अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे कर्म॑ कृण्वन्तु॒ मानु॑षाः। शं नो॑ भवन्त्व॒प ओष॑धीः शि॒वाः ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वस्य॑ । स॒वि॒तु: । स॒वे । कर्म॑ । कृ॒ण्व॒न्तु॒ । मानु॑षा: । शम् । न: । भ॒व॒न्तु॒ । अप: । ओष॑धी: । शिवा: ॥२३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
देवस्य सवितुः सवे कर्म कृण्वन्तु मानुषाः। शं नो भवन्त्वप ओषधीः शिवाः ॥
स्वर रहित पद पाठदेवस्य । सवितु: । सवे । कर्म । कृण्वन्तु । मानुषा: । शम् । न: । भवन्तु । अप: । ओषधी: । शिवा: ॥२३.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कर्म करने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(मानुषाः) सब मनुष्य (देवस्य) प्रकाशमय (सवितुः) सर्वप्रेरक परमेश्वर के (सवे) शासन में (कर्म) कर्म (कृण्वन्तु) करते रहें। (शिवाः) कल्याणकारक (ओषधीः=०−धयः) अन्न आदि पदार्थ (शम्) शान्ति से (नः) हमारे (अपः) कर्म को (भवन्तु) प्राप्त हों ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य वेदविहित कर्मों को करते हुए पुरुषार्थपूर्वक अन्न आदि पदार्थों को भोगें ॥३॥
टिप्पणी
३−(देवस्य) प्रकाशस्वरूपस्य (सवितुः) सर्वप्रेरकस्य परमेश्वरस्य (सवे) प्रेरणे। शासने (कृण्वन्तु) अनुतिष्ठन्तु (मानुषाः) मनुष्याः (शम्) शान्त्या (नः) अस्माकम् (भवन्तु) भू प्राप्तौ। प्राप्नुवन्तु (अपः) म० १। कर्म−निघ० २।१। (ओषधीः) ओषधयः। अन्नादिपदार्थाः (शिवाः) कल्याणकारिण्यः ॥
विषय
प्रतिक्रियाशीलता व कल्याण
पदार्थ
१. (सवितुः देवस्य) = उस प्रेरक प्रकाशमय प्रभु की (सवे) = प्रेरणा में (मानुषा:) = विचारशील पुरुष कर्म (कृण्वन्तु) = अपने कर्तव्यकर्मों को करनेवाले हों। २. इस क्रियाशीलता के होने पर (नः) = हमारे लिए (अपः) = जल व (ओषधी:) = ओषधियाँ (शम्) = शान्ति देनेवाली व (शिवा:) = कल्याण करनेवाली (भवन्तु) = हों।
भावार्थ
प्रभु की अनुज्ञा में कर्म करने पर जल हमें शान्ति देनेवाले होते हैं और ओषधियाँ कल्याणकारिणी होती हैं।
भाषार्थ
(सवितुः देवस्य) प्रेरक परमेश्वर-देव की (सवे) प्रेरणा में (मानुषाः) मनुष्य (कर्म कृण्वन्तु) [कृषि कर्म आदि ] कर्म करें, तब (ओषधीः) ओषधियां (अपः) जलों को [प्राप्त कर] ( न: ) हमारे लिये ( शम् ) शान्ति दायक और (शिवा:) कल्याणकारिणी ( भवन्तु ) होती हैं, या हों।
टिप्पणी
[मनुष्य जब परमेश्वर की प्रेरणानुसार कृषि कर्म आदि करते हैं, तब वर्षा ठीक प्रकार से होती, और ओषधियां जल प्राप्त कर रसवती होती, और हमारे लिये शम् और शिवरूपा होती हैं]।
विषय
जलधाराओं द्वारा यन्त्र सञ्चालन।
भावार्थ
(सवितुः) सबके प्रेरक, उत्पादक (देवस्य) प्रकाशमान देव की (सवे) प्रेरणा में (मानुषाः) सब मनुष्य (कर्म) अपना अपना नियत काम (कृण्वन्तु) करें। (ओषधीः) ताप को धारण करनेवाले (अपः) जल (नः) हमें (शिवाः) सुखकारी और शान्तिदायक हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शन्तातिर्ऋषिः। आपो देवताः। १ अनुष्टुप्। २ त्रिपदा गायत्री। ३ परोष्णिक्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apah, the flow
Meaning
In this world of the creation of divine Savita, let people do their karma in the cosmic perspective, (without being prisoners of the ego in the personal situation), and may all streams of water and all herbs and trees, all streams of the existential flow and all icons of light and wisdom be good and blissful to us across the world.
Translation
Let men perform their action at the impulsion of the impeller Lord. May the gracious waters become for us remedies giving relief.
Translation
Let the men do the act of various experiments in the creation of the Almighty Creator. Let the waters be auspicious curative and propitious.
Translation
Let all people perform their religious duties as ordained by God the Creator. Let waters be consoling unto us, and plants propitious.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(देवस्य) प्रकाशस्वरूपस्य (सवितुः) सर्वप्रेरकस्य परमेश्वरस्य (सवे) प्रेरणे। शासने (कृण्वन्तु) अनुतिष्ठन्तु (मानुषाः) मनुष्याः (शम्) शान्त्या (नः) अस्माकम् (भवन्तु) भू प्राप्तौ। प्राप्नुवन्तु (अपः) म० १। कर्म−निघ० २।१। (ओषधीः) ओषधयः। अन्नादिपदार्थाः (शिवाः) कल्याणकारिण्यः ॥
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