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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 299
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - त्वष्टा, पर्जन्यः, ब्रह्मणस्पतिः, अदितिः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    2

    त्व꣡ष्टा꣢ नो꣣ दै꣢व्यं꣣ व꣡चः꣢ प꣣र्ज꣢न्यो꣣ ब्र꣡ह्म꣢ण꣣स्प꣡तिः꣢ । पु꣢त्रै꣡र्भ्रातृ꣢꣯भि꣣र꣡दि꣢ति꣣र्नु꣡ पा꣢तु नो दु꣣ष्ट꣢रं꣣ त्रा꣡म꣢णं꣣ व꣡चः꣢ ॥२९९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्व꣡ष्टा꣢꣯ । नः꣣ । दै꣡व्य꣢꣯म् । व꣡चः꣢꣯ । प꣣र्ज꣡न्यः꣢ । ब्र꣡ह्म꣢꣯णः । प꣡तिः꣢꣯ । पु꣣त्रैः꣢ । पु꣣त् । त्रैः꣢ । भ्रा꣡तृ꣢भिः । अ꣡दि꣢꣯तिः । अ । दि꣣तिः । नु꣢ । पा꣣तु । नः । दुष्ट꣡र꣢म् । दुः꣣ । त꣡र꣢꣯म् । त्रा꣡म꣢꣯णम् । व꣡चः꣢꣯ ॥२९९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टा नो दैव्यं वचः पर्जन्यो ब्रह्मणस्पतिः । पुत्रैर्भ्रातृभिरदितिर्नु पातु नो दुष्टरं त्रामणं वचः ॥२९९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्टा । नः । दैव्यम् । वचः । पर्जन्यः । ब्रह्मणः । पतिः । पुत्रैः । पुत् । त्रैः । भ्रातृभिः । अदितिः । अ । दितिः । नु । पातु । नः । दुष्टरम् । दुः । तरम् । त्रामणम् । वचः ॥२९९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 299
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 7;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    इस मन्त्र के देवता मन्त्रोक्त त्वष्टा, पर्जन्य, ब्रह्मणस्पति और अदिति हैं। इन्द्र के प्रकरण में उनसे भी रक्षा आदि की याचना की गयी है।

    पदार्थ

    (त्वष्टा) दोषनिवारक, तेजस्वी, दुःखच्छेदक विद्वान् मनुष्य, (पर्जन्यः) बादल के समान उपदेश की वर्षा करनेवाला संन्यासी, और (ब्रह्मणः पतिः) ज्ञान का अधिपति आचार्य (नः) हमारे लिए (दैव्यं वचः) ईश्वरीय वेदवचन का उपदेश करें। (पुत्रैः) पुत्रों सहित, और (भ्रातृभिः) भाई-बन्धुओं सहित (नः) हमें (अदितिः) जगन्माता (नु) शीघ्र ही (पातु) रक्षा प्रदान करती रहे। हमारा (वचः) वचन (दुष्टरम्) दुस्तर, अकाट्य तथा (त्रामणम्) दूसरों की रक्षा करनेवाला होवे ॥७॥

    भावार्थ

    विद्वानों के उपदेश से पुत्र, पौत्र, बन्धु, बान्धव आदि सहित सब लोग वेद के ज्ञाता, सत्कर्मों में संलग्न और परमेश्वर-प्रेमी होते हुए व्यवहार में सत्य, मधुर, प्रभावजनक तथा कुतर्कों से अकाट्य वचन बोला करें ॥७॥

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    पदार्थ

    (पुत्रैः-भ्रातृभिः) पुत्रों भ्राताओं के सहित (नः-दैव्यं वचः) हमारे देव के प्रति प्रार्थना वचन को (त्वष्टा) जगत् का घड़ने वाला (पर्जन्यः) तृप्तिकर्ता जनक (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्ड का स्वामी (अदितिः) समस्त देवों का मातृरूप इन्द्र—ऐश्वर्यवान् परमात्मा (नु पातु) अवश्य पालें सफल करें, यतः (नः-दुष्टरं त्रामणं वचः) हमारा यह प्रार्थनावचन दुनिर्वार—पूरण करने योग्य रक्षा करने वाला है।

    भावार्थ

    जगन्निर्माता तृप्तिकर्ता जनक ब्रह्माण्ड का स्वामी, देवों मातृरूप परमात्मा पुत्रों भ्राताओं सहित किये गये प्रार्थना वचनों को सफल करें। यह हमारा प्रार्थना वचन दुर्निवार्य-त्राण कारक है॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—वामदेवः (वननीय—उपासनीय इष्टदेव वाला उपासक)॥ देवताः—बहवो लिङ्गोक्ता देवताः “इन्द्रपरायणाः” इन्द्र ऐश्वर्यवान् के अधीन मन्त्र में कहे हुए स्वरूप)॥<br>

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    विषय

    चार व्रत

    पदार्थ

    वामदेव= त्र = सुन्दर, दिव्य गुणों की कामनावाला चाहता है कि -

    १. (दैव्यं वचः)=दिव्य वचन अर्थात् वेदवाणी (नः) = हमारी त्(वष्टा)= निर्माण करनेवाली हो । उसके अनुसार हमारा जीवन हो । ('मन्त्र श्रुत्यं चरामसि)'=मन्त्रों में जो कुछ सुना है, उसका हम आचरण करनेवाले हों । मन्त्रों का ही विचार, उच्चारण और आचार हो ।

    २. (ब्रह्मणस्पतिः)=ब्रह्म - बुद्धि का नाम है। ब्रह्मा अधिदेव में चन्द्रमा है और अध्यात्म में मन। मन का ‘पति’ = अधिष्ठात्री बुद्धि है - इसीलिए इसे मनीषा 'मनसः इष्टे' कहा गया है। ये बुद्धि हमारे लिए (पर्जन्यः) = परा-तृप्ति की जनयित्री हो । हमें बुद्धि के द्वारा ज्ञानोपार्जन में आनन्द का अनुभव हो - इसमें रस आने लगे।

    ३. (नु) = अब इस संसार में (पुत्रैः) = पुत्रों से तथा (भ्रातृभिः) = भाईयों से (अदितिः) = अदीनता हो । हमें इनके सामने कभी गिड़गिड़ाना न पड़े। दीन न बनना पड़े।

    ४. (दुष्टरं वचः) = वह वचन जो टल नहीं सकता - जिसका उल्लंघन सम्भव नहीं, वह पत्थर की लकीर के समान पक्का सत्यवचन (त्रामण) = जोकि वस्तुतः रक्षा करनेवाला है, (नः-पातु) = हमें असत्यादि गिरने से बचाये। सत्य से ही यह संसार धारण किया जा रहा है। यह सत्य वचन हमारा भी धारण करनेवाला हो । सत्य को यहाँ 'दुष्टरं वचः' कहा गया है। हमारा भी वचन 'दुष्टर' हो ।

    भावार्थ

    हम ‘वेदानुकूल आचरण, स्वाध्याय, अदीनता व सत्यवादिता' इन चारों व्रतों को धारण करनेवाले 'वामदेव' बनें।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( त्वष्टा ) = समस्त संसार को गढ़ने वाला या कान्तिसम्पन्न ( पर्जन्यः ) = प्रजा जनों का बरसते मेघ के समान अत्यन्त हित करने हारा, ( ब्रह्मणस्पतिः ) = वेद और वेदज्ञों का स्वामी, ( अदितिः ) = किसी से भी खण्डित न होने हारा, अखण्ड, परमेश्वर ( नः दैव्यं वचः ) = हमारे देव सम्बन्धी वेदवाणियों की ( पातु ) = रक्षा करे । वही हमारे ( पुत्रै: भ्रातृभिः सह ) = पुत्रों और भाइयों के साथ ( दुःतरं ) = दुस्तर ( त्रामणं ) = रक्षा करने योग्य ( वचः ) = प्रतिज्ञा वचन की ( पातु ) = पालन करे । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - वामदेव:।

    देवता - बहु:।

    छन्दः - बृहती।

    स्वरः - मध्यमः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ मन्त्रोक्तास्त्वष्टृपर्जन्यब्रह्मणस्पत्यदितयो देवताः। इन्द्रप्रकरणे तेऽपि रक्षादिकं याच्यन्ते।

    पदार्थः

    (त्वष्टा) दोषाणां तनूकर्ता, तेजसा दीप्तः, दुःखच्छेदको विद्वान् जनः, त्वक्ष तनूकरणे। यद्वा त्विष दीप्तौ, ‘त्विषेर्देवतायामकारश्चोपधाया अनिट्त्वं च’ अ० ३।२।१३५ वा० अनेन त्विषधातोस्तृन्, उपधाया अकारः, इडभावश्च। (पर्जन्यः) पर्जन्यवद् उपदेशवर्षकः संन्यासी, (ब्रह्मणः पतिः) ज्ञानस्य अधिपतिः आचार्यश्च। संहितायां ‘षष्ठ्याः पतिपुत्रपृष्ठपारपदपयस्पोषेषु।’ अ० ८।३।५३ इति विसर्जनीयस्य सत्वम्। (नः) अस्मभ्यम् (दैव्यं वचः) ईश्वरीयं वेदवचनम्, उपदिशन्तु इति शेषः। देवात् परमेश्वराद् आगतं दैव्यम्। ‘देवाद्यञञौ’ अ० ४।१।८५ वा इति यञ् प्रत्ययः। किञ्च, (पुत्रैः) तनयैः (भ्रातृभिः) बन्धुभिश्च साकम् (नः) अस्मान् (अदितिः) जगन्माता। अदितिर्माता। ऋ० १।८९।१० इति प्रामाण्याद् माता अदितिरुच्यते। (नु) सद्यः एव (पातु) रक्षतु। अस्माकम् (वचः) वचनम् (दुष्टरम्) अनतिक्रमणीयम्, अकाट्यम् (त्रामणम्२) परेषां पालकं च, भूयाद् इति शेषः। त्रैङ् पालने, मनिन्। त्रामन् शब्दान्नपुंसि प्रथमैकवचने ‘त्राम’ इति प्राप्ते अमो लुगभावश्छान्दसः ॥७॥

    भावार्थः

    विदुषामुपदेशेन पुत्रपौत्रबन्धुबान्धवादिसहिताः सर्वे वेदज्ञाः सत्कर्मपरायणाः परमेश्वरप्रियाश्च सन्तो व्यवहारे सत्यं मधुरं प्रभावजनकं कुतर्कैरकाट्यं च वचनं ब्रूयुः॥७॥

    टिप्पणीः

    १. अथ० ६।४।१ अथर्वा ऋषिः। ‘नो’ इत्यत्र ‘मे’ इति, ‘त्रामणं वचः’ इत्यत्र च ‘त्रायमाणं सहः’ इति पाठः। २. त्रामणं रक्षासाधनम्। रक्षणं फलप्रदानम्—इति भ०। त्रामणं रक्षणीयं वचः पातु—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May God, the Maker of the universe, the Lover of His subjects, the Lord of the Vedas and their knowers, Invincible, guard our vedic words. May He protect, along with our sons and brothers, our elevating vows, difficult to fulfil.

    Translator Comment

    Griffith translates Tvashta Brahmanaspati and Parjanya as such. He considers Tvashta to be the ideal artist, the divine artisan, the most skilful of workmen, versed in all wonderful contrivance. He describe Aditi, Infinity, the mother of the Adityas. Words mean prayers.

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    Meaning

    May Tvashta, divine spirit of natural evolution of forms and institutions, our divine Word, Parjanaya, soma showers of vitality, Brahmanaspati, sun and divine cosmic protection and inviolable mother Infinity along with our brothers and our progeny protect and justify our saviour and inviolable word of promise and resolution for the safety and security of life and the environment.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (पुत्रैः भ्रातृभिः) પુત્રો અને ભાઈઓ સહિત (नः दैव्यं वचः) અમારા દેવના પ્રતિ પ્રાર્થના વચનને (त्वष्टा) જગતના નિર્માણકર્તા (पर्जन्यः) તૃપ્તિકર્તા જનક (ब्राह्मणस्पतिः) બ્રહ્માંડના સ્વામી (अदितिः) સમસ્ત દેવોના માતૃરૂપ ઇન્દ્ર-પરમાત્મા (नु पातु) અવશ્ય પાલન કરે સફળ કરે, જે (नः दुष्टरं त्रामणं वचः) અમારા એ પ્રાર્થના વચન દૂર્નિરવાર-પૂરણ કરવા યોગ્ય રક્ષા કરનાર છે. (૭)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જગતના નિર્માતા, તૃપ્તિકર્તા, જનક, બ્રહ્માંડના સ્વામી, દેવોના માતૃરૂપ પરમાત્મા પુત્રો અને ભાઈઓ સહિત કરેલા પ્રાર્થના વચનોને સફળ કરે. એ અમારા પ્રાર્થના વચન દુર્નિવાર્ય-રક્ષા કરનાર છે. (૭)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بھگوان کا دِیا وچن (وید واکیہ) ہمارا محافظ

    Lafzi Maana

    (توشٹا پرجنیہ برہم نسپتی ادِتی) دُنیا کو بنانے والا کاریگر، سب رعیت کے برسنے والے بادلوں کی طرح پالک، وید اور جگت کا سوامی اکھنڈ پرمیشور اور (دَئیویہ وچہ) اُس دیو کا دیا وچن (وعدہ) وید بانی کا اُپدیش (پُتری بھراتری بھی نہ پاتُو) ہمارے آل اولاد بھائی وغیرہ سب کی رکھشا کرتا ہے، (نہ) یقیناً، وہ (وچہ دُشٹرم ترامنم) پرمیشور کا دیا وعدہ کبھی ٹوٹتا نہیں بلکہ ہمیشہ ہماری حفاظت پر رہتا ہے۔

    Tashree

    آغاز دُنیا میں دِیا جو وید واک میں وعدہ، وہ محافظ ہے ہمارا تب سے ہی تو بنا ہوا۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    विद्वानांच्या उपदेशाने पुत्र, पौत्र, बंधू, बांधव इत्यादीसहित सर्व लोक वेदाचे ज्ञाते, सत्कर्मात संलग्न व परमेश्वरप्रेमी असून व्यवहारात सत्य, मधुर, प्रभावपूर्ण व न काटता येण्यासारखे वचन बोलावे ॥७॥

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    विषय

    या मंत्राच्या देवता, मंत्रात ज्याचा उल्लेख आहे, त्या त्वष्टा, पर्जन्य, ब्रह्मणस्तति आणि आदिति याआहेत. इंद्राच्या प्रसंगात त्या देवलोककडूनही रक्षणाची प्रार्थना केली आहे -

    शब्दार्थ

    (त्वष्टा) दोषनिवार, तेजस्वी, दुःख विच्छेदक विद्वान मनुष्य, (पर्जन्यः) मेघाप्रमाणे उपदेशाची वृष्टी करणारा संन्यासी आणि (ब्रह्मणःपतिः) ज्ञानाचा अधिपती आचार्य, हे सर्व (नः) आमच्यासाठी (दैन्यं वचः ईश्वरीय वेदवचनाचा उपदेश देवोत. तसेच (पुत्रैः) पुत्रांसह आणि (भ्रातृभिः) बंधु-बांधवांसह (अदितिः) जगन्माता (परमेश्वर) (नः) आमचे (नु) सीघ्रमेव (पातु) रक्षण करणारी व्हावी. आमचे (वचः) वचन (दुष्टरम्) दुस्तर, अभाटच असावे (कोणीही आमचे मत खंडित वा बाधित करता येऊ नये, कारण आम्ही सत्य तेच बोलतो.) आणि आमची वाणी (त्रामणम्) दुसऱ्यांची रक्षा करण्यात समर्थ असावी. ।। ७।।

    भावार्थ

    विद्वानांच्या उपदेशामुळे सर्वजण पुत्र, पौत्र, बंधु-बांधवांसह वेदज्ञ असावेत. सत्कर्मांचे आचरण करणारे आणि एकमेकाशी व परमेश्वराशी प्रेम करणारे असावेत. त्यांच्या व्यवहारात सत्य, माधुर्य व प्रभार असावे. तसेच त्यानी स्याधारित अकारत्र वचन बोलावे. ।। ७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    [1](துவஷ்டா) [2](பிரமணஸ்பதி) [3](பர்ஜன்யன்) காணமுடியாத (மொழியைக்) காக்கட்டும். [4](அதிதி) அவள் (மக்கள் சகோதரர்களோடு) எங்களுக்கு
    இரட்சணீயமான (மொழியைக்) காக்கட்டும்.

    FootNotes

    [1]துவஷ்டா - சிற்பி
    [2]பிரமணஸ்பதி - அறிஞன்
    [3]பர்ஜன்யன் - தானபுருஷன்
    [4]அதிதி - பூமி

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