अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - आशापाला वास्तोष्पतयः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पाशविमोचन सूक्त
1
य आशा॑नामाशापा॒लाश्च॒त्वार॒ स्थन॑ देवाः। ते नो॒ निरृ॑त्याः॒ पाशे॑भ्यो मु॒ञ्चतांह॑सोअंहसः ॥
स्वर सहित पद पाठये । आशा॑नाम् । अ॒शा॒ऽपा॒ला: । च॒त्वार॑: । स्थन॑ । दे॒वा॒: । ते । न॒: । नि:ऋ॑त्या: । पाशे॑भ्य: । मुञ्चत॑ । अंह॑स:ऽअंहस: ॥
स्वर रहित मन्त्र
य आशानामाशापालाश्चत्वार स्थन देवाः। ते नो निरृत्याः पाशेभ्यो मुञ्चतांहसोअंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठये । आशानाम् । अशाऽपाला: । चत्वार: । स्थन । देवा: । ते । न: । नि:ऋत्या: । पाशेभ्य: । मुञ्चत । अंहस:ऽअंहस: ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
पुरुषार्थ और आनन्द के लिये उपदेश।
पदार्थ
(देवाः) हे प्रकाशमय देवताओ ! (ये) जो तुम (आशानाम्) सब दिशाओं के मध्य (चत्वारः) प्रार्थना के योग्य [अथवा चार] (आशापालाः) आशाओं के रक्षक (स्थन) वर्तमान हो, (ते) वे तुम (नः) हमें (निर्ऋत्याः) अलक्ष्मी वा महामारी के (पाशेभ्यः) फंदों से और (अंहसो−अंहसः) प्रत्येक पाप से (मुञ्चत) छुड़ाओ ॥२॥
भावार्थ
मनुष्यों को प्रयत्नपूर्वक सब उत्तम पदार्थों [अथवा चारों पदार्थ, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष] को प्राप्त करके सब क्लेशों का नाश करना चाहिये ॥२॥
टिप्पणी
२−आशानाम्। म० १। दिशानां मध्ये। आशा-पालाः। म० १। आकाङ्क्षानाम् पालकाः, लोकपालाः। चत्वारः। म० १। याचनीयाः प्रार्थनीयाः। चतुःसंख्यका धर्मार्थकाममोक्षा वा। स्थन। तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इति अस भुवि लोटि मध्यमपुरुषबहुवचने थनादेशः। यूयं स्त भवत। देवाः। हे दिव्यगुणाः पुरुषाः। निःऋत्याः। निः+ऋ हिंसने क्तिन्। नितराम् ऋतिर्घृणा अशुभं वा यस्याः सा निर्ऋतिः, तस्याः। अलक्ष्म्याः। उपद्रवस्य। पाशेभ्यः। पश बाधे, ग्रन्थे−घञ्। बन्धनेभ्यः। मुञ्चत। मुच्लृ मोक्षे। मोचयत। अंहसः−अंहसः। अमेर्हुक् च। उ० ४।२१३। इति अम रोगे, पीडने−असुन्, हुक् आगमः। नित्यवीप्सयोः, पा० ८।१।४। इति द्विर्वचनम्। सर्वस्माद् दुःखात्, पापात् ॥
विषय
नित्रति व अंहस् के पाशों से मुक्ति
पदार्थ
१. (ये) = जो आप (आशापाला:) = दिशाओं के रक्षक (आशानाम्) = दिशाओं के (चत्वारः) = चार (देवाः स्थन) = देव हो, (ते) = वे आप (नः) = हमें (निर्ऋत्या:) = मृत्यु व नाश [Death or destruction] के (पाशेभ्यः) = पाशों से (मुञ्चत) = मुक्त करो तथा (अहंसः अहंस:) = प्रत्येक पाप से मुक्त करो। २. यहाँ मुख व पायु के अधिष्ठातृदेव इन्द्र और वरुण हमें मृत्यु से बचाते हैं। इनके अमर होने पर हमें शारीरिक अमरता प्राप्त होती है। हमारा जीवन नौरोग बना रहता है। ३. उपस्थ व विदृति के अधिष्ठातृदेव 'यम और ईशान' हमारे जीवन को निष्पाप बनाते हैं। नीरोगता व निष्पापता का परस्पर सम्बन्ध उसी प्रकार है जैसेकि शरीर व मन का। शरीरस्थ रोग मानस विकृति का कारण होते है और मानस विकार शरीर के रोगों को जन्म देते हैं।
भावार्थ
हम मुख व पायु के कार्य को व्यवस्थित करके नीरोग बनें, उपस्थ व विदृति के कार्य को ठीक करके निष्पाप बनें।
भाषार्थ
(देवाः) हे देवो! (ये) जो (आशानाम् आशपाला:) दिशाओं के दिक्पाल (चत्वारः) चार (स्थन) तुम हो, (ते) वे तुम (निर्ऋत्याः) कृच्छ्रापत्ति अर्थात् कष्टों के (पाशेभ्यः) फंदों से (न:) हमें (मुञ्चत) छुड़ाओ (अंहसः अंहसः) तथा निर्ऋति के हेतुभूत प्रत्येक पाप से छुड़ाओ।
टिप्पणी
[चार देव हैं मन्त्र (१) में कथित अर्थात् अग्नि, इन्द्र, वरुण तथा सोम। ये चार नाम परमेश्वर के भिन्न-भिन्न गुणों के प्रतिपादक हैं। अग्नि ज्ञानाग्नि देकर, इन्द्र शक्ति देकर, वरुण दण्ड देकर पापकर्मों से, पाप से निवारित करता, अथर्व० (४।१६।१-९), और सोम अर्थात् चन्द्रमा के सदृश शान्ति प्रदान करता है।]
विषय
समर्पण ।
भावार्थ
( आशानां आशापालाः ) चार मुख्य दिशाओं में से प्रत्येक दिशा के जो तुम पालक ( चत्वारः ) चार (देवाः स्थन ) देव हो अर्थात् अग्नि, इन्द्र, वरुण और सोम ( ते ) वे तुम ( नः ) हमें ( निर्ऋत्याः ) दुःखदायिनी पापप्रवृत्ति के ( पाशेभ्यः ) फंदों से और ( अंहसः अंहसः ) प्रत्येक प्रकार के पाप से और उनके परिणामभूत फन्दों से ( मुञ्चत ) छुड़ाओ।
टिप्पणी
प्रत्येक दिशा में परमात्मा अग्नि आदि रूप से स्थित है। इस प्रकार परमात्मा को सर्वव्यापक समझा जाय तो पाप-प्रवृत्ति रुक जाती है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः । आशापालाः वास्तोष्पतयश्च देवताः । १, २ अनुष्टुभौ । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४ परानुष्टुप् । चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Hope and Fulfilment
Meaning
O Devas, who are ruling guardians of the four quarters of space, you release us from the snares of adversity and save us from every form of sin and evil.
Translation
May the four bounties of Nature, that are the quarter-guards of the regions, release us from the nooses of misery (perdition-Nirrti) as well as from each and every sin.
Translation
Let these four marvellous powers, who are the guardians of the four directions of the heavelly regions, save us from the bounds of calamity and draught and they be the sources to make us free from all evils.
Translation
Ye, gods, the guardians of our ambitions, in the midst of all quarters, rescue and free us from the bonds of moral degradation, from every sort of sin!
Footnote
Gods refer to Dharma, Arth, Kama and Moksha.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−आशानाम्। म० १। दिशानां मध्ये। आशा-पालाः। म० १। आकाङ्क्षानाम् पालकाः, लोकपालाः। चत्वारः। म० १। याचनीयाः प्रार्थनीयाः। चतुःसंख्यका धर्मार्थकाममोक्षा वा। स्थन। तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इति अस भुवि लोटि मध्यमपुरुषबहुवचने थनादेशः। यूयं स्त भवत। देवाः। हे दिव्यगुणाः पुरुषाः। निःऋत्याः। निः+ऋ हिंसने क्तिन्। नितराम् ऋतिर्घृणा अशुभं वा यस्याः सा निर्ऋतिः, तस्याः। अलक्ष्म्याः। उपद्रवस्य। पाशेभ्यः। पश बाधे, ग्रन्थे−घञ्। बन्धनेभ्यः। मुञ्चत। मुच्लृ मोक्षे। मोचयत। अंहसः−अंहसः। अमेर्हुक् च। उ० ४।२१३। इति अम रोगे, पीडने−असुन्, हुक् आगमः। नित्यवीप्सयोः, पा० ८।१।४। इति द्विर्वचनम्। सर्वस्माद् दुःखात्, पापात् ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(দেবাঃ) হে প্রকাশময় বিদ্বানগণ! (য়ে) যে তোমরা (আশানাং) সব আশার মধ্যে (চত্বারঃ) চারি (আশাপালাঃ) আশার রক্ষক রূপে (স্থন) বর্তমান রহিয়াছে (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদিগকে (নির্ধ্বত্যাঃ) অলক্ষ্মীর (পাশেভ্যঃ) বন্ধন হইতে ও (অংহসঃ অংহসং) প্রত্যেক পাপ হইতে (মুঞ্চত) মোচন কর।।
भावार्थ
হে প্রকাশময় বিদ্বানগণ! তোমরা সব আশার মধ্যে ধর্ম, অর্থ, কাম, মোক্ষরূপ চতুর্বর্গের রক্ষকরূপে বর্তমান রহিয়াছে। তোমরা আমাদিগকে অলক্ষ্মীর বন্ধন হইতে ও সকল পাপ হইতে মোচন কর।।
मन्त्र (बांग्ला)
য় আশানামাশাপালাশ্চত্বার স্থন দেবাঃ। তে নো নিত্যাঃ পাশেভ্যো মুহূচতাং হসো অংহসঃ।।
ऋषि | देवता | छन्द
ব্ৰহ্মা। আশাপালাঃ (বাস্তোষ্পতয়ঃ)। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(পুরুষার্থানন্দোপদেশঃ) পুরুষার্থ এবং আনন্দের জন্য উপদেশ
भाषार्थ
(দেবাঃ) হে প্রকাশময় দেবতাগণ ! (যে) যে তোমরা (আশানাম্) সব দিকের মধ্য (চত্বারঃ) প্রার্থনার যোগ্য [অথবা চার] (আশাপালাঃ) আশার রক্ষক (স্থন) বর্তমান রয়েছ, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের (নির্ঋত্যাঃ) অলক্ষ্মী বা মহামারীর (পাশেভ্যঃ) ফাঁদ/পাশ/বন্ধন এবং (অংহসো−অংহসঃ) প্রত্যেক পাপ থেকে (মুঞ্চত) মুক্ত করো ॥২॥
भावार्थ
মনুষ্যদের প্রযত্নপূর্বক সকল উত্তম পদার্থ [অথবা চার পদার্থ– ধর্ম, অর্থ, কাম এবং মোক্ষ] প্রাপ্ত করে সকল ক্লেশের নাশ করা উচিত ॥২॥
भाषार्थ
(দেবা) হে দেবগণ ! (যে) যে (আশানাম্ আশাপালাঃ) দিশার দিকপাল (চত্বারঃ) চার (স্থন) তোমরা, (তো) সেই তোমরা (নির্ঋত্যাঃ) কৃচ্ছ্রাপত্তি অর্থাৎ কষ্টের (পাশেভ্যঃ) ফাঁদ/বন্ধন থেকে (নঃ) আমাদের (মুঞ্চত) মুক্ত করো (অংহসঃ অংহসঃ) এবং নির্ঋতি/চেতনা রহিত জড় প্রকৃতি/পাপ প্রবৃত্তির কারণ প্রত্যেক পাপ থেকে মুক্ত করো।
टिप्पणी
[চার দেবতা হলো মন্ত্র (১) এ বর্ণিত অর্থাৎ অগ্নি, ইন্দ্র, বরুণ এবং সোম। এই চার নাম পরমেশ্বরের ভিন্ন-ভিন্ন গুণের প্রতিপাদক। অগ্নি জ্ঞানাগ্নি দ্বারখ, ইন্দ্র শক্তি দ্বারা, বরুণ দণ্ড দ্বারা পাপ কর্ম থেকে, পাপ থেকে নিবারিত করে, অথর্ব০ (৪।১৬।১-৯), এবং সোম অর্থাৎ চন্দ্রমার সদৃশ শান্তি প্রদান করে।]
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