Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 14 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सौभरिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१४
    0

    यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ व स्तुषे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । न॒: । इ॒दम्ऽइ॑दम् । पु॒रा । प्र । वस्य॑: । आ॒ऽनि॒नाय॑ । तम् । ऊं॒ इति॑ । व॒: । स्तु॒षे॒ ॥ सखा॑य: । इ॒न्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥१४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु व स्तुषे। सखाय इन्द्रमूतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । न: । इदम्ऽइदम् । पुरा । प्र । वस्य: । आऽनिनाय । तम् । ऊं इति । व: । स्तुषे ॥ सखाय: । इन्द्रम् । ऊतये ॥१४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [पराक्रमी] (नः) हमारे लिये (इदमिदम्) इस-इस (वस्यः) उत्तम वस्तु को (पुरा) पहिले (प्र) अच्छे प्रकार (आनिनाय) लाया है, (तम् उ) उस ही (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी वीर] को, (सखायः) हे मित्रो ! (वः) तुम्हारी (ऊतये) रक्षा के लिये (स्तुवे) मैं सराहता हूँ ॥३॥

    भावार्थ

    जो पुरुष पहिले से ही धीर-वीर होवे, लोग उसकी बड़ाई करके गुण ग्रहण करें ॥३॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में है-८।२१।९, १०। मन्त्र ३ सामवेद में है-उ० ।२।२ ॥ ३−(यः) पराक्रमी (नः) अस्मभ्यम् (इदमिदम्) बहुनिर्दिष्टम् (पुरा) अग्रे (प्र) प्रकर्षेण (वस्यः) वसु-ईयसुन्, ईकारलोपः। वसीयः प्रशस्तं वस्तु (आनिनाय) आनीतवान् (तम्) (उ) अवधारणे (वः) युष्माकम् (स्तुषे) लडर्थे लेडुत्तमैकवचने। सिब् बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्। स्तुवे। स्तौमि (सखायः) हे सुहृदः (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं वीरम् (ऊतये) रक्षायै ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वस्यः प्र आनिनाय

    पदार्थ

    १. (य:) = जो (न:) = हमारे लिए व (व:) = तुम्हारे लिए, अर्थात् सबके लिए (इदम् इदम्) = इस और इस (वस्यः) = प्रशस्त धन को (पुरा) = [पृ पालनपूरणयोः] पालन व पूरण के हेतु से (प्र आनिनाय) = प्रकर्षेण प्राप्त कराते हैं (तम) = उसको ही (स्तुषे) = मैं स्तुत करता हूँ। २. सखायः हे मित्रो! हम (ऊतये) = रक्षण के लिए (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही पुकारते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही हमें पालन व पूरण के लिए उत्कृष्ट वसुओं को प्राप्त कराते हैं। प्रभु ही हमारा रक्षण करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सखायः) हे मित्रो! (वः) तुम्हारी (ऊतये) रक्षा के निमित्त, मैं तुम्हारा प्रतिनिधि, (तम् उ) उस ही (इन्द्रम्) सम्राट् के (स्तुषे) गुण कथन करता हूँ, (यः) जो कि (पुरा) पहिले भी (नः) हमें (इदम् इदम्) अमुक-अमुक नानाविध (वस्यः) राष्ट्र-सम्पत्तियाँ (प्र आनिनाय) प्रकर्षरूप में प्रदान करता रहा है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    O friends, for the peace, freedom, progress and protection of you all, I pray to the same Indra, Lord Almighty, who has provided this beautiful world of joy for us since the very time of creation.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O friend, we for your guard praise that Almighty God who first gives us this and that thing of our benefit.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O friend, we for your guard praise that Almighty God who first gives us this and that thing of our benefit.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O friends, I Sing praises and seek the Protection of the king, who brought us all sorts of comforts and riches before.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में है-८।२१।९, १०। मन्त्र ३ सामवेद में है-उ० ।२।२ ॥ ३−(यः) पराक्रमी (नः) अस्मभ्यम् (इदमिदम्) बहुनिर्दिष्टम् (पुरा) अग्रे (प्र) प्रकर्षेण (वस्यः) वसु-ईयसुन्, ईकारलोपः। वसीयः प्रशस्तं वस्तु (आनिनाय) आनीतवान् (तम्) (उ) अवधारणे (वः) युष्माकम् (स्तुषे) लडर्थे लेडुत्तमैकवचने। सिब् बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्। स्तुवे। स्तौमि (सखायः) हे सुहृदः (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं वीरम् (ऊतये) रक्षायै ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে [পরাক্রমী] (নঃ) আমাদের জন্য (ইদমিদম্) এই সকল/এই-এই (বস্যঃ) উত্তম বস্তু (পুরা) সর্বপ্রথম (প্র) উত্তমরূপে (আনিনায়) আনয়ন করেছে, (তম্ উ) সেই (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [মহাপ্রতাপী বীর] কে, (সখায়ঃ) হে মিত্রগণ! (বঃ) তোমাদের (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য (স্তুবে) আমি স্তুতি করি॥৩॥

    भावार्थ

    যে ব্যক্তি পূর্বেই ধীর-বীর হয়, সবাই তাঁর প্রসংশা করে গুণ গ্রহণ করে/করুক॥৩॥ মন্ত্র ৩, ৪ ঋগ্বেদে আছে-৮।২১।৯, ১০। মন্ত্র ৩ সামবেদে আছে-উ০ ।২।২ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (সখায়ঃ) হে মিত্রগণ! (বঃ) তোমাদের (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য, আমি তোমাদের প্রতিনিধি, (তম্ উ) সেই (ইন্দ্রম্) সম্রাটের (স্তুষে) গুণ কথন করি, (যঃ) যে (পুরা) পূর্বেও (নঃ) আমাদের (ইদম্ ইদম্) অমুক-অমুক নানাবিধ (বস্যঃ) রাষ্ট্র-সম্পত্তি (প্র আনিনায়) প্রকর্ষরূপে প্রদান করেছে।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top