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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 441
ऋषिः - त्रसदस्युः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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शं꣢ प꣣दं꣢ म꣣घ꣡ꣳ र꣢यी꣣षि꣢णे꣣ न꣡ काम꣢꣯मव्र꣢तो꣡ हि꣢नोति꣣ न꣡ स्पृ꣢शद्र꣣यि꣢म् ॥४४१
स्वर सहित पद पाठश꣢म् । प꣣द꣢म् । म꣣घ꣢म् । र꣣यीषि꣡णे꣢ । न । का꣡म꣢꣯म् । अ꣣व्रतः꣢ । अ꣣ । व्रतः꣢ । हि꣣नोति । न꣢ । स्पृ꣣शत् । रयि꣢म् ॥४४१॥
स्वर रहित मन्त्र
शं पदं मघꣳ रयीषिणे न काममव्रतो हिनोति न स्पृशद्रयिम् ॥४४१
स्वर रहित पद पाठ
शम् । पदम् । मघम् । रयीषिणे । न । कामम् । अव्रतः । अ । व्रतः । हिनोति । न । स्पृशत् । रयिम् ॥४४१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 441
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 10;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 10;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में यह विषय है कि धनादि को कौन प्राप्त करता है।
पदार्थ
हे मेरे अन्तरात्मा रूपी इन्द्र ! (शम्) सुख, शान्ति, (पदम्) उच्च पद, (मघम्) आध्यात्मिक और भौतिक धन (रयीषिणे) ऐश्वर्यप्राप्ति की महत्त्वाकांक्षावाले को ही मिलता है। (अव्रतः) व्रतरहित और अकर्मण्य मनुष्य (कामम्) किसी उच्च आकांक्षा को (न हिनोति) नहीं प्राप्त होता, और (न) न ही (रयिम्) ऐश्वर्य को (स्पृशत्) स्पर्श कर पाता है ॥५॥
भावार्थ
धन, सुख, शान्ति और राजा, मन्त्री, न्यायाधीश आदि के उच्च पद एवं मोक्षपद को जो पाना चाहते हैं, उन्हें उसके लिए तीव्र महत्त्वाकांक्षा मन में धारण करके उसकी प्राप्ति के लिए महान् प्रयत्न करना चाहिए ॥५॥
पदार्थ
(रयीषिणे) उपासना द्वारा वैश्वानर—परमात्मा को चाहने वाले या प्राप्त होने वाले के लिए “एष वै रयिर्वैश्वानरः” [श॰ १०.६.१.५] (शं पदं मघम्) कल्याणकर पद और कल्याणकर धन—मोक्ष सुख है “मघं धननाम” [निघं॰ २.१०] (अव्रतः) व्रतहीन—सत्यसङ्कल्पहीन जन ( कामं न हिनोति) अभीष्ट परमात्मा को नहीं प्राप्त करता है “हिन्वन्ति-आप्नुवन्ति” [निरु॰ १.२०] (रयिं न स्पृशत्) उस परमात्मा को वह छू भी नहीं सकता है।
भावार्थ
उपासना द्वारा परमात्मा को चाहने वाले या प्राप्त होने वाले के लिये शान्त कल्याणकर मोक्षपद और कल्याणकर मोक्षधन हैं। किन्तु सत्यसङ्कल्प आदि से रहित के लिये कभी नहीं हैं, वह तो स्पर्श भी नहीं कर सकता है॥५॥
विशेष
ऋषिः—त्रसदस्युः (निज उद्वेग—अशान्ति को क्षीण करने वाला उपासक)॥ देवताः—इन्द्र (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥<br>
विषय
पूर्ण शान्ति व ऐश्वर्य
पदार्थ
(शं पदम्) = पूर्ण शान्ति के स्थान के स्थान को, जोकि (मघम्) = निर्मल ऐश्वर्य से पूर्ण है, उसे (रयीषिण:) = [ईष = to give] धन को दे डालनेवाले- दानी प्राप्त करते हैं। पूर्ण शान्ति को ब्रह्म को वही प्राप्त करता है जो धन के प्रति आसक्त नहीं होता। जो भी व्यक्ति (अव्रतः) = इस दान के व्रत को धारण नहीं करता वह (कामम्) = बेशक कितना ही हाथ-पैर मारे (न हिनोति) = इस शान्ति के पद को प्राप्त नहीं करता । धन के संग्रह में शान्ति है भी तो नहीं। यह अव्रत पुरुष उस ऐश्वर्यपूर्ण शान्त स्थान को प्राप्त भी क्यों कर करे (न स्पृशत् रयिम्) = इससे धन का दान भी तो नहीं किया। [स्पर्शनम् = दानम्] । धन का दान करे, प्रकृति में आसक्त न हो, तभी उस शान्त पद को प्राप्त कर सकता है।
भावार्थ
शान्ति की प्राप्ति ब्राह्मीभाव में है, यह भाव सर्वलोकहित में रत होने से प्राप्त होता है। उसी भूतहित का प्रतीक दान है।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( शं ) = शान्तिकारक ( पदं ) = स्थान और ज्ञान, ( मघं ) = धन धान्य और ऋतु योगादि का उत्कृष्ट फल पहले ( रयीषिणे ) = सुखसामग्री या ऐश्वर्य को अन्यों के लिये परोपकार में लगा देने वाले के लिये होता है । ( अव्रतः ) = निकम्मा, मूर्ख, तपस्या आदि न करने हारा, अकर्म और निषिद्ध कर्म करने हारा पुरुष ( कामम् ) = यथेष्ट फल को ( न हिनोति ) = नहीं प्राप्त कर पाता, क्योंकि ( रयिम् ) = वह धन धान्य को ( न स्पृशत् ) = छूता भी नहीं अर्थात् दान भी नहीं करता ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - नोपलभ्यते ।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः -पङ्क्तिः।
स्वरः - पञ्चमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ धनादिकं कः प्राप्नोतीत्याह।
पदार्थः
हे इन्द्र मदीय अन्तरात्मन् ! (शम्) सुखम्, शान्तिः, (पदम्) उच्चपदम्, (मघम्) आध्यात्मिकं भौतिकं च धनम् (रयीषिणे) धनेच्छुकाय, धनादिप्राप्तिमहत्त्वाकाङ्क्षिणे एव भवति। (अव्रतः) व्रतरहितः अकर्मा च जनः (कामम्) उच्चाकाङ्क्षाम् (न हिनोति) न प्राप्नोति। हि गतौ वृद्धौ च। (न) नैव च (रयिम्) ऐश्वर्यम् (स्पृशत्) स्पृशति, प्राप्नोति। स्पृशतेर्लेटि रूपम् ॥५॥
भावार्थः
धनं, सुखं, शान्तिं, नृपत्वसचिवत्वन्यायाधीशत्वाद्युच्चं पदं, मोक्षपदं च ये प्राप्तुमिच्छन्ति तैस्तदर्थं तीव्रां महत्त्वाकाङ्क्षां मनसि निधाय तत्प्राप्त्यर्थं महान् प्रयत्नोऽनुष्ठेयः ॥५॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Mental peace, knowledge, wealth are attained by him who longs for riches to be given in charity. A vow less person, not disposed to charity, acquires not the cherished desire, nor wins his way to riches.
Meaning
Peace, honour, prosperity is only for the man of charity, benevolence and self sacrifice. The man void of the discipline of liberality does not stir the process of love and charity, not even the circulation of wealth. Wealth and prosperity he does not even touch.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (रयीषिणे) ઉપાસના દ્વારા વૈશ્વાનર-પરમાત્માને ચાહનાર અથવા પ્રાપ્ત થનારને માટે (शं पदं मघम्) કલ્યાણ કર પદ અને કલ્યાણ કર ધન-મોક્ષ સુખ છે. (अव्रतः) વ્રત રહિત-સત્ય સંકલ્પ રહિત મનુષ્ય (कामं न हिनोति) અભીષ્ટ પરમાત્માને પ્રાપ્ત કરી શકતો નથી. (रयिं न स्पृशत्) તે પરમાત્માને સ્પર્શ પણ કરી શકતો નથી. (૫)
भावार्थ
ભાવાર્થ : ઉપાસના દ્વારા પરમાત્માને ચાહનાર અથવા પ્રાપ્ત થનારને માટે શાંત કલ્યાણકર મોક્ષપદ અને કલ્યાણકર મોક્ષધન છે; પરન્તુ સત્ય સંકલ્પ રહિત મનુષ્યને માટે કદીપણ નથી, તે તો તેનો સ્પર્શ પણ કરી શકતો નથી. (૫)
उर्दू (1)
Mazmoon
نیم برت رہت اِنسان کچُھ نہیں پا سکتا!
Lafzi Maana
شانتی پد دھام، گیان دولت اور روحانی دھن اُن کو حآصل ہوتا ہے، جو کہ ملے ہوئے دھن کو خدمتِ خلق میں سدا وقف کئے رکھتے ہیں، دھرم، کرم، ریاضت، دان وغیرہ سے مبّرا انسان، اِن روحانی مقامات اور اشیاء کو حاصل کرنا تو کُجا، وہ چھُو بھی نہیں سکتا۔
Tashree
نیم برت کو چھوڑ انسان پاسکے کچھ بھی نہیں، دولتِ دُنیاوی نہ روُحانی حاصل ہوں کبھی۔
मराठी (2)
भावार्थ
धन, सुख, शांती, तसेच राजा, मंत्री, न्यायाधीश इत्यादींचे उच्चपद व मोक्षपद जे लोक प्राप्त करू इच्छितात, त्यांनी त्यासाठी तीव्र महत्त्वाकांक्षा मनात धारण करून त्याच्या प्राप्तीसाठी प्रयत्नाची पराकाष्ठा करावी ॥५॥
विषय
कोणाला धन मिळते, याविषयी -
शब्दार्थ
हे माझ्या अंतरात्मा म्हणजेच हे इन्द्र, (शम्) (हे ध्यानात असू दे की) सुख, शांती, (पदम्) उच्च पद तसेच (मधम्) आध्यात्मिक व भौतिक संपत्ती (रयीषिणे) ऐश्वर्य प्राप्तीची कामना बाळगणाऱ्या व्यक्तीलाच मिळत असते. (अव्रतः) कोणतेही व्रत (संकल्प वा दृढ निश्चय) न स्वीकारणारा, निरुद्योगी माणूस (कामम्) आपली कोणतीही तीव्र महत्त्वाकांक्षा (न हिवो ति) प्राप्त करू शकत नाही. अशा त्या अकर्मण्य (रिकाम टेकडा) माणसाला (रयिम्) ऐश्वर्य - संपदेला (न) (स्पृशत्) हात लावण्याची संधीही मिळत नाही.।। ५।।
भावार्थ
धन, सुख, शांती यांची जे लोक आशा - अपेक्षा बाळगळत अथवा जे लोक राजा, मंत्री, न्यायादीश आदी उच्च पद वा मोक्ष पग प्राप्तीची इच्छा करतात, त्यांनी त्यासाठी तीव्र आकांक्षा त्याप्रमाणे थोर यत्न केले पाहिजेत.।। ५।।
तमिल (1)
Word Meaning
ஐசுவரியத்தை விரும்பும் சனங்கள் சுகமான ஸ்தானத்தையும் செல்வத்தையும் அடைகிறார்கள். [1]விரதமற்றவர்கள் அடைவதில்லை ; தாமும் விருப்பமான ஐசுவரியத்தைப் பரிசிப்பதில்லை
FootNotes
[ 1 ]விரதமற்றவர்கள்- சங்கற்பமற்றவர்கள்
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