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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 389
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    3

    य꣢꣫ एक꣣ इ꣢द्वि꣣द꣡य꣢ते꣣ व꣢सु꣣ म꣡र्ता꣢य दा꣣शु꣡षे꣢ । ई꣡शा꣢नो꣣ अ꣡प्र꣢तिष्कुत꣣ इ꣡न्द्रो꣢ अ꣣ङ्ग꣢ ॥३८९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः꣢ । ए꣡कः꣢꣯ । इत् । वि꣣द꣡य꣢ते । वि꣣ । द꣡य꣢꣯ते । व꣡सु꣢꣯ । म꣡र्ता꣢꣯य । दा꣣शु꣡षे꣢ । ई꣡शा꣢꣯नः । अ꣡प्र꣢꣯तिष्कुतः । अ । प्र꣣तिष्कुतः । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । अ꣣ङ्ग꣢ ॥३८९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य एक इद्विदयते वसु मर्ताय दाशुषे । ईशानो अप्रतिष्कुत इन्द्रो अङ्ग ॥३८९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः । एकः । इत् । विदयते । वि । दयते । वसु । मर्ताय । दाशुषे । ईशानः । अप्रतिष्कुतः । अ । प्रतिष्कुतः । इन्द्रः । अङ्ग ॥३८९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 389
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 9
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमेश्वर के धन-प्रदाता रूप का वर्णन है।

    पदार्थ

    (यः) जो (एकः इत्) एक ही है, और जो (दाशुषे मर्त्याय) अपना धन दूसरों के हित के लिए जिसने दान कर दिया है, ऐसे मनुष्य को (वसु) धन (विदयते) विशेष रूप से प्रदान करता है, (अङ्ग) हे भाई ! वह (ईशानः) सकल ब्रह्माण्ड का अधीश्वर (अप्रतिष्कुतः) किसी से प्रतिकार न किया जा सकनेवाला अथवा कभी न लड़खड़ानेवाला (इन्द्रः) इन्द्र नामक परमेश्वर है ॥९॥

    भावार्थ

    परमेश्वर एक ही है, उसके बराबर या उससे अधिक अन्य कोई नहीं है। धनदाता वह परोपकारार्थ धन का दान करनेवाले को अधिकाधिक धन प्रदान करता है ॥९॥

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    पदार्थ

    (यः-एकः-इत्) जो एक ही—उस जैसा अन्य नहीं, कि (दाशुषे मर्ताय) आत्मीयत्व के देने वाले—स्वात्मसमर्पण करने वाले जन—उपासक के लिए (वसु विदयते) धन को विशिष्टरूप से देता है या कर्मानुसार विभाग करता है (अङ्ग) हे प्रियजन वह (ईशानः-इन्द्रः) स्वामी परमात्मा (अप्रतिष्कुतः) उल्लङ्घनीय या प्रतिहिंसित या प्रतिस्खलित या प्रतीकार्य नहीं है। “अप्रतिष्कुतोऽप्रतिष्कृतोऽ-प्रतिस्खलितो वा” [निरु॰ ६.१६]।

    भावार्थ

    केवल परमात्मा ही ऐसा उदार है जो आत्मसमर्पण करने वाले उपासक के लिए—अलौकिक धन अपने अन्दर वसाने वाले विशिष्ट धन को विशेषरूप से देता है या विभक्त कर छाँट कर देता है और वह जगत् का स्वामी दृष्टि से ओझल करने योग्य या प्रतीकार करने योग्य नहीं॥९॥

    विशेष

    ऋषिः—गौतमः (परमात्मा में अत्यधिक गति रखने वाला)॥<br>

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    विषय

    उस लोक के साथ यह लोक भी

    पदार्थ

    प्रभु का स्तवन करनेवाला व्यक्ति निर्मल बनता है - प्रशस्त इन्द्रियोंवाला होता है-'गौतम' कहलाता है। आत्मतत्त्व के लिए सारी पृथिवी को छोड़ने के लिए उद्यत यह व्यक्ति (राहूगण )= त्यागशीलों में गिना जानेवाला तो है ही। इसका सिद्धान्त है कि आध्यात्मिक लाभों के लिए हमें प्रभु स्तवन करना ही चाहिए। और कभी भी यह भय न करना चाहिए कि संसार-यात्रा कैसे चलेगी? क्योंकि (दाशुषे) = दाश्वान् के लिए - प्रभु के प्रति अपना समर्पण कर देनेवाले (मर्ताय) = मनुष्य के लिए (यः) = वे प्रभु (एकः इत्) = अकेले ही (वसु) = निवास के लिए आवश्यक धन (विदयते) = प्राप्त कराते हैं। वे प्रभु ही तो (ईशानः) = सारे एश्वर्य के स्वामी हैं और फिर (अप्रतिष्कुतः) = किसी से न रोके जा सकनेवाले हैं। वे तो अकेले ही सारे मनुष्यों का पराभव करनेवाले हैं। वे सहस्रबाहु, हमें देने लगें तो हमने अपनी दो भुजाओं से सम्हालना क्या? और छीनने लगें तो बचाना क्या ? (इन्द्रः) = वे तो परमैश्वर्यशाली व सर्वशक्तिमान् हैं। अङ्ग- हे प्रिय ! इन शब्दों में प्रभु को जीव को सम्बोधित करते हैं। 'अगिगतौ' से बना यह शब्द सुव्यक्तरूप से कह रहा है कि प्रभु को वही जीव प्रिय है जोकि गतिशील है। हम गतिशील बनें। धन की कोई कमी न होगीं प्रभु का उपासक क्या कभी भूखा मर सकता है ?

    भावार्थ

    प्रभु का उपासक प्रकृति से दूर भागता है और प्रकृति उसके पीछे आती है।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( यः ) = जो ( एक इत् ) = अकेला ही ( दाशुषे मर्त्ताय ) = दान  शील पुरुष  ( वसु  विदयते ) = नाना रूप से धनधान्य देता है ( अङ्ग ) = हे मनुष्य  ! वह ( इन्द्रः ) = परमेश्वर ( अप्रतिष्कुतः १ ) = सबसे बढ़कर,किसी से भी पराजित न होने वाला ( ईशान: ) = सवका स्वामी है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - गौतम:।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - उष्णिक्।

    स्वरः - ऋषभः

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरस्य धनदत्वं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (यः एकः इत्) एक य एव विद्यते, किञ्च, यः (दाशुषे मर्त्याय) स्वकीयं धनं परेषां हिताय दत्तवते मनुष्याय (वसु) धनम् (विदयते) विशेषेण ददाति। दय दानगतिरक्षणहिंसादानेषु भ्वादिः। (अङ्ग२) हे भद्र ! सः (ईशानः) सकलब्रह्माण्डस्याधीश्वरः (अप्रतिष्कुतः३) अप्रतिष्कृतः अप्रतिस्खलितो वा। अप्रतिष्कुतः अप्रतिष्कृतोऽप्रतिस्खलितो वा। निरु० ६।१६। (इन्द्रः) इन्द्रनामा परमेश्वरोऽस्ति ॥९॥४

    भावार्थः

    परमेश्वर एक एव वर्तते, तत्समस्तदधिको वाऽन्यः कश्चन नास्त्येव। धनदः स परोपकाराय धनदात्रेऽधिकाधिकं धनं प्रयच्छति ॥९॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।८४।७, अथ० २०।६३।४, साम० १३४१। २. अङ्गेति निपातः पदपूरणः—इति वि०। अङ्ग सत्यम्—इति भ०। अङ्गेति क्षिप्रनाम—इति सा०। अङ्गेति क्षिप्रनाम, अञ्चितमेवाङ्कितं भवति। निरु० ५।१७। ३. ष्कु आप्रवणे। आप्रवणम् आगमनम्, प्रवतेर्गत्यर्थत्वात्। अन्येन अप्रतिगतः अप्रतिष्कुतः। युद्धेऽभियुञ्जानः अन्येन अप्रत्यभियुक्तः, अपूर्वाभियोद्धा इत्यर्थः—इति वि०। अप्रत्यागतः केनापि—इति भ०। परैरप्रतिशब्दितः प्रतिकूलशब्दरहितः इत्यर्थः—इति सा०। तत्र कु शब्दे इति धातुर्ज्ञेयः, मध्ये सुडागमः। ‘असंचलितः’—इति ऋ० १।८४।७ भाष्ये द०। ४. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं सभासेनाद्यध्यक्षविषये व्याख्यातवान्। “हे मनुष्याः, यूयं यः सहायरहितोऽपि निर्भयो युद्धादपलायनशीलोऽतिशूरो भवेत् तमेव सेनाध्यक्षं कुरुत” इति तत्कृतो भावार्थः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    He, Who alone speedily bestoweth wealth on mortal man. Who is charitably disposed, is God, potent Lord, Whom none can resist.

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    Meaning

    Dear friend, the one sole lord who gives everything in life to the man of charity and generosity is Indra, supreme ruler of the world, who is constant, unmoved and unchallenged. (Rg. 1-84-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (यः एकः इत्) જે એકજ છે તેના જેવો અન્ય કોઈ નથી (दाशुषे मर्ताय) આત્મીયત્વને આપનાર-સ્વાત્મ સમર્પણ કરનાર જન-ઉપાસકને માટે (वसु विदयते) ધનને વિશિષ્ટ રૂપથી આપે છે અથવા કર્માનુસાર વિભાગ કરે છે (अङ्गः) હે પ્રિયજન તે (ईशानः इन्द्रः) સ્વામી પરમાત્મા (अप्रतिष्कुतः) ઉલ્લંઘનીય વા પ્રતિહિંસિત વા પ્રતિસ્ખલિત વા પ્રતિકાર કરવા યોગ્ય નથી. (૯)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : કેવલ પરમાત્મા જ ઉદાર છે, જે આત્મસમર્પણ કરનાર ઉપાસકને માટે-અલૌકિક ધન મારી અંદર વસાવનાર વિશિષ્ટ ધનને વિશેષરૂપથી પ્રદાન કરે છે અથવા વિભક્ત કરીને ભાગ આપે છે. અને તે જગતના સ્વામીને દૃષ્ટિથી ઓઝલ કરવા યોગ્ય અથવા પ્રતિકાર કરવા યોગ્ય નથી (૯)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    دانی کو پرمیشور سدا بھرتا رہتا ہے!

    Lafzi Maana

    ہے منشیو! وہ پرمیشور اکیلا ہی دان شیل کو سد زر و مال مختلف قسم سے دیتا رہتا ہے، وہ سب کا مالک ہے اور کسی ے مغلوب نہیں ہو سکتا۔

    Tashree

    جو ایک کیول ایک ہے جس کی ہے عظمت چارسُو، دینے والے داتا کو ہے دیتا جاتا سُو بہ سُو۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वर एकच आहे. त्याच्या बरोबरीचा किंवा त्याच्यापेक्षा मोठा दुसरा कोणी नाही. तो धनदाता आहे. परोपकारासाठी धनाचे दान करणाऱ्यासाठी जास्तीत जास्त धन प्रदान करतो ॥९॥

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    विषय

    परमेश्वराचे धनगातृत्व कसे आहे ?

    शब्दार्थ

    (यः) जो (एकः इत्) एक वा अद्वितीय आहे आणि (दाशुषे मर्त्याय) आपले धन इतरांच्या कल्याणासाठी देणाऱ्या माणसासाठी (वसु) जो धनसंपदा (विदयते) विशेषत्वाने देतो, (अड्ग) हे बन्धो, त्यालाच तू (ईशानः) एकक ब्रह्मांडाचा अधीश्वर मान (अप्रतिष्कुतः) कोणीही त्याचा प्रतिकार वा समता करू शकत अथवा तो कधीही डगमगणारा नसून त्याचेच नाव (इंद्र) इंद्र परमेश्वर आहे.।। ९।।

    भावार्थ

    परमेश्वर एक वा केवळ एक असून कोणीही त्याच्यापेक्षा अधिक वा समानदेखील नाही. तो धन संपत्तीदाता असून जो कोणी माणूस आपले धन परोपकारासाठी देतो. परमेश्वर त्याला अधिकाधिक धन प्रदान करतो.।। ९।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    [1]ஹவிர் அளிக்கும் மனிதர்களில் ஐசுவரியத்தை அளிப்பவன் இந்திரன் ஒருவனே. ஒருவராலும் எதிர்க்காத அவன் ஈசனாகும்.

    FootNotes

    [1]ஹவிர் - தியாகஞ்செய்யும்

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