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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 641
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - 0
3
वि꣣दा꣡ म꣢घवन् वि꣣दा꣢ गा꣣तु꣢꣯मनु꣢꣯शꣳसिषो꣣ दि꣡शः꣢ । शि꣡क्षा꣢ शचीनां पते पूर्वी꣣णां꣡ पुरू꣢वसो ॥६४१
स्वर सहित पद पाठवि꣣दाः꣢ । म꣣घवन् । विदाः꣢ । गा꣣तु꣢म् । अ꣡नु꣢꣯ । शँ꣣सिषः । दि꣡शः꣢꣯ । शि꣡क्षा꣢꣯ । श꣣चीनाम् । पते । पूर्वीणा꣢म् । पु꣣रूवसो । पुरु । वसो ॥६४१॥
स्वर रहित मन्त्र
विदा मघवन् विदा गातुमनुशꣳसिषो दिशः । शिक्षा शचीनां पते पूर्वीणां पुरूवसो ॥६४१
स्वर रहित पद पाठ
विदाः । मघवन् । विदाः । गातुम् । अनु । शँसिषः । दिशः । शिक्षा । शचीनाम् । पते । पूर्वीणाम् । पुरूवसो । पुरु । वसो ॥६४१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 641
(कौथुम) महानाम्न्यार्चिकः » प्रपाठक » ; अर्ध-प्रपाठक » ; दशतिः » ; मन्त्र » 1
(राणानीय) महानाम्न्यार्चिकः » अध्याय » ; खण्ड » ;
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(कौथुम) महानाम्न्यार्चिकः » प्रपाठक » ; अर्ध-प्रपाठक » ; दशतिः » ; मन्त्र » 1
(राणानीय) महानाम्न्यार्चिकः » अध्याय » ; खण्ड » ;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
प्रथम मन्त्र में परमात्मा से मार्गनिर्देशन की प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (मघवन्) ज्ञानरूप ऐश्वर्य के धनी परमात्मन् ! आप (विदाः) हमें जानिए, (गातुम्) हमारे आचरण को (विदाः) जानिए, (दिशः) गन्तव्य दिशाओं का (अनुशंसिषः) उपदेश कीजिए। हे (शचीनां पते) ज्ञानों और कर्मों के अधिपति ! आप हमें भी (शिक्ष) ज्ञान और कर्म प्रदान कीजिए। हे (पुरुवसो) प्रचुर धनवाले ! आप (पूर्वीणाम्) श्रेष्ठ दानों के स्वामी हैं, हमें भी उन दानों का पात्र बनाइए ॥१॥ इस मन्त्र में अनेक क्रियाओं का एक कारक से योग होने के कारण दीपक अलङ्कार है। ‘विदा’ की आवृत्ति में लाटानुप्रास है। ‘पूर्वी, पुरूव’ में छेकानुप्रास है ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा से सब मनुष्यों को कर्तव्यज्ञान और कर्मसम्पति प्राप्त करके, पुरुषार्थ से धन कमा कर सदाचारपूर्वक समृद्ध जीवन बिताना चाहिए ॥१॥
पदार्थ
(मघवन्) हे मोक्षैश्वर्य वाले परमात्मन्! (विदाः) तू सब कुछ जानता है, अतः (गातुं विदाः) जीवन के मार्ग या गन्तव्य को प्राप्त करा (दिशः-अनुशंसिषः) आगे बढ़ने की दिशाओं को सुझा (पूर्वीणां शचीनां पते) शाश्वतिक प्रज्ञाओं—विद्याओं के स्वामिन् (पुरूवसो) बहुत ज्ञान धन वाले परमात्मन्! (शिक्ष) उन शाश्वतिक प्रज्ञाओं को, विद्याओं को, ज्ञानधनों को मुझे प्रदान कर “शिक्षति दानकर्मा” [निघं॰ ३.२०]।
भावार्थ
परमात्मा सर्वज्ञ है वेदत्रयी—समस्त शाश्वतिक विद्या का स्वामी है, मानव को जीवनयात्रा के मार्ग और गन्तव्य की दिशाएँ भी सुझाता है विशेषतः उपासक का महान् पथप्रदर्शक बनता है॥१॥
टिप्पणी
[*55. समस्तस्य महानाम्न्यार्चिकस्य।]
विशेष
ऋषिः—प्रजापतिः*55 (इन्द्रियों का स्वामी उपासक)॥ देवता—त्रैलोक्यात्मेन्द्रः१ (त्रिलोकी का आत्मा—विश्वात्मा ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥<br>
विषय
मार्ग का ज्ञान व मार्ग पर चलने की शक्ति
पदार्थ
(इन्द्र) = जीव प्रजापति से कहता है - हे (मघवन्) = सर्वैश्वर्यशालिन् प्रजापते! आप पापशून्य हैं [मा+अघ=मघ] अपापविद्ध हैं। (विदा) = आप सर्वज्ञ हैं। (विदा गातुम्) = आप मुझे भी मार्ग का [गा=गतौ] ज्ञान दीजिए। आपकी कृपा से मुझे सत्यासत्य व कर्त्तव्याकर्तव्य का विवेक प्राप्त हो। (दिशः अनुशंसिषा:) = इस जीवन-यात्रा में मुझे कब किस दिशा में चलना है इसका आप अनुशंसन कीजिए। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व संन्यास इन चार प्रयाणों के कर्त्तव्यों का आप मुझे क्रमशः उपदेश दीजिए |
इस मार्ग-ज्ञान के साथ मुझे शक्ति भी दीजिए कि मैं इस मार्ग पर चल सकूँ। हे (पुरूवसो) = पालन व पूरण के द्वारा उत्तम निवास करानेवाले प्रभो! आप (पूर्वीणां शचीनां पते) = पालक व पूरक शक्तियों के पति हैं। मुझे भी आप अपने ही समान (शिक्ष) = शक्त बनाने की इच्छा कीजिए। संसार में मेरी शक्ति सदा पालन व पूरण करनेवाली हो । ‘इन्द्रियों को निर्बल करके वश में करना' यह विचार वेदानुकूल नहीं है। हमारी इन्द्रियाँ शक्तिशाली हों पर हमारे मन का उनपर नियन्त्रण हो । सशक्त घोड़ों पर चढ़नेवाले सवार हम सशक्ततर हों।
भावार्थ
मार्ग के ज्ञान के लिए हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ ठीक हों और ठीक मार्ग पर चलने के लिए हमारी कर्मेन्द्रियाँ सशक्त हों ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( मघवन् ) = परमेश्वर ! ( विदाः ) = आप सब कुछ जानते हैं। अतः ( गातुं ) = मार्ग को ( विदा ) = आप प्राप्त करावें, आप ( दिश: ) = दिशाओं का ( अनुशंसिष: ) = उपदेश करें, हमें लक्ष्य तक पहुंचने की दिशा दर्शावें । हे ( पूर्वीणां ) = पूर्ण ( शचीनां ) = शक्तियों के ( पते ) = स्वामिन् ! हे ( पुरुवसो ) = समस्त प्रजाओं के भीतर बसने और उनको बसाने वाले ! या अति अधिक धन सम्पन्न ! ( शिक्ष ) = हमें शिक्षा करो, नियमों का उपदेश करो।
टिप्पणी
* अयमार्चिक: नतु छन्दआर्चिके नाप्युत्तरार्चिके । सर्वत्र एवमेव पूर्वोत्तरयोमध्ये पठितत्वात्परिशिष्टमिति केचित् । तदयुक्तम् । सर्वत्र सामसंहितासु तथोपलब्धेः । यज्ञे च होतुः पृष्ठेऽस्य विनियोगदर्शनाच्च । १. सोपसर्गाया अस्याशक्कर्याः सामगैः खण्डत्रयं कृतम् । तत्र प्रथमे आद्यपादद्वयमुपसर्ग: द्वितीये मध्यमपादद्वयमुपसर्गः तृतीये चान्तिमपाद उपसर्ग: । शेषैः सप्तभिः पादैरष्टाक्षरैः षट्पंचाशदक्षरा शक्करी पूयते । सर्वत्र रेखाङ्किताः पादा उपसर्गाः ज्ञेयाः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - प्रजापतिः।
देवता - इन्द्रस्त्रैलोक्यात्मा ।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्राद्ये मन्त्रे परमात्मा मार्गनिर्देशार्थं प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (मघवन्) ज्ञानैश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! त्वम् (विदाः) अस्मान् विद्धि जानीहि, (गातुम्) अस्माकम् आचरणम् (विदाः) विद्धि जानीहि, (दिशः) गन्तव्यान् मार्गान् (अनुशंसिषः) अनुशाधि। हे (शचीनां पते) प्रज्ञानां कर्मणां च अधिपते ! त्वम् अस्मभ्यम् अपि (शिक्ष) सत्प्रज्ञाः सत्कर्माणि च प्रदेहि। हे (पुरूवसो) प्रभूतधन ! त्वम् (पूर्वीणाम्) श्रेष्ठानां रातीनां, पतिः असि इति शेषः, तासां रातीनाम् अस्मानपि पात्रं कुरु। अत्र पूर्वीशब्देन श्रेष्ठा रातयो गृह्यन्ते, ‘पूर्वीरिन्द्रस्य रातयः।’ ऋ० १।११।३ इति श्रुतेः ॥ (विदाः) विद ज्ञाने, लेटि रूपम्, ‘लेटोऽडाटौ’, अ० ३।४।९४ इत्याडागमः। (अनुशंसिषः), अनुपूर्वात् शंसतेः लेटि रूपम्। (शचीनां पते), शची इति कर्मनाम प्रज्ञानाम च, निघं० २।१, ३।९। (शिक्षा), शिक्षतिः दानकर्मा, निघं० ३।२०। संहितायां ‘द्व्यचोऽतस्तिङः अ० ६।३।१३५ इति दीर्घः ॥१॥ अत्र बहूनां क्रियाणामेककारकयोगाद् दीपकालङ्कारः। ‘विदा’ इत्यस्यावृत्तौ लाटानुप्रासः। ‘पूर्वी, पुरूव’ इत्यत्र छेकानुप्रासः ॥१॥
भावार्थः
परमात्मनः सकाशात् सर्वैर्जनैः कर्तव्यज्ञानं कर्मसम्पत्तिं च प्राप्य पुरुषार्थेन धनान्यर्जयित्वा सदाचारेण समृद्धं जीवनं यापनीयम् ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, Thou art All-knowing, Guide us on the right path. Preach us how to reach our goal. O Lord of all powers. Most Opulent, teach us Thy laws !
Translator Comment
* Mahanamniarchika is neither a part of the first part पूर्वार्ध nor of the second part उत्तरार्ध . It is an independent Archika, lying in between the first and second part of the Samaveda. I wonder how a learned Vedic scholar like Satyavrat Samashrami has described it as an appendix, thought it is inserted between the first and second part in almost all the available text of the Samaveda. It is a mistake to call this part of ten verses as an appendix. It is a part and parcel of the Samaveda.
Meaning
O lord of knowledge, power and glory, you know all, you know the ways of the world of existence. Guide us which direction to take and pursue. O ruler, controller and dispenser of infinite wealth, master protector and promoter of universal thoughts, will and actions, pray give us the light, will and strength to act and succeed.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (मघवन्) હે મોક્ષૈશ્વર્યવાળા પરમાત્મન્ ! (विदाः) તું સર્વ કાંઈ જાણે છે, તેથી (गातुं विदाः) જીવનનો માર્ગ અથવા જવાના માર્ગને પ્રાપ્ત કરાવ (दिशः अनुशंसिषः) આગળ વધવાની દિશાઓને બતાવ (पूर्वीणां शचीनां पते) શાશ્વત પ્રજ્ઞાઓ-વિદ્યાઓના સ્વામિન્ ! (पुरूवसो) બહુ જ્ઞાનધનવાળા પરમાત્મન્ ! (शिक्ष) તે શાશ્વત પ્રજ્ઞાઓને, વિદ્યાઓને, જ્ઞાનધનોને મને પ્રદાન કર. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મા સર્વત્ર છે. વેદત્રયી-સમસ્ત શાશ્વત વિદ્યાનો સ્વામી છે, મનુષ્યને જીવનયાત્રાનો માર્ગ અને જવાની દિશાને પણ બતાવે છે. વિશેષતઃ ઉપાસકનો મહાન પથપ્રદર્શક બને છે. (૧)
उर्दू (1)
Mazmoon
وید بانی کی شکھشا دیجئے!
Lafzi Maana
روحانی خزانوں کے مالکِ اعلےٰ پرمیشور! آپ سب کچھ جانتے ہیں، ہمیں سام وید کے گان کا اُپدیش دیجئے، ہماری زندگیاں کس طرف کو چلیں، اس کی راہ بتائیں اور چلائیں، بے شمار دولتوں کے دھنی اور ازل سے چلے آ رہے وید گیان کے سوامی پرماتما! ہمیں وید بانی کی اصل شکھشا دیجئے۔
Tashree
روحانی دولتوں کے اطراف کے مالک ہو آپ، کون سی راہ پر چلیں، وید کی شکھشا دو آپ۔
Khaas
مہانا منی آرِچک
मराठी (2)
भावार्थ
परमेश्वराकडून सर्व माणसांनी कर्तव्यज्ञान व कर्मसंपत्ती प्राप्त करून, पुरुषार्थाने धन कमावून सदाचारपूर्वक समृद्ध जीवन जगले पाहिजे ॥१॥
विषय
प्रथम मंत्रात मार्गदर्शनाकरिता परमेश्वराची प्रार्थना-
शब्दार्थ
हे (मघवन्) ज्ञानरूप धनाचे स्वामी परमेश्वर, तुम्ही (विदाः) आम्हाला (उपासकांना) जाणून घ्या (गातुम्) आमच्या आचरणाला (विदाः) जाणून घ्या (अमाचे मनोगत ओळखा व आमच्या वागणुकीवर नजर ठेवा) आम्हाला (दिशः) गंतव्य दिशांविषयी (अनुशंसिषः) उपदेश करा (उत्तमचे मार्गदर्शन करा, वा काय करावे, काय न करावे, याविषयी ज्ञान द्या) हे (शघीनांपते) ज्ञानाचे व कर्माचे स्वामी, तुम्ही आम्हाला (शिक्ष) ज्ञानप्राप्ती व कर्म करण्याची प्रेरणा द्या. हे (पुरुवस्ये) प्रचुर धनवान प्रभो, तुम्ही (पूर्वीणाम्) श्रेष्ठ दानाचे स्वामी आहात (योग्य व्यक्तींना योग्य ते दान देता) आम्हालाही त्या दानासाठी पात्र होऊ द्या.।।१।।
भावार्थ
सर्वांनी परमेश्वराकडून कर्तव्य-ज्ञान व कर्म प्रेरणा प्राप्त करून तसेच पुरुषार्थ-परिश्रमाद्वारे संपत्ती अर्जित करून सदाचाराच्या मार्गावर चालत चालत समृद्धिशाली व्हायला हवे.।।१।।
विशेष
या मंत्रात अनेक क्रियांचा एकच कारक वा कर्ता असल्यामुळे येथे दीपक अलंकार आहे. ‘विदा’च्या आवृत्तीमुळे लाटानुप्रास आहे. ‘पूर्वी’, पुरुव’मधे छेकानुप्रास आहे.।।१।।
तमिल (1)
Word Meaning
மகவானே ! எல்லாம் அறிபவன் நீ ! பூமியை அளிக்கவும்! சுவர்கஞ் செல்லும் வழிகளை அறிவிக்கவும்; பூர்வமான சக்தியின் பதியே! புருவசுவே! சிக்ஷை கல்வியை அளிக்கவும்:
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