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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 6
    ऋषिः - ययातिः देवता - सोमः पवमानः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७
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    स॒हस्र॑धारः पवते समु॒द्रो वा॑चमीङ्ख॒यः। सोमः॒ पती॑ रयी॒णां सखेन्द्र॑स्य दि॒वेदि॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हस्र॑ऽधार: । प॒व॒ते॒ । स॒मु॒द्र: । वा॒च॒म्ऽई॒ड्ख॒य: ॥ सोम॑: । पति: । र॒यी॒णाम् । सखा॑ । इन्द्र॑स्य । दि॒वेऽदि॑वे ॥१३७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रधारः पवते समुद्रो वाचमीङ्खयः। सोमः पती रयीणां सखेन्द्रस्य दिवेदिवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽधार: । पवते । समुद्र: । वाचम्ऽईड्खय: ॥ सोम: । पति: । रयीणाम् । सखा । इन्द्रस्य । दिवेऽदिवे ॥१३७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (सहस्रधारः) सहस्रों धाराओंवाला (समुद्रः) समुद्र [जैसे], (वाचमीङ्खयः) विद्याओं का प्रवर्त्तक, (रयीणाम्) धनों का (पतिः) स्वामी, (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] का (सखा) मित्र (सोमः) सोम [तत्त्व रस] (दिवेदिवे) दिन-दिन (पवते) शुद्ध होता है ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्याओं द्वारा पदार्थों का तत्त्व जानकर दिन-दिन नवीन-नवीन आविष्कार करके धन की वृद्धि करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(सहस्रधारः) बहुधाराभिर्युक्तः (पवते) शुध्यति (समुद्रः) जलधिर्यथा (वाचमीड्खयः) ईखि गतौ, ण्यन्तस्य सुप्युपपदे खश्प्रत्ययः। वाचां विद्यानां प्रवर्त्तकः (सोमः) तत्त्वरसः (पतिः) स्वामी (रयीणाम्) धनानाम् (सखा) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (दिवेदिवे) दिने दिने ॥

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    विषय

    सहस्त्रधार-इन्द्रसखा

    पदार्थ

    १. (सहस्त्रधार:) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला (सोमः) = सोम (पवते) = हमें प्राप्त होता है। यह सोम (समुन्द्रः) = [समुद्] आनन्द से युक्त है-अपने रक्षक पुरुष को आनन्दयुक्त करता है। (वाचम् ईखयः) = ज्ञान की वाणियों को हममें प्रेरित करनेवाला है। सुरक्षित सोम बुद्धि की तीव्रता द्वारा ज्ञानवृद्धि का कारण बनता है। २. (सोमः) = यह सोम (रयीणां पति:) = अन्नमय आदि सब कोशों के ऐश्वयों का रक्षक है। यह (दिवेदिवे) = प्रतिदिन (इन्द्रस्य सखा) = जितेन्द्रिय पुरुष का मित्र है। जितेन्द्रिय पुरुष में ही सोम का निवास होता है और यह सुरक्षित हुआ-हुआ सोम अन्नमयकोश को तेजस्वी बनाता है, प्राणमय को वीर्यवान, मनोमय को ओजस्वी व बलवान, विज्ञानमय को मन्यु-[ज्ञान]-युक्त तथा आनन्दमय को सहस्वी करता है।

    भावार्थ

    सुरक्षित सोम 'सहस्रधार, समुद्र, बाचम् ईखय, रयीपति व इन्द्रसखा' है।

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    भाषार्थ

    भक्तिरस (सहस्रधारः) हजारों धाराओं अर्थात् लहरों के रूप में, (समुद्रः) समुद्र के सदृश (पवते) उछलता है, और (वाचम्) भक्तिमय स्तोत्रों को (ईङ्खयः) प्रेरित करता है। (सोमः) भक्तिरस (रयीणाम्) आध्यात्मिक-विभूतियों का (पतिः) पति है, और (दिवेदिवे) दिन-प्रतिदिन भक्तिरस का (इन्द्रस्य) जगत्-सम्राट् का (सखा) प्रिय बनता जाता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    A thousand streams of Soma joy and enlightenment flow, inspiring and purifying. It is a bottomless ocean that rolls impelling the language and thought of new knowledge. It is the preserver, promoter and sustainer of all wealths and honours and a friend of the soul, inspiring and exalting us day by day.

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    Translation

    The-enlightened man who possesses thousand of vedic speeches (hymns) who give pleasure to all, who is initiator of knowledge and language, who is master of riches and is the friend of Indra, the Almighty Divinity spreads knowledge every day.

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    Translation

    The-enlightened man who possesses thousand of vedic speeches (hymns) who give pleasure to all, who is initiator of knowledge and language, who is master of riches and is the friend of Indra, the Almighty Divinity spreads knowledge every day.

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    Translation

    The friend of the Powerful God or king, the master of riches the energizer of all, well-versed in speech and knowledge, the bearer of manifold branches of science, deep and solemn like the sea, full of all good qualities, stands as a great force by himself.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(सहस्रधारः) बहुधाराभिर्युक्तः (पवते) शुध्यति (समुद्रः) जलधिर्यथा (वाचमीड्खयः) ईखि गतौ, ण्यन्तस्य सुप्युपपदे खश्प्रत्ययः। वाचां विद्यानां प्रवर्त्तकः (सोमः) तत्त्वरसः (पतिः) स्वामी (रयीणाम्) धनानाम् (सखा) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (दिवेदिवे) दिने दिने ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সহস্রধারঃ) সহস্র ধারাযুক্ত (সমুদ্রঃ) সমুদ্র [যেমন], (বাচমীঙ্খয়ঃ) বিদ্যার প্রবর্ত্তক, (রয়ীণাম্) ধনের (পতিঃ) স্বামী, (ইন্দ্রস্য) ইন্দ্রের [মহান ঐশ্বর্যবান পুরুষের] (সখা) মিত্র (সোমঃ) সোম [তত্ত্ব রস] (দিবেদিবে) দিন-দিন (পবতে) বিশুদ্ধ হয়॥৬॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বিদ্যা দ্বারা পদার্থসমূহের তত্ত্ব জেনে দিন-দিন নতুন-নতুন আবিষ্কার করে ধনের বৃদ্ধি করুক ॥৬॥

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    भाषार्थ

    ভক্তিরস (সহস্রধারঃ) সহস্র ধারা রূপে, (সমুদ্রঃ) সমুদ্রের সদৃশ (পবতে) উত্থিত হয়, এবং (বাচম্) ভক্তিময় স্তোত্র (ঈঙ্খয়ঃ) প্রেরিত করে। (সোমঃ) ভক্তিরস (রয়ীণাম্) আধ্যাত্মিক-বিভূতির (পতিঃ) পতি, এবং (দিবেদিবে) দিন-প্রতিদিন ভক্তিরস (ইন্দ্রস্য) জগৎ-সম্রাটের (সখা) প্রিয় হয়/হতে থাকে।

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