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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 78 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शंयुः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७८
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    तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । व॒: । गा॒य॒ । सु॒ते । सचा॑ । पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑ । सत्व॑ने ॥ शम् । यत् । गवे॑ । न । शा॒किने॑ ॥७८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । व: । गाय । सुते । सचा । पुरुऽहूताय । सत्वने ॥ शम् । यत् । गवे । न । शाकिने ॥७८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 78; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के वर्ताव का उपदेश •॥

    पदार्थ

    [हे विद्वानो !] (वः) अपने लिये (सुते) उत्पन्न संसार के बीच (सचा) नित्य मिलाप के साथ (पुरुहूताय) बहुतों से बुलाये गये, (शाकिने) शक्तिमान् (सत्वने) वीर राजा के लिये (तत्) उस कर्म को (गाय) तुम गाओ, (यत्) जो (न) अब (गवे) भूमि के लिये (शम्) सुखदायक [होवे] ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग पुरुषार्थी राजा का उत्साह सर्वहितकारी काम करने के लिये बढ़ाते रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-६।४।२२-२४ सामवेद-उ० ८।२। तृच ४। मन्त्र १ साम० पू० २।३।१ ॥ १−(तत्) प्रसिद्धं कर्म (वः) युष्मभ्यम् (गाय) गायत यूयम् (सुते) उत्पन्ने जगति (सचा) नित्यसम्बन्धेन (पुरुहूताय) बहुविधाहूताय (सत्वने) अ० ।२०।८। वीराय राज्ञे (शम्) सुखप्रदम् (यत्) कर्म (गवे) भूम्यै (न) सम्प्रति (शाकिने) शक्तिमते ॥

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    विषय

    उस सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् का गायन

    पदार्थ

    १.(व:) = तुम (सुते) = शरीर में सोम का सम्पादन करने पर (सचा) = मिलकर (पुरुहूताय) = पालक व पूरक पुकारवाले-जिसकी प्रार्थना हमारा पालन व पूरण करती है, उस (सत्वने) = शत्रुओं के सादयिता [नाशक] प्रभु के लिए (तद् गाय) = उन स्तोत्रों का गायन करो। २. (गवे) = उस [गमयति अर्थान्] वेदवाणी के द्वारा सब अर्थों के ज्ञापक (न) = [न-च] और (शाकिने) = सर्वशक्तिमान प्रभु के लिए उस स्तोत्र का गायन करो (यत्) = जो (शम्) = शान्ति देनेवाला हो। प्रभु को सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् के रूप में सोचते हुए हम भी ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करने की प्रेरणा लेते हैं और इसप्रकार जीवन में शान्ति प्राप्त करते हैं।

    भावार्थ

    हम सोम-रक्षण करते हुए मिलकर घरों में प्रभु का गायन करें। यह गायन हमें ज्ञान व शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देता है और हमारे जीवनों को शान्त बनाता है।

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    भाषार्थ

    (सुते) भक्तिरस के उत्पन्न हो जाने पर, हे उपासको! (वः) तुम सब (सचा) मिलकर, (पुरुहूताय) बहुतों द्वारा या बहुत नामों द्वारा पुकारे गये, (सत्वने) बलशाली परमेश्वर के लिए, (तत्) उस सामगान को (गाय) गाया करो, जो सामगान कि (गवे न) गानेवाले के सदृश (शाकिने) शक्तिशाली परमेश्वर को भी (शम्) प्रसन्न करे।

    टिप्पणी

    [गवे=गावः स्तोतारः (निघं০ ३.१६), गै शब्दे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    In your soma yajna in the business of the world of the lord’s creation, sing together songs of homage in honour of the universally adored, ever true and eternal almighty Indra, songs which may be as pleasing to the mighty lord as to the seeker and the celebrant.

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    Translation

    O people, for your sake you sing together in the praise of Almighty God who is powerful, bold and invoked by many, that praise which now, may always be auspicious for the earth.

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    Translation

    O people, for your sake you sing together in the praise of Almighty God who is powerful, bold and invoked by many, that praise which now, may always be auspicious for the earth.

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    Translation

    O learned persons, you all together sing the praises of that much invoked, the Powerful and Energizing God, Who may be all peace and tranquility for our sense: organs and cattle even.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-६।४।२२-२४ सामवेद-उ० ८।२। तृच ४। मन्त्र १ साम० पू० २।३।१ ॥ १−(तत्) प्रसिद्धं कर्म (वः) युष्मभ्यम् (गाय) गायत यूयम् (सुते) उत्पन्ने जगति (सचा) नित्यसम्बन्धेन (पुरुहूताय) बहुविधाहूताय (सत्वने) अ० ।२०।८। वीराय राज्ञे (शम्) सुखप्रदम् (यत्) कर्म (गवे) भूम्यै (न) सम्प्रति (शाकिने) शक्तिमते ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাবর্তনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (হে বিদ্বানগণ !] (বঃ) নিজেদের জন্য (সুতে) উৎপন্ন সংসারের মধ্যে (সচা) পরস্পর নিত্য মিলনের দ্বারা (পুরুহূতায়) অনেকের দ্বারা আহূত, (শাকিনে) শক্তিমান্ (সত্বনে) বীর রাজার জন্য (তৎ) প্রসিদ্ধ কর্ম (গায়) তোমরা গাও/স্তুতি করো, (যৎ) যে কর্ম (ন) এখন (গবে) ভূমির জন্য (শম্) সুখদায়ক [হয়] ॥১॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ পুরুষার্থী রাজাকে উৎসাহ ও সর্বহিতকারী কার্য করার জন্য সর্বদা প্রেরণা দিতে থাকেন ॥১॥এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৬।৪৫।২২-২৪ সামবেদ-উ০ ৮।২। তৃচ ৪। মন্ত্র ১ সাম০ পূ০ ২।৩।১ ॥

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    भाषार्थ

    (সুতে) ভক্তিরস উৎপন্ন হলে, হে উপাসকগণ! (বঃ) তোমরা সবাই (সচা) মিলে, (পুরুহূতায়) অনেকের দ্বারা বা বহু নাম দ্বারা আহুত, (সত্বনে) বলশালী পরমেশ্বরের জন্য, (তৎ) সেই সামগান (গায়) গান করো, যে সামগান (গবে ন) গায়কের সদৃশ (শাকিনে) শক্তিশালী পরমেশ্বরকেও (শম্) প্রসন্ন করে।

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