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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 59/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अरुन्धती छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि सूक्त
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    शर्म॑ यच्छ॒त्वोष॑धिः स॒ह दे॒वीर॑रुन्ध॒ती। कर॒त्पय॑स्वन्तं गो॒ष्ठम॑य॒क्ष्माँ उ॒त पूरु॑षान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शर्म॑ । य॒च्छ॒तु॒ । ओष॑धि: । स॒ह । दे॒वी: । अ॒रु॒न्ध॒ती । कर॑त् । पय॑स्वन्तम् । गो॒ऽस्थम् । अ॒य॒क्ष्मान् । उ॒त । पुरु॑षान् ॥५९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शर्म यच्छत्वोषधिः सह देवीररुन्धती। करत्पयस्वन्तं गोष्ठमयक्ष्माँ उत पूरुषान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शर्म । यच्छतु । ओषधि: । सह । देवी: । अरुन्धती । करत् । पयस्वन्तम् । गोऽस्थम् । अयक्ष्मान् । उत । पुरुषान् ॥५९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (ओषधिः) तापनाशक (अरुन्धती) न रोक डालनेवाली शक्ति परमेश्वर (देवीः सह=देवीभिः सह) उत्तम क्रियाओं के साथ (शर्म) शरण (यच्छतु) देवे। (गोष्ठम्) हमारी गोशाला को (पयस्वन्तम्) बहुत दुग्धवाली (उत) और (पुरुषान्) पुरुषों को (अयक्ष्मान्) नीरोग (करत्) करे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपने घरों में अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके सदा स्वस्थ रहें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(शर्म) शरणम् (यच्छतु) ददातु (ओषधिः) अ० १।२३।१। तापनाशयित्री (देवीः सह) तृतीयार्थे द्वितीया। देवीभिर्दिव्यक्रियाभिः सहिता (अरुन्धती) अरोधनशक्तिः परमेश्वरः (करत्) कुर्यात् (पयस्वन्तम्) प्रभूतदुग्धयुक्तम् (गोष्ठम्) गोनिवासदेशम् (अयक्ष्मान्) राजरोगरहितान् (उत) अपि च (पुरुषान्) सम्बन्धिनो मनुष्यान् ॥

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    विषय

    पयस्वान गोष्ठ

    पदार्थ

    १. (देवी: सह अरुन्धती) = दिव्य गुणों से सम्पन्न यह अरुन्धती (ओषधि:) = ओषधि (शर्म यच्छन्तु) = हमारे सब पशुओं के लिए सुख दे। २. यह अरुन्धती ओषधि सब पशुओं को नीरोगता के द्वारा (गोष्ठम्) = हमारे गो-निवास देश को (पयस्वन्तम् करत्) = प्रभूत दुग्ध से युक्त करे, (उत) = और इस गोदुग्ध के द्वारा (पूरुषान्) = घर के सब व्यक्तियों को (अयक्ष्मान्) = नीरोग करे।

    भावार्थ

    अरुन्धती ओषधि हमारे पशुओं को नोरोग बनाकर हमारे घरों को दूध से भर दे। इस गोदुग्ध द्वारा यह हमारे सब मनुष्यों को स्वस्थ बनाए।

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    भाषार्थ

    (अरुन्धती) घावों को पी कर सूखा देने वालो, स्वस्थ कर देने वाली (सहदेवी) सहदेवी (ओषधिः) ओषधि (शर्म) सुख (यच्छतु) प्रदान करे। (गोष्ठम्) गोशाला को (पयस्वन्तम्) दुग्ध सम्पन्न (करत्) करे, (उत) तथा (पूरुषान्) पुरुषों को (अयक्ष्मान्) यक्ष्मा से रहित करे।

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    विषय

    गृह-पत्नी के कर्तव्य, पशुरक्षा और गोपालन।

    भावार्थ

    (अरुन्धती) घर की स्वामिनी (देवीः सह) घर की अन्य सहेली स्त्रियों के साथ मिल कर (ओषधिः) ओषधि = अन्न आदि जड़ी बूटियों के प्रयोग से (शर्म यच्छतु) सब को सुख प्रदान करे। और पशुओं को भी हरा चारा दे। और (गोष्ठम्) गोशाला को (पयस्वन्तं करत्) पुष्टिकारक दूध और जल से सम्पन्न करे। (उत) और सब पदार्थ स्वच्छ रक्खे जिससे (पूरुषान्) घर के और पुरुषों को भी (अयक्ष्मान् करत्) राजयक्ष्मा से रहित, नीरोग करे। अर्थात् घर की स्त्री ही घर के पशुओं, मनुष्यों और बालकों के लिये भोजन आच्छादन और ओषधि आदि का उपचार करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्र उत मन्त्रोक्ता देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Herb Arundhati

    Meaning

    Let divine Arundhati along with other divine herbs give health and peace to the animals and thus make the stall overflow with milk, and let it make humanity also free from consumptive diseases such as tuberculosis.

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    Translation

    May the unobstructing herb sahadevi grant comfort. May it make our cow-stall rich in milk and our men free from consumption.

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    Translation

    Let the mighty Arundhati, allied with other medicines give us pleasure, let it make our cowpen rich in milk and let it make our men free from enturberculous affections.

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    Translation

    Let the mistress of the house along with other ladies afford us joy. May she avert consumption from our men, and make our cow-pen rich in milk.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(शर्म) शरणम् (यच्छतु) ददातु (ओषधिः) अ० १।२३।१। तापनाशयित्री (देवीः सह) तृतीयार्थे द्वितीया। देवीभिर्दिव्यक्रियाभिः सहिता (अरुन्धती) अरोधनशक्तिः परमेश्वरः (करत्) कुर्यात् (पयस्वन्तम्) प्रभूतदुग्धयुक्तम् (गोष्ठम्) गोनिवासदेशम् (अयक्ष्मान्) राजरोगरहितान् (उत) अपि च (पुरुषान्) सम्बन्धिनो मनुष्यान् ॥

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