अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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स वि॒शोऽनु॒व्यचलत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । विश॑: । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
स विशोऽनुव्यचलत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । विश: । अनु । वि । अचलत् ॥९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (विशः अनु) मनुष्यों की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१॥
भावार्थ
सर्वव्यापक परमात्माने वेदद्वारा मनुष्यों में राजधर्म का उपदेश किया है ॥१॥
टिप्पणी
१−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (विशः) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
'सभा, समिति, सेना, सुरा' का अनुचलन
पदार्थ
१. (स:) = वह गत सूक्त का राजन्य व्रात्य (विशः अनुव्यचलत्) = प्रजाओं की उन्नति का लक्ष्य करके गतिवाला हुआ। 'प्रजा-समृद्धि' ही उसके शासन का धेय बना। ऐसा होने पर (तम्) = उस राजन्य व्रात्य को (सभा च समितिः च) = व्यवस्थापिका सभा व कार्यकारिणी समिति (च) = तथा सेना (सुरा च) = [सुर ऐश्वर्य] राष्ट्ररक्षक सेना व राज्यकोष [राज्यलक्ष्मी] (अनुव्यचलन) = अनुकूलता से प्राप्त हुए। २. (यः एवं वेद) = जो राजन्य व्रात्य 'प्रजा-समृद्धि को ही शासन का लक्ष्य समझ लेता है (स:) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (सभाया: च समिते: च) = सभा व समिति का (च) = तथा (सेनायाः सुरायाः च) = सेना व राज्यलक्ष्मी का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है।
भावार्थ
प्रजा की उन्नति को ही शासन का लक्ष्य समझनेवाला राजन्य व्रात्य-व्रती राजा-सभा-समिति, सेना व सुर [लक्ष्मी] का प्रिय बनता है।
भाषार्थ
(सः) वह व्रात्य अर्थात् प्रजापालन व्रतधारी राजन्य, (विशः) प्रजाजनों के (अनु) अनुकूल हो कर (व्यचलत्) विशेषतया चला, अर्थात् उस ने राज्यप्रशासन किया।
विषय
व्रात्य, सभापति, समितिपति, सेनापति और गृहपति।
भावार्थ
(सः) वह व्रात्य प्रजापति (विशः अनुव्यचलत्) प्रजाओं की ओर आया।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ आसुरी, २ आर्ची गायत्री, आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
He moved, rose up, to rule the people with their will.
Translation
He (Vratya) walks towards the people.
Translation
God revealed His law to the people
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (विशः) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य अन्यत् पूर्ववत् ॥
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