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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - प्राणः, अपानः, आयुः छन्दः - द्विपदासुरी गायत्री सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
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    विश्व॑म्भर॒ विश्वे॑न मा॒ भर॑सा पाहि॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑म् ऽभर । विश्वे॑न । मा॒ । भर॑सा । पा॒हि॒ । स्वाहा॑ ॥१६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वम्भर विश्वेन मा भरसा पाहि स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वम् ऽभर । विश्वेन । मा । भरसा । पाहि । स्वाहा ॥१६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वम्भर) हे सर्वपोषक परमेश्वर ! (विश्वेन) सब (भरसा) पोषणशक्ति से (मा) मेरी (पाहि) रक्षा कर, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥५॥

    भावार्थ

    सब शरीर को स्वस्थ रखकर मनुष्य उस (विश्वम्भर) परमेश्वर के अनन्त पथ्य, पोषक द्रव्यों और शक्तियों का उपयोग करें और अपनी शारीरिक और आत्मिक शक्ति बढ़ाकर सदा बलवान् रहकर (विश्वम्भर) सर्वपोषक बनें और आनन्द भोगें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५–विश्वम्भर। संज्ञायां भृतॄवृजि०। पा० ३।२।४६। इति विश्व+डुभृञ् धारणपोषणयोः–खच्। अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम्। पा० ६।३।६७। इति मुम्। हे सर्वधारक ! जगत्पोषक ! विष्णो ! परमात्मन् ! विश्वेन। समस्तेन। भरसा। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति डुभृञ्–असुन्। पोषणशक्त्या। अन्यद् व्याख्यातम् ॥

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    विषय

    पोषणशक्ति

    पदार्थ

    १.हे (विश्वम्भर) = सारे विश्व का भरण-पोषण करनेवाले प्रभो! (मा) = मुझे (विश्वेन भरसा) = सम्पूर्ण पोषणशक्ति के द्वारा (पाहि) = रक्षित कीजिए। (स्वाहा) = यह मेरी उत्तम वाणी हो। इन उत्तम शब्दों में याचना करता हुआ मैं अङ्ग-प्रत्यङ्ग की पोषण शक्तिवाला होऊँ। २. प्रभु को 'विश्वम्भर' नाम से स्मरण करता हुआ मैं शरीर, मन व बुद्धि सभी का ठीक से भरण-पोषण करनेवाला बनें।

    भावार्थ

    प्रभु विश्वम्भर हैं। मैं भी विश्वम्भर बनूँ। अपनी सब शक्तियों का पोषण करता हुआ सभी का भरण करनेवाला बनें।

    विशेष

    सूक्त में उत्तम जीवन का चित्रण इस रूप में हुआ है कि जिसमें रोग नहीं, दर्शनशक्ति व श्रवणशक्ति ठीक है, मन दिव्य गुणों से युक्त है और सब अङ्ग-प्रत्यङ्ग शक्तिसम्पन्न हैं, वही उत्तम जीवन है। ऐसे जीवन के लिए ही अगले सूक्त में प्रार्थना है -

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    भाषार्थ

    (विश्वम्भर) विश्व का भरण-पोषण करनेवाले हे परमेश्वर ! (विश्वेन भरसा) निज समग्र भरण-पोषण द्वारा (मा पाहि) मेरी रक्षा कर (स्वाहा) सु आह ।

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    विषय

    रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (विश्वम्भर) समस्त संसार के भरण पोषण करने हारे परमात्मन् ! (मा) मुझे (विश्वेन) समस्त (भरसा) पोषण शक्ति से (पाहि) पालन कर, (स्वाहा) ऐसी उत्तम प्रार्थना स्वयं करनी चाहिये ।

    टिप्पणी

    आयुष्काम अर्थात्, दीर्घ आयु चाहने वाला पुरुष इस सूक्त का मनन किया करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। प्राणापानौ आयुश्च देवताः। १, ३ एकपदा आसुरी त्रिष्टुप्। एकपदा आसुरी उष्णिक्। ४, ५ द्विपदा आसुरी गायत्री। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Divine Protection

    Meaning

    May Vishvambhara, lord protector and sustainer of the universe, protect and promote me and invest me with universal life energy at the optimum. This is the voice of Ashish, elan vital, the will to live at the full in truth of word and deed.

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    Translation

    O Lord, sustainer of all, may you protect me with all sorts of sustenance. Svāhā.

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    Translation

    O’ All-sustaining Lord; protect me with all your care. What: a beautiful utterance.

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    Translation

    O All-sustainer, preserve me with Thy power of nourishing. I dedicate myself to Thee. [1]

    Footnote

    [1] All-sustainer: God. The word svaha in this hymn is used for prayer, supplication dedication and nice saying.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५–विश्वम्भर। संज्ञायां भृतॄवृजि०। पा० ३।२।४६। इति विश्व+डुभृञ् धारणपोषणयोः–खच्। अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम्। पा० ६।३।६७। इति मुम्। हे सर्वधारक ! जगत्पोषक ! विष्णो ! परमात्मन् ! विश्वेन। समस्तेन। भरसा। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति डुभृञ्–असुन्। पोषणशक्त्या। अन्यद् व्याख्यातम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (বিশ্বম্ভর) বিশ্বের ভরণ-পোষণকারী হে পরমেশ্বর! (বিশ্বেন ভরসা) নিজ সমগ্ৰ ভরণ-পোষণ দ্বারা (মা পাহি) আমার রক্ষা করুন (স্বাহা) সু আহ।

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    मन्त्र विषय

    আত্মরক্ষায়া উপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বিশ্বম্ভর) হে সর্বপোষক পরমেশ্বর ! (বিশ্বেন) সব (ভরসা) পোষণশক্তি দ্বারা (মা) আমার (পাহি) রক্ষা করো, (স্বাহা) এই সুন্দর আশীর্বাদ হোক ॥৫॥

    भावार्थ

    সমস্ত শরীরকে সুস্থ রেখে মনুষ্য সেই (বিশ্বম্ভর) পরমেশ্বরের অনন্ত পথ্য, পোষক দ্রব্য ও শক্তির ব্যবহার করুক এবং নিজের শারীরিক ও আত্মিক শক্তি বৃদ্ধি করে সদা বলবান্ থেকে (বিশ্বম্ভর) সর্বপোষক হোক ও আনন্দ ভোগ করুক ॥৫॥

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