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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 33/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भृगुः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - जगती सूक्तम् - दर्भ सूक्त
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    स॑हस्रा॒र्घः श॒तका॑ण्डः॒ पय॑स्वान॒पाम॒ग्निर्वी॒रुधां॑ राज॒सूय॑म्। स नो॒ऽयं द॒र्भः परि॑ पातु वि॒श्वतो॑ दे॒वो म॒णिरायु॑षा॒ सं सृ॑जाति नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒ह॒स्र॒ऽअ॒र्घः। श॒तऽका॑ण्डः। पय॑स्वान्। अ॒पाम्। अ॒ग्निः। वी॒रुधा॑म्। रा॒ज॒ऽसूय॑म्। सः। नः॒। अ॒यम्। द॒र्भः। परि॑। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑। दे॒वः। म॒णिः। आयु॑षा। सम्। सृ॒जा॒ति॒। नः॒ ॥३३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रार्घः शतकाण्डः पयस्वानपामग्निर्वीरुधां राजसूयम्। स नोऽयं दर्भः परि पातु विश्वतो देवो मणिरायुषा सं सृजाति नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽअर्घः। शतऽकाण्डः। पयस्वान्। अपाम्। अग्निः। वीरुधाम्। राजऽसूयम्। सः। नः। अयम्। दर्भः। परि। पातु। विश्वतः। देवः। मणिः। आयुषा। सम्। सृजाति। नः ॥३३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 33; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    उन्नति करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (सहस्रार्घः) सहस्रों पूजावाला, (शतकाण्डः) सैकडों सहारे देनेवाला, (पयस्वान्) अन्नवाला, (अपाम्) जलों की (अग्निः) अग्नि [के समान व्यापक] (वीरुधाम्) ओषधियों के (राजसूयम्) राजसूय [बड़े यज्ञ के समान उपकारी] है। (सः अयम्) वही (दर्भः) दर्भ [शत्रुविदारक परमेश्वर] (नः) हमें (विश्वतः) सब ओर से (परि पातु) पालता रहे, (देवः) प्रकाशमान (मणिः) प्रशंसनीय [वह परमेश्वर] (नः) हमें (आयुषा) [उत्तम] जीवन के साथ (सं सृजाति) संयुक्त करे ॥१॥

    भावार्थ

    जो जल के भीतर अग्नि के समान सर्वव्यापक परमेश्वर सृष्टि की अनेक प्रकार रक्षा करता है, मनुष्य उसकी भक्ति से प्रयत्नपूर्वक अपने जीवन को सुफल बनावें ॥१॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का तीसरा पाद आ चुका है-सू०३२ म०१०॥१−(सहस्रार्घः) अर्ह पूजायाम्-घञ्। बहुपूजनीयः (शतकाण्डः) उ०१९।३२।१। बहुरक्षणोपेतः (पयस्वान्) अन्नवान्-निघ०२।७ (अपाम्) जलानां मध्ये (अग्निः) अग्निसमानसर्वव्यापकः (वीरुधाम्) ओषधीनाम् (राजसूयम्) राजसूययज्ञसमानमहोपकारकः (देवः) प्रकाशमानः (मणिः) प्रशस्तः परमेश्वरः (आयुषा) उत्तमजीवनेन (सं सृजाति) संयोजयेत् (नः) अस्मान्। अन्यत् पूर्ववत्-अ०१९।३२।१०॥

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    विषय

    'सहस्त्रार्घः' दर्भमणि

    पदार्थ

    १. (अयं दर्भ:) = यह वीर्यरूप मणि (सहस्त्रार्घ:) = हज़ारों मूल्योवाली है-अत्यन्त क्रीमती है। (शतकाण्डः) = रोगरूप शत्रुओं के वेधन के लिए सैकड़ों बाणोंवाली है। (पयस्वान्) = हमारा प्रशस्त आप्यायन [वर्धन] करनेवाली है। (अपाम्) = प्रजाओं को यह (अग्निः) = आगे ले-चलनेवाला है। (वीरुधाम्) = विशेषरूप से रोगों का निरोध करनेवाली औषधों का यह (राजसूयम्) = राजसूय यज्ञ है। राजसूययज्ञ करनेवाला राजा सर्वोत्तम राजा माना जाता है। इसीप्रकार यह वीर्य रोगनिरोधकों में सर्वश्रेष्ठ है। २. (स:) = वह यह दर्भ (न:) = हमें (विश्वतः परिपातु) = सब ओर से रक्षित करे। यह (देव:मणि:) = प्रकाशमय व रोगों को जीतने की कामना करनेवाली है। यह (नः) = हमें (आयुषा) = दीर्घ आयुष्य से (संसृजाति) = संसृष्ट करती है।

    भावार्थ

    यह वीर्यमणि देवमणि है। बहुमूल्य है। रोगों को रोकनेवालों की मुखिया है। यह हमें नीरोग बनाकर दीर्घजीवन प्राप्त कराती है।

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    भाषार्थ

    (सहस्रार्घः) हजारों द्वारा पूजनीय या महामूल्यरत्न, (शतकाण्डः) सैकड़ों द्वारा काम्य अर्थात् चाहा गया, (पयस्वान्) आनन्दरस से नित्य सम्बद्ध, (अपाम् अग्निः) जलसम्बन्धी विद्युदग्नि के सदृश जाज्वल्यमान, (विरुधाम्) रोगविरोधी ओषधियों का (राजसूयम्) सम्राट्, अर्थात् महौषधरूप (सः अयम्) यह वह (दर्भः) अविद्यादिविदारक परमेश्वर (नः) हमारी (विश्वतः) सब ओर से (परि पातु) परिपालना करे। (देवः मणि) दिव्यरत्न परमेश्वर (नः) हमें (आयुषा) स्वस्थ और दीर्घ आयु के साथ (सं सृजाति) सम्बद्ध करे।

    टिप्पणी

    [काण्डः= काम्यते जनैः (उणा० १.११५)। पयस्वान्, पयः=रस। यथा— “पयस्वतीरोषधयः पयस्वन्मामकं वचः” (अथर्व० ३.२४.१), अर्थात् ओषधियाँ रसवाली हों, मेरी वाणी रस वाली हो। राजसूयम्= सम्राट्; लक्षणया। दर्भः=दॄ विदारणे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha

    Meaning

    Adorable and adored a thousand ways, infinitely manifested in stems and branches, universally loved, treasurehold of delicious food and drink, flashing like lightning fire of the clouds, royal majestic among sanative herbs, may Darbha, divine destroyer and preserver, refulgent jewel of the universe, join us with health and age through the human body on earth. May the Lord protect and promote us all round.

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    Subject

    Darbha : The divine blessing

    Translation

    Worth a thousand, having hundreds of joints, rich in sap, fire of the waters, and crowing of the plants, may this darbha as such protect us well all around. May this divine blessing endow us with a long life-span.

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    Translation

    This Darbha is hundred-stemmed, thousand times worthful succulent and is the heat of water (electricity) and royal power of the plants. Let this protect us from all sides and let this praiseworthy marvellous Darbha endow us with life.

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    Translation

    The same darbha-mani, which has thousands of energies, hundreds of reeds, nourishing juice, a fire among the water and a king among the plants and herbs, may protect us from all sides. This divine mani invest us with long life.

    Footnote

    Pt. Jaidev Vidyalankar has applied this sukta to the Army Commander. But I do feel strongly for making a thorough search into the high qualities of durbha and other herbs, mentioned herein and hereafter. Hence my different rendering all through.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का तीसरा पाद आ चुका है-सू०३२ म०१०॥१−(सहस्रार्घः) अर्ह पूजायाम्-घञ्। बहुपूजनीयः (शतकाण्डः) उ०१९।३२।१। बहुरक्षणोपेतः (पयस्वान्) अन्नवान्-निघ०२।७ (अपाम्) जलानां मध्ये (अग्निः) अग्निसमानसर्वव्यापकः (वीरुधाम्) ओषधीनाम् (राजसूयम्) राजसूययज्ञसमानमहोपकारकः (देवः) प्रकाशमानः (मणिः) प्रशस्तः परमेश्वरः (आयुषा) उत्तमजीवनेन (सं सृजाति) संयोजयेत् (नः) अस्मान्। अन्यत् पूर्ववत्-अ०१९।३२।१०॥

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