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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - प्राणः, अपानः, आयुः छन्दः - त्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - अभय प्राप्ति सूक्त
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    यथा॒ सूर्य॑श्च च॒न्द्रश्च॒ न बि॑भी॒तो न रिष्य॑तः। ए॒वा मे॑ प्राण॒ मा बि॑भेः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । सूर्य॑: । च॒ । च॒न्द्र: । च॒ । न । बि॒भी॒त: । न । रिष्य॑त: । ए॒व । मे॒ । प्रा॒ण॒ । मा । बि॒भे॒: ॥१५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा सूर्यश्च चन्द्रश्च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा बिभेः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । सूर्य: । च । चन्द्र: । च । न । बिभीत: । न । रिष्यत: । एव । मे । प्राण । मा । बिभे: ॥१५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य धर्म के पालन में निर्भय रहे।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (च) निश्चय करके (सूर्यः) सूर्य (च) और (चन्द्रः) चन्द्र, दोनों (न)(रिष्यतः) दुःख देते हैं और (न)(बिभीतः) डरते हैं, (एव) वैसे ही (मे) मेरे (प्राण) प्राण ! तू (मा बिभेः) मत डर ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे ईश्वर के नियम से सूर्य अपनी राशियों में घूमकर संसार में किरणों और प्रकाश द्वारा वृष्टि आदि से और चन्द्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर अन्न आदि औषधों को पुष्ट करके, उपकार करते और निर्भय विचरते हैं, ऐसे ही मनुष्य भी वेदविहित धर्म की रक्षा करके सदा प्रसन्न रहें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३–सूर्यः। अ० १।३।५। आदित्यः। सप्ताश्वः। चन्द्रः। अ० १।३।४। चन्द्रमाः ॥

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    विषय

    सूर्य और चन्द्र

    पदार्थ

    १. (यथा) = जैसे (सूर्यः च चन्द्रः च) = सूर्य और चाँद अपने मार्ग पर चलते हुए (न बिभीत:) = न भयभीत होते हैं और (न रिष्यतः) = न हिंसित होते है, (एव) = इसीप्रकार (मे प्राण) = हे मेरे प्राण! (मा बिभे:) = तू भयभीत मत हो। २. सूर्य और चन्द्र परस्पर सम्बद्ध होकर चलते हैं, उसी प्रकार जैसेकि दिन और रात मिलकर चलते हैं। नासिका का बायाँ स्वर 'चन्द्र स्वर' कहलाता है और दायाँ स्वर 'सूर्य स्वर' कहलाता है। जिस प्रकार इनका परस्पर सम्बन्ध है, उसी प्रकार सूर्य व चन्द्र का सम्बन्ध है। सूर्य की किरण ही तो चन्द्र को प्रकाशित करती है। सूर्य ओषधियों का परिपाक करता है और चन्द्र उनमें रस का सञ्चार करता है। सूर्य सब वनस्पतियों में अग्नितत्त्व की स्थापना करता है और चन्द्रमा सोमतत्त्व की। इसप्रकार सूर्य और चन्द्र मिलकर पूर्णता पैदा करते हैं। ३. मेरे प्राण भी सूर्य व चन्द्रतत्त्वों को अपने में बढ़ाते हुए निर्भय व अहिंसित हों। केवल सूर्य जगत् को झुलसा देता, केवल चन्द्र जमा देता। दोनों का समन्वय संसार की ठीक गति का कारण है। मेरा जीवन भी इन दोनों तत्वों के मेलवाला हो।

    भावार्थ

    जीवन में सूर्यतत्त्व व चन्द्रतत्व के समन्वय से हम निर्भय व अहिंसित हों।

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    भाषार्थ

    जैसे सूर्य और चन्द्र नहीं डरते और नहीं हिंसित होते। इसी प्रकार हे मेरे प्राण ! तू न डर [और न हिंसित हो।] [अभिप्राय मन्त्र १ वत्]।

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    विषय

    अभय की भावना

    भावार्थ

    (यथा सूर्यश्च चन्द्रश्च०) और जिस प्रकार सूर्य और चन्द्र न भय करते और न नष्ट होते हैं इसी प्रकार हे मेरे प्राण ! तू भी भय मत कर। तू भी नष्ट नहीं होगा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। प्राणो देवता। १-६ त्रिपाद् गायत्रम् । षडृचं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    No Fear

    Meaning

    Just as sun and moon never fear, nor are they hurt or destroyed, same way, O my courage and pranic energy, never fear.

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    Translation

    As both Sun and Moon do not entertain any fear, nor do they suffer any harm, so O my life-breath may you have no fear.

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    Translation

    As the Sun and moon are not afraid and never they suffer from loss, so my vital breath let not fear.

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    Translation

    As Sun and Moon are not afraid nor ever suffer harm or loss even so my spirit, fear not thou.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–सूर्यः। अ० १।३।५। आदित्यः। सप्ताश्वः। चन्द्रः। अ० १।३।४। चन्द्रमाः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    যেভাবে সূর্য এবং চন্দ্র ভীত হয় না/ভয় করে না এবং হিংসিত হয় না। এইভাবে হে আমার প্রাণ ! তুমি ভয় পেয়ো না/ভীত হয়োনা [এবং হিংসিত হয়োনা।] [ভয় হিংসার কারণ হয়, নির্ভয়তা রক্ষা করে।]

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    मन्त्र विषय

    মনুষ্যো ধর্মপালনে নির্ভয়ো ভবেৎ

    भाषार्थ

    (যথা) যেমন (চ) নিশ্চিতরূপে (সূর্যঃ) সূর্য (চ)(চন্দ্রঃ) চন্দ্র, দুই (ন) না (রিষ্যতঃ) দুঃখ দেয় এবং (ন) না (বিভীতঃ) ভীত হয়, (এব) সেভাবেই (মে) আমার (প্রাণ) প্রাণ ! তুমি (মা বিভেঃ) ভয় পেওনা/আশঙ্কিত হয়োনা॥৩॥

    भावार्थ

    যেমন ঈশ্বরের নিয়ম দ্বারা সূর্য নিজের রাশিতে ঘুরে সংসারে কিরণ, আলো দ্বারা বৃষ্টি আদির দ্বারা এবং চন্দ্র সূর্য থেকে আলো প্রাপ্ত হয়ে অন্ন আদি ঔষধ পুষ্ট করে, উপকার করে এবং নির্ভয়ে বিচরণ করে, এভাবেই মনুষ্যও বেদবিহিত ধর্মের রক্ষা করে সদা প্রসন্ন থাকুক ॥৩॥

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