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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 572
    ऋषिः - अग्निश्चाक्षुषः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    3

    सो꣡मः꣢ पुना꣣न꣢ ऊ꣣र्मि꣢꣫णाव्यं꣣ वा꣢रं꣣ वि꣡ धा꣢वति । अ꣡ग्रे꣢ वा꣣चः꣡ पव꣢꣯मानः꣣ क꣡नि꣢क्रदत् ॥५७२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । ऊ꣣र्मि꣡णा꣢ । अ꣡व्य꣢꣯म् । वा꣡र꣢꣯म् । वि । धा꣣वति । अ꣡ग्रे꣢꣯ । वा꣣चः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । क꣡नि꣢꣯क्रदत् ॥५७२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमः पुनान ऊर्मिणाव्यं वारं वि धावति । अग्रे वाचः पवमानः कनिक्रदत् ॥५७२॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः । पुनानः । ऊर्मिणा । अव्यम् । वारम् । वि । धावति । अग्रे । वाचः । पवमानः । कनिक्रदत् ॥५७२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 572
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 10;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः ब्रह्मानन्दरस का विषय है।

    पदार्थ

    (सोमः) ब्रह्मानन्दरस (पुनानः) उपासक को पवित्र करता हुआ (ऊर्मिणा) लहर के साथ (अव्यं वारम्) भेड़ की ऊन से बने दशापवित्र के तुल्य दोषनिवारक अविनश्वर आत्मा के प्रति (वि धावति) वेग से दौड़ रहा है। (वाचः) प्रोच्चारित स्तुतिवाणी से (अग्रे) पहले ही (पवमानः) धारा रूप से बहता हुआ (कनिक्रदत्) कलकल ध्वनि कर रहा है ॥७॥ इस मन्त्र में ब्रह्मानन्द में कारणभूत स्तुति वाणी के उच्चारण से पूर्व ही ब्रह्मानन्द की उत्पत्ति का वर्णन होने से कारण के पूर्व कार्योदय वर्णित होना रूप अतिशयोक्ति अलङ्कार है ॥७॥

    भावार्थ

    उपासकों से ध्यान किया गया परमेश्वर अपने पास से आनन्दरस की प्रचुर धाराओं को उपासकों के हृदय में प्रेरित करता है ॥७॥

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    पदार्थ

    (पुनानः सोमः) अध्येष्यमाण—मनन निदिध्यासन में आया हुआ “पवस्व-अध्येषणाकर्मा” [निघं॰ ३.२१] शान्तस्वरूप परमात्मा (ऊर्मिणा) विभुगति तरङ्ग से (अव्यं वारम्) रक्षणीय तथा वरण करने—स्वीकार करने योग्य आत्मा को (वि धावति) विशेषरूप से साक्षात्—प्राप्त होता है (वाचः-अग्रे) स्तुति के आगे आगे—स्तुति के साथ (पवमानः कनिक्रदत्) आनन्दधारा में आता हुआ परमात्मा अत्यन्त संवाद करता है।

    भावार्थ

    आनन्दधारा में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा मनन, निदिध्यासन में आता हुआ स्तुति के साथ ही विभुगति तरङ्ग से विशेषरूप से संवाद करता हुआ अपने रक्षणीय स्थल आत्मा को प्राप्त होता है॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—अग्निश्चाक्षुषः (ज्ञानदृष्टिमान् तेजस्वी उपासक)॥<br>

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    विषय

    ज्ञान के शिखर पर

    पदार्थ

    जो व्यक्ति संसार के घटनाचक्र को बारीकी से देखता है वह 'चाक्षुष' है। यह कहीं भी न उलझता हुआ आगे बढ़ता जाता है, 'अग्नि' है। यह (सोमः) = शक्ति का पुञ्ज तथा विनीत (पुनान:) = अपने को निरन्तर पवित्र बनाने के स्वभाववाला (ऊर्मिणा) = अपने हृदय में उत्कर्ष को प्राप्त करने की उमंगों से (अव्यम्) = [अवनं अवः, तत्र साधुः] सर्वोत्तम रक्षणीय ज्ञान की (वारम्) = रुकावट अर्थात् कामादि वासनाओं को (विधावति) = विशेषरूप से शुद्ध कर डालता है-सफाया कर देता है। इन वासनाओं को समाप्त करके ही यह (वाचः अग्रे) = वाणी के - ज्ञान के शिखर पर पहुँचता है। यह (पवमानः) = औरों को भी पवित्र बनाने के हेतु से (कनिक्रदत्) = उन ज्ञानवाणियों का खूब उच्चारण करता है - इस ज्ञान का औरों को भी उपदेश देता है। 

    भावार्थ

    स्वयं ज्ञानी बनकर औरों को ज्ञान प्राप्त कराना ही मानव का लक्ष्य होना चाहिए।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा०  = ( पुनानः सोमः ) = सोम इसके समान स्वच्छ कान्तिमान आनन्दरस या मलादि रहित अन्तःकरण वाला, शमादि गुणों से सम्पन्न सोमनाम योगी जन ( ऊर्मिणा ) = अपनी ऊर्ध्व गति से ( अव्यं वारं ) = अज्ञान के आवरण को ( विधावति ) = पार कर ज्ञाता है । ( पवमानः ) = वह और भी अधिक उज्वल और पवित्र होकर ( वाचः ) = वेदवाणी के ( अग्रे ) = उत्तम, रहस्य भाग में ( कनिक्रदत् ) = गति करता हुआ स्तुतियों में मग्न हो जाता है ।

    टिप्पणी

    ५७२ – 'अव्यो वारं' इति ऋ०। 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - अग्निश्चाक्षुषः।

    देवता - इन्द्र:।

    छन्दः - उष्णिक्।

    स्वरः - ऋषभः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनर्ब्रह्मानन्दरसविषयमाह।

    पदार्थः

    (सोमः) ब्रह्मानन्दरसः (पुनानः) उपासकं पवित्रं कुर्वन् (ऊर्मिणा) तरङ्गेण साकम् (अव्यं वारम्) ऊर्णामयदशापवित्रमिव दोषनिवारकम् अविनश्वरं जीवात्मानं प्रति (वि धावति) वेगेन गच्छति। (वाचः) प्रोच्चारितायाः स्तुत्यात्मिकायाः गिरः (अग्रे) पूर्वमेव (पवमानः) धारारूपेण प्रवहन् सः। पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४। (कनिक्रदत्) कल-कलध्वनिमिव कुर्वन्, अस्तीति शेषः। ‘दाधर्तिदर्धर्ति०। अ० ७।४।६५’ इति क्रन्देर्यङ्लुगन्तात् शतरि निपात्यते ॥७॥ अत्र ब्रह्मानन्दे कारणभूतायाः स्तुतिवाचः उच्चारणात् पूर्वमेव ब्रह्मानन्दप्रवाहस्योदयवर्णनात् कारणात् प्राक् कार्योदयरूपोऽतिशयोक्तिरलङ्कारः ॥७॥

    भावार्थः

    उपासकैर्ध्यातः परमेश्वरः स्वसकाशादानन्दरसस्य प्रचुरा धारा उपासकानां हृदये प्रेरयति ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०६।१० ‘ऊर्मिणाव्यं’ इत्यत्र ‘ऊर्मिणाव्यो’ इति पाठः। साम० ९४०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Soul, the purifier and self-purified, through mental elevation, transgresses the covering of ignorance, and absorbs itself in the lofty mysteries of the Vedas.

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    Meaning

    Soma, pure and purifying, protective and blissful, flowing by streams and sanctifying, roaring with ancient and original hymns of divine adoration, rushes to the heart core of the distinguished soul. (Rg. 9-106-10)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (पुनानः सोमः) અધ્યેષ્યમાણ-મનન નિદિધ્યાસનમાં આવેલ શાંત સ્વરૂપ પરમાત્મા (ऊर्मिणा) વિભુગતિ તરંગથી (अव्यं वारम्) રક્ષણીય અને વરણ કરવા—સ્વીકાર કરવા યોગ્ય આત્માને (वि धावति) વિશેષ રૂપે સાક્ષાત્-પ્રાપ્ત થાય છે (वाचा अग्रे) સ્તુતિની આગળ-આગળ સ્તુતિની સાથે (पवमानः कनिक्रदत्) આનંદધારામાં આવતો પરમાત્મા અત્યન્ત સંવાદ કરે છે. (૭)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર શાંત સ્વરૂપ પરમાત્મા મનન, નિદિધ્યાસનમાં આવતાં સ્તુતિની સાથે જ વિભુગતિ તરંગથી વિશેષ રૂપથી સંવાદ કરતો આપણું રક્ષણીય સ્થળ આત્માને પ્રાપ્ત થાય છે. (૭)
     

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    سوم روپ اُپاسک

    Lafzi Maana

    سوم کی طرح خُوبرو اور ناپیکزگی سے مبرا، آنند رس سے بھرپور، من، چِت، بُدھی والا یوگی کامل یوگ مارگ پر چلتا ہوا اگیان کے رپدے کو ہٹا آگے بڑھتا ہوا مزید پاک پوتر ہو کر وید بانی کے رازوں کو جانتا ہوا اِن کے ساتھ بھگوان کی حمد و ثنا میں مست ہو جاتا ہے۔

    Tashree

    سوم شُدھ نرمل ہو کر یوگی پوترتا پا لیتا، اگیان دُور کر وید گیان سے پرمیشور کو گا لیتا۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    उपासकांद्वारे उपासित परमेश्वर आपल्याकडून आनंदरसाच्या प्रचुरधारांना उपासकांच्या हृदयात प्रेरित करतो ॥७॥

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    विषय

    पुन्हा ब्रह्मानंदरसाविषयीच

    शब्दार्थ

    (सोमः) ब्रह्मानंदरस (पुनानः) उपासकाला पवित्र करीत (ऊर्मिणा) तरंगाच्या रूपात (अव्यं वारम्) मेंढीच्या लोकराने बनलेल्या दशापवित्रा (गाळणी) प्रमाणे दोष निवारक अविनाशी आल्याप्रत (वि धाव ति) वेगाने धावत आहे. (वाचः) प्रोधारित स्तुतिवाणीच्या (अग्रे) आधीच (पवमानः) धारारूपाने वाहत येणारा तो रस (किवक्रदत्) कलकल ध्वनी करीत आहे.।।७।।

    भावार्थ

    उपासकांद्वारे ध्यात परमेश्वर आपल्यापासून आनंदरसाच्या भरपूर धारा उपासनाच्या हृदयाकडे प्रेरित करतो.।।७।।

    विशेष

    या मंत्रात कारण, म्हणजे स्तुतिवाणी, त्याच्या उधारणाआधीच ब्रह्मानंदाची म्हणजे कार्याची उत्पत्ती होणे वर्णित आहे, म्हणजे कारणाच्या आधी कार्य होत आहे. त्यामुळे येथे अतिशयोक्ती अलंकार आहे.।।७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    புனிதமாக்கப்படுங்கால் சோமன் அலையோடு கம்பள வழிகட்டி வழியாய் பாய்கிறான்; புனிதமாகுங்கால் மொழியின் முன் அடிக்கடி சப்தஞ் செய்கிறான்.

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