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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 81
    ऋषिः - गय आत्रेय देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
    2

    अ꣢ग्न꣣ ओ꣡जि꣢ष्ठ꣣मा꣡ भ꣢र द्यु꣣म्न꣢म꣣स्म꣡भ्य꣢मध्रिगो । प्र꣡ नो꣢ रा꣣ये꣡ पनी꣢꣯यसे꣣ र꣢त्सि꣣ वा꣡जा꣢य꣣ प꣡न्था꣢म् ॥८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡ग्ने꣢꣯ । ओ꣡जि꣢꣯ष्ठम् । आ । भ꣣र । द्युम्न꣢म् । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । अ꣣ध्रिगो । अध्रि । गो । प्र꣢ । नः꣣ । राये꣢ । प꣡नी꣢꣯यसे । र꣡त्सि꣢꣯ । वा꣡जा꣢꣯य । प꣡न्था꣢꣯म् ॥८१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्न ओजिष्ठमा भर द्युम्नमस्मभ्यमध्रिगो । प्र नो राये पनीयसे रत्सि वाजाय पन्थाम् ॥८१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । ओजिष्ठम् । आ । भर । द्युम्नम् । अस्मभ्यम् । अध्रिगो । अध्रि । गो । प्र । नः । राये । पनीयसे । रत्सि । वाजाय । पन्थाम् ॥८१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 81
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 1
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 9;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में अग्नि नाम से परमेश्वर, राजा और आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (अध्रिगो) बेरोक गतिवाले और अप्रविरुद्ध तेजवाले (अग्ने) अग्रनेता परमात्मन् राजन् और आचार्य ! आप (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (ओजिष्ठम्) अतिशय ओजयुक्त, अतिप्रबल (द्युम्नम्) यश, तेज और अन्न (आ भर) प्रदान कीजिए। (नः) हमारे लिए (पनीयसे) अतिशय प्रशंसा के योग्य (राये) ऐहिक एवं पारमार्थिक धन की प्राप्ति के लिए और (वाजाय) शारीरिक एवं आध्यात्मिक बल की प्राप्ति के लिए (पन्थाम्) मार्ग को (प्र रत्सि) तैयार कीजिए ॥१॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा, राजा और विद्वान् आचार्य हमें उस सन्मार्ग का उपदेश करें, जिस पर चलते हुए हम प्रबल जगद्व्यापिनी कीर्ति को, अनतिक्रमणीय श्लाघ्य दीप्ति को, सकल भोज्य पदार्थों को, सोना-चाँदी-हीरे-मोती-मणि-गाय-पुत्र-पौत्र-रथ-महल-शस्त्रास्त्र-विद्या-धर्म-आरोग्य-चक्रवर्तीराज्य-मोक्ष आदि रूपवाले अनेक प्रकार के धन को और शारीरिक तथा आत्मिक बल को अपने पुरुषार्थ से व उनके अनुग्रह से प्राप्त कर लें ॥१॥

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    पदार्थ

    (अध्रिगो-अग्ने) हे अधृतगमन—अनिरुद्धगतिवाले—सर्वथा सर्वदा पूर्ण शक्तिवाले परमात्मन्! “अध्रिगो-अधृतगमन” [निरु॰ ५.१०] (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (ओजिष्ठं द्युम्नम्) अत्यन्त ओजस्वी यश सत्कर्म ख्याति को “द्युम्नं यशः” [निरु॰ ५.५] (आभर) समन्तरूप से धारण करा, तथा (पनीयसे राये वाजाय) प्रशंसनीय ऐश्वर्य—मौक्षैश्वर्य के लिये और प्रशंसनीयबल—आत्मबल के लिये “वाजो बलम्” [निघं॰ २.९] (नः पन्थां प्ररत्सि) हमारे मार्ग को निर्माण कर—तैयार कर।

    भावार्थ

    अप्रतिहत शक्तिवाला परमात्मा उपासकों में संसारनिर्वाहक ऊँचा यश धारण कराता है तथा मौक्षैश्वर्य और आत्मबल प्राप्ति का मार्ग भी बनाता है उसकी उपासना करना उसकी शरण लेना अपना समर्पण करना कल्याणकारी और परम आवश्यक है॥१॥

    विशेष

    छन्दः—अनुष्टुप्॥ स्वरः—गान्धारः। ऋषिः—गयत्रिः (अध्यात्म धन का रक्षक तथा वर्धक उपासक)॥ <br>

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    विषय

    महान् त्याग की तैयारी

    पदार्थ

    इस मन्त्र में प्रभु को (अग्ने) = आगे ले-चलनेवाले तथा (अध्रिगो) = अधृतगमन=अप्रतिहत गतिवाले इन दो शब्दों से सम्बोधित किया गया है। ये सम्बोधन उपासक को यही प्रेरणा दे रहे हैं कि तुझे आगे बढ़ना है, थककर इस अग्रगति में रुक नहीं जाना है। यह जीवनयात्रा ही तो है, और इस यात्रा में रुक गये तो यह अधूरी ही रह जाएगी।

    इस यात्रा के प्रथम प्रयाण में हम प्रभु से याचना करते हैं कि (अस्मभ्यम्) = हमें (द्युम्नम्) = प्रकाशशील ज्ञानरूप धन (आभर) = प्राप्त कराइए, परन्तु वह ज्ञानरूप धन (ओजिष्ठम्) = हमें ओजस्वी व शक्तिशाली बनानेवाला हो । ज्ञान प्राप्त करके; हम सुकोमल शरीर [delicate ] न बन जाएँ, क्योंकि जीवन के अगले प्रयाण में यह शारीरिक श्रम की वृत्ति ही हमें अशुभ मार्गों से धन कमाने से बचाएगी।

    दूसरे प्रयाण के लिए प्रार्थना ही यह है कि (नः) = हमें (पनीयसे) = (पन=स्तुतौ) (राये) = धन के लिए ले - चलिए, अर्थात् हम गृहस्थ बनकर प्रशंसा के योग्य मार्गों से धन कमाएँ। गृहस्थ में धन की आवश्यकता तो है ही - गृहस्थ को अपना ही नहीं अन्य तीनों आश्रमियों का भी पालन करना है। इस धन को वह उत्तम मार्ग से संचित करे। सबसे उत्तम मार्ग ‘श्रम’ ही है। (“अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व”)='पासों से जुआ मत खेल, खेती ही कर' यह वेदवाक्य श्रमसाध्य धन की उत्तमता का संकेत कर रहा है। हमारा ज्ञान ओजिष्ठ होगा तो हम सदा श्रमशील बने रहेंगे और तब हमारी टेढ़े-मेढ़े साधनों से धन कमाने की वृत्ति न होगी।

    तीसरे प्रयाण में हम प्रभु से आराधना करते हैं कि (वाजाय) = [ वाज=a sacrifice] त्याग के लिए (पन्थाम्) = मार्ग को (प्र- रत्सि) = विशेषरूप से तैयार कर दीजिए [रद्-to chalk out]। गृहस्थ गृह को त्यागकर वनस्थ होता है । यह वानप्रस्थाश्रम त्याग का आश्रम है और इसके बाद संन्यास कुटिया व आश्रमादि को छोड़कर सर्वत्र विचरते हुए लोकहित में लगे रहने से 'महान् त्याग' का आश्रम है। इसी के लिए तो हमने इस रूप में तैयारी की थी कि शक्तिशाली ज्ञान प्राप्त किया और सदा स्तुत्य धन को अपनाकर धन के प्रति अपनी आसक्ति

    को बढ़ने नहीं दिया। आसक्ति तो हमें त्याग और महान् त्याग के अयोग्य बना देती ।

    ‘ओजिष्ठ द्युम्न' नींव है, 'स्तुत्य धन' उसपर खड़ी दीवारें हैं और त्याग व महान् त्याग इस ‘मानव भवन' की छत हैं। प्रभुकृपा से हम इस सुन्दर भवन का निर्माण करनेवाले इस मन्त्र के ऋषि ‘गय' = उत्तम गृहवाले बनें। [गयम् अस्यास्ति इति गयः]

    भावार्थ

    अपनी जीवन यात्रा के चार पड़ावों में हमें शक्तिशाली ज्ञानवाला, स्तुत्य धन कमानेवाला, त्यागी व महान् त्यागी बनना है।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = हे अग्ने ! ( ओजिष्टम् १  ) = कान्तियुक्त बलकारी ( द्युम्नम् ) = धन धान्य सुवर्णरत्न आदि ( अस्मभ्यम् ) = हमारे लिये ( आ भर ) = प्राप्त कराओ  । हे ( अध्रिगो२   ) = अक्षय सामर्थ्यवान् देव ! ( नः ) = हमारे लिये ( पनोयसे ) = स्तुति योग्य, प्रशंसनीय एवं व्यवहार व्यापार आदि करने योग्य ( राये ) = सम्पत्ति के लिये और ( वाजाय ) = अन्न आदि पदार्थों की प्राप्ति के लिये ( पन्थाम् ) = मार्ग, उपाय ( प्र रत्सि ३  ) = तैयार कर, हमें सुझा ।
     

    टिप्पणी

    ८ १ - 'प्रनो राया परीणसा' इति ऋ० ।  
    १. ओजो बलम् ( नि० २ ।  ९ ) 
    २. अधृत शब्दस्याघ्रिभावः । गमनं गौः । ( नि०भा० ) 
    ३. रद विलेखने । भ्वादिः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - गपत्रि:। छन्द: - अनुष्टुप् ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाग्निनाम्ना परमेश्वरो नृपतिराचार्यश्च प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (अध्रिगो) अप्रतिहतगमन, अप्रतिहततेजस्क वा। अध्रि अधृतम् अनवरुद्धं यथा स्यात्तथा गच्छतीति अध्रिगुः। अध्रिगो अधृतगमन इति निरुक्तम्। ५।१०। यद्वा, अध्रयः अधृता गावः तेजः—किरणा यस्य सः। तत्संबुद्धौ अध्रिगो इति। (अग्ने) अग्रनेतः परमात्मन् राजन् आचार्य वा ! त्वम् (अस्मभ्यम्) अस्माकं कृते (ओजिष्ठम्) अतिशयेन ओजोयुक्तम्, अतिप्रबलम् (द्युम्नम्२) यशस्तेजोऽन्नं वा। द्युम्नं द्योततेः, यशो वाऽन्नं वा। निरु० ५।५। (आभर) आहर। (नः) अस्मभ्यम् (पनीयसे) अतिशयस्तुत्या। पण व्यवहारे स्तुतौ च। अतिशायने ईयसुन् प्रत्ययः। (राये) ऐहिकपारमार्थिकधनाय, (वाजाय) शारीरिकाध्यात्मिकबलाय च (पन्थाम्) पन्थानम् मार्गम् (प्र रत्सि३) प्र रद, प्रकृष्टतया विलिख, सज्जीकुरु। रद विलेखने, भ्वादिः। लोटि बहुलं छन्दसि अ० २।४।७३ इति शपो लुक्। सेर्हिकारादेशाभावश्छान्दसः।४ ॥१॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥१॥

    भावार्थः

    परमात्मवन्नृपतिर्विद्वानाचार्यश्च तं सन्मार्गमस्मानुपदिशेद् यमनुसरन्तो वयं प्रबलां जगद्व्यापिनीं कीर्तिम्, अनतिक्रमणीयां श्लाघ्यां दीप्तिं, सकलान् भोज्यपदार्थान्, सुवर्णरजतहीरकमुक्ता- मणि-धेनु-पुत्र-पौत्र-रथ-प्रासाद-शस्त्रास्त्र-विद्याधर्मारोग्यचक्रवर्तिराज्य- मोक्षादिस्वरूपं विविधं धनं, दैहिकमात्मिकं च बलं स्वपुरुषार्थेन तदनुग्रहेण च प्राप्नुयाम ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ५।१०।१ प्र नो राया परीणसा इति तृतीयः पादः। २. यशो धनं वा—इति ऋ० ५।१०।१ भाष्ये द०। ३. रत्सि। लडयं लोडर्थे द्रष्टव्यः। राहि। प्रकर्षेण देहीत्यर्थः—इति वि०। प्रकर्षेण विलिख, रदिर्विलेखनकर्मा। कुरु इत्यर्थः—इति भ०। ४. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयं विद्वत्पक्षे व्याख्यातः।

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O God, Resistless on Thy way, bring us most mighty splendour. Prepare for us the path that leads to glorious opulence and strength.

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    Meaning

    Agni, irresistible power of motion and advancement for the aspirants, bring us the most brilliant honour and excellence of life. Bless us with abundant wealth, open the path of progress and guide us on the way. (Rg. 5-10-1)

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    Translation

    O adorable Lord of irresistible powers, bring to us most powerful and resistless splendor; may you invest us with over-flowing store of wealth, and mark out for us the paths of spiritual enlightenment.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अधिग्रो अग्ने) અધૃતગમન = અનિરુદ્ધ ગતિયુક્ત - સર્વથા સર્વદા પૂર્ણ શક્તિશાળી પરમાત્મન્ ! (अस्मभ्यम्) અમારા માટે (ओजिष्ठं द्युम्नम्) અત્યંત ઓજસ્વી યશ સત્કર્મ કીર્તિને (आभर) સર્વત્રથી ધારણ કરાવ ; તથા (पनीयसे राये वाजाय) પ્રશંસનીય ઐશ્વર્ય - મોક્ષ ઐશ્વર્યને માટે તથા પ્રશંસનીય બળ-આત્મબળને માટે (नः पन्था प्ररत्सि) અમારા માર્ગનું નિર્માણ કર - તૈયાર કર. (૧)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : અપ્રતિહત શક્તિમાન પરમાત્મા ઉપાસકોમાં સંસાર નિર્વાહક મહાન યશને ધારણ કરાવે છે તથા મોક્ષ ઐશ્વર્ય અને આત્મબળની પ્રાપ્તિનો માર્ગ બનાવે છે ; તેની ઉપાસના કરવી , શરણ લેવું , પોતાનું આત્મ સમર્પણ કરવું એક કલ્યાણકારી અને પરમ આવશ્યક છે. (૧)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    آتمک دھن کے مارگ پر چلاؤ

    Lafzi Maana

    ہے اگنے (اوجشٹھم) اتینت اوجسوی بل کاری (دئیومنم) آتمک ایشوریہ، یش، سونا، رتن، گیان اور گیان دھن ا(اسمبھیم) ہمارے لئے (آبھر) پراپت کرائیے۔ (ادھری گو) اکھشئے سمرتھ وان شکتی شالی پربھُو آپ کی شکتی ابادھ ہے۔ جس کو کوئی روک نہیں سکتا (پنی یسے) سُتتی کے یوگیہ (رائے) دھن کے لئے (واجائے) اور پھر اس کے لئے اَنّ، بل اور شکتی پراپتی کے لئے (پرینتھام) سریشٹھ مارگ (رتسی) تیار کیجئے۔ اِس راستے پر ہمیں چلائیے۔
     

    Tashree

    تعریفی کلمات دُعاؤں سے رِجھاتے تُم کو،
    اپنے روحانی زر و مال سے بھر دو ہم کو۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमात्मा, राजा व विद्वान आचार्यांनी आम्हाला सन्मार्गाचा उपदेश करावा. आम्ही प्रबल जगद्व्यापिनी कीर्ती, उल्लंघन न करता येणारी प्रशंसनीय दीप्ती, संपूर्ण भोज्य पदार्थ, सोने-चांदी-हिरे-मोती-मणी-गाय-पुत्र-पौत्र-रथ-महाल- शस्त्रास्त्र- विद्या-धर्म-आरोग्य - चक्रवर्ती राज्य- मोक्ष इत्यादी अनेक प्रकारचे धन व शारीरिक आणि आत्मिक बल आपल्या पुरुषार्थाने व त्याच्या अनुग्रहाने प्राप्त करावे. ॥१॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात अग्नि नावाने परमेश्वर, नृपती आणि आचार्य, या तिघांची प्रार्थना केली आहे. -

    शब्दार्थ

    (अधिग्रे) अबाध गती असणाऱ्या आणि अविरूद्ध तेजोमय (ज्यांची प्रगती कोणी राखू शकत नाही आणि ज्यांच्या तेजासमोर सर्वांचे तेज निस्तेज ठरते, असे) हे अग्रनेता परमेश्वर/हे राजन्/हे आचार्य आपण (अस्मभ्यम्) आम्हास (ओजिष्ठम्) अत्यंत ओजमुक्त, अतिप्रबळ असे (द्युम्नम्) यश, तेज व अन्न (आ भर) प्रदान करा. (न:) आम्हाकरिता (पनीयसे) अत्यंत प्रशंसनीय अशा (राये) ऐहिक आणि पारमार्थिक धन प्राप्तीसाठी आणि (वाजाय) शारीरिक व आध्यात्मिक शक्ती प्राप्तीसाठी (पन्थाम्) मार्ग (प्ररत्सि) प्रशस्त करा (आम्ही विनंती करतो.) ।।१।।

    भावार्थ

    परमेश्वराने, राजाने आणि विद्वानाने आम्हा (उपासक/प्रजाजन/शिष्य) यांना अशा सन्मार्गावर जाण्यासाठी उपदेश करावा की जे मार्ग अनुसरण्याने आम्हाला जगद्व्यापिनी कीर्ती मिळे, अभतिक्रमणीय श्लाघ्य दीप्ती प्राप्त होईल. समस्त भोज्य पदार्थ, तसेच स्वर्ण, रौप्य, हीरक, भौक्तिक, मणी, गौ, पुत्र, पौत्र रथ, भवन, शस्त्रास्त्र, विद्या, धर्म, आरोग्य, चक्रवर्ती राज्य, मोक्ष आदी रूपातील विविध धन प्राप्त होईल. अशाप्रकारे आम्ही शारीरिक व आत्मिक शक्ती आपल्या पुरुषार्थाने तसेच त्यांच्या (परमेश्वर, राजा व आचार्य यांच्या) कृपेने प्राप्त करू शकू. ।।१।।

    विशेष

    या मंत्रात अर्थश्लेष अलंकार आहे. ।।१।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    அக்னியே! தடையின்றி செல்லுபவனே! எங்களுக்கு பலமுள்ள பெரும் சோதியைக் கொண்டு வரவும், சக்திக்கும் செல்வத்திற்குமான வழியை எங்களுக்குத் தயார் செய்யவும்.

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