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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 65/ मन्त्र 1
    ऋषिः - विश्वमनाः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६५
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    एतो॒ न्विन्द्रं॒ स्तवा॑म॒ सखा॑यः॒ स्तोम्यं॒ नर॑म्। कृ॒ष्टीर्यो विश्वा॑ अ॒भ्य॒स्त्येक॒ इत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एतो॒ इत‍ि॑ । नु । इन्द्र॑म् । स्तवा॑म । सखा॑य: । स्तोम्य॑म् । नर॑म् ॥ कृ॒ष्टी: । य: । विश्वा॑: । अ॒भि । अस्ति॑। एक॑: । इत् ॥६५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतो न्विन्द्रं स्तवाम सखायः स्तोम्यं नरम्। कृष्टीर्यो विश्वा अभ्यस्त्येक इत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतो इत‍ि । नु । इन्द्रम् । स्तवाम । सखाय: । स्तोम्यम् । नरम् ॥ कृष्टी: । य: । विश्वा: । अभि । अस्ति। एक: । इत् ॥६५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 65; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (सखायः) हे मित्रो ! (नु) शीघ्र (एतो) आओ भी, (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्य, (नरम्) नेता [प्रेरक] (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] की (स्तवाम) हम स्तुति करें, (यः) जो (एकः) अकेला (इत्) ही (विश्वाः) सब (कृष्टीः) मनुष्यों को (अभि अस्ति) वश में रखता है ॥१॥

    भावार्थ

    हम सब मिलकर सर्वशक्तिमान् परमात्मा की स्तुति करके आनन्द पावें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १-३ ऋग्वेद में है-गत सूक्त से आगे, ८।२४।१९-२१। म० १ साम०-पू० ४।१०।७ ॥ १−(एतो) आ, इत उ। आगच्छतैव (नु) क्षिप्रम् (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (स्तवाम) प्रशंसाम (सखायः) हे सुहृदः (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्यम् (नरम्) नेतारम्। प्रेरकम् (कृष्टीः) मनुष्यप्रजाः (विश्वाः) सर्वाः (यः) (अभि अस्ति) अभिभवति। वशीकरोति (एकः) असहायः (इत्) एव ॥

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    विषय

    'स्तोम्य-नर' इन्द्र का स्तवन

    पदार्थ

    १.हे (सखायः) = मित्रो! (एत उ) = निश्चय से आओ! (नु) = अब उस (स्तोम्यम्) = स्तुति के योग्य (नरम्) = हमें उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु का स्तवाम स्तवन करें। यह सम्मिलित आराधन हमें प्रभु के अधिक और अधिक समीप लानेवाला हो। २. हम उस प्रभु का स्मरण करें (य:) = जो (एकः इत्) = अकेले ही (विश्वाः कृष्टी:) = सब मनुष्यों को (अभि अस्ति) = अभिभूत करनेवाले हैं। हमारे सब शत्रुओं का पराजय ये प्रभु ही तो करेंगे।

    भावार्थ

    हम सब मिलकर प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमारे सब शत्रुओं का अभिभव करके हमें उन्नति-पथ पर ले-चलेंगे।

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    भाषार्थ

    (सखाय) हे उपासक मित्रो! (एत उ) अवश्य आओ, (नु) निश्चय से, (स्तोम्यम्) स्तुति-योग्य तथा (नरम्) विश्व के नायक (इन्द्रम्) परमेश्वर की (स्तवाम) स्तुतियाँ हम मिल कर करें, (यः) जो परमेश्वर कि (एक इत्) अकेला ही (विश्वाः कृष्टीः) सब प्रजाओं पर (अभि अस्ति) विजय पाये हुआ है।

    टिप्पणी

    [कृष्टयः=मनुष्याः (निघं০ २.३)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Come friends all together and let us adore lndra, lord and leader worthy of joint worship and exaltation, who, by himself alone, rules over all peoples of the world.

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    Translation

    O friends come here, we invoke adorable all-leading God who along has his control over all the world mankind.

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    Translation

    O friends come here, we invoke adorable all-leading God who along has his control over all the world mankind.

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    Translation

    O friends, come, let us praise the Mighty God or king Who, all alone, controls all the spheres, held in the sky by mutual attraction or the subjects and Who is the mover or leader, Worthy to be lauded.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १-३ ऋग्वेद में है-गत सूक्त से आगे, ८।२४।१९-२१। म० १ साम०-पू० ४।१०।७ ॥ १−(एतो) आ, इत उ। आगच्छतैव (नु) क्षिप्रम् (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (स्तवाम) प्रशंसाम (सखायः) हे सुहृदः (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्यम् (नरम्) नेतारम्। प्रेरकम् (कृष्टीः) मनुष्यप्रजाः (विश्वाः) सर्वाः (यः) (अभि अस्ति) अभिभवति। वशीकरोति (एकः) असहायः (इत्) एव ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সখায়ঃ) হে মিত্রগণ! (নু) শীঘ্র (এতো) এসো/আগমন করো, (স্তোম্যম্) স্তুতিযোগ্য, (নরম্) নেতা [প্রেরক] (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রের [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মার] (স্তবাম) আমরা স্তুতি করি, (যঃ) যিনি (একঃ) এক অদ্বিতীয় (ইৎ) নিশ্চিতরূপে (বিশ্বাঃ) সমস্ত (কৃষ্টীঃ) মনুষ্যদের (অভি অস্তি) নিয়ন্ত্রনে/বশবর্তী/বশীভূত করে রেখেছেন ॥১॥

    भावार्थ

    আমরা যেন সকলে মিলে সর্বশক্তিমান্ পরমাত্মার স্তুতি করে আনন্দ উপভোগ করি ॥১॥ মন্ত্র ১-৩ ঋগ্বেদে আছে- ৮।২৪।১৯-২১। ম০ ১ সাম০-পূ০ ৪।১০।৭ ॥

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    भाषार्थ

    (সখায়) হে উপাসক মিত্রগণ! (এত উ) অবশ্যই এসো, (নু) নিশ্চিতরূপে, (স্তোম্যম্) স্তুতি-যোগ্য তথা (নরম্) বিশ্বনায়ক (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (স্তবাম) স্তুতি আমরা একসাথে করি, (যঃ) যে পরমেশ্বর (এক ইৎ) একাই (বিশ্বাঃ কৃষ্টীঃ) সকল প্রজাদের ওপর (অভি অস্তি) বিজয় প্রাপ্ত হয়েছেন।

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