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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 41
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
    3

    त्वं꣡ न꣢श्चि꣣त्र꣢ ऊ꣣त्या꣢꣫ वसो꣣ रा꣡धा꣢ꣳसि चोदय । अ꣣स्य꣢ रा꣣य꣡स्त्वम꣢꣯ग्ने र꣣थी꣡र꣢सि वि꣣दा꣢ गा꣣धं꣢ तु꣣चे꣡ तु नः꣢꣯ ॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्व꣢म् । नः꣣ । चित्रः꣢ । ऊ꣣त्या꣢ । व꣡सो꣢꣯ । रा꣡धाँ꣢꣯सि । चो꣣दय । अस्य꣢ । रा꣣यः꣢ । त्वम् । अ꣣ग्ने । रथीः꣢ । अ꣣सि । विदाः꣢ । गा꣣ध꣢म् तु꣣चे꣢ । तु । नः꣣ ॥४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं नश्चित्र ऊत्या वसो राधाꣳसि चोदय । अस्य रायस्त्वमग्ने रथीरसि विदा गाधं तुचे तु नः ॥४१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । नः । चित्रः । ऊत्या । वसो । राधाँसि । चोदय । अस्य । रायः । त्वम् । अग्ने । रथीः । असि । विदाः । गाधम् तुचे । तु । नः ॥४१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 41
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा से धन की प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (वसो) निवासक (अग्ने) परमात्मन् ! (चित्रः) अद्भुत गुण-कर्म-स्वभाववाले, पूज्य और दर्शनीय (त्वम्) आप (ऊत्या) रक्षा के साथ (नः) हमारे लिए (राधांसि) विद्या, सुवर्ण, चक्रवर्ती राज्य, मोक्ष आदि धनों को (चोदय) प्रेरित कीजिए। (त्वम्) आप (अस्य) इस दृश्यमान (रायः) लौकिक तथा पारमार्थिक धन के (रथीः) स्वामी (असि) हो। अतः (नः) हमें तथा (तुचे) हमारे पुत्र-पौत्र आदि सन्तान को (तु) शीघ्र व अवश्य (गाधम्) पूर्वोक्त धन की थाह को, अर्थात् अपरिमित उपलब्धि को, (विदाः) प्राप्त कराओ ॥७॥

    भावार्थ

    हे जगदीश्वर ! सब प्राणियों के तथा नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह आदिकों के निवासक होने से आप वसु कहलाते हो। वह आप जगत् में दिखायी देनेवाले चाँदी-सोना-मोती-मणि-हीरे आदि,, कन्द-मूल-फल आदि, दूध-दही-मक्खन आदि, अहिंसा-सत्य-अस्तेय आदि, शौच-सन्तोष-तप-स्वाध्याय आदि और धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष आदि धनों के परम अधिपति हो। आप कृपा कर हमारे अन्दर पुरुषार्थ उत्पन्न करो, जिससे हम भी उन भौतिक और आध्यात्मिक धनों के अधिपति हो सकें ॥७॥

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    पदार्थ

    (चित्र वसो-अग्ने) हे अद्भुत गुण शक्ति सम्पन्न तथा सबके अन्दर बसने वाले परमात्मन्! (त्वम्) तू (नः-ऊत्या) हमारी रक्षा हेतु (राधांसि चोदय) संसिद्ध धनों को प्रेरित कर (अस्य रायः-रथीः-असि) इस अभीष्ट धनैश्वर्य का तू रमणकर्ता—धनस्वामी या धन रथ का ईरयिता—प्रेरक प्रदाता है (तुचे तु नः-गाधं विदा) सन्तानोत्पादन के लिये “तुक् ‘तुच्’ अपत्यनाम” [निघं॰ २.२] तो जो प्रतिष्ठारूप वीर्य को प्राप्त करा संयत कर “गाधृप्रतिष्ठालिप्सयोर्ग्रन्थे च” [भ्वादि॰]॥

    भावार्थ

    परमात्मा अद्भुत देव है वह हमें बसने के साधन देता है और संसिद्ध भोग धनों को और भोग साधनों को भी प्रेरित करता है, वह रमणीय धन का स्वामी है। हमारे शरीर के अन्दर मूल धातु वीर्य को संयत करने का बल देता है वह जीवन का स्नेह है स्नेह से ही ज्योति आती है मृत्युरूप तमः को हटाती है॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—तृणपाणिः (समित्पाणि के समान तृणपाणि—भारी भेंट भी परमात्मा के लिये तृण समान है उसके वरदान के सम्मुख, ऐसा निरभिमान उपासक)॥<br>

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    विषय

    यह [ ज्ञानरूप ] धन

    पदार्थ

    हे (वसो)=सबके बसानेवाले न कि उजाड़नेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमें (ऊत्या )= रक्षा के हेतु से [यहाँ हेतु में तृतीया है] (चित्र:) = ज्ञान देनेवाले हैं। प्रभु जीवों के उत्तम निवास के लिए शतशः साधन जुटाते हैं, परन्तु जीव अनका ठीक प्रयोग न करके कई बार लाभ के स्थान पर अपनी हानि कर बैठता है। प्रभु ने जीव को अपनी रक्षा के लिए सर्वोत्तम साधन बुद्धि दी है। देव जिसका नाश चाहते हैं उसकी बुद्धि हर लेते हैं,( 'बुद्धिनाशात् प्रणश्यति') बुद्धि गयी तो मनुष्य गया।

    इसलिए हे प्रभो! आप हमें (राधांसि) = सर्वकार्यसाधक ज्ञानरूप धन प्राप्त कराइए [राध संसिद्धौ]। यह ज्ञानरूप धन हमारे पास होगा तो हम संसार में सफल-ही-सफल होंगे। ('बुद्धिस्तु मा गान्मम') = मेरी बुद्धि न जाए। इस ज्ञानरूप धन के लिए मैं और किससे याचना करूँ? (अस्य रायः) = इस धन के तो (अग्ने त्वम्) = हे प्रभो! आप ही (रथी: असि)= नियन्ता स्वामी हैं। इसे तो आप ही प्राप्त कराएँगे । लौकिक धन तो और भी दे सकते हैं, यह उत्कृष्ट धन तो आपकी कृपा से ही प्राप्त होता है।

    आप (नः) = हमारे (तुचे) युवक सन्तानों के लिए भी (गाधम्) = गम्भीर ज्ञान को (विदा) = प्राप्त कराइए। युवकों में जोश होता है, गम्भीरतापूर्वक न विचारने से व बदले की भावना से वे अकार्य कर बैठते हैं। तुच् शब्द तुर्वी धातु से बना है जिसके अर्थ 'हिंसा, वृत्ति और पूर्ति' है। सम्मिलित अर्थ बनता है - हिंसा के द्वारा अपनी जीविका की पूर्ति करने में संकोच न करनेवाला। यौवन के मद में ऐसा करने की सम्भावना होती है, अतः प्रार्थना है कि हमारे युवकों को गम्भीर ज्ञान दीजिए; वे बदले की भावना में न बह जाएँ ।

    इस गम्भीर ज्ञान को महत्त्व देने पर ही हम सच्ची शान्ति फैला सकेंगे और तभी हम इस मन्त्र के ऋषि 'शंयु' होंगे। ऐसा न हो कि हम सोने-चाँदी को ही महत्त्व देनेवाले बने रहें और अन्त में यह अनुभव करें कि हम तो 'तृणपाणि' ही रह गये।

    भावार्थ

    प्रभो! ज्ञानरूप धन तो आप ही दे सकते हैं। आप हमें और हमारे युवकों को गम्भीर ज्ञान प्राप्त कराइए ।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = हे ( वसो ) = सब  को बसाने वाले अग्ने ! ( त्वं ) = तू  ( चित्रः ) = नाना शक्ति सम्पन्न, दर्शनीय ( ऊत्या ) = अपने रक्षासामर्थ्य से ( राधांसि ) = धनों, बलों, सामर्थ्यो को ( नः चोदय ) = हमारे प्रति प्रेरित कर । ( त्वं ) = तू ( अस्य ) = इस ( रायः ) = धन ऐश्वर्य का ( रथी:) = रथ में बैठे महारथी के समान विजेता या रस ग्रहण करनेहारा ( असि ) = है ।  और तू ( नः ) = हमारे ( तुचे ) = सन्तान के लिये ( गाधं तु ) = प्रतिष्ठा ऐश्वर्य को भी ( विदाः ) = प्राप्त करा ।  

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - तृणपाणि: ।

    छन्दः - बृहती।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरो धनं प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (वसो) निवासक (अग्ने) परमात्मन् ! (चित्रः२) अद्भुतगुणकर्मस्वभावः, पूज्यः, दर्शनीयो वा (त्वम् ऊत्या) रक्षया सार्धम् (नः) अस्मभ्यम् (राधांसि३) विद्यासुवर्णचक्रवर्तिराज्यमोक्षादि-धनानि (चोदय) प्रेरय। (त्वम् अस्य) एतस्य दृश्यमानस्य (रायः) लौकिकस्य पारमार्थिकस्य च धनस्य (रथीः४) स्वामी। अत्र छन्दसीवनिपौ च वक्तव्यौ।’ अ० ५।२।१०९ अनेन मत्वर्थे रथशब्दाद् ईप्रत्ययः। ततश्च ङ्यन्ताभावाद् हल्ङ्याब्भ्यो०’ अ० ६।१।६८ इति सोर्लोपो न। (असि) वर्तसे। अतः (नः) अस्मभ्यम्, (तुचे) अस्माकं पुत्रपौत्राद्याय अपत्याय च। तुग् इत्यपत्यनाम। निघं० २।२। (तु५) क्षिप्रम् अवश्यं वा (गाधम्)६ तस्य पूर्वोक्तस्य धनस्य विलोडनम् अपरिमितोपलब्धिमिति भावः। गाहू विलोडने, घञ्, हकारस्य धकारश्छान्दसः। (विदाः) प्रापय। विद्लृ लाभे। लेटि मध्यमैकवचने लेटोऽडाटौ।’ अ० ३।४।९४ इत्याटि रूपम् ॥७॥

    भावार्थः

    हे जगदीश्वर ! सर्वेषां प्राणिनां नक्षत्रग्रहोपग्रहादीनां च निवासकत्वात् त्वं वसुरुच्यसे। तादृशस्त्वं जगति दृश्यमानानां रजतहिरण्यमुक्ता-मणिहीरकादीनां, कन्दमूलफलादीनां, दुग्धदधिनवनीतादीनाम्, अहिंसासत्यास्तेयादीनां, शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायादीनां, धर्मार्थकाम- मोक्षादीनां च धनानां परमोऽधिपतिरसि। त्वं कृपयास्मासु पुरुषार्थं निधेहि येन वयमपि तेषां भौतिकाध्यात्मिकानां धनानामधिपतयो भवितुं पारयेमहि ॥७॥

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    O gracious God, the abode of all. Thou art Wonderful, with The benign help, send us Thy bounties. Thou art the charioteer of earthly wealth, find rest and safety for our progeny.

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    Meaning

    Agni, wonderful lord of versatile action, giver of shelter and security of the home, with protection and advancement, inspire and raise our means and materials for success and achievement. O lord of knowledge and vision, you are the guide and pilot of the chariot and wealth and honours of this generation. Give us the message and inspiration of peace, progress and security for our children. (Rg. 6-48-9)

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    Translation

    O All supporting Gracious God: Thou art Wonderful with Thy Protective power. Grant unto us material and spiri- tual Wealth in the form of wisdom, peace and bliss. Thou ‘art the Lord and Charioteer of all this Wealth. Grant prosperity, honour and stof 1070 our progency.

    Comments

    उषाः-उष-दाहे उषति-दहति सवमज्ञानमित्युषाः विशुद्धप्रज्ञा, राधांसि- राघ-संसिद्ावितिधातोः कायसाधकानिभोतिकाध्यात्मिकधनानि 1 

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    Translation

    O wonderful Lord, giver of homes and shelter, encourage us by your protection, and by rewarding riches. You are the conveyer, O adorable Lord, of earthly wealth; may you quickly bestow safety and respect to our children. (Cf. S. 1623; Rv VI.48.9)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (चित्र वसो अग्ने) હે અદ્ભુત ગુણ શક્તિ સંપન્ન તથા સર્વની અંદર વાસ કરનાર પરમાત્મન્ ! (त्वम्) તું (नः उत्या) અમારી રક્ષા માટે (राधांसि चोदय) સર્વ સાધક ધનોને પ્રેરિત કર; (अस्य रायः रथीः असि) એ અભીષ્ટ ધન ઐશ્વર્યનો તું રમણકર્તા-ધનનો સ્વામી અર્થાત્ ધનરૂપ રથનો ઈરયિતા = પ્રેરક પ્રદાતા છે. (तुचे तु नः गाधं विदा) સંતાનો ઉત્પત્તિને માટે તો જે પ્રતિષ્ઠારૂપ વીર્યને પ્રાપ્ત કરાવીને સંયત કર. (૭)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા અદ્ભુત દેવ છે, તે અમને નિવાસ માટેના સાધન આપે છે અને સંસિદ્ધ ભોગ ધનોને તથા ભોગ સાધનોને પણ પ્રેરિત કરે છે, તે રમણીય ધનનો સ્વામી છે. અમારા શરીરની અંદર મૂલ ધાતુ વીર્યને સંયત કરવાનું બળ પ્રદાન કરે છે, તે જીવનનો સ્નેહ છે, સ્નેહથી જ જ્યોતિ પ્રાપ્ત થાય છે અને મૃત્યુરૂપ તમ-અંધકારને દૂર કરે છે. (૭)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بھگوان ہمارے رتھی

    Lafzi Maana

    ہے (وسو) گھٹ گھٹ بای اگنے پرمیشور! (توّم) آپ (چِترہ) حیران کن طاقتوں اور عجائبات کے مالک ہیں (اُدتیا) اپنی رکھشا شکتی کے ساتھ (رادھا نسی) دھنوں، بلوں اور وِدّیاؤں کو (نہ چودیہ) ہمارے لئے پریرت کریں۔ حاصل کرائیں۔ آپ (اسیہ رایہ) اس ادھیاتم دھن روُحانی خزانے کو بھی (رتھی) رتھ بان کی طرح لا کر دینے والے ہیں (نہ توچے) ہماری سنتانوں کے لئے بھی (گادھم توُ وِدا) عزّت، توقیر اور ایشوریہ کو پراپت کرائیں۔
     

    Tashree

    تشریح: ارجن کے رتھ بان مہاراج کرشن کی طرح بھگوان ہمارے رتھی مہارتھی ہیں، جو اُن پر بھروسہ رکھ کر چلتے ہیں اور اُن کی آگیا پالن میں رہتے ہیں وہ دیالو ایشور اُنہیں اور اُن کے بال بچوں، اہلِ و عیال کو سہارا دے کر زرو مال، علم اور بھکتی کی لافانی دولت سے مالا مال کر دیتا ہے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे जगदीश्वरा! सर्व प्राण्यांचे व नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह इत्यादींचा निवासक असल्यामुळे तुला वसु म्हटले जाते. तसेच चांदी-सोने-मोती-मणी-हिरे इत्यादी, कंद-मूल-फल इत्यादी, दूध-दही-लोणी इत्यादी, अहिंसा-सत्य-अस्तेय इत्यादी शौच-संतोष-तप-स्वाध्याय इत्यादी, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इत्यादी धनाचा तू परम अधिपती आहेस. तू कृपा करून आमच्यामध्ये पुरुषार्थ उत्पन्न कर. ज्यामुळे आम्हीही त्या भौतिक व आध्यात्मिक धनाचे अधिपती बनावे ॥७॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात परमेश्वराला धनासाठी प्रार्थना केली आहे. -

    शब्दार्थ

    हे (वको) निवासक (अग्ने) परमात्मन (चित्र:) अद्भुत गुण, कर्म आणि स्वभाव असणारे, पूज्य आणि दर्शनीय (त्वम्) आपण (ऊत्या) आपल्या रक्षण सामर्थ्यासह (न:) आम्हाला (राधांसि) विश्वा, सुवर्ण, चक्रवर्तीशक्य, मोक्ष आदी धन प्राप्त करण्यासाठी प्रेरित करा. (आपल्या प्रेरणेमुळे आम्हाला हे सर्व मिळावे.) (त्वम्) आपण (अस्य) या दृश्यमान (राय:) लौकिक आणि पारमार्थिक धनाचे (रधी:) स्वामी (असि) आहात. यामुळे (न:) आम्हाला व (तुवे) आमच्या पुत्रपौत्रादींना (तू) शाघमेव आणि अवश्य (सधनम्) पूर्वपर्णित धन इच्छेप्रमाणे म्हणजे अपरिमित धन संपत्ती (विदा:) प्राप्त करून द्या. (ही प्रार्थना.) ।।७।।

    भावार्थ

    हे जगदीश्वर, आपण सर्व प्राण्यांचे आणि नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह आदींचे निवासक (म्हणजे त्यांना त्यांच्या कक्षेत व स्थानात स्थिर वा गतिमान करणारे आहात, म्हणून आपणास वसु म्हणतात. या संसारामध्ये दिसणारे सोन-चांदी, मोती, मणी, हीरक आदी धनाचे आपणच स्वामी आहात. कंद, मूल, फळ आदी पदार्थ दूध, दही, लोणी आदी खाद्यपदार्थ शौच, संतो, तप, स्वाध्याय आदीचे तसेच धर्म, अर्थ, काम आणि मोक्ष या सर्व धनांचे आपणच अधिपती आहात. कृपा करून आमच्या स्वभावात पुरुषार्थ वृत्ती उत्पन्न करा. कारण की, त्यामुळे आम्हीदेखील त्या भौतिक व आध्यात्मिक धनाचे अधिपती होऊ शकू. ।।७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    (அக்னியே)! உன் அற்புத ரட்சையோடு ஐசுவர்யங்களை எங்களுக்குத் தூண்டவும், நீ பூமியின் - பொருள்களின் (சாரதியாகும்), எங்கள் சுக்கிலத்திற்கு துரிதமாய் நிலையை யளிக்கவும்

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