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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपम् देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त
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    यो वः॑ शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह नः॑। उ॑श॒तीरि॑व मा॒तरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । व॒: । शि॒वऽत॑म: । रस॑: । तस्य॑ । भा॒ज॒य॒त॒ । इ॒ह । न॒: ।उ॒श॒ती:ऽइ॑व । मा॒तर॑: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । व: । शिवऽतम: । रस: । तस्य । भाजयत । इह । न: ।उशती:ऽइव । मातर: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बल की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यो !] (यः) जो (वः) तुम्हारा (शिवतमः) अत्यन्त सुखकारी (रसः) रस है, (इह) यहाँ [संसार में] (नः) हमको (तस्य) उसका (भाजयत) भागी करो, (इव) जैसे (उशतीः) प्रीति करती हुई (मातरः) माताएँ ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे माताएँ प्रीति के साथ सन्तानों को सुख देती हैं और जैसे जल संसार में उपकारी पदार्थ है, वैसे ही सब मनुष्य परस्पर उपकारी बन कर लाभ उठावें और आनन्द भोगें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−शिव-तमः। अतिशायने तमबिष्ठनौ। पा० ५।३।५५। इति तमप्। अतिशयेन कल्याणकरः। रसः। रस आस्वादे−अच्। सारः। भाजयतम्। हेतुमति च। पा० ३।१।२६। इति भज सेवायां−णिच्-लोट्। भागिनः कुरुत। सेवयत। उशतीः। वश कान्तौ=अभिलाषे-शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। उशत्यः, कामयमानाः, प्रीतियुक्ताः। मातरः। १।२।१। जनन्यः ॥

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    विषय

    शिवतम-रस

    पदार्थ

    १.हे जलो! (यः) = जो (वः) = आपका (शिवतमः) = अत्यन्त कल्याण करनेवाला (रसः) = रस है, (न:) = हमें (इह) = इस जीवन में (तस्य) = उसका (भाजयत) = भागी बनाओ। जलों का गुण रस है। यह रस ही उनके सब गुणों का अधिष्ठान है। इस रस को प्राप्त करके मैं उनके सब गुणों को अपनानेवाला बनता हूँ। २. हे जलो! आप मुझे इस गुण को इसप्रकार प्राप्त कराओ (इव) = जैसेकि (उशती: मातरः) = हित की कामनावाली माताएँ अपनी सन्तानों को स्वास्थ्यवर्धक दुग्धरस प्राप्त कराती हैं। वस्तुतः ये दिव्य जल हमारे लिए उतने ही हितकर हैं, जितना कि बच्चों के लिए मातृदुग्ध हितकर है।

    भावार्थ

    जलों का शिवतम-रस हमें प्रास हो।

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    भाषार्थ

    [हे आपः !] (वः) तुम्हारा (यः) जो (शिवतमः रसः ) अतिकल्याणकारी रस है, (तस्य भाजयत) उसका भागी बनाओ, (इह) इस जीवन में (नः) हमें। (इव) जैसेकि (उशती:) कामनावाली ( मातरः) माताएं [पुत्रों को निज दुग्धरस का भागी करती हैं, दूध पिलाती हैं]।

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    विषय

    जलों का वर्णन

    भावार्थ

    ( उशतीः ) पुत्रको निरन्तर चाहने वाली प्रेममयी ( मातरः ) माताएं जिस प्रकार अपने पुत्रों को मधुर दुग्धरस पान करा कर पालती पोसती हैं उसी प्रकार हे ( आपः ) जलो ! ( वः ) तुम्हारा (यः) जो ( शिवतमः ) अत्यन्त अधिक कल्याणकारी ( रसः ) सारभूत रस है ( तस्य ) उसका ( नः ) हमें ( इह ) यहां (भाजयत ) भाग बनाओ ।

    टिप्पणी

    पञ्चमं षष्ठं च सूक्तं शम्भुमयोभुसूक्तमुच्यते ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अपोनप्त्रीयम्। सिन्धुद्वीपः कृतिश्च ऋषी। ऋग्वेदे त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाऽम्बरीष ऋषिः। आगे देवताः। गायत्री छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Blessings of Water

    Meaning

    Let us share here itself in body that nectar sweet of yours which is most blissful, pray nourish us as loving mothers feed their children.

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    Comments / Notes

    THE TRANSLATION IS MISSING IN THE BOOK THAT WE HAVE. IF ANYONE HAS, PLEASE INPUT BY EDITING THIS TRANSLATION.

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    Translation

    Let the pleasant essence of waters be useful for us like the mothers who for the well-being of their children, give their breast to them to suck.

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    Translation

    Just as mothers in their longing love, suckle their children, so O waters, here grant to us a share of your most-efficacious juice.

    Footnote

    See Yajur 11-51.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−शिव-तमः। अतिशायने तमबिष्ठनौ। पा० ५।३।५५। इति तमप्। अतिशयेन कल्याणकरः। रसः। रस आस्वादे−अच्। सारः। भाजयतम्। हेतुमति च। पा० ३।१।२६। इति भज सेवायां−णिच्-लोट्। भागिनः कुरुत। सेवयत। उशतीः। वश कान्तौ=अभिलाषे-शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। उशत्यः, कामयमानाः, प्रीतियुक्ताः। मातरः। १।२।१। जनन्यः ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (য়ঃ) যাহা (বঃ) তোমাদের (শিবতমঃ) অত্যন্ত কল্যাণকারী রস (ইহ) এখানে (নঃ) আমাদিগকে (তস্য) তাহার (ভাজয়ত) অংশী কর (ইব) যেমন (উশতীঃ) প্রীতিময়ী (মাতরঃ) মাতৃগণ।।

    भावार्थ

    হে মনুষ্য! সন্তানদের প্রতি প্রীতিময়ী মাতার ন্যায় তোমরা সংসারের কল্যাণকর রসকে আমাদের সকলের মধ্যে বিভাগ কর।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ো বঃ শিবতমো রসস্তস্য বাজয়তেহ নঃ। উশতীরিব মাতরঃ।

    ऋषि | देवता | छन्द

    সিন্ধুদ্বীপঃ কৃতিৰ্বা। আপঃ। গায়ত্রী

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    मन्त्र विषय

    (বলপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ) বল­ প্রাপ্তির জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্যগণ !] (যঃ) যা (বঃ) তোমাদের (শিবতমঃ) অত্যন্ত সুখকারী (রসঃ) রস রয়েছে, (ইহ) এখানে [সংসারে] (নঃ) আমাকেও (তস্য) তার (ভাজয়ত) অংশ প্রদান করো, (ইব) যেভাবে (উশতীঃ) প্রীতিকর (মাতরঃ) মাতা ॥২।।

    भावार्थ

    যেভাবে মাতা প্রীতিপূর্বক/প্রেমপূর্বক সন্তানকে সুখ দেয় এবং যেভাবে জল সংসারে উপকারী পদার্থ হয়, সেভাবেই সমস্ত মনুষ্য পরস্পর উপকারী হয়ে লাভ করুক এবং আনন্দ ভোগ করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    [হে আপঃ !] (বঃ) তোমার (যঃ) যে (শিবতমঃ রসঃ) অতিকল্যাণকারী রস আছে, (তস্য ভাজয়ত) তার অংশীদার করো, (ইহ) এই জীবনে (নঃ) আমাদের। (ইব) যেমন (উশতীঃ) কামনাকারী (মাতরঃ) মাতাগণ [পুত্রদের নিজ দুগ্ধরসের অংশীদার/ভাগী করে, দুধ পান করায়]।

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    जल का महत्व

    Word Meaning

    जैसे वात्सल्यमयी माता बालक को अपने स्तन्य का भागी बनाती हैं वैसे ही जल हमें अपने परम कल्याण्कारी रसों का भागी बनाएं.

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