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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 878
    ऋषिः - सौभरि: काण्व: देवता - अग्निः छन्दः - प्रगाथः(विषमा बृहती, समा सतोबृहती) स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
    2

    प्र꣡ मꣳहि꣢꣯ष्ठाय गायत ऋ꣣ता꣡व्ने꣢ बृह꣣ते꣢ शु꣣क्र꣡शो꣢चिषे । उ꣣पस्तुता꣡सो꣢ अ꣣ग्न꣡ये꣢ ॥८७८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र꣢ । म꣡ꣳहि꣢꣯ष्ठाय । गा꣣यत । ऋता꣡व्ने꣢ । बृ꣣हते꣢ । शु꣣क्र꣡शो꣢चिषे । शु꣣क्र꣢ । शो꣣चिषे । उपस्तुता꣡सः꣢ । उ꣡प । स्तुता꣡सः꣢ । अ꣣ग्न꣡ये꣢ ॥८७८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र मꣳहिष्ठाय गायत ऋताव्ने बृहते शुक्रशोचिषे । उपस्तुतासो अग्नये ॥८७८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । मꣳहिष्ठाय । गायत । ऋताव्ने । बृहते । शुक्रशोचिषे । शुक्र । शोचिषे । उपस्तुतासः । उप । स्तुतासः । अग्नये ॥८७८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 878
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में १०७ क्रमाङ्क पर परमेश्वर के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ आचार्य, राजा और यज्ञाग्नि का विषय वर्णित है।

    पदार्थ

    हे (उपस्तुतासः) प्रशंसित लोगो ! तुम (मंहिष्ठाय) अतिशय दानी, (ऋताव्ने) सत्यपरायण, (बृहते) महान्, (शुक्रशोचिषे) दीप्त तेजवाले (अग्नये) अग्रनायक आचार्य, राजा वा यज्ञाग्नि के लिए (प्र गायत) प्रकृष्ट रूप से महिमागान करो ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिए कि धन, विद्या आदि के दाता, सत्यनिष्ठ, तेजस्वी महान् जन को ही आचार्यरूप में और राजारूप में चुनें और उन्हें उचित है कि वे बहुत लाभ देनेवाले, सत्य गुण-कर्म-स्वभाववाले, प्रदीप्त ज्वालावाले यज्ञाग्नि में मन्त्रोच्चारणपूर्वक होम किया करें ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या १०७)

    विशेष

    ऋषिः—सौभरिः (अपने अन्दर परमात्मा को धारण करने में कुशल)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—उष्णिक्॥<br>

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    पदार्थ

    १०७ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है ।
     

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    व्याख्या देखो अवि० सं० [१०७] पृ० ५७।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १०७ क्रमाङ्के परमेश्वरविषये व्याख्याता। अत्राचार्यनृपतियज्ञाग्निविषय उच्यते।

    पदार्थः

    हे (उपस्तुतासः) प्रशंसिता जनाः ! यूयम् (मंहिष्ठाय) दातृतमाय, (ऋताव्ने) सत्यपरायणाय, (बृहते) महते, (शुक्रशोचिषे) दीप्ततेजस्काय (अग्नये) अग्रनायकाय आचार्याय, नृपतये, यज्ञेषु अग्रं प्रणीताय यज्ञाग्नये वा (प्र गायत) प्रकृष्टतया महिमानं वर्णयत ॥१॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्धनविद्यादीनां दाता सत्यनिष्ठस्तेजस्वी महान् जन एवाचार्यत्वेन नृपतित्वेन च वरणीयः, बहुलाभप्रदे सत्यगुणकर्मस्वभावे प्रदीप्तशोचिष्के यज्ञाग्नौ च मन्त्रोच्चारणपूर्वकं होमः कार्यः ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।१०३।८, साम–० १०७।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    0 singers recite verses in praise of the benevolent, sacrificial, mighty blazing fire !

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    Meaning

    O celebrants of divinity, sing songs of adoration in honour of adorable Agni, most generous, leader of the paths of truth, great and glorious, lord of pure light of divinity and fire of action. (Rg. 8-103-8)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मंहिष्ठाय) અત્યાધિક દાતા , (ऋताव्ने) અમૃતવાળા - અમૃતરૂપ મોક્ષાનંદધારી , (बृहते) મહાન , (शुक्रशोचिषे) શુક્રપ્રકાશસ્વરૂપ , (अग्नये) પરમાત્માને માટે (उप स्तोतारः) સમીપ થઈને નિમગ્ન બનીને , હે સ્તુતિ કરનારાઓ ! (प्रगायत) ગુણગાન કરો , સ્તુતિ પ્રશંસા કરો.

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે આત્મસમર્પણ ભાવથી સ્તુતિ કરનારા ઉપાસકો ! અમૃતરૂપ મોક્ષાનંદ ધારણ કરનારા , અત્યંત દાની , શુભ્ર જ્યોતિઃસ્વરૂપ , મહાન , ઇષ્ટદેવ પરમાત્માની પ્રગાઢ સ્તુતિ , ગુણગાન અને ઉપાસના કરવી જોઈએ. (૧)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी धन, विद्या इत्यादींचे दाते, सत्यनिष्ठ तेजस्वी, महान लोकांनाच आचार्यरूपात व राजारूपात निवडावे व त्यांनी अत्यंत सत्य-गुण-कर्म-स्वभाव युक्त बनून प्रदीप्त अत्यंत लाभदायक ज्वालायुक्त यज्ञाग्नीमध्ये मंत्रोच्चारणपूर्वक होम करावा ॥१॥

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