुः स्तोतृनाम। निघं० ३।१६। कर्ता स्तोमानाम्। निरु० ६।६। कर्ता कर्मणामित्यप्युन्नेयम्। डुकृञ् धातोः ‘कृवापाजि’ उ० १।१। इति उण् प्रत्ययः। (वाजस्य) बलस्य (सातौ२) प्राप्तिनिमित्तम् निमित्तार्थे सप्तमी। षण सम्भक्तौ। ‘ऊतियूतिजूतिसातिहेतिकीर्तयश्च’ अ० ३।३।९७ इति क्तिन्नन्तो निपातः। उदात्त इत्यनुवृत्तेः क्तिन उदात्तत्वं च। (त्वाम् इत् हि) त्वामेव खलु (हवामहे) आह्वयामः। ह्वेञ् धातोः ‘बहुलं छन्दसि’ अ० ६।१।३४ इति सम्प्रसारणे रूपम्। (नरः) पौरुषसंपन्नाः वयम् (वृत्रेषु) पापेषु शत्रुषु वा आक्रामत्सु (सत्पतिम्) सतां रक्षकम् (त्वाम्) परमात्मानं राजानं वा बलप्राप्तये हवामहे। (अर्वतः३) अश्वादिकस्य सेनाङ्गस्य। अर्वा इत्यश्वनाम। निघं० १।१४, अर्वा इत्युपलक्षणमन्येषामपि सेनाङ्गानाम्। यद्वा (अर्वतः) अग्नेः, तदुपलक्षितानाम् आग्नेयास्त्राणां वैद्युतास्त्राणां च। अग्निर्वा अर्वा। तै० ब्रा० १।३।६।४। (काष्ठासु) संग्रामेषु। आज्यन्तोऽपि काष्ठा उच्यते। निरु० २।१५। (त्वाम्) परमात्मानं राजानं वा बलप्राप्तये हवामहे ॥२॥४ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥२॥
भावार्थः
परमेश्वरस्य नृपादीनां चाह्वानं मनुष्यैः स्वयं कर्मण्यैर्भूत्वा करणीयम्। यदा पापरूपाणि पापिरूपाणि वा वृत्राण्याक्रामन्ति, यदा वा दैत्यैः सह देवानां हस्त्यश्वरथपादातैः सेनाङ्गैराग्नेयास्त्रैर्वैद्युतास्त्रैर्वा घोरं भीषणं युद्धं प्रवर्तते तदा परमेश्वरान्नृपाच्च सहयोगं प्रेरणां बलं साहसं च प्राप्य शत्रुर्धूलिसात् करणीयः ॥२॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ६।४६।१, अथ० २०।९८।१, उभयत्र ‘सातौ’ इति स्थाने ‘साता’ इति पाठः। य० २७।३७। साम० ८०९। सर्वत्र शंयुः ऋषिः। २. सातिर्लाभः। तस्मादियं निमित्तसप्तमी। निमित्तं च प्रयोजनम्। धनलाभार्थमित्यर्थः—इति वि०। सातौ लाभे निमित्ते—इति भ०। ३. (अर्वता) अश्वादिभिः सेनाङ्गैः—इति ऋ० १।८।२ भाष्ये, ‘अश्वादियुक्तेन’ इति च ऋ० २।२।१० भाष्ये द०। ४. दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमम् ऋग्भाष्ये शिल्पविद्याविषये यजुर्भाष्ये च राजधर्मविषये व्याचष्टे।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, we. Thy worshippers, call on Thee for the acquisition of the wealth of knowledge. In adversity we contemplate on Thy True, Protecting Nature. We remember Thee alone for success, . after exerting to the best of our mite.
Meaning
Indra, lord of power and advancement, you alone we invoke and call upon for acquisition of food, energy, honour, excellence and progress. All of us, leading people, makers, poets, artists, artisans and architects of the nation, fast advancing in all directions, invoke and exhort you, protector and promoter of universal truth and values in human struggles for light, goodness and generosity, and the wealth of life. (Rg. 6-46-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (इन्द्र) હે પરમાત્મન્ ! (कारबः) અમે તારા સ્તોતા-વાણીથી સ્તુતિ કરનાર બનીને (वाजस्य सातौ) અમૃત અન્ન-મોક્ષના અમૃત ભોગની સમ્ભક્તિ પ્રાપ્તિને માટે (त्वाम् इत् हि) માત્ર તને જ (हवामहे) આમંત્રિત કરીએ છીએ-સ્મરણ કરીએ છીએ-ઉપાસના કરીએ છીએ (नरः) અમે નયનકર્તા-માર્ગ પ્રદર્શક દેવ શ્રેણી હોવા છતાં-મનથી પ્રાર્થના, ધ્યાન, ચિંતન કરતાં પણ (वृत्रेषु) પાપ પ્રસંગો-પાપ ભાવનાઓથી બચવા માટે (त्वां सत्पतिम्) તારું - સત્પુરુષોના રક્ષકનું સ્મરણ કરીએ છીએ. (अर्वतः) તથા અમે આત્મા દ્વારા ઉપાસના-તેની સમીપતાને પ્રાપ્ત કરનાર, પરમ પુરુષાર્થ કરનાર, ઉત્તમ અધિકારી અને જીવનમુક્ત હોવા છતાં (काष्ठासु) સંસારની અર્થાત્ બંધનની સીમાઓને પાર કરવામાં - પ્રકૃતિના અન્તિમ સ્તરોને પાર કરવામાં (त्वाम्) તારું સ્મરણ કરીએ છીએ. (૨)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મન્ ! તારા અમૃત ભોગની પ્રાપ્તિને માટે અમે વાણી દ્વારા તારી સ્તુતિ કરતાં અથવા મનથી પ્રાર્થના, ધ્યાન કરતાં તથા ઉન્નતિ કરીને દેવશ્રેણીમાં હોવા છતાં અથવા ઉન્નત બનીને આત્મભાવથી ઉપાસના કરતાં સંસારની દુઃખમય બંધન સીમાઓને પાર કરવા માટે તારું - શ્રેષ્ઠજનોના રક્ષકનું આમંત્રણ - સ્મરણ કરીએ છીએ. (૨)
उर्दू (1)
Mazmoon
بے حد مصائبوں میں گھرے ہوئے آپ سے ہیں فریاد کرتے ہیں!
Lafzi Maana
(کاروہ) کرم میں لگے ہوئے (واجسیہ تُوا) گیان بل شکتی کے حصول کے لئے آپ مددگار کا ہی (ہوا مہے اِت ہی) ایک سہارا مان کر فریاد کرتے ہیں۔ بُلاتے ہیں۔ ہے اِندر پرمیشور! جب (وِرتے شُو) بُرائیوں سے پیدا ہوئی تکالیف میں گھر جاتے ہیں۔ تب آپ (ست پِتم) سچے مالک کو ہی فریاد کرتے ہیں (نراہ اروتہ کاشٹھا سُوتوام) ازل سے ہی انسان دُکھوں سے گھرے ہوئے ایسا ہی کرتے آ رہے ہیں۔
Tashree
کاموں کی بھاگ دوڑ میں لگے ہوئے انسان ہم، دُکھوں میں پھنس کے آپ کو بُلاتے صبح و شام ہم۔
बंगाली (1)
পদার্থ
ত্বামিদ্ধি হবামহে সাতৌ বাজস্য কারবঃ।
ত্বাং বৃত্রেষ্বিন্দ্র সৎপতিং নরস্ত্বাং কাষ্ঠাস্বর্বতঃ।।২৪।।
(সাম ২৩৪)
পদার্থঃ হে (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (অর্বতঃ নরঃ) অশ্বে আরোহণকারী বীর (বৃত্রেষু ত্বাম্) শত্রু দ্বারা অবরুদ্ধ হয়ে গেলে তোমারই আশ্রয় নেয়। (কাষ্ঠাসু) সর্ব দিকে (সৎপতিম্ ত্বাম্) মহাত্মা সাধু ব্যক্তিগণ তাদের পালক এবং রক্ষক হিসেবে তোমারই ভজনা করেন। এজন্য (কারবঃ) তোমার স্তুতিকারী আমার (বাজস্য সাতৌ) বল লাভ করার নিমিত্ত (ত্বাম্ ইৎ হি) কেবল তোমাকেই (হবামহে) আহ্বান করছি।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরমেশ্বর, সকল দিকে সাধুজনের রক্ষক! যেমন শত্রু দ্বারা অবরুদ্ধ হওয়ায় বল প্রাপ্তির জন্য বীরেরা তোমাকেই আহ্বান করে, ঐরূপ আমরা তোমার ভক্তগণও কাম-ক্রোধাদি শত্রু দ্বারা রুদ্ধ হয়ে এসব অভ্যন্তরীণ শত্রুদের নিকট থেকে বিজয় লাভ করার জন্য তোমার কাছে বল প্রার্থনা করছি। হে দয়াময়! যে ব্যক্তি তোমার শরণ নেন, সেই ব্যক্তির প্রচেষ্টা ব্যর্থ হয় না। আমরাও তোমার শরণাগত। তুমি আমাদের তোমার ভক্ত হিসেবে তৈরি করো। আমাদেরকে তোমার আজ্ঞা রূপ বেদের উপর দৃঢ় বিশ্বাসী করো এবং বিশ্ব জগতের উপকারী হিসেবে আমাদের গড়ে তোল। আমরা যাতে কখনও বেদাজ্ঞা থেকে সরে গিয়ে স্বার্থপর না হই, আমাদের উপর এরূপ কৃপা করো ।।২৪।।
मराठी (2)
भावार्थ
परमेश्वर व राजा इत्यादीचे आवाहन माणसांनी स्वत: कर्मण्य होऊनच केले पाहिजे. जेव्हा पापरूप किंवा पापीरूप वृत्र आक्रमण करतात किंवा जेव्हा दैत्याबरोबर देवपुरुषांचे हत्ती, घोडे, रथ, पायदळ, योद्धे या सेनांगाद्वारे व आग्नेयास्त्र किंवा विद्युतास्त्राद्वारे भयंकर युद्ध होते, तेव्हा परमेश्वर व राजा यांचा सहयोग, प्रेरणा, बल व साहस प्राप्त करून शत्रूला धूळ चारावी ॥२॥
विषय
परमेश्वराचे व राजाचे आवाहन
शब्दार्थ
हे (इन्द्र) विपत्ति विदारक आणि सर्व समृद्धिदाता परमेश्वर वा हे राजा, (कारवः) स्तुतिकर्ता आम्ही कर्मयोगी (वाजस्य) शक्ती (सातौ) प्राप्त करण्यासाठी (त्वाम् इत् हि) तुम्हालाच (हवामहे) हाक मारतो. (विनंती करून बोलावतो) (नरः) पौरुषयुक्त आम्ही (वृत्रेषु) पापांचे वा शत्रूचे आक्रमण झाल्यानंतर (सत्पतिम्) सज्जनांचा जो रक्षक म्हणजे तुम्ही आही (त्वाम्) तुम्हाला आवाहन करतो. (अर्वतः) अश्वसेना व अन्य सैन्य विभागासाठी अथवा आग्नेयास्त्र आणि वैद्युतास्त्रच्या प्रयोगाच्या वेळी संग्रामामध्ये आम्ही तुमचे उपासक / प्रजाजन तुम्हाला परमेश्वराला व राजाला हाक मारतो.।।२।।
भावार्थ
परमेश्वराचे आणि राजाचे आवाहन मनुष्याने अवश्य करावे, (त्याला रक्षणादीची प्रार्थना करावी) पण स्वतः कर्मण्य व पुरुषार्थी असावयास हवे. जेव्हा पाप, पायी रूप वृत्र आक्रमण करतात अथवा जेव्हा दैत्यांसी देवपुरुषांचे घोर युद्ध होते. अश्व, हत्ती, पायदळ, सैनिक आदी सेनांगासह शत्रू आग्नेयास्त्र वा वैद्युतास्त्रांद्वारे आक्रमण करतो (वा आम्ही शत्रूविरुद्ध त्या अस्त्रांचा वापर करतो) त्या वेळी परमेश्वरापासून प्रेरणा, शक्ती आणि धाडस यांची प्राप्ती करून व राजाचे साह्य घेऊन शत्रूला धुळीत मिळवावे.।।२।।
तमिल (1)
Word Meaning
துதி செய்யும் நாங்கள் பலம் பொருளின் பொருட்டு இந்திரனே ! உன்னையே அழைக்கிறோம். சிறந்த புருஷனான உன்னை மனிதர்கள் (விருத்திருனைக்) கொல்லும் (சமயத்தில்) அழைக்கிறார்கள். குதிரைப் பந்தயத்திலும் (புலன்கள் ஜயத்தில்) அழைக்கிறார்கள்.
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