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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
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    यत्ते त॒नूष्वन॑ह्यन्त दे॒वा द्युरा॑जयो दे॒हिनः॑। इन्द्रो॒ यच्च॒क्रे वर्म॒ तद॒स्मान्पा॑तु वि॒श्वतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। ते। त॒नूषु॑। अन॑ह्यन्त। दे॒वाः। द्युऽरा॑जयः। दे॒हिनः॑। इन्द्रः॑। यत्। च॒क्रे। वर्म॑। तत्। अ॒स्मान्। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑ ॥२०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते तनूष्वनह्यन्त देवा द्युराजयो देहिनः। इन्द्रो यच्चक्रे वर्म तदस्मान्पातु विश्वतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। ते। तनूषु। अनह्यन्त। देवाः। द्युऽराजयः। देहिनः। इन्द्रः। यत्। चक्रे। वर्म। तत्। अस्मान्। पातु। विश्वतः ॥२०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रक्षा के प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (यत्) जिस [कवच] को (तनूषु) शरीरों पर (ते) उन (द्युराजयः) व्यवहारों में ऐश्वर्यवान्, (देहिनः) शरीरधारी (देवाः) विद्वानों ने (अनह्यन्त) बाँधा है। और (यत्) जिस (वर्म) कवच [रक्षासाधन] को (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] ने (चक्रे) बनाया है, (तत्) वह [कवच] (अस्मान्) हमें (विश्वतः) सब ओर से (पातु) बचावे ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे विद्वान् लोगों ने परमेश्वरकृत नियमों को मानकर सबकी रक्षा की है, वैसे ही मनुष्यों को विद्वान् होकर परस्पर रक्षा करनी चाहिये ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यत्) वर्म (ते) प्रसिद्धाः (तनूषु) शरीरेषु (अनह्यन्त) णह बन्धने-लङ्। धृतवन्तः (देवाः) विद्वांसः (द्युराजयः) दिवु व्यवहारे-क्विप्+राजृ दीप्तौ ऐश्वर्ये च-इन्। व्यवहारेषु समर्थाः (देहिनः) शरीरिणः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वरः (यत्) (चक्रे) कृतवान् (वर्म) कवचम्। रक्षासाधनम् (तत्) (अस्मान्) उपासकान् (पातु) (विश्वतः) सर्वतः ॥

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    विषय

    'देही देवों' से दत्त कवच

    पदार्थ

    १. प्रभु महादेव हैं। उत्तम 'माता, पिता व आचार्य' देहधारी देव हैं। माता बालक को "चरित्र' का कवच धारण कराती है, पिता 'शिष्टाचार का तथा आचार्य 'ज्ञान' का। (यत्) = जिस (वर्म) = कवच को (ते) = तेरे (तनूषु) = शरीरों पर [स्थूल, सूक्ष्म, कारणनामक शरीरों पर] (द्युराजय:) = ज्ञान से दीप्त होनेवाले (देहिनः) = शरीरधारी (देवा:) = देव-माता, पिता तथा आचार्य अनान्त-बाँधते हैं। (तत्) = वह 'चरित्र, शिष्टाचार व ज्ञान' का कवच (अस्मान्) = हमें (विश्वत:) = सब ओर से (पातु) = रक्षित करे। २. इन कवचों के अतिरिक्त (यत् वर्म) = जिस कवच को (इन्द्रः सर्वशक्तिमान्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु ने (चक्रे) = बनाया है। प्रभु ने शरीर में सोमशक्ति को स्थापित किया है। यह 'सोम' रोगों को रोकने के लिए सर्वोत्तम कवच है। यह सोम का कवच ही हमें सब ओर से सुरक्षित करे ।

    भावार्थ

    सुशिक्षित माता 'चरित्र' के कवच को धारण कराती है, कुशल पिता 'शिष्टाचार' के कवच को धारण कराता है, आचार्य'ज्ञान' के कवच को। प्रभु ने हमें 'सोमशक्ति' का कवच पहनाया है। ये कवच हमारा रक्षण करें।

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    भाषार्थ

    (द्युराजयः) ज्ञान-द्युतियों द्वारा प्रदीप्त (ते) उन (देहिनः) देहधारी (देवाः) देवकोटि के विद्वानों तथा महात्माओं ने (तनूषु) देहों में (यत्) जो (वर्म) कवच अर्थात् रक्षासाधन (अनह्यन्त) बांध दिये हैं, तथा (इन्द्रः) पृथिवी के सम्राट् ने (यत्) जो (वर्म) कवच अर्थात् रक्षासाधन (चक्रे) कर रखे हैं, (तद्) वे वर्म अर्थात् रक्षासाधन (अस्मान्) हम सबकी (विश्वतः) सब ओर से और सब प्रकार से (पातु) रक्षा करें।

    टिप्पणी

    [वर्म पातु—जात्येकवचन है। तनूषु=तनुएँ अर्थात् देहें तीन प्रकार की होती हैं—स्थूल सूक्ष्म तथा कारण देहें। देवों ने निज सदुपदेशों द्वारा ब्रह्मचर्य सादा भोजन परिश्रम सद्विचार पवित्राचरण आदि रक्षा के जो साधन निर्दिष्ट किये हैं, जिन्हें कि हमने निज देहों में मानो बांध रखना है। तभी हमारी रक्षा सम्भव है। इन्द्र ने जो रक्षासाधन उपस्थित किये हैं, वे बाह्य साधन हैं, और देवों ने जो रक्षा साधन निर्दिष्ट किये हैं, वे आभ्यन्तर साधन हैं, द्युराजयः= द्यु (ज्ञानद्युति)+राजृ दीप्तौ। देहिनः—मन्त्र में इस पद द्वारा देहधारी देवों का वर्णन हुआ है, यथा—मातृदेव, पितृदेव, आचार्यदेव अतिथिदेव आदि।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protection

    Meaning

    O man, may that armour of physical, moral and spiritual discipline which Indra, lord omnipotent, created for you and which divine personalities in human form, brilliant with divine knowledge and wisdom, bestowed on your different body forms (gross, subtle and causal), protect and promote us all round.

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    Translation

    What (armour) those bounties of Nature, shining in the sky, assuming bodily form, put on their bodies, what the resplendent self makes an armour for himself, may that protect us from all sides.

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    Translation

    Let that means of protection which the corporeal learned refulgent with knowledge bind on your bodies, O man, and which the mighty king makes his armour, protect us from all sides.

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    Translation

    The armour that the brave warriors, looking bright like the radiant heavens, fasten to their bodies and that which the king or the commander gets ready for himself, may protect us from all sides.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यत्) वर्म (ते) प्रसिद्धाः (तनूषु) शरीरेषु (अनह्यन्त) णह बन्धने-लङ्। धृतवन्तः (देवाः) विद्वांसः (द्युराजयः) दिवु व्यवहारे-क्विप्+राजृ दीप्तौ ऐश्वर्ये च-इन्। व्यवहारेषु समर्थाः (देहिनः) शरीरिणः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वरः (यत्) (चक्रे) कृतवान् (वर्म) कवचम्। रक्षासाधनम् (तत्) (अस्मान्) उपासकान् (पातु) (विश्वतः) सर्वतः ॥

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