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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवाः, चन्द्रमाः, इन्द्रः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुप्ककुम्मतीगर्भातिजगती सूक्तम् - अजरक्षत्र
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    उद्ध॑र्षन्तां मघव॒न्वाजि॑ना॒न्युद्वी॒राणां॒ जय॑तामेतु॒ घोषः॑। पृथ॒ग्घोषा॑ उलु॒लयः॑ केतु॒मन्त॒ उदी॑रताम्। दे॒वा इन्द्र॑ज्येष्ठा म॒रुतो॑ यन्तु॒ सेन॑या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ह॒र्ष॒न्ता॒म् । म॒घ॒ऽव॒न् । वाजि॑नानि । उत् । वी॒राणा॑म् । जय॑ताम् । ए॒तु॒ । घोष॑: ।पृथ॑क् ।घोषा॑: । उ॒लु॒लय॑: । के॒तु॒ऽमन्त॑: । उत् । ई॒र॒ता॒म् । दे॒वा: । इन्द्र॑ऽज्येष्ठा: । म॒रुत॑: । य॒न्तु॒ । सेन॑या ॥१९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्धर्षन्तां मघवन्वाजिनान्युद्वीराणां जयतामेतु घोषः। पृथग्घोषा उलुलयः केतुमन्त उदीरताम्। देवा इन्द्रज्येष्ठा मरुतो यन्तु सेनया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । हर्षन्ताम् । मघऽवन् । वाजिनानि । उत् । वीराणाम् । जयताम् । एतु । घोष: ।पृथक् ।घोषा: । उलुलय: । केतुऽमन्त: । उत् । ईरताम् । देवा: । इन्द्रऽज्येष्ठा: । मरुत: । यन्तु । सेनया ॥१९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 19; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    युद्धविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (मघवन्) हे बड़े धनी राजन् ! (वाजिनानि) सेना दल (उत् हर्षन्ताम्) मन को ऊँचा उठावें और (जयताम्) जीतते हुए (वीराणाम्) वीरों का (घोषः) जयजयकार वा सिंहनाद (उत् एतु) ऊँचा उठे। (उलुलयः) जलानेवालों के जलानेवाले, (केतुमन्तः) ऊँचे झण्डावाले (घोषाः) जयजयकार शब्द (पृथक्) नाना रूप में (उत् ईरताम्) ऊपर चढ़ें। (इन्द्रज्येष्ठाः) इन्द्र प्रतापी पुरुष को ज्येष्ठ वा स्वामी रखनेवाले (मरुतः) शूर (देवाः) जय चाहनेवाले देवता लोग (सेनया) सेना के साथ (यन्तु) चलें ॥६॥

    भावार्थ

    समस्त सेनादल बड़ी उमंग से व्यूह बनाकर नानारूप में मारू बाजे गाजे के साथ “जय जय” करते हुए आगे बढ़ें और सब दलपति लोग प्रधान सेनापति की आज्ञानुसार अपनी-२ टुकरी लेकर धावा करें ॥६॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद १०।१०३।१० और यजुर्वेद १७।४२ में है ॥

    टिप्पणी

    ६−(उत् हर्षन्ताम्) उत्कर्षेण हर्षयुक्तानि भवन्तु। (मघवन्) म० ३। हे बहुधनवन्। (वाजिनानि) महेरिनण् च। उ० २।५६। इति वज गतौ-इनण्। बलानि हस्त्यश्वरथादीनि। वाजः=बलम्। निघ० २।९। (वीराणाम्) शूराणाम्। (जयताम्) जि-शतृ। जयं प्राप्नुवताम्। (उत् एतु) उद्गच्छतु। (घोषः) जयजयकारः। सिंहनादः। (पृथक्) नानारूपे (उलुलयः) उल्+उलयः। उल दाहे-क्विप्। इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति उल दाहे-इन्, स च कित्। इति उलुलिः। उलां दाहकानाम् उलयो दाहकाः शत्रुनाशकाः। (केतुमन्तः) पताकायुक्ताः। (उत् ईरताम्) ईर गतौ, अदादिः, उद्गच्छन्तु। (देवाः) विजिगीषवः। (इन्द्रज्येष्ठाः) इन्द्रः, ऐश्वर्यवान् पुरुषो ज्येष्ठः श्रेष्ठो वृद्धो वा स्वामी येषां ते तथाविधाः। (मरुतः) अ० १।२०।१। मारयन्ति दुष्टान्। शूरा देवाः। (यन्तु) गच्छन्तु। (सेनया) स्वस्वसेनया सार्धम् ॥

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    विषय

    वीरों का विजयघोष

    पदार्थ

    १. हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशाली प्रभो! (वीराणाम्) = इन वीरों के (वाजिनान्) = बल (उद्धर्षन्ताम्) = विकसित हों-हर्ष को प्राप्त हों-फूल उठे, (जयताम्) = विजय को प्राप्त करते हुए इन वीरों का (घोष:) = जयघोष (उदेतु) = उदित हो। २. (पृथक्) = अलग-अलग सेना की प्रत्येक टुकड़ी के (उलुलयः) = [उल दाहे, उलां उलयः] सन्तापकों के भी सन्तापक (केतुमन्त:) = विजय पाताकाओंवाले (घोषा:) = विजयघोष (उदीरताम्) = आकाश में उदित हों। हमारे वीरों के विजय घोषों को सुनकर शत्रुसैन्य मनों में सन्तत हो उठे। (देवा:) = विजय की कामनावाले [दिव् विजिगीषायाम्] (इन्द्रजेष्ठा:) = शत्रुओं का विद्रावक राजा जिनका प्रधान है, ऐसे (मरुत:) = सेनानी (सेनया) = सेना के साथ (यन्तु) = शत्रुसैन्य पर आक्रमण के लिए गतिवाले हों।

    भावार्थ

    हमारे सैनिकों के बल का विकास हो। वीरों के विजय-घोष आकाश में सर्वत्र उदित हों। विजयपताकाओं को फहराते हुए वीर शत्रुओं को सन्तप्त करें। राजा व सेनापतियों के साथ सेनाएँ आगे बढ़ें।

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    भाषार्थ

    (मघवन) हे धनवान् सम्राट्। (वाजिनानि) हस्ति, अश्व, रथादि बल (उद्धर्षन्ताम) उत्कृष्ट हर्षयुक्त हो, (जायताम् वीराणाम्) जय पाते हुए वीर सैनिकों का (घोषः) विजय नाद (उद् एतु) ऊँचा उठे। (केतुमन्तः) झण्डोंवाले, (उलुलय:) उरु अर्थात् महोच्च (घोषाः) विजयनाद (पृथक्) पृथक् पृथक् सैनिक वर्ग से (उदीरताम्) उद्गत हों, ऊँचे उठें। (इन्द्रज्येष्ठाः) सर्वन्येष्ठ-सम्राट्-सहित, (देवा:) राष्ट्र के दिव्य अधिकारी, तथा (मरुत:) शत्रुओं को मारनेवाले सेनाधिकारी, (सेनया) सेना के साथ (यन्तु) चलें।

    टिप्पणी

    [उलुलय:= उरुलयः, ऊँचे घोषों को भी लीन कर देनेवाले महानादी घोष, विजयनाद। वाजिनानि= वाजः बलनाम (निघं० २।९);=हस्ती, अश्व, रथादि (सायण)। इन्द्रः=इन्द्रश्च सम्राट् (यजु:० ८।३७)। मरुत:=मारयतीति वा स मरुत मनुष्य जाति (उणा ० १।९४, दयानन्द)]

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    विषय

    शत्रुओं पर विजय करने के लिये अपने राष्ट्र की शक्ति बढ़ाने का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (मघवन्) ऐश्वर्य सम्पन्न ! राजन् ! (वाजिनानि) वेगवान् घोड़े (उद् हन्ताम्) खूब हृष्ट होकर हिन-हिनावें (जयतां) विजयशील (वीराणां) वीर पुरुषों का (घोषः) सिंहनाद (उद एतु) ऊपर उठे, आकाश को गुंजावे। (केतुमन्तः) विजय-सूचक झण्डों सहित (उलुलवः घोषाः) विजय नाद प्रदर्शक नाना प्रकार की हर्षध्वनियां (पृथक्) अलग २ समस्त राष्ट्र में (उद् ईरताम्) उठे। (इन्द्र-ज्येष्ठाः देवाः) इन्द्र = राजा को सब से मुख्य रखने वाले राष्ट्र के अधिकारी गण (मरुतः) और सेना के अध्यक्ष या वायु के समान तीव्रगति, शत्रुमारक सैनिक (सेनया) अपनी सेना सहित (यन्तु) मैदान में आवें ।

    टिप्पणी

    ऋग्वेदे अप्रतिरथ ऐन्द्र ऋषिः। ‘उद्धर्षय भगवन्नायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मनांसि। उद् वृत्रहन् वाजिनां वाजिनान्युद्रथानां जयतां यन्तु घोषाः।’ इति ऋ० ॥ उद्धर्वन्तावाजिनां वाजिनान्युद् वेराणां जयतामतु घोषः पृथग्घोष ऊलुलय केतुमन्त उदीरताम् इति पैप्प० स०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। विश्वेदेवा उत चन्द्रमा उतेन्दो देवता । पथ्याबृहती । ३ भुरिग् बृहती, व्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुप् ककुम्मतीगर्भातिजगती। ७ विराडास्तारपंक्तिः । ८ पथ्यापंक्तिः। २, ४, ५ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Strong Rashtra

    Meaning

    O lord of glory, let the warlike mind and morale of the fighting forces be high, let the victory roar of the conquering heroes rise and rumble in space, let the flag bearers’ shouts of joy rise high in every part of the land, and let the brilliant blazing leaders march forward with their stormy forces under command of Indra, the supreme commander.

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    Translation

    O bounteous Lerd, may our weapons cheer up. May the shout of winning heroes go up. May the soldiers bearing their . standards raise the ullullu cry of joy severally. May the storm-troopers led by the king himself, accompany our army.

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    Translation

    O mighty King, let the power of army and morale of the people be laudable and high, let the shout of conquering heroes rise upward, let shout, shriek and cry with the flags of army men rise up, let the official under the super-ordination of the king and the army personels with army go to battle field.

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    Translation

    O King, let swift steeds, well-fed neigh, and upward go the shout of conquering heroes. Let shout, roar and shriek of banner-bearing invader, rise apart and clear. Let victory aspiring heroes led by the king. march forthto the battlefield.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(उत् हर्षन्ताम्) उत्कर्षेण हर्षयुक्तानि भवन्तु। (मघवन्) म० ३। हे बहुधनवन्। (वाजिनानि) महेरिनण् च। उ० २।५६। इति वज गतौ-इनण्। बलानि हस्त्यश्वरथादीनि। वाजः=बलम्। निघ० २।९। (वीराणाम्) शूराणाम्। (जयताम्) जि-शतृ। जयं प्राप्नुवताम्। (उत् एतु) उद्गच्छतु। (घोषः) जयजयकारः। सिंहनादः। (पृथक्) नानारूपे (उलुलयः) उल्+उलयः। उल दाहे-क्विप्। इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति उल दाहे-इन्, स च कित्। इति उलुलिः। उलां दाहकानाम् उलयो दाहकाः शत्रुनाशकाः। (केतुमन्तः) पताकायुक्ताः। (उत् ईरताम्) ईर गतौ, अदादिः, उद्गच्छन्तु। (देवाः) विजिगीषवः। (इन्द्रज्येष्ठाः) इन्द्रः, ऐश्वर्यवान् पुरुषो ज्येष्ठः श्रेष्ठो वृद्धो वा स्वामी येषां ते तथाविधाः। (मरुतः) अ० १।२०।१। मारयन्ति दुष्टान्। शूरा देवाः। (यन्तु) गच्छन्तु। (सेनया) स्वस्वसेनया सार्धम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (মঘবন্) হে ধনবান্ সম্রাট্ ! (বাজিনানি) হস্তি, অশ্ব, রথাদি বল (উদ্ধর্ষন্তাম্) উৎকৃষ্ট হর্ষযুক্ত হোক, (জয়তাম্ বীরাণাম্) জয় প্রাপ্ত করে বীর সৈনিকদের (ঘোষঃ) বিজয় নাদ (উদ্ এতু) ওপরে উঠুক/উদ্ঘোষিত/উত্থিত হোক। (কেতুমন্তঃ) পতাকাযুক্ত, (উলুলয়ঃ) উরু অর্থাৎ মহোচ্চ (ঘোষাঃ) বিজয়নাদ (পৃথক্) পৃথক-পৃথক্ সৈনিক বর্গের থেকে/দ্বারা (উদীরতাম্) উদ্গত হোক, ওপরে উঠুক। (ইন্দ্রজ্যেষ্ঠাঃ) সর্বজ্যৈষ্ঠ-সম্রাট-সহিত, (দেবাঃ) রাষ্ট্রের দিব্য অধিকারী, এবং (মরুতঃ) শত্রুদের নিধনকারী সেনাধিকারী, (সেনয়া) সেনার সাথে (যন্তু) চলুক।

    टिप्पणी

    [উলুলয়ঃ= উরুলয়ঃ, উঁচু ঘোষকেও ক্ষীণকারী মহানাদী ঘোষ, বিজয়নাদ। বাজিনানি= বাজঃ বলনাম (নিঘং০ ২।৯); =হস্তী , অশ্ব, রথাদি (সায়ণ)। ইন্দ্রঃ=ইন্দ্রশ্চ সম্রাট (যজু০ ৮।৩৭)। মরুতঃ =মারয়তীতি বা স মরুৎ মনুষ্যজাতি (উ০ ১।৯৪; দয়ানন্দ)।]

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    मन्त्र विषय

    যুদ্ধবিদ্যায়া উপদেশঃ

    भाषार्थ

    (মঘবন্) হে অতিশয় ধনবান রাজন্ ! (বাজিনানি) সেনাদল (উৎ হর্ষন্তাম্) মনকে উঁচু/উৎকৃষ্ট হর্ষযুক্ত করুক এবং (জয়তাম্) জয়ী/জয়প্রাপ্ত (বীরাণাম্) বীরদের (ঘোষঃ) জয়জয়কার বা সিংহনাদ (উৎ এতু) উঁচুতে উঠুক। (উলুলয়ঃ) দাহকদের/দগ্ধকারীদের দাহক/দগ্ধকারী, (কেতুমন্তঃ) উঁচু পতাকাযুক্ত (ঘোষাঃ) জয়জয়কার শব্দ (পৃথক্) নানা রূপে (উৎ ঈরতাম্) উপরে আরোহণ করুক। (ইন্দ্রজ্যেষ্ঠাঃ) ইন্দ্র প্রতাপী পুরুষের জ্যেষ্ঠ বা স্বামী (মরুতঃ) বীর (দেবাঃ) বিজয় অভিলাষী দেবগণ (সেনয়া) সেনার সাথে (যন্তু) চলুক/গমন করুক॥৬॥

    भावार्थ

    সমস্ত সেনাদল অধিক উল্লাসের সহিত ব্যূহ রচনা করে নানারূপে মারূ/যুদ্ধের দামামা বাজিয়ে বাজিয়ে “জয় জয়” করতে করতে অগ্ৰগামী হোক এবং সমস্ত দলপতিরা প্রধান সেনাপতির আজ্ঞানুসারে নিজেদের দল নিয়ে ধাবিত হোক/আক্রমণ করুক ॥৬॥ এই মন্ত্র কিছু ভেদে ঋগ্বেদ ১০।১০৩।১০ এবং যজুর্বেদ ১৭।৪২ এ রয়েছে ॥

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