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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 840
    ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    वि꣡श्व꣢स्मा꣣ इ꣡त्स्व꣢र्दृ꣣शे꣡ साधा꣢꣯रणꣳ रज꣣स्तु꣡र꣢म् । गो꣣पा꣢मृ꣣त꣢स्य꣣ वि꣡र्भ꣢रत् ॥८४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि꣡श्व꣢꣯स्मै । इत् । स्वः꣢ । दृ꣣शे꣢ । सा꣡धा꣢꣯रणम् । र꣣जस्तु꣡र꣢म् । गो꣣पा꣢म् । गो꣣ । पा꣢म् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । विः । भ꣣रत् ॥८४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वस्मा इत्स्वर्दृशे साधारणꣳ रजस्तुरम् । गोपामृतस्य विर्भरत् ॥८४०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वस्मै । इत् । स्वः । दृशे । साधारणम् । रजस्तुरम् । गोपाम् । गो । पाम् । ऋतस्य । विः । भरत् ॥८४०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 840
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में भी परमात्मा का ही विषय है।

    पदार्थ

    (विश्वस्मै इत्) सभी के लिए (स्वः दृशे) सुखदर्शनार्थ (साधारणम्) जो साधारण है, अर्थात् किये कर्मों के अनुसार जो सभी सत्पात्र जनों को बिना पक्षपात के सुख दर्शाता है, (रजस्तुरम्) जो रजोगुण के द्वारा क्रिया करवाता है, (ऋतस्य) सत्य का (गोपाम्) जो रक्षक है, ऐसे पवमान सोम अर्थात् पवित्र करनेहारे जगत्स्रष्टा परमात्मा को (विः) गतिशील जीवात्मा (भरत्) अपने अन्तःकरण में धारण करे ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा सत्य का ही रक्षक है, असत्य का नहीं। उसके न्याय में विश्वास करके सबको सत्कर्म ही करने चाहिएँ ॥५॥

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    पदार्थ

    (विश्वस्मै-इत् स्वर्दृशे) सब के लिए निश्चय सुख दिखाने के लिए (साधारणं रजस्तुरम्) समानरूपी दोषनाशक (ऋतस्य गोपाम्) अमृत के रक्षक परमात्मा को “ऋतममृतमित्याह” [जै॰ २.१६०] (विः-भरत्) ज्ञानवान् उपासक “वी गति......” [अदादि॰] अपने अन्दर धारण करता है।

    भावार्थ

    समस्त जन को सुख दिखाने के लिए जो समानरूप दोषनाशक अमृत का रक्षक परमात्मा है उसको ज्ञानवान् उपासक अपने अन्दर धारण करता है॥५॥

    विशेष

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    विषय

    विश्व ज्योति का दर्शन – स्वर्गसुख-लाभ

    पदार्थ

    हे जीव ! ('दिवः रयि:') = ज्ञान का प्रकाश तो तुझे प्राप्त होता ही है । (अध) = अब (इन्द्रियम्) = इन्द्रियों की शक्ति – बल को (हिन्वान:) = प्राप्त करता हुआ तू (ज्याय: महित्वम्) = उत्कृष्ट महत्त्व को (आनशे) = प्राप्त करता है।‘ब्रह्म’ के साथ ‘क्षत्र' के मिल जाने से सोने में सुगन्ध हो जाती है। (अभिष्टिकृत्) = इस ब्रह्म व क्षत्र के मेल से तू सब अभीष्टों को – सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाला होता है। अथवा [अभिष्टि worship] तू सच्ची उपासना करनेवाला होता है तथा (विचर्षणिः) = तू विशिष्ट द्रष्टावस्तुओं को ठीक रूप में देखनेवाला होता है। ब्रह्म और क्षत्र का मेल ही ज्ञान और क्रिया का समन्वय है । अकेला ज्ञान पङ्गु है, अकेली क्रिया अन्धी। दोनों का सम्बन्ध मानव-जीवन को पङ्गुत्व व अन्धत्व से ऊपर उठाकर प्रकाशमय व क्रियाशील बनाता है, इसी से उसे महा महिमा प्राप्त होती
    है।

    भावार्थ

    हम ब्रह्म व क्षत्र का मेल करते हुए अपने जीवन को महत्त्वशाली बनाएँ ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मविषयमाह।

    पदार्थः

    (विश्वस्मै इत्) सर्वस्मै एव (स्वः) सुखस्य (दृशे) दर्शनाय (साधारणम्) अविशेषम्, कृतकर्मानुरूपं सर्वस्मै एव पात्रभूताय जनाय निष्पक्षपातं सुखं दर्शयन्तमिति भावः, (रजस्तुरम्) रजसा रजोगुणेन त्वरयति क्रियां कारयतीति रजस्तूः तम्, (ऋतस्य) सत्यस्य (गोपाम्) रक्षकम् पवमानं सोमं पावकं जगत्स्रष्टारं परमात्मानम् (विः) गतिशीलो जीवात्मा (भरत्) स्वान्तःकरणे बिभृयात्। [डुभृञ् धारणपोषणयोः, लेटि रूपम्] ॥५॥

    भावार्थः

    परमात्मा सत्यस्यैव रक्षकोऽस्ति। नासत्यस्य। तस्य न्याये विश्वस्य सर्वैः सत्कर्माण्येव कर्तव्यानि ॥५॥

    टिप्पणीः

    २. ऋ० ९।४८।४।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The soul, migrating from one body to the other life a bird, for visualising all sorts of knowledge, should verily contemplate upon God, the general Sustainer of all globes, the Revolver of all planets, and the Guardian of truth.

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    Meaning

    The sage and scholar of lofty vision and imagination, in order that all visionaries of the world may perceive your heavenly majesty, communicates his experience of your presence who are present everywhere, who give motion to the energy of nature in the cosmic dynamics and who rule and protect the laws of eternal truth which govern the course of existence. (Rg. 9-48-4)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (विश्वस्मै इत् स्वर्दृशे) સર્વને માટે નિશ્ચય સુખ નિહાળવા માટે (साधारणं रजस्तुरम्) સમાનરૂપી દોષનાશક (ऋतस्य गोपाम्) અમૃતના રક્ષક પરમાત્માને (विः भरत्) જ્ઞાનવાન ઉપાસક પોતાની અંદર ધારણ કરે છે. (૫)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સમસ્ત મનુષ્યોને સુખ દેખાડવા માટે જે સમાનરૂપ, દોષનાશક, અમૃતના રક્ષક પરમાત્મા છે, તેને જ્ઞાનવાન ઉપાસક પોતાની અંદર ધારણ કરે છે. (૫)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सत्याचाच रक्षक आहे, असत्याचा नाही. त्याच्या न्यायावर विश्वास ठेवून सर्वांनी सत्कर्मच केले पाहिजे. ॥५॥

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