Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    ऋषिः - जगद्बीजं पुरुषः देवता - अश्वत्थः (वनस्पतिः) छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    0

    प्रैणा॑न्नुदे॒ मन॑सा॒ प्र चि॒त्तेनो॒त ब्रह्म॑णा। प्रैणा॑न्वृ॒क्षस्य॒ शाख॑याश्व॒त्थस्य॑ नुदामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ए॒ना॒न् । नु॒दे॒ । मन॑सा । प्र । चि॒त्तेन॑ । उ॒त । ब्रह्म॑णा । प्र । ए॒ना॒न् । वृ॒क्षस्‍य॑ । शाख॑या । अ॒श्व॒त्थस्य॑ । नु॒दा॒म॒हे॒ ॥६.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रैणान्नुदे मनसा प्र चित्तेनोत ब्रह्मणा। प्रैणान्वृक्षस्य शाखयाश्वत्थस्य नुदामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । एनान् । नुदे । मनसा । प्र । चित्तेन । उत । ब्रह्मणा । प्र । एनान् । वृक्षस्‍य । शाखया । अश्वत्थस्य । नुदामहे ॥६.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    उत्साह बढ़ाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (एनान्) इन [शत्रुओं] को (मनसा) मननशक्ति से, (चित्तेन) ज्ञानशक्ति से (उत) और (ब्रह्मणा) वेदशक्ति से (प्र प्र) सर्वथा (नुदे) मैं हटाता हूँ। (एनान्) इनको (वृक्षस्य) स्वीकार करने योग्य (अश्वत्थस्य) बलवानों में ठहरनेवाले शूर [वा पीपल] की (शाखया) व्याप्ति [वा शाखा] से (प्र, नुदामहे) हम निकाले देते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    प्रत्येक व्यक्ति और सब लोग मिलकर शूरवीर वा पीपल के प्रभाव से आगा-पीछा विचारकर शत्रुओं को नष्ट कर देते हैं ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(एनान्)। पूर्वोक्तान् शत्रून्। (नुदे)। णुद प्रेरणे। स्वरितेत्त्वाद् आत्मनेपदम्। प्रेरयामि। निः सारयामि। (मनसा)। मननशक्त्या। (चित्तेन)। चिती ज्ञाने-क्तः। ज्ञानशक्त्या। (ब्रह्मणा)। वेदविज्ञानेन। (वृक्षस्य)। इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति वृक्षावरणे-क। वरणीयस्य। विटपस्य वा। (शाखया)। शाख व्याप्तौ अच्, टाप्। व्याप्त्या। पूर्णतया। वृक्षावयवेन। (अश्वत्थस्य)। म० १। बलवत्सु स्थितिशीलस्य शूरस्य। पिप्पलस्य। (नुदामहे)। प्रेरयामः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मनसा चित्तेन ब्रह्मणा वृक्षस्य शाखया

    पदार्थ

    १. (एनान्) = इन शत्रुओं को मैं (मनसा) = मनन के द्वारा-मन से (प्रणुदे) = परे धकेल देता हूँ। जितना-जितना मन में दृढ़ निश्चय करेंगे, उतना-उतना ही इन शत्रुओं का संहार कर सकेंगे [Determination-determinus-संकल्प, सम्यक् सामर्थ्य]। (चित्तेन) = संज्ञान के द्वारा-'मैं कौन हूँ' इस बात को न भूलने के द्वारा (प्र) = मैं कामादि शत्रुओं को परे धकेलता हूँ। मैं आत्मा हूँ, परमात्मा का सखा हूँ। यह स्मरण मुझे वासनाओं में फंसने से बचाता है। (उत) = और (ब्रह्मणा) = किसी महान् लक्ष्य के द्वारा [ब्रह्म-great] व वेदज्ञान के द्वारा-वेदाध्ययन में प्रवृत्ति के द्वारा इन शत्रुओं को दूर करता हूँ। ऊँचा लक्ष्य होने पर मनुष्य इनका शिकार नहीं होता। २. हम (एनान्) = इन शत्रुओं को (अश्वत्थस्य) = कर्मशील मनुष्यों में स्थित होनेवाले (वृक्षस्य) = [वृश्चति] बन्धनों का छेदन करनेवाले प्रभु के (शाखया) = [खे शेते] हृदयाकाश में निवास के द्वारा-प्रभु को हृदयासन पर बिठाकर (प्रनुदामहे) = खूब दूर धकेलते हैं। प्रभु के हृदय में स्थित होने पर वहाँ काम आदि का होना सम्भव नहीं है।

    भावार्थ

    दृढ़ निश्चय, संज्ञान, महान् लक्ष्य व हृदय में प्रभु-स्थिति के द्वारा हम शत्रुओं को परे धकेल दें।

    विशेष

    अगले सूक्त में 'क्षेत्रिय रोगों को चिकित्सा' का उल्लेख है। समचित औषध प्रयोग द्वारा रोगों को भून डालनेवाला 'भृगु' सूक्त का ऋषि है। रोग-विनाश द्वारा अङ्गों में रस का सञ्चार करता हुआ यह 'अङ्गिराः' है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (एनान्) इन शत्रुओं को (मनसा) संकल्प द्वारा (प्र नुदे) में धकेलता हूँ, (चित्तेन) सम्यक्-ज्ञान द्वारा (प्रणुदे) मैं धकेलता हूँ, (उत) तथा (ब्रह्मणा) ब्रह्म की कृपा द्वारा (प्रणुदे) मैं धकेलता हूँ; (एनान्) इन शत्रुओं को (अश्वत्थस्य वृक्षस्य शाखया) अश्वत्थ वृक्ष की शाखा द्वारा (प्र णुदामदे) हम धकेलते हैं।

    टिप्पणी

    [शत्रु रोगरूपी नहीं प्रतीत होते, अपितु ये राष्ट्रिय शत्रु हैं मातुष। इन्हें दृढ़ संकल्पों, सम्पर्क-ज्ञानों तथा ब्रह्म से शक्ति पाकर धकेला गया है। अश्वत्थ प्रकरण द्वारा वृक्ष ही है, शाखया पद द्वारा और भी निश्चय हो जाता है कि यह वृक्ष ही है। अतः वृक्षस्थ पद विकल्प के लिए है, अश्वत्थ की या किसी भी वृक्ष की शाखा द्वारा। "नुदामहे" द्वारा ज्ञात होता है कि शुत्रुओं को धकेलनेवाले बहुत हैं। ये प्रजाएँ हैं। जब समग्र प्रजा मिलकर "राष्ट्रिय शत्रु-स्वकीय राजा" को राष्ट्र से धकेलने के लिए तत्पर हो जाए तो वह वृक्षों की शाखाओं के प्रहारों द्वारा ही शत्रु-राजा को अपने राष्ट्र से धकेल सकती है, किसी उग्र शस्त्रास्त्र की आवश्यकता नहीं होती, इसे मन्त्र में दर्शाया है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वीर सैनिकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    मैं (एनान्) इन शत्रुओं को (मनसा) अपने राष्ट्र के मानस बल, मन्त्रशक्ति से भी (प्र नुदे) अच्छी प्रकार पराजित करता हूं । (प्र चित्तेन) अपने राष्ट्र के चित्त=विज्ञान द्वारा भी विनाश करूं (उत ब्रह्मणा) ब्रह्म—ब्राह्मणों के बल से भी विनाश करूं । और (एनान्) इन शत्रुओं कों (अश्वत्थस्य) पीपल की (शाखया) शाखा से जिस प्रकार उसका आधार वृक्ष विनाश को प्राप्त हो जाता है उस प्रकार बलशाली अश्वारोही क्षत्रियवर्ग के (शाखया) व्यापक शक्ति या सेना के दण्ड-बल से (प्र नुदामहे) उनका विनाश करता हूं ।

    टिप्पणी

    ‘शाखृ याप्तौ’ (भ्वादिः) (प्र०) प्रैनात् नुदानि (च०) नुदामसि (द्वि०) प्रशृत्येन ब्रह्मणा । इति पैप्प० सं० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जगद्बीजं पुरुष ऋषिः । वनस्पतिरश्वत्थो देवता । अरिक्षयाय अश्वत्थदेवस्तुतिः । १-८ अनुष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Brave

    Meaning

    I drive out these enemies and diseases with the strength of mind, determination of will and the mantric power of the Veda and divine grace. Let us drive away all these ailments by the branch of the Ashvattha tree, the tree that is life whose seed is Brahma Itself.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I drive them farther with my mind, with my thinking, and with my prayer. We hereby drive them farther with a branch of Ašvattha tree.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I dispel away these diseases, with mental power, I drive them away with intention and I destroy them with the Science of the Vedas. We banish these diseases with the Proper application of the branch of the Ashvattha tree.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I drive the enemies forth with mental power, with intellect and spiritual force. We banish and expel them with the strength of the cavalry.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(एनान्)। पूर्वोक्तान् शत्रून्। (नुदे)। णुद प्रेरणे। स्वरितेत्त्वाद् आत्मनेपदम्। प्रेरयामि। निः सारयामि। (मनसा)। मननशक्त्या। (चित्तेन)। चिती ज्ञाने-क्तः। ज्ञानशक्त्या। (ब्रह्मणा)। वेदविज्ञानेन। (वृक्षस्य)। इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति वृक्षावरणे-क। वरणीयस्य। विटपस्य वा। (शाखया)। शाख व्याप्तौ अच्, टाप्। व्याप्त्या। पूर्णतया। वृक्षावयवेन। (अश्वत्थस्य)। म० १। बलवत्सु स्थितिशीलस्य शूरस्य। पिप्पलस्य। (नुदामहे)। प्रेरयामः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (এনান্) এই শত্রুদের (মনসা) সংকল্প দ্বারা (প্র নুদে) আমি ধাক্কা দিই/অপসারিত করি, (চিত্তেন) সম্যক্-জ্ঞান দ্বারা (প্রণুদ) আমি ধাক্কা দিই/অপসারিত করি, (উত) এবং (ব্রহ্মণা) ব্রহ্মের কৃপা দ্বারা (প্রণুদে) আমি ধাক্কা দিই; (এনান্) এই শত্রুদের (অশ্বত্থস্য বৃক্ষস্য শাখয়া) অশ্বত্থ বৃক্ষের শাখা দ্বারা (প্র ণুদামদে) আমরা ধাক্কা দিই।

    टिप्पणी

    [শত্রু রোগরূপী প্রতীত হয় না, অপিতু রাষ্ট্রীয় শত্রু হলো মানুষ। এঁদের দৃঢ় সংকল্প, সম্যক-জ্ঞান এবং ব্রহ্ম থেকে শক্তি প্রাপ্ত করে ধাক্কা দেওয়া হয়েছে। অশ্বত্থ প্রকরণ দ্বারা বৃক্ষই হয়, শাখয়া পদ দ্বারা আরও নিশ্চিত হয়ে যায় যে ইহা বৃক্ষই। অতঃ বৃক্ষস্য পদ বিকল্পের জন্য, অশ্বত্থের বা কোনো বৃক্ষের শাখা দ্বারা। "নুদামহে" দ্বারা জ্ঞাত হয় যে, শত্রুদের ধাক্কাপ্রদায়ী অনেকেই। এরা সকলেই প্রজা। যখন সমগ্র প্রজাগণ মিলে "রাষ্ট্রীয় স্তর-স্বকীয় রাজা" কে রাষ্ট্র থেকে ধাক্কা দেওয়ার জন্য তৎপর হয়ে যায় তবে সেই বৃক্ষের শাখার প্রহারের দ্বারাই শত্রু-রাজাকে নিজেদের রাষ্ট্র থেকে ধাক্কা দেওয়া যেতে পারে, কোনো উগ্র শস্ত্রাস্ত্র এর আবশ্যকতা হয় না, এটাই মন্ত্রে দর্শানো হয়েছে।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    উৎসাহবর্ধনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (এনান্) এঁদের [শত্রুদের] (মনসা) মননশক্তি দ্বারা, (চিত্তেন) জ্ঞানশক্তি দ্বারা (উত) এবং (ব্রহ্মণা) বেদশক্তি/বেদ জ্ঞান দ্বারা (প্র প্র) সর্বদা (নুদে) আমি অপসারিত করি। (এনান্) এঁদের (বৃক্ষস্য) স্বীকার করার যোগ্য (অশ্বত্থস্য) বলবানদের মধ্যে স্থিত বীর [বা অশ্বত্থ] এর (শাখয়া) ব্যাপ্তি [বা শাখা] থেকে (প্র, নুদামহে) আমরা অপসারিত করি ॥৮॥

    भावार्थ

    প্রত্যেক ব্যক্তি এবং সমস্ত মনুষ্য মিলে বীর বা অশ্বত্থবৃক্ষ এর প্রভাব দ্বারা সামনে-পেছনে বিচার করে শত্রুদের নষ্ট করে দেয় ॥৮॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top