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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 46/ मन्त्र 2
    ऋषिः - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४६
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    स नः॒ पप्रिः॑ पारयाति स्व॒स्ति ना॒वा पु॑रुहू॒तः। इन्द्रो॒ विश्वा॒ अति॒ द्विषः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । न॒: । पप्रि॑: । पा॒र॒या॒ति॒: । स्व॒स्ति । ना॒वा । पु॒रु॒ऽहू॒त: ॥ इन्द्र॑: । विश्वा॑: । अति॑ । द्विष॑: ॥४६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नः पप्रिः पारयाति स्वस्ति नावा पुरुहूतः। इन्द्रो विश्वा अति द्विषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । न: । पप्रि: । पारयाति: । स्वस्ति । नावा । पुरुऽहूत: ॥ इन्द्र: । विश्वा: । अति । द्विष: ॥४६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 46; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सेनापति के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह (पप्रिः) पूरण करनेवाला, (पुरुहूतः) बहुत पुकारा गया, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सेनापति] (विश्वाः) सब (द्विषः) द्वेष करनेवाली सेनाओं को (अति) लाँघकर (नः) हमको (स्वस्ति) आनन्द के साथ (नावा) नाव से (पारयाति) पार लगावे ॥२॥

    भावार्थ

    युद्धकुशल सेनापति शत्रुओं को मारकर प्रजा को कष्ट से छुड़ावे, जैसे नाव से समुद्र पार करते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सः) (नः) अस्मान् (पप्रिः) अ० १२।२।४७। प्रा पूरणे-किन्। प्राता। पूरयिता (पारयाति) लेटि रूपम्। पारयेत् (स्वस्ति) क्षेमेण (नावा) नौकया (पुरुहूतः) बहुविधाहूतः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (विश्वाः) सर्वाः (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (द्विषः) द्वेष्ट्रीः सेनाः ॥

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    विषय

    पार होने के लिए द्वेष से दूर

    पदार्थ

    १. (स:) = वे प्रभु (पप्रि:) = हमारा पूरण करनेवाले हैं-हमारौं न्यूनताओं को दूर करते हैं। (न:) = हमें (स्वस्ति) = कल्याणपूर्वक (पारयाति) = इस भवसागर के पार ले-चलते हैं। इसी प्रकार जैसेकि एक नाविक (नावा) = नौका के द्वारा पार ले-जाता है। २. वे (पुरुहूत:) = जिनका आह्वान [आराधन] हमारा पालन व पूरण करनेवाला है; वे (इन्द्र:) = परमैश्वर्यशाली प्रभु हमें (विश्वा:) = सब (द्विषः) = द्वेष की भावनाओं से (अति) = पार ले-जाते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु हमें द्वेष से दूर करते हुए भवसागर से पार पहुँचानेवाले हैं।

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    भाषार्थ

    (पुरुहूतः) भक्तिपूर्वक बार-बार पुकारा गया (सः पप्रिः इन्द्रः) वह परिपूर्ण परमेश्वर, (स्वस्ति) हमारा कल्याण करता हुआ, (नः) हमें (पारयाति) भवसागर से पार कर देता है, (नावा) जैसे कि नाविक नौका द्वारा नदी-तट से पार करता है। वह परमेश्वर (विश्वाः) सब प्रकार की (द्विषः) द्वेषभावनाओं से हमें (अति पारयाति) छुड़ा देता है। [पप्रिः=प्रा पूरणे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    He, Indra, lord of deliverance and giver of fulfilment, invoked and adored by all, pilots us across the seas of life by the boat of divine guidance and saves us against all jealousies, enmities and negativities of the world.

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    Translation

    This mighty ruler who is saviour praised by many leads us to cross over the difficulties as a boat-man comfortably sails the Passengers over river. He carries us away from enemies.

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    Translation

    This mighty ruler who is savior praised by many leads us to cross over the difficulties as a boat-man comfortably sails the passengers over river. He carries us away from enemies.

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    Translation

    That Lord of Destruction, fulfiller of all objects or Pervader of the universe, much-invoked leads us across all inimical forces with ease and comfort, like a boatman with a boat.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सः) (नः) अस्मान् (पप्रिः) अ० १२।२।४७। प्रा पूरणे-किन्। प्राता। पूरयिता (पारयाति) लेटि रूपम्। पारयेत् (स्वस्ति) क्षेमेण (नावा) नौकया (पुरुहूतः) बहुविधाहूतः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (विश्वाः) सर्वाः (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (द्विषः) द्वेष्ट्रीः सेनाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সেনাপতিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সঃ) সেই (পপ্রিঃ) পুরণকারী, (পুরুহূতঃ) বহু আহুত, (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান সেনাপতি] (বিশ্বাঃ) সকল (দ্বিষঃ) দ্বেষী সেনাদের (অতি) লঙ্ঘন/অতিক্রম করে (নঃ) আমাদের (স্বস্তি) আনন্দপূর্বক (নাবা) নৌকা দ্বারা (পারয়াতি) পার করাবেন ॥২॥

    भावार्थ

    যুদ্ধকুশল সেনাপতি শত্রুদের হনন করে প্রজাদের কষ্ট দূর করুক, যেভাবে নৌকা দ্বারা সমুদ্র পার করা হয় ॥২॥

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    भाषार्थ

    (পুরুহূতঃ) ভক্তিপূর্বক বারংবার আহূত (সঃ পপ্রিঃ ইন্দ্রঃ) সেই পরিপূর্ণ পরমেশ্বর, (স্বস্তি) আমাদের কল্যাণ করে, (নঃ) আমাদের (পারয়াতি) ভবসাগর থেকে উদ্ধার করেন, (নাবা) যেমন নাবিক নৌকা দ্বারা নদী-তট থেকে পার করে। সেই পরমেশ্বর (বিশ্বাঃ) সকল প্রকারের (দ্বিষঃ) দ্বেষভাবনা থেকে আমাদের (অতি পারয়াতি) মুক্ত করেন। [পপ্রিঃ=প্রা পূরণে।]

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