अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
ऋषिः - वामदेवः
देवता - द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
छन्दः - चतुष्पदा निचृद्बृहती
सूक्तम् - दुःखनाशन सूक्त
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येना॑ श्रवस्यव॒श्चर॑थ दे॒वा इ॑वासुरमा॒यया॑। शुनां॑ क॒पिरि॑व॒ दूष॑णो॒ बन्धु॑रा काब॒वस्य॑ च ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । श्र॒व॒स्य॒व॒: । चर॑थ । दे॒वा:ऽइ॑व । अ॒सु॒र॒ऽमा॒यया॑ । शुना॑म् । क॒पि:ऽइ॑व । दूष॑ण: । बन्धु॑रा । का॒ब॒वस्य॑ । च॒ ॥९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
येना श्रवस्यवश्चरथ देवा इवासुरमायया। शुनां कपिरिव दूषणो बन्धुरा काबवस्य च ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । श्रवस्यव: । चरथ । देवा:ऽइव । असुरऽमायया । शुनाम् । कपि:ऽइव । दूषण: । बन्धुरा । काबवस्य । च ॥९.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पदार्थ
(येन) जिस [बल] के साथ (श्रवस्यवः) हे प्रसिद्ध महापुरुषों ! (देवाः इव) विजयी लोगों के समान (असुरमायया) प्रकाशमान ईश्वर की बुद्धि से (चरथ) तुम आचरण करते हो, [उसी बल के साथ] (शुनाम्) कुत्तों के (दूषणः) तुच्छ जाननेवाले (कपिः इव) बन्दर के समान (बन्धुरा) बन्धनशक्ति [नीतिविद्या] (च) निश्चय करके (काबवस्य) स्तुतिनाशक शत्रु की [तुच्छ करनेवाली होती है] ॥४॥
भावार्थ
शास्त्रबल से प्रसिद्ध पुरुष अन्य महात्माओं का अनुकरण करके तीव्र बुद्धि के साथ उदाहरण बनते हैं, इसी प्रकार सब पुरुष नीतिबल से शत्रुओं पर प्रबल रहें, जैसे बन्दर वृक्ष पर चढ़कर कुत्तों से निर्भय रहता है ॥४॥
टिप्पणी
४− (येन)। शास्त्रबलेन। (श्रवस्यवः)। म० ३। प्रसिद्धाः। महान्तः कीर्तिमन्तः। (चरथ)। आचरणं कुरुथ। (देवाः इव)। विजयिनो पथा। (असुरमायया)। असुर इति व्याख्यातम्-अ० १।१०।१। असेरुरन् उ० १।४२। इति असु क्षेपणे, यद्वा, अस गतिदीप्त्यादानेषु-उरन्। माछाशसिभ्यो यः। उ० ४।१०९। इति माङ् माने-य, टाप्। माया प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। असुरस्य प्रकाशमानस्य परमेश्वरस्य मायया प्रज्ञया सह। (शुनाम्)। श्वन्नुक्षन्पूषन्। उ० १।१५९। इति श्वि गतौ वृद्धौ च-कनिन्। कुक्कुराणाम्। (कपिः)। कुण्ठिकम्पयोर्नलोपश्च। उ० ४।१४४। इति कपि चलने-इप्रत्ययः। वानरः। (इव)। यथा। (दूषणः)। नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः। पा० ३।१।१३४। इति दुष वैकृत्ये, णिच्-ल्यु। दूषयतीति यः। दूषकः। दोषोत्पादकः। (बन्धुरः)। म० ३। बन्ध-उरच्, टाप्। बध्यतेऽनया। बन्धनशीला। नीतिविद्या। (काबवस्य)। म० ३। स्तुतिनाशकस्य शत्रोः। दूषयित्री भवतीति शेषः। (च)। अवधारणे ॥
विषय
असुरमाया व कामदूषण
पदार्थ
१. हे (श्रवस्यवः) = ज्ञान की कामनावाले उपासको! (येन) = चूँकि तुम असुरमायया प्राणशक्ति का सञ्चार करनेवाले प्रभु की प्रज्ञा [माया-प्रज्ञा-नि० ३.९] से (चरथ) = व्यवहार करते हो संसार में गति करते हो, अत: (देवाः इव) = देवतुल्य बन जाते हो। २. (च) = और यह असुरमाया-प्रभु प्रज्ञा तुम्हारे जीवनों में (शुनाम्) = कुत्तों को (दूषण:) = दूषित करनेवाले (कपिः इव) = वानर की भांति (काबवस्य) = जीवन को अनुरागयुक्त करनेवाली [कवति to colour] कामवासना को (बन्धुरा) = बाँधनेवाली-नियन्त्रित करनेवाली है। असुरमाया कामवासना को उसी प्रकार दूषित कर देती है. जैसेकि वानर श्वा को।
भावार्थ
हम प्रभु के प्रज्ञान को प्राप्त करके अनुराग [काम] की वासना से ऊपर उठे।
भाषार्थ
[हे प्रजाजनो !] (श्ववस्यवः) यश चाहने की इच्छावाले तुम (येन) जिस विधि से (चरथ) विचरते हो, (इव) जैसे की (असुरमाया) आसुरी माया से प्रेरित हुए (देवाः) देवकोटि के सज्जन विचरते हैं, (च) और (काबवस्य) रूप के (बन्धुराः) बन्धु हुए तुम विचरते है [वे तुम दूषित हो] (इव) जैसेकि (शुनाम्) कुत्तों में से (कपि:) बन्दर (दूषण:) दूषित होता है।
टिप्पणी
[जैसे सर्वसाधारणजन यश की इच्छा से विचरते हैं वैसे देवकोटि के राज्जन भी यदि आसुरीमाया से प्रेरित हुए विचरते हैं तो वे दुषित हो जाते हैं, क्योंकि वे रूप के बन्धु होते हैं। कुत्ते कामवासनाओंवाले होते हैं, परन्तु बन्दर उनकी अपेक्षया भी अधिक कामवासनावाला होता है, अतः वह दूषित है। बन्धुरा में विसर्गलोष छान्दस है। दूषणः कर्तरि ल्यूट (सायण)। देवकोटि के सज्जन भी आसुरीमाया के वशीभूत होकर कुपथ में प्रवृत्त हो जाते हैं, जैसेकि कवि ने कहा है कि,-"अपथे पदमर्पयन्ति हि गुणवन्तोऽपि रजोनिमीलिताः"।]
विषय
प्रबल जन्तुओं और हिंसक पुरुषों के वश करने के उपाय ।
भावार्थ
हे पुरुषो ! आप लोग भी (येन) जिस प्रकार से (असुरमायया) वैश्य व्यापारियों की बुद्धि से प्रेरित होकर (श्रवस्यवः) अपनी पेटपूजा के निमित्त अन्न को प्राप्त करने की इच्छा करते हुए (देवाः इव) विद्वान् सदाचारी पुरुषों के समान ही (चरथ) इस लोक में विचरते हो और एक दूसरे से लड़ना झगड़ना छोड़ कर परस्पर मिलकर रहते हो उसी प्रकार इन जन्तुओं को भी अपने सद्व्यवहार से अन्नादि देने के एवज में सधा कर भोला बना कर रक्खो, उनको तुम अन्न दो और उन से काम लो, क्योंकि यदि उनको बांध कर रक्खोगे और उनको दण्ड ही दण्ड दोगे तो वह भी उनके स्वभाव को बिगाड़ देता है, क्योंकि जिस प्रकार (शुनां) कुत्तों के बीच में (कपिः इव) बन्दर के आ जाने से बन्दर को क्रोध आ जाता है और आपस में एक दूसरे को फाड़ खाने की चेष्टा करते हैं, इसी प्रकार (काबवस्य) हिंसाशील जन्तु को भी (बन्धुरः) निरन्तर बांधे रहना (दूषणः) उनके स्वभाव को और भी विगाड़ देता है, वे भी अपने बांधने वाले के प्राण के प्यासे हो जाते हैं । इसलिये उनको भी पेट भर अन्न देकर उनसे कार्य लेना चाहिये ।
टिप्पणी
(तृ ० च०) ‘दूषणं बन्धर काभबस्य च’ इति पप्प सं० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः । द्यावावृथिव्यौ उत विश्वे देवा देवताः । १, ३ ५, अनुष्टुभः । ४ चतुष्पदा निचृद् बृहती । ६ भुरिक् । षडृचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Preventing Trouble
Meaning
O leaders of fame and intelligence joined together for positive purposes against vociferous strength of the brutes, by that very strength of the divine giver of energy with which you act positively as light givers, be controllers of the trouble makers, keeping them down as the wise keep down the mischief of the doggish and bind the evil of the fiendish.
Translation
You, who are active in your strength , like gods fighting incessantly with evils, evil forces(the demons). Even as monkey scorns dogs, O bandage, bandhurah, scorn the kābava. (Kabava = cloth-bandages round the wound or ailing limb of the patient.)
Translation
O’ Ye men; desirous of amassing wealth unduly, the Way in which you treat the people is the path of the persons; whose dealing are originated with the cleverness of demons and displayed as the activities of righteous persons. The bond spoils the atrocity of the tyrant persons, as the monkey spoils the strength of dogs.
Translation
Ye, renowned great men, with your strength, ye behave like conquerors, in obedience to the wisdom of God. Just as the monkey on the tree scorns the dogs, so should you scorn the troublesome malady or foe.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४− (येन)। शास्त्रबलेन। (श्रवस्यवः)। म० ३। प्रसिद्धाः। महान्तः कीर्तिमन्तः। (चरथ)। आचरणं कुरुथ। (देवाः इव)। विजयिनो पथा। (असुरमायया)। असुर इति व्याख्यातम्-अ० १।१०।१। असेरुरन् उ० १।४२। इति असु क्षेपणे, यद्वा, अस गतिदीप्त्यादानेषु-उरन्। माछाशसिभ्यो यः। उ० ४।१०९। इति माङ् माने-य, टाप्। माया प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। असुरस्य प्रकाशमानस्य परमेश्वरस्य मायया प्रज्ञया सह। (शुनाम्)। श्वन्नुक्षन्पूषन्। उ० १।१५९। इति श्वि गतौ वृद्धौ च-कनिन्। कुक्कुराणाम्। (कपिः)। कुण्ठिकम्पयोर्नलोपश्च। उ० ४।१४४। इति कपि चलने-इप्रत्ययः। वानरः। (इव)। यथा। (दूषणः)। नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः। पा० ३।१।१३४। इति दुष वैकृत्ये, णिच्-ल्यु। दूषयतीति यः। दूषकः। दोषोत्पादकः। (बन्धुरः)। म० ३। बन्ध-उरच्, टाप्। बध्यतेऽनया। बन्धनशीला। नीतिविद्या। (काबवस्य)। म० ३। स्तुतिनाशकस्य शत्रोः। दूषयित्री भवतीति शेषः। (च)। अवधारणे ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
[হে প্রজাগণ!] (শ্রবস্যবঃ) যশ কামনাকারী তোমরা (যেন) যে বিধিতে (চরথ) বিচরণ করো, (ইব) যেমন (অসুরমায়য়া) আসুরী মায়ার দ্বারা প্রেরিত হয়ে (দেবাঃ) দেবকোটির সজ্জন বিচরণ করে (চ) এবং (কাববস্য) রূপের (বন্ধুরাঃ) বন্ধু হয়ে তোমরা বিচরণ করো [সেই তোমরা দূষিত] (ইব) যেমন (শুনাম্) কুকুরের মধ্যে (কপিঃ) বানর (দূষণঃ) দূষিত হয়।
टिप्पणी
[সর্বসাধারণ লোকজন যেমন যশের ইচ্ছায় বিচরণ করে তেমনই দেবকোটির সজ্জনও যদি আসুরীমায়ার দ্বারা প্রেরিত হয়ে বিচরণ করে তবে তাঁরা দূষিত হয়ে যায়, কারণ তাঁরা রূপের বন্ধু হয়। কুকুর কামবাসনাযুক্ত হয়, কিন্তু বানর তাদের থেকেও অধিক কামবাসনাযুক্ত হয়, অতঃ তারা দূষিত। বন্ধুরা-এ বিসর্গলোপ ছান্দস রয়েছে। দূষণঃ কর্তরি ল্যুট্ (সায়ণ)। দেবকোটির সজ্জনও আসুরীমায়ার বশীভূত হয়ে কুপথে প্রবৃত্ত হয়ে যায়, যেমন কবি বলেছে যে,-"অপথে পদমর্পযন্তি হি গুণবন্তোঽপি রজোনিমীলিতাঃ"।]
मन्त्र विषय
বিঘ্নশমনায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(যেন) যে [বল/শক্তির] এর সাথে (শ্রবস্যবঃ) হে প্রসিদ্ধ মহাপুরুষগণ! (দেবাঃ ইব) বিজয়ী লোকেদের সমান (অসুরমায়য়া) প্রকাশমান ঈশ্বরের বুদ্ধিতে (চরথ) তোমরা আচরণ করো, [সেই শক্তির সাথে] (শুনাম্) কুকুরদের (দূষণঃ) তুচ্ছকারী (কপিঃ ইব) বানরের সমান (বন্ধুরা) বন্ধনশক্তি [নীতিবিদ্যা] (চ) নিশ্চিতরূপে (কাববস্য) স্তুতিনাশক শত্রুদের [তুচ্ছ করে] ॥৪॥
भावार्थ
শাস্ত্রবল দ্বারা প্রসিদ্ধ পুরুষ অন্য মহাত্মাদের অনুকরণ করে তীব্র বুদ্ধির সাথে উদাহরণ/অনুপ্রেরণা হয়, এইভাবে সকল পুরুষ নীতিশক্তি দ্বারা শত্রুদের প্রতি প্রবল থাকুক, যেমন বানর বৃক্ষে আরোহণ করে কুকুরদের থেকে নির্ভয় থাকে ॥৪॥
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