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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 901
    ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    3

    सु꣣त꣡ ए꣢ति प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢꣫ त्विषिं꣣ द꣡धा꣢न꣣ ओ꣡ज꣢सा । वि꣣च꣡क्षा꣢णो विरो꣣च꣡य꣢न् ॥९०१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु꣣तः꣢ । ए꣣ति । पवि꣡त्रे꣢ । आ । त्वि꣡षि꣢꣯म् । द꣡धा꣢꣯नः । ओ꣡ज꣢꣯सा । वि꣡च꣡क्षा꣢णः । वि꣣ । च꣡क्षा꣢꣯णः । वि꣣रो꣡चय꣢न् । वि꣣ । रोच꣡य꣢न् ॥९०१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुत एति पवित्र आ त्विषिं दधान ओजसा । विचक्षाणो विरोचयन् ॥९०१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुतः । एति । पवित्रे । आ । त्विषिम् । दधानः । ओजसा । विचक्षाणः । वि । चक्षाणः । विरोचयन् । वि । रोचयन् ॥९०१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 901
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में ब्रह्मानन्द-प्रदाता परमेश्वर का वर्णन है।

    पदार्थ

    (सुतः) जिसने अपने में से आनन्दरस को प्रवाहित किया है, ऐसा यह सोमनामक परमात्मा (त्विषिम्) दीप्ति को (दधानः) धारण करता हुआ (ओजसा) बलपूर्वक (पवित्रे) पवित्र हृदय वा आत्मा में (आ एति) आ रहा है और (विचक्षाणः) विशेष रूप से अन्तर्दृष्टि को दे रहा है तथा (विरोचयन्) विशेष कान्ति को प्रदान कर रहा है ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा के साथ मैत्री स्थापित करता हुआ उपासक अन्तर्दृष्टि तथा ब्रह्मतेज से युक्त होकर परमानन्दमय हो जाता है ॥४॥

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    पदार्थ

    (सुतः) अभ्यास द्वारा निष्पादित (त्विषिं दधानः) ज्योति को प्राप्त कराने के हेतु (विचक्षाणः) विशेष ज्ञानदाता (विरोचयन्) चमकता हुआ (पवित्रे) हृदय में (ओजसा-आ-एति) शीघ्रता से प्राप्त होता है—साक्षात् होता है॥४॥

    विशेष

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    विषय

    उत्तम व्याख्याता, ओजस्वी वक्ता

    पदार्थ

    यह बृहन्मति (आ एति) = प्रजा के भीतर समन्तात् गति करता है । कैसा बनकर ? १. (सुतः) = [सुतमस्यास्ति इति] यज्ञ की भावनावाला – 'लोकहित की भावना' पहला मुख्य गुण है, जो प्रचारक के अन्दर आवश्यक है। अथवा सोम का उत्पादन करनेवाला । सोम, अर्थात् शक्ति के बिना ये किसी भी कार्य को क्या कर पाएगा ? २. (पवित्रः) = राग-द्वेष, मोह आदि मलों से रहित । औरों के समाने इसका जीवन ही तो आदर्श होगा। यदि इसका अपना जीवन मलिन होगा तो औरों को क्या पवित्र बनाएगा ? ३. (त्विषिं दधानः) = दीप्ति को धारण करता हुआ । यह दीप्ति ही सामान्य लोगों पर विशेष प्रभाव डालनेवाली होती है। चमकता हुआ चेहरा मुरझाये हुए चेहरे से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है, ४. (ओजसा विचक्षाण:) = यह बड़ी ओजस्विता से विषय का व्याख्यान करता है । इसके बोलने का प्रकार बड़ा प्रभावशाली होता है, इसकी आवाज मरियल-सी न होकर बादल की गर्जना के समान होती है । ५. (विरोचयन्) = अपने शब्दों के प्रभाव से यह जनता के चेहरों पर उत्साह की चमक पैदा करता है और उनके हृदयों को ज्ञान के प्रकाश से भर देता है ।

    भावार्थ

    बृहन्मति अपनी ज्ञान की ज्योति से औरों को भी ज्योतिर्मय कर डालता है।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ ब्रह्मानन्दप्रदाता परमेश्वरो वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (सुतः) परिस्रुतानन्दरसः एष सोमः परमात्मा (त्विषिम्) दीप्तिम् (दधानः) धारयन् (ओजसा) बलेन (पवित्रे) परिपूते हृदये आत्मनि वा (आ एति) आगच्छति। तदानीं च (विचक्षाणः)विशेषेण अन्तर्दृष्टिं प्रयच्छन् (विरोचयन्) विशेषेण प्रदीपयंश्च भवति ॥४॥

    भावार्थः

    परमात्मना सख्यं स्थापयन्नुपासकोऽन्तर्दृष्ट्या ब्रह्मतेजसा च युक्तः परमानन्दवान् संजायते ॥४॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३९।३।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The All-Creating God, through His Might, infusing lustre in objects free from dirt, sending forth His light, seeing all objects, is All-Pervading.

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    Meaning

    Soma, universal watchful guardian and light giver of the world, discovered and realised in the self, wearing its celestial light and lustre, manifests and shines in the pure soul of the devotee. (Rg. 9-39-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

     

    પદાર્થ : (सुतः) અભ્યાસ દ્વારા નિષ્પાદિત (त्विषिं दधानः) જ્યોતિને પ્રાપ્ત કરાવવા માટે (विचक्षाणः) વિશેષ ગનાનદાતા (विरोचयन्) ચમકતા-પ્રકાશમાન થઈને (पवित्रे) હૃદયમાં (ओजसा आ एति) શીઘ્રતાથી પ્રાપ્ત થાય છે-સાક્ષાત્ થાય છે. (૪)

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराशी मैत्री करून उपासक अंतर्दृष्टी व ब्रह्मतेज यांनी युक्त होतो व परमानंद भोगतो. ॥४॥

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