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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 507
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
2
अ꣣या꣡ सो꣢म सु꣣कृत्य꣡या꣢ म꣣हा꣢꣫न्त्सन्न꣣꣬भ्य꣢꣯वर्धथाः । म꣣न्दान꣡ इद्वृ꣢꣯षायसे ॥५०७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣या꣢ । सो꣣म । सुकृत्य꣡या꣢ । सु꣣ । कृत्य꣡या꣢ । म꣣हा꣢न् । सन् । अ꣣भि꣢ । अ꣣वर्धथाः । मन्दानः꣢ । इत् । वृ꣣षायसे ॥५०७॥
स्वर रहित मन्त्र
अया सोम सुकृत्यया महान्त्सन्नभ्यवर्धथाः । मन्दान इद्वृषायसे ॥५०७॥
स्वर रहित पद पाठ
अया । सोम । सुकृत्यया । सु । कृत्यया । महान् । सन् । अभि । अवर्धथाः । मन्दानः । इत् । वृषायसे ॥५०७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 507
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 11
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 11
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में सोम परमात्मा क्या करता है, यह वर्णित है।
पदार्थ
हे (सोम) रसागार परमेश्वर ! (महान् सन्) महान् होते हुए आप (अया) इस (सुकृत्यया) स्तुति-गान रूप शुभ क्रिया से (अभ्यवर्द्धथाः) हृदय में वृद्धि को प्राप्त हो गये हो। आप (मन्दानः) आनन्द प्रदान करते हुए (इत्) सचमुच (वृषायसे) वृष्टिकर्ता बादल के समान आचरण करते हो, अर्थात् जैसे बादल जल बरसाता हुआ सब प्राणियों को और ओषधि-वनस्पति आदियों को तृप्त करता है, वैसे ही आप आनन्द की वर्षा करके हमें तृप्त करते हो ॥११॥
भावार्थ
जैसे-जैसे स्तोता स्तुतिगान से परमेश्वर की आराधना करता है, वैसे-वैसे परमेश्वर आनन्द की वृष्टि से उसे प्रसन्न करता है ॥११॥
पदार्थ
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (महान् सन्) महान् होता हुआ (अया सुकृत्यया) इस उपासना से (अभ्यवर्धथाः) हमें बढ़ा (मन्दानः) स्तूयमान—अर्च्यमान हुआ “मदि स्तुति......” [भ्वादि॰] “मन्दते अर्चतिकर्मा” [निघं॰ ३.१४] ‘कर्मणि कर्तृप्रत्ययः’ (इत्) ही (वृषायसे) सुखवर्षक मेघ के समान हो जाता है।
भावार्थ
हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! क्या कहना तू महान् होता हुआ हमारी इस स्तुति उपासना से हमें बढ़ाता है, हमारे द्वारा स्तुत किया जाता हुआ ही सुखवर्षक बन जाता है, धन्य हो आपकी आर्द्रता उदारता को॥११॥
विशेष
ऋषिः—कविः (क्रान्तदर्शी अध्यात्मवक्ता)॥<br>
विषय
सोम का महान् सुकर्म
पदार्थ
गत मन्त्र का ‘काश्यप' यहाँ 'कवि' है - यह क्रान्तदर्शी है, भार्गव है- तपस्या से अपना परिपाक करनेवाला है। यह सोम से कहता है कि हे (सोम) = सोम! तू (अया) = इस (सुकृत्यया) = उत्तम कर्म के द्वारा–मेरे जीवन को उल्लासमय, शक्तिशाली व दिव्य गुणयुक्त बनाने के द्वारा महान् (सन्) = [मह पूजायाम्] मुझे पूजाप्रवण बनाता हुआ (अभि अवर्धथा:) = सब दृष्टिकोणों से बढ़ाता है। संयमी पुरुष का जीवन प्रभुपूजा की ओर झुकाववाला होता है और उसका जीवन शरीर, मन व मस्तिष्क सभी दृष्टिकोणों से उन्नतिवाला होता है।
हे सोम! (मन्दानः इत्) = निश्चय से मुझे उल्लासमय बनाता हुआ (वृषायसे) = मेरे जीवन में शक्तिशाली के रूप में आचरण करता है। मेरा जीवन निर्बल नहीं होता। सब प्रकार की निर्बलता से दूर होकर आज मैं प्रभु को पाने के योग्य बना हूँ।
भावार्थ
सोम के द्वारा मेरी सर्वांगीण उन्नति होती है।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( सोम ) = आत्मन् ! ( अया ) = इस ( सुकृत्यया ) = उत्तम सदाचाररूप विधि से तू ( महान् सन् ) = बड़ा होता हुआ ( अभि अवर्धथा: ) = साक्षात् बढ़ा और ( मन्दानः ) = हर्ष से ( इद् ) = ही ( वृषायसे ) = मेघ के समान नाद कर ।
टिप्पणी
५०७–‘सोम’, ‘महश्चिदभ्यवर्धत', 'मन्दान उद्वृषायते' इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - कवि:।
देवता - पवमानः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सोमः परमात्मा किं करोतीत्याह।
पदार्थः
हे (सोम) रसागार परमेश्वर ! (महान् सन्) पूज्यो भवन् त्वम् (अया) अनया (सुकृत्यया) स्तुतिगानरूपया शोभनक्रियया (अभ्यवर्धथाः) हृदयेऽभिवृद्धिं गतोऽसि। त्वम् (मन्दानः) आनन्दं प्रयच्छन् (इत्) सत्यमेव (वृषायसे) वृषो वर्षको मेघः इवाचरसि, यथा मेघो जलं वर्षन् सर्वान् प्राणिनः ओषधिवनस्पत्यादींश्च तर्पयति तथैव त्वमानन्दवर्षणेनास्मान् तर्पयसीत्यर्थः ॥११॥
भावार्थः
यथा यथा स्तोता स्तुतिगानेन परमेश्वरमाराध्नोति तथा तथा परमेश्वर आनन्दवर्षणेन तं प्रफुल्लयति ॥११॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।४७।१, ‘अया सोमः सुकृत्यया महश्चिदभ्यवर्धत। मन्दान उद्वृषायसे’ ॥ इति पाठः।
इंग्लिश (2)
Meaning
O soul, with this lofty character, being great, hast thou progressed? Full of happiness. Thou desirest to spread knowledge.
Meaning
This Soma, lordly Spirit of peace and joy, feels great by this yajnic act of homage and, happy and exalted, loves to advance and exalt the celebrants. (Rg. 9-47-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (महान् सन्) મહાન હોવા છતાં (अया सुकृत्यया) એ ઉપાસનાથી (अभ्यवर्धथाः) અમારી વૃદ્ધિ કર (मन्दानः) સ્પૂયમાન-અર્ધમાન બનીને (इत्) જ (वृषायसे) સુખ-વર્ષક મેઘની સમાન બની જાય છે. (૧૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મનું-શું કહું, તું મહાન હોવા છતાં અમારી એ સ્તુતિ, ઉપાસનાથી અમારી વૃદ્ધિ-ઉન્નતિ કરે છે, અમારા દ્વારા સ્તુતિ કરતાં જ સુખવર્ષક બની જાય છે, આપની આર્દ્રતા અને ઉદારતાને ધન્ય છે. (૧૧)
उर्दू (1)
Mazmoon
دھنیہ ہے تیری مہما!
Lafzi Maana
امرت سوم پرمیشور! مہان ہوتا ہوا بھی تُو ہماری اس سُتتی اُپاسنا اور حمد و ثنا سے ہمیں بڑھاتا ہے۔ جب ہم تیری مہما گاتے ہیں تُو سُکھ کی ورشا کر ہمیں آنندت کر دیتا ہے، دھنیہ ہے تیری مہما اور مہانتا۔
Tashree
امرت سوم مہان پربُھو ور ہم کو آپ بڑھاتے ہو، جب ہم تیری مہما گاتے سُکھ شانتی برساتے ہو۔
मराठी (2)
भावार्थ
जसजसा प्रशंसक स्तुतिगानाने परमेश्वराची आराधना करतो, तसतसा परमेश्वर आनंदाची वृष्टी करून त्याला प्रसन्न करतो ॥११॥
विषय
सोम परमेश्वर काय करतो, याविषयी -
शब्दार्थ
हे (सोम) रसागार परमेश्वर, (महान् सन्) तुम्ही महान असूनही (अया) या आमच्या (सुकृत्यया) स्तुती- गानरूप शुभ कर्मामुळे आमच्या (अभ्यवर्द्वथाः) हृदयात वृद्धिंगत झाला आहे. (तुमचे ध्यान अधिक तीव्रतेने आमच्या हृदयात जागृत झाले आहे.) तुम्ही (मन्दानः) आम्हाला आनंद देत (इत्) खरोखर (वृषायसे) वृष्टिकर्ता मेघाप्रमाणे आचरण करता म्हमजे जसे मेघ वृष्टी करीत सर्व प्राण्यांना व औषधी वनस्पतींना तृप्त करतो. तद्वत तुम्हीही आम्हाला आनंद वृष्टीद्वारे तृप्त करता.।। ११।।
भावार्थ
स्तोता जसे जसे स्तुती -गानाने जसे जसे परमेश्वराची ाराधना करतो, तसे तसे परमेश्वर आनंदाची वर्षा करून त्याला आनंदित करतो.।। १।।
तमिल (1)
Word Meaning
சோமனே! இந்த சுபமான செயல்களால் நீ பெரியவனாயிருந்தும் அபிவிருத்தியை அடையப்பட்டுள்ளாய். ஆனந்தத்தில் நீ காளையைப் போல் கர்ச்சனை செய்கிறாய்.
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