Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 115 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 115/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - विश्वे देवाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापनाशन सूक्त
    0

    द्रु॑प॒दादि॑व मुमुचा॒नः स्वि॒न्नः स्ना॒त्वा मला॑दिव। पू॒तं प॒वित्रे॑णे॒वाज्यं॒ विश्वे॑ शुम्भन्तु॒ मैन॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्रु॒प॒दात्ऽइ॑व । मु॒मु॒चा॒न: । स्वि॒न्न: । स्ना॒त्वा । मला॑त्ऽइव । पू॒तम् । प॒वित्रे॑णऽइव । आज्य॑म् । विश्वे॑ । शु॒म्भ॒न्तु॒ । मा॒ । एन॑स: ॥११५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नात्वा मलादिव। पूतं पवित्रेणेवाज्यं विश्वे शुम्भन्तु मैनसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्रुपदात्ऽइव । मुमुचान: । स्विन्न: । स्नात्वा । मलात्ऽइव । पूतम् । पवित्रेणऽइव । आज्यम् । विश्वे । शुम्भन्तु । मा । एनस: ॥११५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 115; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पाप से मुक्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्रुपदात्) काष्ठबन्धन से (मुमुचानः इव) छूटे हुए पुरुष के समान, (स्विन्नः) पसीने में डूबे हुए (स्नात्वा) स्नान करके (मलात्) मल से [छूटे हुए के] (इव) समान (पवित्रेण) शुद्ध करनेवाले छन्ना वा अग्नि से (पूतम्) शुद्ध किये हुए (आज्यम् इव) घृत के समान, (विश्वे) सब [दिव्यगुण] (मा) मुझको (एनसः) पाप से (शुम्भन्तु) शुद्ध करें ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्नपूर्वक सर्वथा पापों से शुद्ध रहकर सदा आनन्द भोगें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(द्रुपदात्) काष्ठमयबन्धात् (इव) यथा (मुमुचानः) मुच्लृ शानच्, छान्दसो यकः श्लुः। मुच्यमानः (स्विन्नः) स्वेदयुक्तः पुरुषः (स्नात्वा) स्नानं कृत्वा (मलात्) मालिन्यात् (इव) (पूतम्) शोधितम् (पवित्रेण) शुद्धिसाधनेन वस्त्रेणाग्निना वा (इव) (आज्यम्) घृतम् (विश्वे) सर्वे देवा दिव्यगुणाः (शुम्भन्तु) शोधयन्तु (मा) माम् (एनसः) पापात् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दुपदादिव मुमुचान:

    पदार्थ

    १.(विश्वे) = सब देव (मा) = मुझे (एनस:) = पाप से इसप्रकार (शम्भन्तु) = शुद्ध करें (इव) =  जैसेकि कोई (दूपदात्) = काष्ठमय पादबन्धन से (मुमुचान:) = छूटता है। मैं पाप से इसीप्रकार छूट जाऊँ (इव) = जैसे (स्विन्न:) = स्वेदयुक्त पुरुष (स्नात्वा) = स्नान करके (मलात्) = मल से पृथक् हो जाता है। (इव) = जैसे (पवित्रेण) = पवन-साधन वस्त्र आदि से (पूतम्) = शुद्ध किया हुआ (आज्यम्) = मृत शुद्ध हो जाता है; इसीप्रकार सब देव मुझे पाप से मुक्त करें।

    भावार्थ

    हम पाप से इसप्रकार छूट जाएँ जैसेकि एक पशु खुंटे से, जैसेकि स्विन्न पुरुष स्नान द्वारा स्वेदमल से तथा जैसे छाना हुआ घृत मल से पृथक् हो जाता है।

    विशेष

    पापों का संहार करनेवाला यह पुरुष 'जाटिकायन' [जट संघाते] कहलाता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (द्रुपदात् इव) पादबन्धन से जैसे (मुमुचान:) मुक्त हुआ, (स्नात्वा) स्नान करके (इव) जैसे (स्विन्नः) पसीने से पसीजा हुआ, तथा (पवित्रेण) छाननी द्वारा (देव) जैने (आज्यम्) घृत शुद्ध हो जाता है वैसे (विश्वे) हे सब देवो! (यूयम्) तुम (मा) मुझे (एनसः) पाप से (शुम्भन्तु) छुड़ा कर शोभायमान कर दो, या शुद्ध कर दो।

    टिप्पणी

    [पवित्रेण= यज्ञ में कुशाघास द्वारा आज्यशोधक पवित्र बनाया जाता है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पाप मोचन और मोक्ष।

    भावार्थ

    (द्रुपदात् मुमुचानः इव) जिस प्रकार पशु खूंटे से मुक्त हो जाता है और (स्विन्नः) पसीने से भीगा पुरुष (स्नात्वा) नहाकर (मलात् इव) जिस प्रकार मल से रहित हो जाता है और जिस प्रकार (पवित्रेण) पवित्र = कुशा के बने, अथवा पवित्र अर्थात् कम्बल या छानने के कपड़े से (पूतम्) छान लिया गया (आज्यम्) घृत या जल शुद्ध पवित्र हो जाता है उसी प्रकार (विश्वे) समस्त विद्वान् पुरुष या (विश्वे देवाः) समस्त दिव्य पदार्थ जल, भूमि, चन्द्र, वायु आदि (मा) मुझे (एनसः) पाप से (शुम्भन्तु) शुद्ध करें।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘स्नातो’ (च०) ‘शुन्धन्तु’ इति यजु०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। विश्वे देवा देवता:। अनुष्टुप्॥ तृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin

    Meaning

    Like one released from the stake, like one soiled with sweat now washed and cleansed of filth, like ghrta filtered and purified through the strainer, may all holy powers of nature and noble humanity cleanse and purify me from sin and evil.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Like one being freed from the stake, or like a sweating person being freed from filth after a bath, or like melted butter strained with a Strainer (pavitrena putam), may all purge me from sin

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    As one who is unfastened from stake a and who is cleansed from the dirt and toil by bathing as the molten ghee cleansed by the sieve, so all the learned men free me from the wrongs.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    As one unfastened from a stake, or cleansed by bathing after toil, as butter which the sieve hath cleansed, so all shall purge me from the sin.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(द्रुपदात्) काष्ठमयबन्धात् (इव) यथा (मुमुचानः) मुच्लृ शानच्, छान्दसो यकः श्लुः। मुच्यमानः (स्विन्नः) स्वेदयुक्तः पुरुषः (स्नात्वा) स्नानं कृत्वा (मलात्) मालिन्यात् (इव) (पूतम्) शोधितम् (पवित्रेण) शुद्धिसाधनेन वस्त्रेणाग्निना वा (इव) (आज्यम्) घृतम् (विश्वे) सर्वे देवा दिव्यगुणाः (शुम्भन्तु) शोधयन्तु (मा) माम् (एनसः) पापात् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top