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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - द्यावापृथिवी छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अभय सूक्त
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    इ॒दमु॒च्छ्रेयो॑ऽव॒सान॒मागां॑ शि॒वे मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑भूताम्। अ॑सप॒त्नाः प्र॒दिशो॑ मे भवन्तु॒ न वै त्वा॑ द्विष्मो॒ अभ॑यं नो अस्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम्। उ॒त्ऽश्रेयः॑। अ॒व॒ऽसान॑म्। आ। अ॒गा॒म्। शि॒वे इति॑। मे॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। अ॒भू॒ता॒म्। अ॒स॒प॒त्नाः। प्र॒ऽदिशः॑। मे॒। भ॒व॒न्तु॒। न। वै। त्वा॒। द्वि॒ष्मः॒। अभ॑यम्। नः॒। अ॒स्तु॒ ॥१४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदमुच्छ्रेयोऽवसानमागां शिवे मे द्यावापृथिवी अभूताम्। असपत्नाः प्रदिशो मे भवन्तु न वै त्वा द्विष्मो अभयं नो अस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम्। उत्ऽश्रेयः। अवऽसानम्। आ। अगाम्। शिवे इति। मे। द्यावापृथिवी इति। अभूताम्। असपत्नाः। प्रऽदिशः। मे। भवन्तु। न। वै। त्वा। द्विष्मः। अभयम्। नः। अस्तु ॥१४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विजयप्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे इन्द्र ! महाप्रतापी राजन्] (इदम्) यह (उच्छ्रेयः) अत्युत्तम (अवसानम्) विश्राम (आ अगाम्) मैंने पाया है, (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी (मे) मेरे लिये (शिवे) मङ्गलकारी (अभूताम्) हुई हैं (मे) मेरी (प्रदिशः) दिशाएँ (असपत्नाः) विना शत्रु (भवन्तु) होवें, (त्वा) तुझसे (वै) निश्चय करके (न द्विष्मः) हम विरोध नहीं करते, (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे ॥१॥

    भावार्थ

    जिस राज्य में प्रजा को सुख मिले, सूर्य और पृथिवी मङ्गलकारी हों अर्थात् जहाँ वृष्टि और अन्न आदि की उपज ठीक होती हो, वहाँ प्रजागण चोर उचक्के आदि दुष्टों से रक्षित रहकर राजभक्ति करते रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(इदम्) (उच्छ्रेयः) प्रशस्यतरम् (अवसानम्) विरामम्। विश्रामम् (आ अगाम्) प्राप्तवानस्मि (शिवे) मङ्गलप्रदे (मे) मह्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (अभूताम्) (असपत्नाः) शत्रुरहिताः (प्रदिशः) सर्वा दिशाः (मे) मम (भवन्तु) (न) निषेधे (वै) निश्चयेन (त्वा) त्वाम् (द्विष्मः) विरोधयामः (अभयम्) भयराहित्यम् (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) ॥

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    विषय

    अद्वेष व अभय

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार प्रभु-स्मरणपूर्वक निरन्तर आगे बढ़ने पर मैं (इदम्) = इस (उत् श्रेयः अवसानम्) = उत्कृष्ट कल्याण की अन्तिम स्थिति-मोक्षलोक को (आगाम्) = प्राप्त हुआ हूँ। जीवन्मुक्त की स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ। (मे) = मेरे लिए (द्यावापृथिवी) = द्युलोक व पृथिवीलोक (शिवे अभूताम्) = कल्याणकर हुए हैं। २. (मे) = मेरे लिए (प्रदिश:) = ये प्रकृष्ट विशाल दिशाएँ (असपत्नाः) = शत्रुरहित (भवन्तु) = हों। हे प्रभो! हम (त्वा) = आपका (वै) = निश्चय से (न द्विष्मः) = द्वेष नहीं करते। किसी भी व्यक्ति से द्वेष वस्तुत: अन्त:स्थित आपसे ही द्वेष होता है। हम किसी भी प्राणी से द्वेष नहीं करते। हे प्रभो! इसप्रकार 'अद्वेष' की भावना को अपनाने पर (न:) = हमारे लिए (अभयम् अस्तु) = निर्भयता हो। द्वेष में ही भय है। अद्वेष के होने पर अभय होता ही है।

    भावार्थ

    हम जीवन्मुक्त की स्थिति को प्राप्त करें। द्यावापृथिवी हमारे लिए कल्याणकर हों। हम नितेष बनें और परिणामतः निर्भय हों।

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    भाषार्थ

    (इदम्) इस (उत् श्रेयः) उत्कृष्ट श्रेयस्कर (अवसानम्) युद्ध-समाप्ति को (आगाम्) मैं प्राप्त हुआ हूँ। (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक (मे) मेरे लिये (शिवे) सुखकारी और कल्याणकारी (अभूताम्) हुए हैं। (प्रदिशः) दिशाएं और उपदिशाएं, परमेश्वरीय कृपा से (मे) मेरे लिये (असपत्नाः) शत्रुरहित (भवन्तु) हो जायें। हे परराष्ट्र के मुखिया! (वै) निश्चय है कि (त्वा) आप के साथ (न द्विष्मः) हम कोई द्वेषभावना नहीं रखते। (नः) हम सब के लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) हो।

    टिप्पणी

    [सूक्त १३, मन्त्र ११ के पश्चात विजयी राजा विजित राजा को आश्वासन देता है कि इस युद्ध के उपरान्त हमारा कोई द्वेष आपके प्रति नहीं रहा। अब हम सब के लिये भय की कोई आशंका नहीं रही। वेदानुसार दो दृष्टियों से युद्ध किया जा सकता है— (१) परराष्ट्र को सत्यमार्ग पर लाने के लिये। तथा (२) परराष्ट्र द्वारा आक्रमण होने पर स्वराष्ट्र की रक्षा के लिये। परराष्ट्र को अपने अधीन कर उसकी भूमि और सम्पत्ति को हथियाने के लिये युद्ध करना वेदसम्मत नहीं है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Fear

    Meaning

    Here I come to peace and rest of high order (after the end of the turmoil). Let the heaven and earth be kind and gracious to me. May the quarters of space and the sub-quarters be free from enmity and opposition. O man, O nature, O adversary, we hate you not, we pollute you not. Let there be freedom from fear for all of us all round.

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    Subject

    For safety

    Translation

    I have reached this highly excellent end (of the journey). Heaven and earth have been auspicious to me. May the great quarters be free rivals for me. Surely, we do not hate you. Let there be no fear for us. (Rv. VIII.61.13 Variation)

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    Translation

    May I attain this high resting place the Sumum Bonum of life, May the heaven and earth be favorable to me and may all the quarters be without foes for me. O, man, we do not hate you and let there be security and safety for us.

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    Translation

    O king, I have got a splendid place of shelter. May the heavens and the earth be peaceful to me. May all the main quarters be free, from enemies for me, We don’t have any feeling of enemity for you; hence we may be free from fear.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(इदम्) (उच्छ्रेयः) प्रशस्यतरम् (अवसानम्) विरामम्। विश्रामम् (आ अगाम्) प्राप्तवानस्मि (शिवे) मङ्गलप्रदे (मे) मह्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (अभूताम्) (असपत्नाः) शत्रुरहिताः (प्रदिशः) सर्वा दिशाः (मे) मम (भवन्तु) (न) निषेधे (वै) निश्चयेन (त्वा) त्वाम् (द्विष्मः) विरोधयामः (अभयम्) भयराहित्यम् (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) ॥

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