Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 525
ऋषिः - पराशरः शाक्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
3
ति꣣स्रो꣡ वाच꣢꣯ ईरयति꣣ प्र꣡ वह्नि꣢꣯रृ꣣त꣡स्य꣢ धी꣣तिं꣡ ब्रह्म꣢꣯णो मनी꣣षा꣢म् । गा꣡वो꣢ यन्ति꣣ गो꣡प꣢तिं पृ꣣च्छ꣡मा꣢नाः꣣ सो꣡मं꣢ यन्ति म꣣त꣡यो꣢ वावशा꣣नाः꣢ ॥५२५॥
स्वर सहित पद पाठति꣣स्रः꣢ । वा꣡चः꣢꣯ । ई꣣रयति । प्र꣢ । व꣡ह्निः꣢꣯ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । धी꣣ति꣢म् । ब्र꣡ह्म꣢꣯णः । म꣣नीषा꣢म् । गा꣡वः꣢꣯ । य꣣न्ति । गो꣡प꣢꣯तिम् । गो । प꣣तिम् । पृच्छ꣡मा꣢नाः । सो꣡म꣢꣯म् । य꣣न्ति । मत꣡यः꣢ । वा꣣वशानाः꣢ ॥५२५॥
स्वर रहित मन्त्र
तिस्रो वाच ईरयति प्र वह्निरृतस्य धीतिं ब्रह्मणो मनीषाम् । गावो यन्ति गोपतिं पृच्छमानाः सोमं यन्ति मतयो वावशानाः ॥५२५॥
स्वर रहित पद पाठ
तिस्रः । वाचः । ईरयति । प्र । वह्निः । ऋतस्य । धीतिम् । ब्रह्मणः । मनीषाम् । गावः । यन्ति । गोपतिम् । गो । पतिम् । पृच्छमानाः । सोमम् । यन्ति । मतयः । वावशानाः ॥५२५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 525
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में सोम नाम से परमात्मा, जीवात्मा और आचार्य का वर्णन है।
पदार्थ
प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। (वह्निः) जगत् का वहनकर्ता सोम परमेश्वर (तिस्रः वाचः) ऋग्, यजुः, साम रूप तीन वाणियों का (प्र ईरयति) प्रजाओं के कल्याणार्थ उपदेश करता है। वही (ऋतस्य) सत्यमय यज्ञ के (धीतिम्) धारण की और (ब्रह्मणः) ज्ञान के (मनीषाम्) मनन की (प्र ईरयति) प्रेरणा करता है। (गावः) पृथिवी आदि लोक अथवा सूर्यकिरण (गोपतिम्) अपने स्वामी के विषय में (पृच्छमानाः) मानो पूछते हुए (यन्ति) चले जा रहे हैं—अर्थात् मानो यह पूछ रहे हैं कि कौन हमारा स्वामी है, जो हमें सञ्चालित करता है। इसी प्रकार (मतयः) मेरी स्तुतियाँ (वावशानाः) अतिशय पुनः-पुनः चाह रखती हुई (सोमम्) रसागार परमात्मा को (यन्ति) प्राप्त हो रही हैं ॥ द्वितीय—जीवात्मा के पक्ष में। (वह्निः) शरीर का वहनकर्ता जीवात्मा (तिस्रः वाचः) ज्ञानरूप में, विचाररूप में तथा जिह्वा के कण्ठ तालु आदि के संयोग से जन्य शब्दरूप में विद्यमान त्रिविध वाणियों को (प्र ईरयति) प्रकट करता है। वही (ऋतस्य) सत्य के (धीतिम्) धारण को और (ब्रह्मणः)उपार्जित ज्ञान के (मनीषाम्) मनन को करता है। (गावः) मन-सहित पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ (पृच्छमानाः) मानो कर्तव्याकर्तव्य को पूछती हुई (गोपतिम्) इन्द्रियों के स्वामी आत्मा के पास (यन्ति) पहुँचती हैं। (मतयः) मेरी बुद्धियाँ (वावशानाः) निश्चय में साधन बनना चाहती हुई (सोमम्) ज्ञाता आत्मा के पास (यन्ति) पहुँच रही हैं ॥ तृतीय—आचार्य के पक्ष में। (वह्निः) ज्ञान का वाहक आचार्य, शिष्य के लिए (तिस्रः वाचः) त्रिविध ज्ञान-कर्म-उपासना की प्रतिपादक अथवा सत्त्व-रजस्-तमस् की प्रतिपादक, अथवा सृष्टि-स्थिति-प्रलय की प्रतिपादक, अथवा जाग्रत्-स्वप्न-सुषुप्ति की प्रतिपादक, अथवा धर्म-अर्थ-काम की प्रतिपादक वाणियों का (प्र ईरयति) उच्चारण करता है। वही (ऋतस्य) सत्य के (धीतिम्) धारण को और (ब्रह्मणः) ब्रह्म की अथवा मोक्ष की (मनीषाम्) प्रज्ञा को (प्र ईरयति) देता है। (गावः) मेरी वाणियाँ (पृच्छमानाः) ब्रह्मविद्याविषयक प्रश्न पूछती हुई (गोपतिम्) वाचस्पति आचार्य को (यन्ति) प्राप्त होती हैं। (मतयः) मेरी बुद्धियाँ (वावशानाः) ज्ञानोद्घाटन को चाहती हुई (सोमम्) ज्ञानरस के आगार, सौम्य आचार्य को (यन्ति) प्राप्त होती हैं ॥३॥ इस मन्त्र में श्लेष अलङ्कार है। प्रथम दो पक्षों में ‘गावो यन्ति गोपतिं पृच्छमानाः’ में व्यङ्ग्योत्प्रेक्षा है ॥३॥
भावार्थ
वाणियों के प्रेरक, सत्य वा यज्ञ को धारण करानेवाले, ज्ञान के प्रदाता और मन-बुद्धि आदियों के संस्कर्ता परमेश्वर, जीवात्मा तथा गुरु का सदा सेवन एवं सत्कार करना चाहिए ॥३॥
पदार्थ
(वह्निः) अध्यात्मयज्ञ का वहनकर्ता उपासक (तिस्रः-वाचः) तीन वाणियाँ—‘अ, उ, म्’ को (प्र-ईरयति) जपरूप में प्रेरित करता है (ऋतस्य) उस अध्यात्मयज्ञ की (धीतिम्) धारणा क्रिया को (ब्रह्मणः-मनीषाम्) ब्रह्म—परमात्मा की स्तुति को प्रेरित करता है (गावः-गोपतिं पृच्छमानाः-यन्ति) जैसे गौएँ गोस्वामी गोओं के पालक को अर्चित करती हुईं “पृच्छति-अर्चतिकर्मा” [निघं॰ ३.१४] उसे प्राप्त होती हैं, ऐसे (मतयः-वावशानाः सोमं यन्ति) स्तुतियाँ भी “मन्यते अर्चतिकर्मा” [निघं॰ ३.१४] बोलती हुई सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा को प्राप्त होती हैं।
भावार्थ
अध्यात्मयज्ञ का कर्ता उपासक ‘अ-उ-म्’ ओ३म् की तीन वाणियों को प्रेरित करता है—जप करता है और साथ उस अध्यात्मयज्ञ की धारणा क्रिया ब्रह्म की स्तुति को भी प्रेरित करता है—अर्थभावन को प्रेरित करता है, इस प्रकार ओम् का जप और उसका अर्थभावन करता है। एवं तीनों ‘अ, उ, म्’ वाणियाँ शान्तस्वरूप परमात्मा को ऐसे प्राप्त होती हैं जैसे गौएँ गोस्वामी को प्राप्त होती हैं॥३॥
विशेष
ऋषिः—पराशरः शाक्त्यः (शक्ति से सम्पन्न काम आदि को नष्ट करने वाला उपासक)॥<br>
विषय
प्रभु के मार्ग पर
पदार्थ
'परा शृणाति इति पराशर : ' = शत्रुओं को सुदूर नष्ट करनेवाला शक्त्य= शक्ति का पुत्र अर्थात् शक्ति का पुञ्ज यह ऋषि (वह्निः) = सब वेदवाणियों का धारण करनेवाला (तिस्रो वाच:) = ऋग्, यजुः, सामरूप तीनों वाणियों को (प्र ईरयति) = प्रेरित करता है। स्वयं उनका निरन्तर उच्चारण करता है और लोगों में उनका प्रचार करता है, लोगों को ज्ञान-कर्म व उपासना तीनों का बड़ा उत्तम उपदेश देता है। (ब्रह्मणः) = उस प्रभु को (ऋतस्य धीतिम्) = सत्य का धारण करनवाली (मनीषम्) = बुद्धि को, ज्ञान को (प्रेरयति) = प्रचारित करता है। प्रभु से दी हुई यह वेदवाणी सत्य का ही धारण करनेवाली है - यह मनुष्य को नियमित जीवन बिताने का [ऋत का] उपदेश देती है। यह पराशर स्वयं उस वेदवाणी का धारण करके औरों को उसका उपदेश देता है। =
१. (गाव:) = वेदवाणियाँ (गोपतिम्) = इन्द्रियों के पति को [गाव:=इन्द्रियाणि] (पृच्छमाना:) = पूछती हुई (यन्ति) = प्राप्त होती हैं। जिस प्रकार कोई व्यक्ति पूछते-पूछते किसी के घर जा पहुँचता है, उसी प्रकार ये वेदवाणियाँ जितेन्द्रिय के समीप पहुँच जाती हैं। दूसरे शब्दों में, यदि मैं जितेन्द्रिय बनूँगा तो ये वेदवाणियाँ मुझे प्राप्त होंगी, इनका अर्थ समझने के लिए जितेन्द्रिय होना आवश्यक है। (मतयः) = यह मननशील मनुष्य (वावशाना:) = प्रभु - प्राप्ति की प्रबल इच्छावाले (सोमं यन्ति) = उस सोम नामक प्रभु को प्राप्त करते हैं। प्रभु सोम हैं, सोम बनकर ही मनुष्य भी उसे प्राप्त करनेवाला होगा।
प्रभु की प्राप्ति के मार्ग में विघ्न तो पग-पग पर आएँगे ही। यह पराशर उन विघ्नों को दूर करता हुआ प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर आगे और आगे बढ़ता चलता है । यह शाक्त्य है-कोई भी विघ्न ऐसा नहीं जिसे यह अपनी शक्ति से दूर न कर पाए।
भावार्थ
मैं जितेन्द्रिय बनूँ, जिससे वेद वाणियों का आश्रय होऊँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( वह्निः ) = ज्ञान का वहन करने वाला ( तिस्रः वाचः ) = ऋग् यजुः, साम स्वरूप तीन वेदवाणियों को ( प्र ईरयति ) = उत्तम रूप से प्रकट करता है । ( ऋतस्य ) = सत्य, ज्ञान और यज्ञ को धारण करने वाली ( ब्रह्मणः ) = ब्रह्म या वेदज्ञ की ( मनीषां ) = मनको प्रेरणा करने वाली वाणी स्तुति को भी प्रेरित करता है । जिस प्रकार गौएं गोपाल के पास आजाती हैं उसी प्रकार ये ( गाव:) = गोरूप वेदवाणयां मानो अपना रहस्यतत्व ( पृच्छमानाः ) = पूछती हुई ( गोपतिं ) = वेदवाणियों के परिपालक विद्वान् के पास ( यन्ति ) = पहुंच जाती है ( मतयः ) = मननशक्तियां या सुन्दर विचार धाराएं भी ( वावशाना: ) = अपने अनुकूल पालक की कामना करती हुई ( सोमं ) = उस शम, दम आदि गुणसम्पन्न तत्वज्ञानी के पास ( यन्ति ) = चली जाती हैं
ऋषि यास्क के मत से वह्निरात्मा भवति । स तिस्रो वाच ईरयति प्रेरयति विद्यामतिबुद्धिमताम् । ऋतस्यात्मनः कर्माणि ब्रह्मणो मतानि।
अयमेवेतत्सर्वमनुभवति, इति आत्मगतिमाचष्टे । अर्थात्-वह्नि आत्मा है । वह तीन वाणियों को प्रेरित करता हैं विद्या, मति और बुद्धि को । ऋत अर्थात् आत्मा के कर्म ब्रह्म को अभिमत हैं । यह ही सब अनुभव करता है इस प्रकार इस मन्त्र में आत्मा की गति कही है। विवरणकार माधव के मत में विद्या अर्थात् महत् तत्व, बुद्धि अर्थात् अहंकार, मन अर्थात् प्रधानता से पांचों ज्ञानेन्द्रियां, आत्मा इनको प्रेरित करता है । ऋतरूप आत्मा को धारण करने वाली मन की प्रेरणा ब्रह्म के अनुकूल होती है । इन्द्रिय रूप गौएं गोपति आत्मा से उसको पूछती हैं अर्थात् सोमरूपमा की कामना से उसी में लीन हो जाती है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - पराशरः शाक्त्यः।
देवता - पवमानः।
छन्दः - त्रिष्टुप्।
स्वरः - धैवतः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सोमनाम्ना परमात्मानं जीवात्मानमाचार्यं च वर्णयति।
पदार्थः
प्रथमः—परमात्मपरः। (वह्निः) जगतो वोढा सोमः परमेश्वरः (तिस्रः वाचः) ऋग्यजुःसामरूपाः तिस्रो वाणीः। तेषामृग् यत्रार्थवशेन पादव्यवस्था, गीतिषु सामाख्या, शेषे यजुःशब्दः। जै० सू० २।१।३५-३७। (प्र ईरयति) प्रजानां कल्याणाय उपदिशति, स एव (ऋतस्य) सत्यमयस्य यज्ञस्य। ऋतस्य योगे यज्ञस्य योगे। निरु० ६।२२ इति निरुक्तप्रामाण्याद् ऋतं यज्ञः। (धीतिम्) धारणम्, (ब्रह्मणः) ज्ञानस्य (मनीषाम्) मननं च, प्र ईरयति उपदिशति। (गावः) पृथिव्यादयो लोकाः सूर्यकिरणाः वा (गोपतिम्) निजस्वामिनम् (पृच्छमानाः) पृच्छन्त्यः इव (यन्ति) गच्छन्ति— क्वाऽस्माकमधिपतिर्योऽस्मान् सञ्चालयतीति ज्ञीप्समाना इव पर्यटन्तीत्यर्थः। तथैव (मतयः) मम स्तुतयः (वावशानाः) अतिशयेन पुनः-पुनः कामयमानाः। वश कान्तौ यङ्-लुगन्तात् शानच्। (सोमम्) रसागारं परमात्मानम् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति ॥ अथ द्वितीयः—जीवात्मपरः। (वह्निः) शरीरस्य वोढा जीवात्मा (तिस्रः वाचः) ज्ञानरूपे, विचाररूपे, जिह्वायाः कण्ठताल्वादिसंयोगजन्यशब्दरूपे च विद्यमानाः त्रिविधाः वाणीः (प्र ईरयति) प्रकटयति। स एव (ऋतस्य) सत्यस्य (धीतिम्) धारणम्, (ब्रह्मणः) उपार्जितज्ञानस्य (मनीषाम्) मननं च करोति। (गावः) मनःसहितानि पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि (पृच्छमानाः) कर्तव्याकर्तव्यं पृच्छन्त्यः इव (गोपतिम्) इन्द्रियाणां स्वामिनम् आत्मानम् (यन्ति) उपगच्छन्ति। (मतयः) मदीयाः बुद्धयः (वावशानाः) अध्यवसायात्मके ज्ञाने साधनीभवितुं कामयमानाः इव (सोमम्) ज्ञातारम् आत्मानम् (यन्ति) उपगच्छन्ति ॥ अथ तृतीयः—आचार्यपरः। (वह्निः) ज्ञानस्य वाहकः सौम्यः आचार्यः, शिष्याय (तिस्रः वाचः) ज्ञानकर्मोपासनाकाण्डप्रतिपादिकाः, सत्त्वरजस्तमःप्रतिपादिकाः, सृष्ट्युत्पत्तिस्थितिप्रलयप्रतिपादिकाः, जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिप्रतिपादिकाः, धर्मार्थकामप्रतिपादिकाः वा तिस्रो वाणीः (प्र ईरयति) प्रोच्चारयति। स एव (ऋतस्य) सत्यस्य (धीतिम्) धारणम्, (ब्रह्मणः) परमेश्वरस्य मोक्षस्य वा (मनीषाम्) प्रज्ञाम् च (प्र ईरयति) प्रयच्छति। (गावः) मदीयाः वाचः (पृच्छमानाः) ब्रह्मविद्याविषयकान् प्रश्नान् कुर्वाणाः (गोपतिम्) वाचस्पतिम् आचार्यम् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति। (मतयः) मदीयाः बुद्धयः (वावशानाः) ज्ञानोद्घाटनं कामयमानाः (सोमम्) ज्ञानरसागारं सौम्यम् आचार्यम् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति ॥३॥२ यास्काचार्य ऋचमिमामेवं व्याख्यातवान्—“वह्निरादित्यो भवति, स तिस्रो वाचः प्रेरयति ऋचो यजूंषि सामानि। एतस्यादित्यस्य कर्माणि ब्रह्मणो मतानि। एष एवैतत् सर्वमक्षरमित्यधिदैवतम्। अथाध्यात्मम् वह्निरात्मा भवति, स तिस्रो वाच ईरयति प्रेरयति विद्यामतिबुद्धिमतानि ऋतस्य आत्मनः कर्माणि ब्रह्मणो मतानि, अयमेवैतत् सर्वमनुभवतीत्यात्मगतिमाचष्टे” इति (निरु० १४।१४)। अत्र श्लेषालङ्कारः। आद्यपक्षद्वये ‘गावो यन्ति गोपतिं पृच्छमानाः’ इत्यत्र व्यङ्ग्योत्प्रेक्षा च ॥३॥
भावार्थः
वाचां प्रेरकः, सत्यस्य यज्ञस्य वा धापयिता, ज्ञानस्य प्रदाता, मनोबुद्ध्यादीनां संस्कर्ता च परमेश्वरो जीवात्मा गुरुश्च सदा सेवनीयः सत्कर्तव्यश्च ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।९७।३४, साम० ८५९। २. अस्या ऋचो व्याख्याने विवरणकृन्माधव एवमाह—“तिस्रो वाचः ऋग्यजुःसामानि। वह्निः वोढा सोमः। ऋतस्य धीतिं कर्म। ब्रह्मणो मनीषां मन्त्राणि वेदोक्तानि प्रेरयति। गोपतिं यजमानम् ॥ यद्यपि पावमानीषु सोमं मुक्त्वा अन्या देवता न सम्भवन्ति तथाप्यष्टादशे व्याख्यातेति कृत्वा तेनापि आत्मानुस्मरणार्थमालिख्यते। तिस्रो वाचः ऋग्यजुःसामानि। अथवा तिस्रो वाचः सत्त्वरजस्तमांसि। अथवा जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिवृत्तयः। ईरयति प्रेरयति। उदकं रश्मींश्च वहतीति वह्निरादित्यः। ऋतस्य आदित्यस्य धीतिम् अथवा ऋतस्य सत्यस्य ब्रह्मणः, अथवा ऋतस्य अन्नस्य धीतिं यज्ञस्य वा आदित्यस्य वा।.... एतमेव गोपतिं रश्मिस्वामिनं वा पृच्छन्त इव सोमं यन्ति। पृथिवीं वसानाः सर्वोपकाराय सोमम् आदित्यं, मतयः।....रश्मयः वावशाना आदित्यं यन्ति प्रविशन्ति। अध्यात्मं वा—वह्निरात्मा भवति, वश्यादिगुणसंयोगात्। स तिस्रो वाचः प्रेरयति विद्याबुद्धिमनांसि। विद्या महान्, बुद्धिरहङ्कारो मन इति प्राधान्याद् भूतेन्द्रियाणि। ऋतस्य आत्मनः। गावः यन्ति आत्मानम् इन्द्रियाणां स्वामिनं पृच्छमानाः आत्मानम्। तदभिप्रायेण शब्दाद्यनुगमात्। एतमेवात्मानं सोमं कामयमाना इव यन्ति मतयः तदर्थं प्रादुर्भवन्ति” इति। अथ भरतः—“तिस्रः त्रिविधाः मन्द्रमध्यमोत्तमाः। वह्निः वोढा यज्ञस्य। ऋतस्य यज्ञस्य। धीतिं विधानम् अनुष्ठानं च प्रेरयति। सोमे अभिषुते कर्माणि प्रवर्त्यन्ते। ब्रह्मणः ब्राह्मणानाम्। मनीषां स्तुतिं च प्रेरयति। सामान्यवाची ब्रह्मशब्दः नपुंसकलिङ्गः। गावः यन्ति अभिगच्छन्ति गोपतिं सोमम् पृच्छमाना अन्विच्छन्त्यः। सोमं यन्ति मतयः स्तुतयः। वावशानाः कामयमानाः” इति। अथ सायणः—“वह्निः वोढा यजमानः तिस्रो वाचः ऋग्यजुःसामात्मिकाः स्तुतीः प्रेरयति। तथा ऋतस्य यज्ञस्य धीतिं धारयित्रीं ब्रह्मणः परिवृढस्य सोमस्य मनीषां मनस ईशित्रीं कल्याणवाचं च प्रेरयति। किञ्च गोपतिं वृषभं यथा गावोऽभिगच्छन्ति तद्वत् गवां स्वामिनं सोमं गावः पृच्छमानाः पृच्छन्त्यः सत्यो यन्ति स्वपयसा आश्रयितुमभिगच्छन्ति, तथा वावशानाः कामयमानाः मतयः स्तोतारः सोमं यन्ति स्तोतुमभिगच्छन्ति” इति।
इंग्लिश (2)
Meaning
A learned soul preaches in the world the three-fold hymns of the Vedas, the notion of truth, and the wisdom of God. Just as cows go to the cowherd, so do the mental faculties, aspiring after purification, go seeking for a philosopher.
Translator Comment
The Vedas are four, but they are spoken of as three to denote the division of their hymns.
Meaning
Soma inspires three orders of speech: practical speech that carries on the daily business of life, the thought that conceives of the vibrant immanent divine presence, and the deeper language of silence which is the mode of transcendent reality. The language operations of daily business move in search of the master source of world mystery as in science and philosophy, and the speech of thought and imagination and of love and worship moves to the presence of peace and bliss, Soma. (The three speeches in Vedic language are Ida, Sarasvati, and Mahi or Bharati as described in Rgveda 1, 13, 9 and Yajurveda 21, 19. Explained another way these are the language of the Rks or knowledge, Yajus or karma, and Samans or worship. ) (Rg. 9-97-34)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वह्निः) અધ્યાત્મયજ્ઞનું વહનકર્તા ઉપાસક (तिस्रः वाचः) ત્રણ વાણીઓ (अ , उ , म्) ને (प्र ईरयति) જપ રૂપમાં પ્રેરિત કરે છે. (ऋतस्य) તે અધ્યાત્મયજ્ઞની (धीतिम्) ધારણ ક્રિયાને (ब्रह्मणः मनीषाम्) બ્રહ્મ-પરમાત્માની સ્તુતિને પ્રેરિત કરે છે (ग्रावः गोयतिं पृच्छमानाः यन्ति) જેમ ગાયો ગોવાળને ગાયોના પાલકને અર્ચિત કરતી તેને પ્રાપ્ત થાય છે, તેમ (मतयः वावशानाः सोमं यन्ति) સ્તુતિઓ પણ બોલીને સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્માને પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : અધ્યાત્મ યજ્ઞકર્તા ઉપાસક ‘अ , उ , म्’ "ओ३म्" ની ત્રણ વાણીઓને પ્રેરિત કરે છેજપ કરે છે અને સાથે એ અધ્યાત્મયજ્ઞની ધારણા ક્રિયા બ્રહ્મની સ્તુતિને પણ પ્રેરિત કરે છે-અર્થ ભાવનાને પ્રેરિત કરે છે, એ રીતે "ओ३म्" નો જપ અને તેનું અર્થભાવન કરે છે. તથા જેમ ગાયો ગોવાળને મળે છે, તેમ 'अ , उ , म्’ ત્રણેય વાણીઓ શાન્ત-સ્વરૂપ પરમાત્માને પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)
उर्दू (1)
Mazmoon
تین بانیوں سے اوم کا جاپ
Lafzi Maana
اگنی کی طرح گیان کی روشنی سے منّور تین طرح کی گیان، کرم اور اُپاسنا کو بتلانے والی وید بانی جو رگ، یجر، سام اور اھرو اِن چارون ویدوں سے حاصل ہوتی ہے، پرمیشور کا پُتر سچی دھارنا سے اِس کا پرچار کرے، جیسے گئوئیں اپنے مالک کے پاس دوڑ کر جاتی ہیں، اُسی طرح ہماری حمد و ثنا یا اُستتیاں اپنے سوامی بھگوان کو پراپت ہوتی ہیں۔ اوم کی یہ تین بانیاں آ، اُو اَورم، اِن کے ارتھ کو من میں وچار کرتا ہوا کہ وہ پیدائش، رکھشا اور فنا کا واحد مالک ہے، بھگت اوم کا جاپ کرتا رہے۔
Tashree
جیسے گئوئیں اپنے پیارے گئوپال کے جاتی ہیں، ایسے جاپ اُستتیاں بھی پیارے پربھو کو مل جاتی ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
वाणीचा प्रेरक, सत्य किंवा यज्ञाला धारण करविणारा, ज्ञानाचा प्रदाता व मन, बुद्धी इत्यादींचा संस्कर्ता परमेश्वर जीवात्मा व गुरूचे सदैव सेवन व सत्कार केला पाहिजे ॥३॥
शब्दार्थ
(प्रथम अर्थ) (परमात्म पर) (बहृः) जगनिर्माता वा संचालक तो सोम परमेश्वर (तिस्रः वाचः) ऋक्, यजु, साम या तीन वाणींचे (प्र ईरयति) प्रजांच्या कल्याणाकरिता उपदेश करतो. तोच मनुष्यांना (ऋतस्य) सत्यमय यज्ञ (धीतिम्) धारण करण्याची (खरेपणाने वागण्याची) आणि (ब्रह्मणः) ज्ञानाचे मनन करण्याची (प्र ईरयति) प्रेरणा करतो. (गावः) पृथ्वी आदी लोक अथवा सूर्याची किरणे (गोपतिम्) आपल्या स्वामीविषयी जणू काय (पृच्छमानाः) सारखेपमने (यन्ति) विचारत आहेत की आमचा स्वामी कोण आहे की जो आमचे संचालन, परिभ्रमण करीत आहे, अशा प्रकारे (मतयः) माझी स्तुती वाणी (वाघशानाः) वारंवार अधिकाधिक कामना करीत (सोमम्) त्या रसागार परमेश्वराकडे (यन्ति) जात आहे.।। द्वितीय अर्थ - (जीवात्मापर) (वहिः) शरीराचा जो वहनकर्ता जीवात्मा, तो (ठिस्रः वाचः) ज्ञान रूपाने, विचार रूपाने ाणि जिहृेच्या कंठ, तालु, आदीच्या संयोगाने उत्पन्न व शब्दरूपाने विद्यमान तीन प्रकारच्या वाणीना (प्रईस्यति) प्रकट करतो. तोच (ऋतस्य) सत्याचे (धीविम्) धारण आणि (ब्रह्मणः) उपार्जित ज्ञानाचे (अनीषाम्) मनन करणारा आहे. (गावः) मनासह पाच ज्ञानेंद्रियें जणू काय (पृच्छमानाः) कर्तव्य- अकर्तव्याविषयी विचारणा करीत (गोपतिम्) इंद्रियांचा जो स्वामी त्या आत्म्याकडे (यन्ति) जातात. तसेच (मतयाः) माझी बुद्धी (वावशानाः) निश्चयाने ज्ञान प्राप्तीचे साधन होत होत (सोमम्) ज्ञानाचा जो स्वामी त्या आत्म्याकडे (यन्ति) जात आहेत.।। तृतीय अर्थ - (आचार्यपर) (वहिृः) ज्ञानाचा वाहक जो आचार्य, तो शिष्यासाठी (तिस्रः वाचः) ज्ञान, कर्म, उपासना या त्रिविध मार्गांचे प्रतिपादन करणाऱ्या अथवा सत्त्व, रज, तम, सृष्टी, स्थिती, प्रलय, वा जाग्रत स्वप्न, सुषुप्ती, वा धर्म, अर्थ, काम या तीन प्रकारच्या मार्गांचे पआतिपादन करणाऱ्या वाणीला (प्र ईरयति) प्रेरणा देतो. तोच आचार्यच (ऋतस्य) सत्याचे (धीतिम्) धारण करणाऱ्या आणि ब्रह्मणः) ब्रह्माच्या वा मोक्षाच्या प्राप्ती करणाऱ्या (मनीषाम्) प्रज्ञेला (प्र ईरयति) प्रेरणा करतो (गावः) माझी (शिष्याची) वाणी (पृच्छ मानाः) ब्रह्म विद्याविषयक शंका वा प्रश्न विचारीत (गोपतिम्) वाचस्पती आचार्याकडे (यन्ति) जाते (आचार्यांने प्रश्न विचारून संदेह वा शंकेचे निराकरण करून घेते) (मतयः) माझी बुद्धी (वावशानाः) ज्ञानोद्घाटनाची इच्छा करीत (सोमम्) ज्ञान- रसाचा जो आगर त्या सौम्य स्वभावाच्या आचार्याकडे (यन्ति) जाते. ।। ३।। या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे. प्रथम दोन अर्थातील यज्ञ (धीतिम्) धारण करण्याची (खरेपणाने वागण्याची) आणि (ब्रह्मणः) ज्ञानाचे मनन करण्याची (प्र ईरयति) प्रेरणा करो. (गावः) पृथ्वी आदी लोक अथवा सूर्याची किरणे (गोपतिम्) आपल्या स्वामीविषयी जणू काय (पृच्छमानाः) सारखेपणो (यन्ति) विचारत आहेत की आमचा स्वामी कोण आहे की जो आमचे संचालन, परिब्रमण करीत आहे ? अशा प्रकारे (मतयः) माझी स्तुती - वाणी (वाषशानाः) वारंवार अधिकाधिक कामना करीत (सोमम्) त्या रसागार परमेश्वराकडे (यन्ति) जात आहे.।। द्वितीय अर्थ - (जीवात्मापर) (वहिृः) शरीराचा जो वहनकर्ता जीवात्मा, तो (तिस्रः वाचः) ज्ञानरूपाने, विचार रूपाने आणि जिहृेच्या कंठ, तालु आदींच्या संयोगाने उत्पन्न व शब्दरूपाने विद्यमान तीन प्रकारच्या वाणीना (प्र ईरयति) प्रकट करतो. तोच (ऋतस्य) सत्याचे (धीविम्) धारण आणि (ब्रह्मणः) उपार्जित ज्ञानाचे (मनीषाम्) मनन करणारा आहे. (गावः) मनासह पाच ज्ञानेंद्रिये जणू काय (पृच्छमानाः) कर्तव्य - अकर्तव्याविषयी विचारणा करीत (गोपतिम्) इंद्रियांचा जो स्वामी त्या आत्म्याकडे (यन्ति) जातात. तसेच (मतयः) माझी बुद्धी (वावशानाः) निश्चयाने ज्ञानप्राप्तीचे साधन होत होत (सोमम्) ज्ञानाचा जो स्वामी त्या आत्म्याकडे (यन्ति) जात आहेत.।। तृतीय अर्थ - (आचार्यपर) (बहिृः) ज्ञानाचा वाहक जो आचार्य, तो शिष्यासाठी (तिस्रः वाचः) ज्ञान, कर्म, उपासना या त्रिविध मार्गांचे प्रतिपादन करणाऱ्या अथवा सत्त्व, रज, तम / सृष्टी, स्थिती, प्रलय / वा जाग्रत स्वप्न, सुषुप्ती / वा धर्म, अर्थ, काम या तीन प्रकारच्या मार्गांचे प्रतिपादन करणाऱ्या वाणीला (प्र ईरयति) प्रेरणा देतो. तोच आचार्यच (ऋतस्य) सत्याचे (धीतिम्) धारण करणाऱ्या आणि (ब्रह्मणः) ब्रह्माच्या वा मोक्षाच्या प्राप्ती करणाऱ्या (मनीषाम्) प्रज्ञेला (प्र ईरयति) प्रेरणा करतो (गावः) माझी (शिष्याची) वाणी (पृच्छ मानाः) ब्रह्मविद्याविषयक शंका वा प्रश्न विचारती (गोपतिम्) वाचस्पती आचार्याकडे (यन्ति) जाते. (आचार्यांना प्रश्न विचारून संदेह वा शंकेचे निराकरण करून घेते). (मतयः) माझी बुद्धी (वावशानाः) ज्ञानोद्घाटनाची इच्छा करीत (सोमम्) ज्ञान रसाचा जो आगर त्या सौम्य स्वभावाच्या आचार्याकडे (यन्ति) जाते.।। ३।।
भावार्थ
वाणीला प्रेरणा करणाऱ्या, सत्य वा यज्ञाचे धारण करणाऱ्या, ज्ञान - दाता आणि मन-बुद्धीवर सुसंस्कार करणाऱ्या परमेश्वराच जीवात्म्याचे व गुरूचे मामसाने सदैव, पूजन, सेवन केले पाहिजे.।। ३।।
विशेष
या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे. प्रथम दोन अर्थातील ङ्गगावो यन्ति गोपति पृच्छमानाःफ या वाक्यात व्यंड्ग्योतप्रेक्षा अलंकार आहे.।। ३।।
तमिल (1)
Word Meaning
யக்ஞ கர்த்தா, ஆதித்தியன் [1](மூன்று மொழிகளைச்) சொல்லுகிறார். சத்தியத்தின் சோதியையும் (பிரமத்தின் மனத்தையும்) அவர் சொல்லுகிறார். (கோபதியை) பசுக்கள் வினவிக்கொண்டு செல்லுகின்றன; விருப்பத்துடன் துதி செய்பவர்கள் சோமனுக்குச் செல்லுகிறார்கள்.
FootNotes
[1].மூன்று மொழிகளை - மூன்று வேதங்களை
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal