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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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    स वि॒शोऽनु॒व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । विश॑: । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स विशोऽनुव्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । विश: । अनु । वि । अचलत् ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (4)

    विषय

    राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (विशः अनु) मनुष्यों की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१॥

    भावार्थ

    सर्वव्यापक परमात्माने वेदद्वारा मनुष्यों में राजधर्म का उपदेश किया है ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (विशः) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    'सभा, समिति, सेना, सुरा' का अनुचलन

    पदार्थ

    १. (स:) = वह गत सूक्त का राजन्य व्रात्य (विशः अनुव्यचलत्) = प्रजाओं की उन्नति का लक्ष्य करके गतिवाला हुआ। 'प्रजा-समृद्धि' ही उसके शासन का धेय बना। ऐसा होने पर (तम्) = उस राजन्य व्रात्य को (सभा च समितिः च) = व्यवस्थापिका सभा व कार्यकारिणी समिति (च) = तथा सेना (सुरा च) = [सुर ऐश्वर्य] राष्ट्ररक्षक सेना व राज्यकोष [राज्यलक्ष्मी] (अनुव्यचलन) = अनुकूलता से प्राप्त हुए। २. (यः एवं वेद) = जो राजन्य व्रात्य 'प्रजा-समृद्धि को ही शासन का लक्ष्य समझ लेता है (स:) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (सभाया: च समिते: च) = सभा व समिति का (च) = तथा (सेनायाः सुरायाः च) = सेना व राज्यलक्ष्मी का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है।

    भावार्थ

    प्रजा की उन्नति को ही शासन का लक्ष्य समझनेवाला राजन्य व्रात्य-व्रती राजा-सभा-समिति, सेना व सुर [लक्ष्मी] का प्रिय बनता है।

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    भाषार्थ

    (सः) वह व्रात्य अर्थात् प्रजापालन व्रतधारी राजन्य, (विशः) प्रजाजनों के (अनु) अनुकूल हो कर (व्यचलत्) विशेषतया चला, अर्थात् उस ने राज्यप्रशासन किया।

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    विषय

    व्रात्य, सभापति, समितिपति, सेनापति और गृहपति।

    भावार्थ

    (सः) वह व्रात्य प्रजापति (विशः अनुव्यचलत्) प्रजाओं की ओर आया।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ आसुरी, २ आर्ची गायत्री, आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    He moved, rose up, to rule the people with their will.

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    Subject

    Vratyah

    Translation

    He followed the wishes of the people.

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    Translation

    He (Vratya) walks towards the people.

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    Translation

    God revealed His law to the people

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (विशः) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य अन्यत् पूर्ववत् ॥

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