अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
वा॒युर॒न्तरि॑क्ष॒स्याधि॑पतिः॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवा॒यु । अ॒न्तरि॑क्षस्य । अधि॑ऽपति: । स: । मा॒ । अ॒व॒तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
वायुरन्तरिक्षस्याधिपतिः स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठवायु । अन्तरिक्षस्य । अधिऽपति: । स: । मा । अवतु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(वायुः) वायु (अन्तरिक्षस्य) मध्य लोक का (अधिपतिः) अधिष्ठाता है, (सः) वह... म० १ ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य वायुसंचार का यथावत् गुण जानकर उत्तम कामों में सदा प्रवृत्त रहें ॥८॥
टिप्पणी
८−(वायुः) पवनः (अन्तरिक्षस्य) अ० १।३०।३। मध्यलोकस्य ॥
विषय
'अन्तरिक्षस्याधिपतिः' वायुः
पदार्थ
१. (वायः) = वायु (अन्तरिक्षस्य) = अन्तरिक्ष का (अधिपतिः) = स्वामी है। अन्तरिक्ष का मुख्य देवता वायु ही है। मैं खुले में रहता हुआ सदा इसका सेवन करे। (स:) = वह वायु (मा अवतु) = मेरा रक्षण करे। वायु के घट में अमृत का कोश है। हम शुद्ध वायु का सेवन करेंगे तो इस अमृत को क्यों न प्राप्त करेंगे? २. शरीर में वह वायु हृदय-अन्तरिक्ष में रहता है। हृदयान्तरिक्ष में वायु के रहने का भाव यह है कि हम सदा वायु की भौति क्रियाशील बनें। यह क्रियाशीलता ही सब बुराइयों का गन्धन[हिंसन] करेगी। उत्तम वृत्तिवाले बनकर हम ज्ञानादि कर्मों में ही प्रवृत्त रहेंगे। शेष पूर्ववत्।
भावार्थ
हम शुद्ध वायु का सेवन करें और वायु से क्रियाशीलता का पाठ पढ़ें। यह क्रियाशीलता हमें सब बुराइयों से बचाएगी।
भाषार्थ
(वायुः अन्तरिक्षस्य अधिपति:) वायु अन्तरिक्ष का अधिपति है, (सं मा अवतु) वह मेरी रक्षा करे (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।
विषय
परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
(वायुः) सर्वत्र व्यापक, गतिशील वायु जिस प्रकार (अन्तरिक्षस्य) अन्तरिक्ष का (अधिपतिः) स्वामी है उसी प्रकार वह प्राण-रूप शक्ति देह की अधिपति है। (सः) वह उक्त शुभ कार्यों में (मा अवतु) मेरी रक्षा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Self-Protection, Brahma Karma
Meaning
Vayu, wind and electric energy, is the presiding power of the middle regions. May Vayu protect and promote me in this spiritual pursuit of divinity, in this programme on hand, in this holy undertaking, in this settled position of honour, in this plan, in this resolution, in this benediction, and in this yajna of the divinities. This is the voice of the soul in prayer in truth.
Translation
The cosmic wind (Vayu) is the lord of the midspace; may he favour me in this prayer, in this rite,in this priestly representation, in this firm standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svaha.
Translation
Yayu, the air is the master-power of firmament, let it protect me in this attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life’s stability, in this intention, in this my deliberate activity, in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever uttered herein is correct.
Translation
May air, the lord of atmosphere, protect me, in this my study of the Vedas, in the duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(वायुः) पवनः (अन्तरिक्षस्य) अ० १।३०।३। मध्यलोकस्य ॥
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