Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 560
    ऋषिः - रेणुर्वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    3

    त्रि꣡र꣢स्मै स꣣प्त꣢ धे꣣न꣡वो꣢ दुदुह्रिरे स꣣त्या꣢मा꣣शि꣡रं꣢ पर꣣मे꣡ व्यो꣢मनि । च꣣त्वा꣢र्य꣣न्या꣡ भुव꣢꣯नानि नि꣣र्णि꣢जे꣣ चा꣡रू꣢णि चक्रे꣣ य꣢दृ꣣तै꣡रव꣢꣯र्धत ॥५६०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रिः꣢ । अ꣣स्मै । सप्त꣢ । धे꣣न꣡वः꣢ । दु꣣दुह्रिरे । सत्या꣢म् । आ꣣शि꣡र꣢म् । आ꣣ । शि꣡र꣢꣯म् । प꣣रमे꣢ । व्यो꣢मन् । वि । ओ꣣मनि । चत्वा꣡रि꣢ । अ꣣न्या꣢ । अ꣣न् । या꣢ । भु꣡व꣢꣯नानि । नि꣣र्णि꣡जे꣢ । निः꣣ । नि꣡जे꣢꣯ । चा꣡रू꣢꣯णि । च꣣क्रे । य꣢त् । ऋ꣣तैः꣢ । अ꣡व꣢꣯र्धत ॥५६०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिरस्मै सप्त धेनवो दुदुह्रिरे सत्यामाशिरं परमे व्योमनि । चत्वार्यन्या भुवनानि निर्णिजे चारूणि चक्रे यदृतैरवर्धत ॥५६०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिः । अस्मै । सप्त । धेनवः । दुदुह्रिरे । सत्याम् । आशिरम् । आ । शिरम् । परमे । व्योमन् । वि । ओमनि । चत्वारि । अन्या । अन् । या । भुवनानि । निर्णिजे । निः । निजे । चारूणि । चक्रे । यत् । ऋतैः । अवर्धत ॥५६०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 560
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 9;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि स्तोता क्या फल प्राप्त करता है।

    पदार्थ

    (परमे) उत्कृष्ट (व्योमनि) हृदयाकाश में (अस्मै) इस स्तोता के लिए (त्रिः सप्त) इक्कीस छन्दोंवाली (धेनवः) वेदवाणी रूप गौएँ (सत्याम् आशिरम्) सत्य रूप दूध को (दुदुह्रिरे) देती हैं। (यत्) जब यह स्तोता (ऋतैः) सत्य ज्ञानों और सत्य कर्मों से (अवर्द्धत) वृद्धि को प्राप्त करता है, तब (निर्णिजे) अपने आत्मा के शोधन वा पोषण के लिए (चत्वारि) चार (अन्या) अन्य (चारूणि) सुरम्य (भुवनानि) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूप भुवनों को (चक्रे) उत्पन्न कर लेता है ॥७॥ धेनु निघण्टु (१।११) में वाणीवाची नामों में पठित है। ताण्ड्य एवं गोपथब्राह्मण में भी कहा है कि ‘वाणी ही धेनु है’ (तां० ब्रा० १८।९।२१, गो० पू० २।२१)। अथवा वेदवाणी में धेनुत्व का आरोप होने से तथा उपमेय का उपमान द्वारा निगरण होने से अतिशयोक्ति अलङ्कार है ॥७॥

    भावार्थ

    सात गायत्र्यादि छन्द, सात अतिजगत्यादि छन्द और सात कृत्यादि छन्द मिलकर इक्कीस छन्द वेद में होते हैं। उन छन्दोंवाली इक्कीस प्रकार की वेदवाणियाँ मानो साक्षात् गौएँ हैं, जो अपने सेवक को सत्यज्ञानरूप और सत्कर्तव्यबोध रूप दूध देती हैं, जिससे परिपुष्ट हुआ वह धर्मार्थकाम-मोक्षरूप भुवनों में निवास करता हुआ जीवन की सफलता को प्राप्त कर लेता है ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (परमे व्योमन्) श्रेष्ठ हृदय अवकाश में प्राप्त होने के निमित्त (अस्मै) इस सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा के लिये (सप्त धेनवः) सात गायत्री आदि छन्दोमयी वाणियां “धेनुः-वाक्” [निघं॰ १।११] (त्रिः) स्तुति प्रार्थना उपासना तीन में आवृत हुई (सत्याम्-आशिरम्) सत्य आश्रयरूप चिति—आत्मशक्ति को (दुदुहिरे) दुहती हैं—समर्पित करती हैं (चत्वारि चारूणि-अन्या भुवनानि) चार ज्ञान साधन—मन बुद्धि चित्त अहङ्कार सुन्दरज्ञान साधन अननीय मानव जीवन के उपयोगी इच्छादि भावनापूर्ण अन्तःकरणों को (निर्णिजे) शुद्ध करने—निर्दोष—सगुण करने के लिये (चक्रे) बनाता है (यत्) यतः (ऋतैः अवर्धत) इस प्रकार सदाचरणों से बढ़ता है—साक्षात् होता है।

    भावार्थ

    सत्त्वगुणपूर्ण हृदयावकाश में प्राप्ति के निमित्त शान्तस्वरूप परमात्मा के लिये सात गायत्री आदि छन्दोमयी वाणियाँ स्तुति-प्रार्थना-उपासनाक्रमों में आई हुई चित्ति शक्ति—आत्मा को समर्पित करती हैं तथा चार ज्ञान साधन मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार, जीवनोपयोगी इच्छादि भावनापूर्ण अन्तःकरण को शुद्ध करता है—उपासक के अन्दर साक्षात् होता है॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—रेणुर्वैश्वामित्रः (सर्वमित्र से सम्बद्ध सूक्ष्मज्ञानवान्)॥<br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रेणुः वैश्वामित्र:

    पदार्थ

    इस मन्त्र का ऋषि रेणु गतिशील, नदी की भाँति स्वाभाविक, सरल, निरन्तर गतिवाला, सदा नीचे और नीचे अर्थात् अधिक और अधिक विनीत बनता हुआ यह व्यक्ति वैश्वामित्र=सभी के साथ स्नेहवाला है। यह स्वाभाविक नम्रता, पूर्णगति और प्रेम उसे इस योग्य बनाते हैं कि (सप्त धेनवः) = सात छन्दों में चलनेवाली ये वेदवाणियाँ [ज्ञान - दुग्ध का पान कराने से ये वेद-वाणियाँ धेनु हैं] (अस्मै) = इस वैश्वामित्र रेणु के लिए (त्रि) = आध्यात्मिक, आधिभौतिक व आधिदैविक भेद से तीन प्रकार से (आशिरम्) = वासनाओं को शीर्ण करनेवाले (सत्याम्) = सत्यज्ञान को (परमे व्योमनि) = उत्कृष्ट मूर्धारूप द्युलोक में (दुदुहिरे) = पूर्ण करती हैं [दुह प्रपूरणे] । गति, नम्रता और सभी के साथ स्नेह ये तीन ऐसे उत्तम गुण हैं जो रेणु के मस्तिष्क को ज्ञान से परिपूर्ण कर देते हैं। गति से भूलोक को, नम्रता से भुर्वलोक को तथा स्नेह को सबके साथ व्यापक बना देने से यह स्वर्लोक को जीतता है। अब (चत्वारि अन्या भुवनानि) = चार दूसरे, महः, जन:, तपः, सत्यम्' लोकों का (निर्णिजे) = शोधन व पोषण करने के लिए यह रेणु (चारुणि) = शोधन व पोषण करने के लिए यह रेणु चारुणि सुन्दर कर्मों को (चक्रे) = करता है और (यत्) = जब यह (ऋतैः) = बिल्कुल ठीक समय- स्थान पर क्रियाओं के द्वारा (अवर्धत) = बढ़ता है, तो उन लोकों का आक्रमण करता ही है। अन्त में वह सत्यलोक में पहुँचता है। यह सत्यलोक वास ही उसका अन्तिम पग होता है। बिना ऋत के पालन के यहाँ कैसे पहुँचा जा सकता है?

    भावार्थ

    हम रेणुवत् वेदवाणी के द्वारा ज्ञान का दोहन कर, सुन्दर कर्मों को करते हुए और ऋत को पालते हुए सत्यलोक में अवस्थित हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा०  = ( यद् ) = जब ( ऋतैः ) = सत्य ज्ञानों से आत्मा स्वयं ( अवर्धत ) = समृद्ध हो जाता है तब ( अस्मै ) = इस के लिये ( सप्त ) = सात ( धेनवः ) = रसपान कराने वाली गौवों के समान ये सात इन्द्रियां जो मस्तक के सात  छिद्रों में विराजमान हैं ( परमे ) = सब से उत्कृष्ट ( व्योमनि ) = अपने रक्षास्थान मूर्वा , या ब्रह्माण्ड कपाल में विराजमान होकर ( सत्याम् ) = सत्यस्वरूप, यथार्थ ( आशिरं ) = ज्ञानधारा को ( त्रिः ) = ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान इन तीनों प्रकारों से ( हुदुहिरे ) = दोहन करता है। और (अन्या ) = अन्य ( चत्वारि भुवनानि ) = चारों देह के भागों या अवस्थाओं को ( निर्णिजे ) = परिशोधन करने के लिये वह ( चारूणि ) = उत्तम कान्ति और बल से युक्त कर देता है ।
     

    टिप्पणी

    ५६० – 'दुदुह्रे ' 'पूर्व्ये' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - वेणुर्वैश्वामित्रः।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - जगती।

    स्वरः - निषादः। 

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ स्तोता किं फलं प्राप्नोतीत्याह।

    पदार्थः

    (परमे) उत्कृष्टे (व्योमनि) हृदयाकाशे (अस्मै) स्तोत्रे जनाय (त्रिः सप्त) एकविंशतिसंख्यका एकविंशतिच्छन्दोयुताः (धेनवः) वेदवाग्रूपा गावः (सत्याम् आशिरम्) सत्यरूपं दुग्धम् (दुदुह्रिरे) दुहन्ति। अत्र ‘बहुलं छन्दसि। अ० ७।१।८’ इति रुडागमः। (यत्) यदा एष (ऋतैः) सत्यैः ज्ञानकर्मभिः (अवर्द्धत) वृद्धिं गच्छति, तदायम् (निर्णिजे) आत्मनः शोधनाय पोषणाय वा। णिजिर् शौचपोषणयोः। चत्वारि चतुःसंख्यकानि (अन्या) अन्यानि (चारूणि) सुरम्याणि (भुवनानि) धर्मार्थकाममोक्षरूपाणि (चक्रे) सम्पादयति ॥७॥२ धेनुः इति वाङ्नामसु पठितम्। निघं० १।११। ‘वाग् वै धेनुः’ इति च ब्राह्मणम्, तां० ब्रा० १८।९।२१, गो० पू० २।२१। यद्वा वेदवाचि धेनुत्वारापोद्, उपमेयस्योपमानेन निगरणाच्चातिशयोक्तिरलङ्कारः ॥७॥

    भावार्थः

    सप्त गायत्र्यादीनि सप्त अतिजगत्यादीनि सप्त च कृत्यादीनि मिलित्वा एकविंशतिश्छन्दांसि भवन्ति। तन्मय्य एकविंशतिविधा वेदवाचः साक्षाद् धेनव इव सन्ति, याः स्वगोपालाय सत्यज्ञानरूपं सत्कर्तव्यबोधरूपं च पयः प्रयच्छन्ति, येन परिपुष्टः स धर्मार्थकाममोक्षरूपेषु चतुर्षु भुवनेषु कृतनिवासो जीवनसाफल्यमधिगच्छति ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।७०।१ ‘दुदुह्रिरे, परमे’ इत्यत्र क्रमेण ‘दुदुह्रे, पूर्व्ये’ इति पाठः। २. विवरणकार एतामृचमेवं व्याचष्टे—“अस्मै सोमाय सप्त धेनवः सप्त छन्दांसि, त्रिः प्रातःसवनमाध्यन्दिनसवनतृतीयसवनेषु दुदुह्रिरे। अथवा त्रिः त्रिभिः सवनैः सप्त धेनवः सप्त होत्रा वषट्कारिणः—होता, मैत्रावरुणः ब्राह्मणाच्छंसी, पोता, नेष्टा, अच्छावाकः, आग्नीध्रः—एतेषां वाचः दुह्यन्ते। सत्याम् आशिरम् आश्रयणीयं मिश्रणं वा। परमे प्रकृष्टे व्योमनि व्याप्तिस्थाने यज्ञे वा। चत्वारि अग्निष्टोमः, उक्थ्यः, षोडशी, अतिरात्रश्चतुर्थः। अथवा पृथिवी, अन्तरिक्षं द्यौर्दिश इति। अथवा चत्वारो वेदाः। अथवा चत्वारो महर्त्विजः, अथवा चत्वारः समुद्राः। अन्या भुवनानि निर्णिजे चतुर्दश भुवनानि। सप्त भूरादयो लोकाः, सप्त पातालानि। तान्यपि चारूणि चक्रे कृतवान्। केन प्रकारेण ? यद् ऋतैः अन्नैः यज्ञैः सत्यैर्वा अवर्धत। अथवा त्रिः अस्मै सप्त धेनवः सप्त रश्मयः दुदुह्रिरे। अथवा सप्ताश्वाः। अथवा सप्त पावकजिह्वाः, सप्त मातरो वा, सप्त भूरादयो लोकाः, सप्त पातालानि, सप्त सोमसंस्थाः, सप्त समुद्राः, सप्त द्वीपानि, सप्त स्वराः—एताः दुदुह्रिरे। सत्याम् आशिरम् उदकं परमे व्योमनि। चत्वारि अन्या भुवनानि पृथिव्यादीनि चारूणि चक्रे। यद् ऋतैः यज्ञैः अवर्धत इति। अथवा त्रिः अस्मै सप्त धेनवः सप्त प्राणाः शीर्षण्या ईरिताः उत्पत्तिस्थितिप्रलयेषु। सत्याम् अवितथाम्। आशिरं ज्ञानम्। चत्वारि अन्यानि भुवनानि जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तितुरीयासु अद्वैतावस्थेति। यद् ऋतैर्जनैः अवर्धत विज्ञानाय” इति। अथ भरतः—“त्रिः सप्त एकविंशतिः, धेनवः छन्दांसि माध्यमिकवाग्रूपेण अवतिष्ठन्ते इत्येतत्—‘अयं स शिङ्क्ते येन गौरभीवृता’ ऋ० १।१६४।२९ इत्यस्यामृचि ज्ञायते। वाचः छन्दांस्यभिव्यक्तिस्थानानीति वाचः छन्दोवृष्टिः। चत्वारि अन्या अन्यानि भुवनानि उदकानि। अस्य निर्णिजे रूपाय भवन्ति। एकं वासतीवरं त्रीणि ऐकधनानीति भुवनचतुष्टयम्। अयं च सोमः चारूणि भद्राणि चक्रे करोति यजमानानाम्, यत् यदा ऋतैः उदकैः अवर्धत वर्धते। तदा चारूणि चक्रे” इति। अथ सायणः—“परमे उत्कृष्टे व्योमनि विविधम् ओम अवनं गमनं देवानामत्रेति व्योमा यज्ञः तस्मिन् स्थिताय। यद्वा परमे व्योमनि अन्तरिक्षे वर्तमानाय। त्रिः सप्त एकविंशतिसंख्याकाः धेनवः प्रीणयित्र्यो गावः....। यद्वा त्रिः सप्त द्वादशमासाः, पञ्चर्तवः, त्रय इमे लोकाः, असावादित्य एकविंश इति। एतैः सर्वैः सह गोषु पय उत्पाद्यते तद् गावो दुहन्तीति। चत्वारि भुवना उदकानि वसतीवरीस्तिस्रश्चैकधना इति चतुःसंख्यानि...। निर्णिजे निर्णेजनाय परिशोधनाय परिपोषणाय वा...। ऋतैः यज्ञैः” इति।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the soul develops itself with true sorts of knowledge, then the seven cows in the loftiest head, in three stages, yield real knowledge for it. It fills the other four sheaths of the body with beauty and strength for their purification.

    Translator Comment

    $ Seven cows are two eyes, two ears, two nostrils, and mouth, which are placed in the head, the highest part of the body and serve as channels to furnish knowledge to the soul.^Three stages: Jagrat (waking), Swapna (sleeping) Sushupti (Profound repose).^Other four sheaths are the प्राणमय कोश, मनोमय कोश, ज्ञानमय कोश, आनन्दमय कोश, besides the अन्नमय कोश. These five vestures or cases successively make the body, enshrining the soul.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Thrice seven cows, creative powers of natural evolution, generate the milky strain of vitality added to the evolving reality in the service of the creator Soma in the cosmic yajna in absolute time and space, Soma who also created four other beautiful orders of existence for the glory and sanctity of existence which grows by the laws of cosmic dynamics. (Rg. 9-70-1)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (परमे व्योमन्) શ્રેષ્ઠ હૃદય અવકાશમાં પ્રાપ્ત થવાને માટે (अस्मै) એ સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્માને માટે (सप्त धेनवः) સાત ગાયત્રિ આદિ છંદોમયી વાણીઓ (त्रिः) સ્તુતિ, પ્રાર્થના, ઉપાસના ત્રણેયમાં આવૃત થઈને (सत्याम् आशिरम्) સત્ય આશ્રયરૂપ ચિતિ-આત્મશક્તિને (दुदुहिरे) દોહે છે-સમર્પિત કરે છે. (चत्वारि चारुणि अन्या भुवनानि)  ચાર જ્ઞાનનાં સાધન-મન, બુદ્ધિ, ચિત્ત અને અહંકાર સુંદર જ્ઞાન સાધન અનનીય માનવ જીવનના ઉપયોગી ઇચ્છાદિ ભાવનાપૂર્ણ અન્તઃકરણોને (निर्णिजे) શુદ્ધ કરવા - નિર્દોષ-ગુણયુક્ત કરવાને માટે (चक्रे) બનાવે છે (यत्) જે (ऋतैः अवर्धत) એ રીતે સદાચરણથી વધારે છે - સાક્ષાત્ થાય છે. (૭)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સત્વગુણપૂર્ણ હૃદયાવકાશમાં પ્રાપ્તિને શાંત સ્વરૂપ પરમાત્માને માટે સાત ગાયત્રી આદિ છંદોમય વાણીઓ, સ્તુતિ, પ્રાર્થના, ઉપાસના ક્રમોમાં આવેલી ચિત્ત શક્તિ-આત્માને સમર્પિત કરે છે; તથા ઈચ્છાદિ ભાવના પૂર્ણ અન્તઃકરણને શુદ્ધ કરે છે-ઉપાસકની અંદર સાક્ષાત્ થાય છે. (૭)
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    उर्दू (1)

    Mazmoon

    وید بانیوں سے بھگوان کا ستیہ آشیرباد

    Lafzi Maana

    سات چھندوں گایتری تر شٹپ وغیرہ والی وید بانیاں اُپاسک (عابد) کے دوتخانہ روپ ہردیہ میں بیھٹے پرماتما سے دن رات میں تین بار سچی آشیرباد ملتی ہے، آگے جب اِس راہ راست پر عارف یوگ مارگ پر ترقی کرتا جاتا ہے، تب رجوگن، تمو گن کو ہٹا کر اس کو پاک تر بنانے کے لئے عارف کے انّ مئے کوش کو چھوڑ کر پران مئے منو مئے گیان مئے اور آنند مئے چاروں کوشوں کو پرماتما شُدھ پوتر کر دیتا ہے۔

    Tashree

    نوٹ: اِس منتر پر انیک وِدوانوں کے انیک مت ہیں، اور سبھی ہیں گیان کی کھوج سے بھرپور، جوئیں لِکھ رہا ہوں (1) "تری" کا مطلب تین وقت صبح و شام دو سندھیا سمئے اور تیسرا رات کا سمئے۔ اس کے لئے اتھرو وید کا پرمان بھی دیا ہے۔ پراتہ اور شام کو سندھیا کال ہیں ہی، ساتھ ہی وید نے رات کو بھی یوگ ابھیاس کے لئے بہت اُتم مانا ہے، کیونکہ وہ شانت سمئے ہوتا ہے، "یوکی رات کو انوشٹھان کرتے ہیں اور پرانیوں کے سونے پر ہی انوشٹھان کے لئے جاگتے رہتے ہیں۔" (اتھرو وید 5۔47۔19) اور بھگوت گیتا کا شلوک تو سبھی جانتے ہی ہیں، جس میں لکھا ہے کہ پرانیوں کی جو رات ہوتی ہے یوگی اُس میں جگتا رہتا ہے۔ (2) سر میں سات پران یعنی گیان اِندریاں من اور مُوردھا (کپال) تین اوستھا پیدائش، ہستی اور فنا۔ ادھیاتمک ادھی بھئوتک ادھی دیپک، گتی، نمرتا اور پیار، سُتتی پرارتھنا اُپاسنا، جاگرت سوپن سُوشپتی، بچپن جوانی بڑھاپا، چارگیان کے سادھن (وسائل) من بُدھی چِت اہنکار، چاربُھوون کو کہا ہے کہ جیو آتما کے نواس کے لئے چار بُھودن ہیں، شریر اِندریاں ہردیہ اور مستشک۔ وید کی بانی سے ملتا ایش کا آشیر باد، رج تموگن چھوٹ جاتے ستو سے ہو جاتا شاد۔

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    सात गायत्री इत्यादी छंद, सात अति जगत्यादि छंद व सात कृत्यादि छंद मिळून एकवीस छंद वेदामध्ये असतात. त्या छंदयुक्त एकवीस प्रकारची वेदवाणी जणू साक्षात गाई आहेत. ज्या आपल्या सेवकाला सत्यज्ञानस्वरूप व सत्कर्तव्यबोधरूपी दूध देतात, ज्यामुळे परिपुष्ट झालेला सेवक धर्मार्थकाम-मोक्षरूप भुवनामध्ये निवास करतो व त्याचे जीवन सफल होते ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्तोत्याला (उपासकाला) कोणते लाभ मिळतात याविषयी विरस्मै सप्त धेनवो दुदुहिरे सत्यामाशिरं परमे ग्योमनि।

    शब्दार्थ

    (परमे) उत्कृष्ट (व्योमनि) हृदयाकाशात (अस्मै) या स्तोतासाठी (त्रिःसप्त) एकवीस छंद असलेल्या (धेनवः) वेद नाणीरूप गायी (सत्याम् आशिरम्) सत्यरुप दूध (दुदुहिृरे) दोहन करतात (वैदज्ञान देतात) (धत्) जेव्हा हा उपासक (ऋतैः) सत्य ज्ञानाने व सत्यकर्माने (अवृर्दत) वृद्धिंगत होतो, उन्नती करतो, तेव्हा (निर्णिजे) आपल्या आत्म्याच्या शोधनासाठी वा पोषणासाठी (अन्या) इतर (चत्वारि) चार (चासणि) रमणीय (भुवनानि) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष या चार भुवनांचे (चक्रे) निर्माण करतो ।।७।।

    भावार्थ

    साठ गायत्री छन्द, सात अतिजग ती आदी छन्द आणि सात कृत्या आदी छन्द असे सर्व मिळून वेदांमधे एकवीस छन्द आहेत. त्या एकवीस छंदामुळे एकवीस प्रकारच्या वेदवाणी जणू एकवीस गायी आहेत, या गायी आपल्या सेवकाला सत्यज्ञानरूप आणि सत्कर्तव्यरूप दूध देतात. या दुधामुळे परिपुष्ट झालेला स्तोता धज्ञर्, अर्थ, कपाळ मोक्ष या चार भुवनांत वास्तव्य करीत आपले जीवन यशस्वी करून धेवो.।।७।।

    विशेष

    ‘धनु’ शब्द निघण्टु (१/११) मधे वाणी अर्थाने आलेला आहे- ताण्डय आणि गोषध ब्राह्मणात देखील म्हटले आहे ती ‘वाणी हीच धेनु’ आहे. (ताण्डय ब्राह्मण ग्रंथ-१८/९/२१/गोषध-पू.२/२१) वेदवाणीवर धेनुत्वाचा आरोप असल्यामुळे तसेच उपमेयाचे उपमानाद्वारे निगरण केल्यामुळे येथे अतिशयोक्ति अलंकार आहे. ।।७।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    तमिल (1)

    Word Meaning

    சோமனுக்கு உயர்ந்த வானத்தில் [1]மூன்று [2]ஏழான பசுக்கள் ஆசிரய சாதன பாலை கறக்கிறார்கள். சத்தியத்தால் பலத்தில் அவன் பெருகிய பொழுது. மங்களத்திற்காக நான்கு வேறு அழகிய புவனங்களை பிராணிகளை [3]செய்கிறார்.

    FootNotes

    [1]மூன்று- மனம் வாக்கு காயம் [2]ஏழான-ஐம்புலன்கள் மனம் புத்தி [3]செய்கிறார்-செய்து கொள்ளுகிறார்

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top