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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 263
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
2
स꣣त्य꣢मि꣣त्था꣡ वृषे꣢꣯दसि꣣ वृ꣡ष꣢जूतिर्नोऽवि꣣ता꣢ । वृ꣢षा꣣꣬ ह्यु꣢꣯ग्र शृण्वि꣣षे꣡ प꣢रा꣣व꣢ति꣣ वृ꣡षो꣢ अर्वा꣣व꣡ति꣢ श्रु꣣तः꣢ ॥२६३॥
स्वर सहित पद पाठस꣣त्य꣢म् । इ꣣त्था꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । इत् । अ꣣सि । वृ꣡ष꣢꣯जूतिः । वृ꣡ष꣢꣯ । जू꣣तिः । नः । अविता꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । हि । उ꣣ग्र । शृण्विषे꣢ । प꣣राव꣡ति꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । उ꣣ । अर्वाव꣡ति꣢ । श्रु꣣तः꣢ ॥२६३॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्यमित्था वृषेदसि वृषजूतिर्नोऽविता । वृषा ह्युग्र शृण्विषे परावति वृषो अर्वावति श्रुतः ॥२६३॥
स्वर रहित पद पाठ
सत्यम् । इत्था । वृषा । इत् । असि । वृषजूतिः । वृष । जूतिः । नः । अविता । वृषा । हि । उग्र । शृण्विषे । परावति । वृषा । उ । अर्वावति । श्रुतः ॥२६३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 263
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 4;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
प्रथम मन्त्र में परमेश्वर के गुणों का वर्णन किया गया है।
पदार्थ
हे इन्द्र परमेश्वर ! (सत्यम् इत्था) सचमुच-सचमुच आप (वृषा इत्) ऐश्वर्यवर्षी होने से वर्षा करनेवाले बादल ही (असि) हो, और (वृषजूतिः) विद्युत् आदि पदार्थों को मन के वेग के समान वेग प्रदान करनेवाले (नः) हमारे (अविता रक्षक हो। हे (उग्र प्रबल ऐश्वर्यवाले ! आप (परावति) उत्कृष्ट मोक्ष-लोक में (वृषा हि) निश्चय ही मोक्ष के आनन्दों की वर्षा करनेवाले (शृण्विषे) सुने जाते हो, और (अर्वावति) इस लोक में भी (वृषः) धर्म-अर्थ-काम-आनन्दों के वर्षक (श्रुतः) सुने गये हो ॥१॥ इस मन्त्र में ‘वृषे, वृष वृषा, वृषो’ में वृत्त्यनुप्रास अलङ्कार है। ‘वृषेदसि’—‘आप बादल ही हो’ यहाँ परमेश्वर में बादल का आरोप होने से रूपक है। ‘वति, वति’ में छेकानुप्रास है ॥१॥
भावार्थ
समस्तगुणगुणों में अग्रणी, इहलोक तथा परलोक में विविध आनन्दों की वृष्टि करनेवाले, परोपकारी परमेश्वर की हम वन्दना क्यों न करें ॥१॥
पदार्थ
(उग्र) हे तेजस्विन् परमात्मन्! (वृषाजूतिः) समस्त सुखवर्षकों की गति—आश्रय हुआ “जूतिर्गतिः” [निरु॰ १०.२८] (नः-अविता) तू हमारा रक्षक हो (वृषा हि परावति शृण्विषे) सुखवर्षक ही दूर काल में सुना जाएगा “सामर्थ्याद् भविष्यत्कालाभिधायी प्रयोगः” “परावतः परागतात्” [निरु॰ ७.२६] (वृषा-उ-अर्वावति श्रुतः) सुखवर्षक ही सुना गया अभी—हाल निकट भूत में भी सुना गया है (इत्था सत्यं वृषा-इत्-असि) इस हेतु “था हतौ च छन्दसि” [अष्टा॰ ५.३.२६] तू ही सच्चा सुखवर्षक है।
भावार्थ
हे तेजस्वी परमात्मन्! तू सुखवर्षकों की गति—आश्रयभूमि है कोई भी सुखवर्षक आपके विना स्वतन्त्र सुखवर्षक नहीं, तू हमारा रक्षक है, तू सुखवर्षक अभी सुना गया है और आगे भी सुखवर्षक सुना जाएगा इस हेतु तू ही सच्चा सुखवर्षक है, तुझे छोड़कर कहाँ जावें॥१॥
विशेष
ऋषिः—मेधातिथिः (मेधा से परमात्मा में प्रवेशशील)॥<br>
विषय
परलोक भी, इहलोक भी
पदार्थ
प्रभु जीव से कहते हैं कि यदि तू सचमुच अपना जीवन पूर्वमन्त्र के चार शब्दों के अनुसार बिताता है तो (इत्था) = इस प्रकार (इत्) = निश्चय से (सत्यम्) = सचमुच (वृषा असि) = तू शक्तिशाली व धर्मयुक्त है [वृष- धर्म ] । (वृषजूति:) = ऐसा बनने पर तू शक्तिशाली व धर्मयुक्त क्रियाओंवाला कहलाएगा [जूति = क्रिया] । ऐसा करने पर ही (तू न:)हमारे (अविता) = अंश का दोहन करनेवाला होगा [अव्=भागदुधे], अर्थात् तेरे लिए यह कहा जा सकेगा कि तू अपने अन्दर दिव्यता का अवतरण कर रहा है। हे (उग्र) = उदात्त – उत्कृष्ट स्वभाववाले जीव! (हि)=ऐसा करने पर ही तू (परावति) = दूर क्षेत्र में, अर्थात् परलोक व अध्यात्म के क्षेत्र में (वृषा) = शक्तिशाली (श्रुतः)=प्रसिद्ध होगा और ऐसा करने पर ही (अर्वावति)= समीप के, ऐहलौकिक क्षेत्र में भी (वृष:)=शक्तिशाली व धर्मयुक्त (शृण्विषे) = प्रसिद्ध होगा।
गत मन्त्र की चार बातों को अपने जीवन का लक्ष्य बनानेवाला व्यक्ति सचमुच शक्तिशाली व धार्मिक बनता है–उसकी प्रत्येक क्रिया धर्मानुकूल होती है। वह निरन्तर प्रभु की ओर बढ़ रहा होता है। उसे अभ्युदय व निःश्रेयस दोनों की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इस मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति ही समझदार है- (मेधातिथि)=यह निरन्तर मेधा के साथ चलनेवाला है [मेधया अतति]।
भावार्थ
हम भी ओज व द्युम्न आदि को जीवन का ध्येय बनाकर अपने में दिव्यता का अवतरण करें।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( उग्र ) = बलवन् ! ( सत्यम् ) = सत्य ही ( इत्था ) = इस प्रकार का ( वृषा इत् असि ) = तू सुखों का वर्षक ही है । और ( बृषजूतिः ) = श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा सेवित तू ( नः ) = हमारा ( अविता ) = पालन करने हारा ( वृषा हि शृण्विषे ) = 'वृषा' साक्षात् धर्ममय ही सुना जाता है और ( परावति ) = दूर और ( अर्वावति ) = समीप भी तू ( वृषा उ ) = 'वृषा' अर्थात् आनन्दघन ही ( श्रुतः ) = प्रसिद्ध है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मेधातिथिः ।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - बृहती।
स्वरः - मध्यमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरस्य गुणा वर्ण्यन्ते।
पदार्थः
हे इन्द्र परमेश्वर ! (सत्यम् इत्था२) सत्यम्, सत्यम्। इत्था इति सत्यनाम। निघं० ३।१०। द्वौ सत्यवाचकौ समवेतौ सत्यस्य निश्चयत्वं द्योतयतः। त्वम् (वृषा इत्) वर्षकत्वात् साक्षात् पर्जन्य एव (असि) वर्तसे। किञ्च वृषजूतिः विद्युदादिपदार्थानां मनोवेगवद् वेगप्रदाता। वृषा हि मनः श० १।४।४।३। जूतिरित्यत्र जू गतौ इति सौत्राद् धातोः ‘ऊतियूतिजूतिसातिहेतिकीर्तयश्च अ० ३।३।९७’ इति क्तिन्, धातोः दीर्घत्वं च निपात्यते। वृष्णः मनसः जूतिरिव वेग इव जूतिः वेगो यस्मात् स (वृषजूतिः)। वृषन् शब्दः कनिन् प्रत्ययान्तत्वादाद्युदात्तः। बहुव्रीहौ पूर्वपदप्रकृतिस्वरः शिष्यते। (नः अविता) अस्माकं रक्षकश्चासि। हे (उग्र) प्रबलैश्वर्य ! त्वम् (परावति) परागते उत्कृष्टे मोक्षलोके (वृषा हि) मोक्षानन्दानां वर्षकः खलु (शृण्विषे) श्रूयसे, (अर्वावति) अर्वाग्भवे इहलोकेऽपि (वृषः) धर्मार्थकामानन्दानां वर्षकः (श्रुतः) आकर्णितः असि ॥१॥ अत्र ‘वृषे, वृष, वृषा, वृषो’ इति वृत्त्यनुप्रासालङ्कारः। ‘वृषेदसि’ इत्यत्र इन्द्रे पर्जन्यत्वारोपात् रूपकम्। ‘वति-वति’ इति छेकानुप्रासः ॥१॥
भावार्थः
निखिलगुणगणाग्रणीरिह परलोके च विविधानन्दवर्षकः परोपकारपरायणः परमेश्वरोऽस्माभिः कुतो न वन्द्यः ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।३३।१०, ऋषिः मेध्यातिथिः ‘नोऽविता’ इत्यत्र ‘नोऽवृतः’ इति पाठः। २. सत्यम् इत्थेति च सत्यमित्यर्थे वर्तते। सत्यं सत्यम् एव—इति भ०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O Mighty God, Thou verily art the showerer of happiness. Thou, served by noble persons, art our Guardian. Thou art spoken of as Vrisha in the Vedas. Thou art the Fulfiller, of our desires far and near !
Translator Comment
Vrisha: The embodiment of virtue and Dharma.
Meaning
True it is thus you are our protector, virile and generous yourself and an inspiration and driving force for the virile and the brave, unbound, encountered, brave and illustrious, harbinger of the showers of peace and joy and known as omnificent and sublime all over the world far and near. (Rg. 8-33-10)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (उग्र) હે તેજસ્વીન્ પરમાત્મન્ ! (वृषाजूतिः) સમસ્ત સુખવર્ષકોની ગતિ - આશ્રય થયેલ (नः अविता) તું અમારો રક્ષક છે. (वृषा हि परावति श्रृण्विषे) સુખવર્ષક જ ભવિષ્યમાં સાંભળવામાં આવશે (वृषा उ अर्वावति श्रुतः) સુખવર્ષક જ નજીકના ભૂતમાં સાંભળ્યા હતા. (इत्था सत्यं वृषा इत् असि) એ કારણે તું જ સાચો સુખવર્ષક છે. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે તેજસ્વી પરમાત્મન્ ! તું સુખવર્ષકોની ગતિ આશ્રયભૂમિ છે કોઈપણ સુખ તારા વિના સ્વતંત્ર સુખવર્ષક નથી , તું અમારો રક્ષક છે , તું સુખવર્ષક અત્યારે પણ સાંભળવામાં આવે છે અને આગળ પણ સુખવર્ષક સંભળાશે , તેથી તું જ સાચો સુખવર્ષક છે તને છોડીને ક્યાં જઈએ. (૧)
उर्दू (1)
Mazmoon
آنند برسانے والے!
Lafzi Maana
ہے (اُگر) تیجسوی بلوان پرمیشور! (ستیم امتتھا وِرشا اِت) سچ ہے کہ آپ اُن پدارتھوں کی ورشا کرنے والے ہیں جن کو ہم چاہتے ہیں (ورِش جُوتی نہ اِوتا) نیک ترین بندوں کے ذریعے آپ پُوجے جاتے ہیں۔ ہمارے محافظ ہیں (ورِشاہی شرِن وشے) مشہور عالم دھرم کی مُورتی ہیں (پراوتی ارواوتی) دُور اور نزدیک سے بھی آپ آنند کو برسانے والے پرسدّھ ہیں۔ ایسا (شُرتہ) ہم ہمیشہ سے سُنتے آ رہے ہیں۔
Tashree
ستیہ روُپ پر بھُو ہمارے تیج بل بھنڈار ہیں، دُور بھی ہیں پاس بھی سُکھ ورشا سرجن ہار ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
संपूर्ण गुणांमध्ये अग्रणी, इहलोक व परलोकात विविध आनंदाची वृष्टी करणाऱ्या परोपकारी परमेश्वराची आम्ही वंदना का करू नये? ॥१॥
विषय
परमेश्वराच्या गुणांचे वर्णन
शब्दार्थ
हे इन्द्र परमेश्वरा, (सत्यम् इत्था) खरंच, अगदी खरंच तूच (वृषा इत्) ऐश्वर्याची वृष्टी करणारा मेघ (ठासि) आहेस. तूच (वृषजूतिः) विद्युत आदी पदार्थांना मनाच्या वेगाप्रमाणे वेग देणारा आहेस (नः) आम्हा उपासकांचा तूच (अविता) खरा रक्षक आहेस. हे (उग्र) प्रबळ ऐश्वर्यवान, तूच (परावति) उत्कृष्ट मोक्ष लोकात (वृषाहि) निश्चयाने मोक्षातील आनंदाची वृष्टी करणारा आहेस, असे आम्ही (शृण्विषे) ऐकत आहोत आणि (अर्वावति) या इहलोकात देखील तूच (वृषः) धर्म, अर्थ, काम यांच्या आनंदाची वृष्टी करणारे आहात, अशी (श्रृतः) तुमची ख्याती आहे. (तरी आम्हा भक्तांवर आनंदाजी वृष्टी करा)।।१।।
भावार्थ
समस्त गुणगणात जो अग्रणी, इहलोक व परलोकात जो विविध आनंदाची वृष्टी करणारा, अशा परोपकारी त्या परमेश्वराची वंदना आम्ही का करू नये ? अर्थात अवश्य करावी.।।१।।
विशेष
या मंत्रात ‘वृषे वृष, वृषा, वृषो’ या शब्दांमुळे वृत्त्यनुप्रास अलंकार आहे. ‘वृषेदसि‘ ‘तूच मेघ आहेस’ या उक्तीत परमेश्वरावर मेघाचा आरोप केला असल्यामुळे येथे रूपक अलंकारही आहे.।।१।।
तमिल (1)
Word Meaning
உக்கிரனே, உண்மையாய் நீ விருப்பத்தை யளிப்பவன்.
மாடுபோல் முட்டிச் சென்று (பலமுள்ளவன் சுபாவம்) எங்களைக் காப்பவனே!
விருஷபத்தைப் போல் பூஜிக்கப்படுகிறாய். தூரத்தில்
விருப்பத்தை வர்ஷிப்பவன் போல் சமீபத்திலும் [1]மாடு
போல் நீ மேன்மை யானவன்.
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