अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
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शं नो॒ अदि॑तिर्भवतु व्र॒तेभिः॒ शं नो॑ भवन्तु म॒रुतः॑ स्व॒र्काः। शं नो॒ विष्णुः॒ शमु॑ पू॒षा नो॑ अस्तु॒ शं नो॑ भ॒वित्रं॒ शम्व॑स्तु वा॒युः ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। अदि॑तिः। भ॒व॒तु॒। व्र॒तेभिः॑। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। म॒रुतः॑। सु॒ऽअ॒र्काः। शम्। नः॒। विष्णुः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। पू॒षा। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। भ॒वित्र॑म्। शम्। ऊं॒ इति॑। अ॒स्तु॒। वा॒युः ॥१०.९॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो अदितिर्भवतु व्रतेभिः शं नो भवन्तु मरुतः स्वर्काः। शं नो विष्णुः शमु पूषा नो अस्तु शं नो भवित्रं शम्वस्तु वायुः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। अदितिः। भवतु। व्रतेभिः। शम्। नः। भवन्तु। मरुतः। सुऽअर्काः। शम्। नः। विष्णुः। शम्। ऊं इति। पूषा। नः। अस्तु। शम्। नः। भवित्रम्। शम्। ऊं इति। अस्तु। वायुः ॥१०.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पदार्थ
(अदितिः) अखण्ड वेदवाणी (व्रतेभिः) नियमों के साथ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवतु) हो, (मरुतः) शूर वीर (स्वर्काः) बड़े पण्डित लोग (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) हों। (विष्णुः) व्यापक यज्ञ (नः) हमें (शम्) सुखदायक हो, (उ) और (पूषा) पोषण करनेवाली पृथिवी (नः) हमें (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो, (भवित्रम्) रहने का घर (नः) हमें (शम्) सुखदायक हो, (उ) और (वायुः) वायु (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो ॥९॥
भावार्थ
मनुष्य वेदवाणी द्वारा उत्तम नियमों को ग्रहण करके विद्वानों के सत्सङ्ग से सब पदार्थों से उपकार लेकर पृथिवी पर सुख बढ़ाते रहें ॥९॥
टिप्पणी
९−(शम्) सुखप्रदा (नः) अस्मभ्यम् (अदितिः) अखण्डवेदवाणी (भवतु) (व्रतेभिः) नियमैः (शम्) (नः) (भवन्तु) (मरुतः) शूरवीराः (स्वर्काः) सुपूजनीयाः पण्डिताः (शम्) (नः) (विष्णुः) व्यापको यज्ञः (शम्) (उ) (पूषा) पोषिका पृथिवी-निघ० १।१ (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (भवित्रम्) अशित्रादिभ्य इत्रोत्रौ। उ० ४।१७३। भू सत्तायाम्-इत्र प्रत्ययः। भुवनम्। निवासस्थानम् (शम्) (उ) (अस्तु) (वायुः) पवनः ॥
विषय
अदिति नतों के साथ
पदार्थ
१. (व्रतेभिः) = व्रतों के साथ (अदितिः) = [दिति दो अबखण्डने] अखण्डन-स्वास्थ्य की देवता (न:) = हमारे लिए शं भवतु-शान्ति देनेवाली हो। हम स्वस्थ व व्रतमय जीवनवाले बनकर शान्ति प्राप्त करें। (स्वर्का:) = [सु अर्काः] उत्तमता से प्रभु-पूजन करनेवाले (मरुतः) = प्राण (नः शं भवन्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हों। हम प्राणसाधना करते हुए प्रभु-पूजन में प्रवृत्त हों। २. (न:) =-हमारे लिए विष्णुः [यज्ञो वै विष्णु:] यज्ञ (शम्) = शान्ति दें, (उ) = और (पूषा) = पोषण की देवता (न:) = हमारे लिए (शम् अस्तु) = शान्तिकर हो। हम यज्ञों को करते हुए (उ) = चित पोषण प्रास करें। (नः) = हमारे लिए (भवित्रम्) = [भवन्ति भूतानि अत्र] यह अन्तरिक्षलोक अथवा गृह (शम्) = शान्ति दे, (उ) = और (वायु:) = वायु (शम् अस्तु) = शान्तिकर हो। हमारे घरों में वायु का सम्यक् प्रवेश हो और इसप्रकार वे घर हमारे लिए सुखद हों।
भावार्थ
हम व्रतमय स्वस्थ जीवनवाले हों। प्राणसाधना करते हुए प्रभु-पूजन करें। यज्ञों को करते हुए उचित पोषण प्राप्त करें। हमारे घरों में वायु का सम्यक् प्रवेश हो।
भाषार्थ
(अदितिः) अविनाशिनी वेदवाणी (नः) हमारे (व्रतेभिः) व्रतनिर्देशों द्वारा हमें (शम्) शान्ति तथा सुख देनेवाली हो, (स्वर्काः) प्रखर सौर दीप्तियों वाली (मरुतः) मानसून वायुएँ (नः) हमें (शं भवन्तु) शान्ति तथा सुख देनेवाली हों। (विष्णुः) व्याप्त किरणों वाला सूर्य (नः) हमें शान्तिदायक तथा सुखदायक हो, (पूषा) पौष्टिक अन्न प्रदान करनेवाली पृथिवी (उ) निश्चय से (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख देनेवाली (अस्तु) हो। (भवित्रम्) भवित्र (नः) हमें (शम्) शान्ति तथा सुख देवे, (वायुः) वायु (उ) निश्चय से (शम् अस्तु) शान्ति तथा सुख देवे।
टिप्पणी
[अदितिः=अ+दो अवखण्डने। अदितिः वाङ्नाम (निघं० १.११)। मरुतः= “उदीरयत मरुतः समुद्रतस्त्वेषो अर्को नभ उत् पातयाथ” (अथर्व० ४.१५.५)। “मरुद्भिः प्रच्युता मेघाः सं यन्तु पृथिवीमनु” (अथर्व० ४.१५.८)। “मरुद्भिः प्रच्युता मेघाः प्रावन्तु पृथिवीमनु” (अथर्व० ४.१५.९)। विष्णुः=विष्लृ व्याप्तौ, किरणों द्वारा व्याप्त सूर्य। पूषा=पृथिवी (निघं० १.१)। भवित्रम्=उदकम् अन्तरिक्षं वा (सायण)। भवित्रम्=भावित्रम्?=लोकत्रयी (उणा० ४.१७२), महर्षि दयानन्द।]
इंग्लिश (4)
Subject
Shanti
Meaning
May mother Infinity, nature of life giving Vedic lore bring us peace and well being with the vows of sacred discipline. May the winds nobly vibrant and adorable blow for our peace and progress. May Vishnu, lord of green herbs, and Pusha, natures nourishment and growth be for our peace and total good.
Translation
May the mother infinity, through holy observances, be for our happiness; may the glowing vital principles be for our happiness; may the all pervading one, the nourishing one, be for our happiness; may the cosmic waters be propitious to us; may the wind blow for our happiness. (Rg. VII.35.9)
Translation
May the educated mothers by their good acts make us prosperous, may the men of noble intentions shower their blessings upon us, may the Omnipresent Divinity give us, peace and prosperity, may the invigorating continental power strengthen our physical, mental and spiritual happiness and may our destiny lead us for happiness and may the air be auspicious for us.
Translation
May the mother earth, with her fixed behaviors of evolutions be peaceful to us. May the winds, moving in the atmosphere be comforting to us. May the All-pervading God, the sacrifice and the Sun be all peaceful. May the nourishing food be pleasant for us. May water, the source of production be soothing to us. May air be comfortable to us.
Footnote
cf. Rig, 7.35.12.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(शम्) सुखप्रदा (नः) अस्मभ्यम् (अदितिः) अखण्डवेदवाणी (भवतु) (व्रतेभिः) नियमैः (शम्) (नः) (भवन्तु) (मरुतः) शूरवीराः (स्वर्काः) सुपूजनीयाः पण्डिताः (शम्) (नः) (विष्णुः) व्यापको यज्ञः (शम्) (उ) (पूषा) पोषिका पृथिवी-निघ० १।१ (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (भवित्रम्) अशित्रादिभ्य इत्रोत्रौ। उ० ४।१७३। भू सत्तायाम्-इत्र प्रत्ययः। भुवनम्। निवासस्थानम् (शम्) (उ) (अस्तु) (वायुः) पवनः ॥
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