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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 708
ऋषिः - सौभरि: काण्व:
देवता - इन्द्रः
छन्दः - काकुभः प्रगाथः (विषमा ककुप्, समा सतोबृहती)
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
2
व꣣य꣢मु꣣ त्वा꣡म꣢पूर्व्य स्थू꣣रं꣢꣫ न कच्चि꣣द्भ꣡र꣢न्तोऽव꣣स्य꣡वः꣢ । व꣡ज्रि꣢ञ्चि꣣त्र꣡ꣳ ह꣢वामहे ॥७०८॥
स्वर सहित पद पाठव꣣य꣢म् । उ꣣ । त्वा꣢म् । अ꣣पूर्व्य । अ । पूर्व्य । स्थूर꣢म् । न । कत् । चि꣣त् । भ꣡र꣢꣯न्तः । अ꣣वस्य꣡वः꣢ । व꣡ज्रि꣢꣯न् । चि꣣त्र꣢म् । ह꣣वामहे ॥७०८॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमु त्वामपूर्व्य स्थूरं न कच्चिद्भरन्तोऽवस्यवः । वज्रिञ्चित्रꣳ हवामहे ॥७०८॥
स्वर रहित पद पाठ
वयम् । उ । त्वाम् । अपूर्व्य । अ । पूर्व्य । स्थूरम् । न । कत् । चित् । भरन्तः । अवस्यवः । वज्रिन् । चित्रम् । हवामहे ॥७०८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 708
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ४०८ पर परमेश्वर, आचार्य और वैद्यराज के पक्ष में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ जीवात्मा को कहा जा रहा है।
पदार्थ
हे (अपूर्व्य) अद्वितीय बल से युक्त, (वज्रिन्) काम, क्रोध आदि शत्रुओं पर वज्र-प्रहार करनेवाले मेरे अन्तरात्मा ! (अवस्यवः) प्रगति को चाहनेवाले (वयम्) हम (चित्रम्) अद्भुत गुण-कर्म-स्वभाववाले (त्वाम्) आपको (आह्वयामः) पुकारते हैं। किस प्रकार? (न) जैसे (कच्चित्) किसी (स्थूरम्) स्थूल बड़ी वस्तु को (हरन्तः) दूसरे स्थान पर ले जाते हुए लोग, सहायता के लिये किसी को पुकारते हैं ॥१॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ
प्रगति के मार्ग पर दौड़ने के लिये अपना अन्तरात्मा मनुष्य का परम सहायक होता है ॥१॥
टिप्पणी
(देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४०८)
विशेष
ऋषिः—सौभरिः (परमात्मा के आनन्द को अपने अन्दर भरने में कुशल)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
विषय
सोभरि काण्व [ क्या हम भी अपने को भरेंगे ? ]
पदार्थ
(स्थूरं न) = एक दृढ़ शक्तिशाली पुरुष के समान (भरन्तः) = अपने को उत्तम गुणों से भरते हुए और इस प्रकार (अवस्यवः) = अपनी रक्षा चाहते हुए (वयम् उ) = हम भी (कच्चित्) = क्या (त्वाम्) = तुझ प्रभु को पुकारेंगे? शक्तिशाली पुरुष शनैः शनैः अपने भीतर गुणों का संग्रह कर पाता है। दृढ़ निश्चयवाला पुरुष ही आगे बढ़ता है । क्या हमारे लिए भी कभी वह शुभ दिन आएगा कि हम भी दृढ़ निश्चय के साथ अपने अन्दर उत्तम गुणों को भरने की कामनावाले बनकर, उस प्रभु का स्मरण करेंगे ? वे प्रभु ('अपूर्व्य') = हैं, पूर्ण होने के कारण वहाँ किसी अन्य पूरण का सम्भव नहीं [पूर्व-पूरणे] । क्या हम भी अपना पूरण करते-करते कभी पूर्णता की स्थिति तक पहुँचेंगे? इस पूर्णता के मार्ग में आसुर वृत्तियों के आक्रमण, इस चमकीले संसार के शतश: प्रलोभन हमारे लिए विघातक हैं। इनके आक्रमणों से अपनी रक्षा के लिए हम उस (वज्रिन्) = वज्रधारक (चित्रम्) = अद्भुत शक्ति अथवा संज्ञान देनेवाले [चित्+र] उस प्रभु को ही (हवामहे) = पुकारते हैं । वज्रिन् शब्द‘वज गतौ' धातु से बनकर क्रियाशीलता का भी संकेत कर रहा है । वस्तुतः आसुर आक्रमणों से बचने के लिए ‘क्रियाशीलता+ज्ञान' ही उपाय हैं। एवं, इन दोनों उपायों का अनुष्ठान करता हुआ व्यक्ति आसुर वृत्तियों को सदा अपने से दूर रखता है और एक-एक करके सद्गुणों को अपने अन्दर भरता चलता है । इस उत्तम भरण के कारण ही वह सोभरि कहलाता है। कण-कण करके इस सु-भरण करने के कारण वह का है । काण्व का अर्थ अत्यन्त मेधावी भी है । वस्तुत: इस प्रकार आसुर वृत्तियों से अपनी रक्षा करके उत्तम गुणों को अपने अन्दर भरना ही तो बुद्धिमत्ता है।
भावार्थ
प्रभु-स्मरण के साथ ज्ञानपूर्वक कर्म करते हुए हम अपने अन्दर दिव्य गुणों का संग्रह करते चलें ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = (१) व्याख्या देखो अविकल सं० [४०८] पृ० २०७ ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - सौभरि: । देवता - इन्द्र:। छन्दः - ककुप् । स्वरः - ऋषभ:।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४०८ क्रमाङ्के परमेश्वराचार्यभिषग्विषये व्याख्याता। अत्र जीवात्मानमाह।
पदार्थः
हे (अपूर्व्य) अद्वितीयबलयुक्त (वज्रिन्) कामक्रोधादिषु रिपुषु उद्यतवज्र इन्द्र मदीय अन्तरात्मन् ! (अवस्यवः) प्रगतिं कामयमानाः (वयम् उ) वयंखलु (चित्रम्) अद्भुतगुणकर्मस्वभावम् (त्वाम् हवामहे) आह्वयामः। कथमिव ? (न) यथा (कच्चित्) किमपि (स्थूरम्) स्थूलं विशालं वस्तु (भरन्तः) हरन्तः, स्थानान्तरं प्रापयन्तो जनाः सहायतार्थं कमपि हवन्ते आह्वयन्ति तद्वत्। [हृञ् हरणे, ‘हृग्रहोर्भश्छन्दसि’ इति वार्तिकेन हस्य भः] ॥१॥ अत्रोपमालंकारः ॥१॥
भावार्थः
प्रगतिमार्गमनुधावितुं मनुष्यस्य स्वकीय अन्तरात्मा खलु परमः सहायकः ॥१॥
टिप्पणीः
४. ऋ० ८।२१।१, अथ० २०।१४।१ (ऋषिः सौभरिः), २०।६२।१,सर्वत्र ‘वाजे॑ चि॒त्रं ह॑वामहे’ इति पाठः। साम० ४०८।
इंग्लिश (2)
Meaning
O Chastising, Young King, longing for our protection, we call on thee, matchless, filling thy treasury through the payment of taxes just as one fills a bin with corn!
Translator Comment
The subjects should fill the treasure of a King by paying taxes, just as a prudent person fills the bin with corn, to be utilised at the time of need. This verse is to same as 408, but with a different interpretation.
Meaning
O lord sublime, eternal, first and most excellent, we, bearing almost nothing substantial but praying for protection and advancement, invoke you in our battle of life for food, energy, knowledge and ultimate victory. (Re. 8-21-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अपूर्व्य वज्रिन्) પૂર્વ-પુરાતનકાળમાં થયેલા શ્રેષ્ઠોમાં પણ શ્રેષ્ઠ ઓજસ્વિન્ પરમાત્મન્ ! (कत चित् स्थूरं न भरन्तः) જેમ કોઈ કોઠારમાં-કોઠીમાં જવ આદિ અનાજ ભરે છે, તેમ ઉપાસનારસથી ભરતાં (वयं अवस्यवः) અમે રક્ષા ચાહનાર ત્વાં ચિત્ર (हवामहे) તારા ચયનીય દર્શનીયને આમંત્રિત કરીએ છીએ. (૧૦)
भावार्थ
ભાવાર્થ : જેમ સંસારમાં સમયપર પ્રાણરક્ષા ચાહતા અથવા સમય પર (જરૂર પડતાં) અનાજ મેળવવા જવ આદિ અનાજને કોઠી-કોઠારમાં ભરે છે, તેમ દર્શનીય, સર્વશ્રેષ્ઠ, ઓજસ્વી પરમાત્માને અમે રક્ષા ચાહનારા ઉપાસકો ઉપાસનાથી ભરીને સમય પર રક્ષા કરનારને આમંત્રિત કરીએ છીએ, તે અવશ્ય રક્ષા કરશે. (૧૦)
मराठी (2)
भावार्थ
प्रगतीच्या मार्गावर तीव्रतेने चालण्यासाठी आपला अंतरात्मा मनुष्याचा परम सहायक असतो ॥१॥
विषय
वैद्यराज फरक केला आहे. येथे जीवात्म्याविषयी सांगितले जात आहे.
शब्दार्थ
(अपूर्व्य) अद्वितीय शक्तीने संपन्न तसेच (वज्रिन्) काम, क्रोधादी शत्रुंवर वज्रप्रहार करणाऱ्या हे माझ्या अंतरात्मा (अवस्थव:) प्रगतीची कामना करणारे (वदम्) आम्ही (चित्रम्) अद्भुत गुण कर्म स्वभाव असणाऱ्या (त्वाम्) तुम्हाला (आहृमात्र:) हाक देत आहोत. (आम्ही स्वत:च्या अंत:करणाच्या सुप्त अशा शक्तीस जागृत करीत आहोत. कशाप्रकारे? (न) जसे (कच्छित) कोणा (स्थूरम्) स्थूल वा विशाल आकाराच्या वस्तुला (हरन्त:) एका ठिकाणाहून दुसरीकडे नेताना लोक मदतीसाठी इतर जनांना बोलावतात. ।।१।।
भावार्थ
प्रगतीच्या मार्गावर चालणाऱ्या मनुष्यासाठी त्याचा स्वत:चा जीवात्मा हाच परमश्रेष्ठ सहाय्यक असतो. (त्यामुळे उन्नती इच्छिणाऱ्या माणसाने स्वत:मधील मनोबल वाढवित जावे.) ।।१।।
विशेष
या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ।।१।।
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